गुजरात में सहकारिता
गुजरात सामाजिक एवं आर्थिक मामले में देच्च का एक अग्रणी राज्य है। इस राज्य का सहकारिता आन्दोलन पूरे देश में जाना जाता है। यहां दुग्ध, शक्कर एवं विपणन सहकारितायें बहुत मजबूत स्थिति में हैं।
यहाँ ६२३४३ सहकारी संस्थायें, सहकारी समिति अधिनियम १९६१ के अन्तर्गत पंजीकृत हैं जिनके सदस्यों की संखया १.२५ करोड़ है। इस प्रकार औसत ५ में से १ व्यक्ति सहकारी संस्था का सदस्य है।
गुजरात अमूल जैसी दूध की सहकारी संस्थाओं के कारण अधिक जाना जाता है। यहां १६ दुग्ध जिला यूनियन तथा १२४०२ प्राथमिक दुग्ध सहकारी एवं दुग्ध खरीदी केन्द्र हैं और औसतन प्रतिदिन ६.७ लाख किलो दुग्ध का उत्पादन होता है। 'स्वेत क्रान्ति' का बहुत बडा प्रभाव ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर है। वास्तव में गुजरात में आदिवासी समुदाय दुग्ध सहकारी संस्थाओं, सहकारी द्राक्कर कारखानों एवं लघु सिंचाई से अधिक जुडा है। आदिवासी एवं अनुसूचित जाति समुदाय के लिए योजनाओं में अलग से विशेष व्यवस्था है। दुग्ध सहकारिता क्षेत्र का कुल व्यवसाय प्रतिवर्ष ४ हजार करोड से भी अधिक है।
यहाँ सहकारी क्षेत्र का गरीब किसानों, छोटे व्यवसायियों एवं व्यापारियों की आर्थिक उन्नति में विशेष योगदान है। यहाँ १८ केन्द्रीय सहकारी बैंक कार्यरत हैं तथा प्राथमिक समितियों द्वारा किसानों को कर्ज दिया जाता है। २६० शहरी बैंक गैर कृषि क्षेत्र में कर्ज देते हैं।
यहाँ सहकारी संस्थाओं को लोकतान्त्रिक एवं व्यावसायिक पद्धति से बिना शासन के हस्तक्षेप के आगे बढ़ने का अवसर दिया जाता है। शासन केवल शेयर कैपिटल, प्रोत्साहन बोनस, सहभागिता, कृषि जोखिम एवं हीरा व्यवसाय से
सम्बन्धित किसानों एवं व्यवसायियों विशेषकर अनुसूचित जाति, जनजाति समुदाय को सदस्य बनने में सहायता करती है। हमने सहकारिता के क्षेत्र में बहुत सारी योजनायें तैयार कर लागू की हैं, जिनमें प्रमुख रूप से सहकारी विपणन, भण्डारण तथा वेयर हाउसिंग सम्मिलित है।
वैद्यनाथन कमेटी की अनुशंसायें राज्य में लागू की गई हैं। राज्य सरकार तथा नाबार्ड के आपसी समझौते के प्रारूप पर भी हस्ताक्षर हो चुके हैं। गुजरात सहकारी समिति अधिनियम १९६१ में भी आवश्यकतानुसार २३ जनवरी २००८ को संशोधन किया जा चुका है। राज्य को १२१९ करोड़ रूपये का जो पैकेज मिलने वाला है उसमें से ३५३ करोड रूपये की प्रथम किश्त मार्च २००९ के अन्त तक अवमुक्त किया जा चुका है।
जनसंखया की दृष्टि से एक तिहाई से अधिक गुजरात के क्षेत्र जैसे चिखली डांग, सूरत, भरूच, पंचमहाल, बडौदा एवं वलसाड जिले आदिवासी, वनवासी एवं मजदूर बाहुल्य हैं। सहकारी संस्थाओं की एक बड़ी संखया इन क्षेत्रों में परदे वाली बग्गी, वन एवं वनरोपण, वन सामग्री के संग्रहण तथा लघु वनोपोज की बिक्री में संलग्न हैं। इन्होंने आदिवासीजनों तथा उनके परिवारों की अच्छी सहायता किया है जिससे उनके जीवन यापन में सुधार हुआ है। ये समितियां उनके सामाजिक एवं आर्थिक उत्थान में कार्यरत हैं। इनका प्रयास है कि शिक्क्षा, स्वास्थ्य सेवा, पेय जल एवं समाज कल्याण कार्यों में उनकी सहायता करें। इन समितियों के संघ (Federation) इनको सहायता एवं मार्ग दर्च्चन देते रहते हैं।
गुजरात का समुद्रतटीय क्षेत्र १६६३ किलो मीटर है। प्रदेश के भीतरी भाग एवं समुद्री मछेरों की ४९१ सहकारी समितियों के ५५ हजार सदस्य हैं। मछेरों को फिशिंग गियर (fishing gear) की सुविधा एवं मछेरा उद्योग के विकास के लिए एक राज्यस्तरीय संघ एवं दो केन्द्रीय स्तर की सहकारी संस्थायें कार्यरत हैं। इन्होंने मछेरा समुदाय के सामाजिक एवं आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
१७६६ लिफ्ट सिंचाई सहकारी संस्थायें जो कि कृद्गिा या सिंचाई सम्बन्धित व्यक्तियों द्वारा संगठित हैं, बहुत अच्छी प्रकार से कार्य कर रही हैं। ट्यूबवैल, नहरों, बिजली पम्प मोटरों एवं तेल ऊर्जा से चलित पम्प मोटरों द्वारा सिंचाई के साधन प्रदान किये जा रहे हैं। स्वयंसेवी संस्थायें सद्गुरू सेवा संघ एवं आगाखान ग्रामीण प्रोत्साहन समिति इन कार्यक्रमों के पंजीकरण एवं समितियों के विकास में लगी हैं।
बाइब्रेंट गुजरात में सहकारिता समुदायिक विकास एवं सामाजिक परिवर्तन के लिए एक आर्दश माध्यम है।
Thursday, June 30, 2011
इडोटोरियल अक्टूबर २००९
इडोटोरियल अक्टूबर २००९
गुजरात स्पंदन कर रहा है, अंगड़ाइयाँ ले रहा है, गतिशील है। अभी विकास की और मंजिलें बाकी हैं जिन्हे प्राप्त करना है, इसलिये गुजरात वाइब्रेंट है। कच्छ से लोकसभा की सदस्य पूनमबेन जाट कहती हैं- 'हमें सोचना पडता है कि विकास का कौन सा कार्य करें जो नहीं हुआ है। नरेन्द्र मोदी जी ने कुछ नहीं छोडा है'। गुजरात को पूर्ण विकसित कर दिया है फिर भी वो गुजरात को वाइब्रेंट गुजरात की संज्ञा देते हैं। वे गुजरात को दुनिया के नक्शे में वह स्थान दिलाना चाहते हैं जिससे विश्व के विकसित देशों के लोग भी भारत की अस्मिता, संस्कृति और परम्परा पर श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिये आतुर हो जायें। इसलिये गुजरात वाइब्रेंट है।
प्रारम्भ से ही गुजरात को समुद्र के किनारे होने का लाभ मिला है। वैश्विक व्यापार समुद्र के रास्ते होता था। लोगों की बुद्धि व्यावसायिक थी। राजनीतिज्ञों की सोच भी उसी दिशा में रही। सहकारिता भी इसी कारण वहां सफल हुई। ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा और व्यावसायिक सोच हो तो आर्थिक उन्नति में देर नहीं लगती। गरीब और सामान्य व्यक्ति के पास यह था। धन की कमीं थी तो सहकारिता ने पूरी कर दी। गरीब भी गरीब नहीं रहा। सामान्य भी धनी हो गया। मोदी जी ने विरासत में जो पाया उसमें चार-चाँद लगा दिया, फिर भी सोच रूकी नहीं। गुजरात वाइब्रेंट है।
यहां के महानगरों और नगरों में शनिवार या रविवार की रात्रि में अधिकांश घरों में खाना नहीं बनता। होटलों में जगह नहीं मिलती। यह रिवाज बन गया है। देश का सबसे विकसित प्रदेश जिसकी प्रति व्यक्ति आय रू. ४५,७७३/- है जो राष्ट्रीय औसत रू. ३८,०८४/- से अधिक है। इसमें सहकारी क्षेत्र का बहुत बड़ा योगदान है। अमूल और अमूल जैसी पूरे प्रदेश में फैली हुई अनेक डेयरी हैं जिन्होंने वहां श्वेत क्रान्ति ला दिया है। लिज्जत पापड, सेवा बैंक महिलाओं की संस्थायें हैं। सिंचाई के पानी के लिये भी ३००० से अधिक सहकारी समितियां हैं। वहां के गाँवों में भी रोजगार है,शहरों का तो पूछना ही क्या है। तभी तो देश के अधिकांश हिस्सों के लोग, उत्तर प्रदेश, बिहार के लोग भागे चले आते हैं। सूरत, बडौदा, जामनगर, भावनगर इनसे भरा पडा है।
भारत में पूर्वात्तर राज्य भी हैं, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा, झारखण्ड और बिहार भी है। वहां गरीबी है, भुखमरी है, पिछडापन है। यह असंतुलन है। मोदी जी को इसके लिये भी सोचना होगा। केवल गुजरात को ही नहीं पूरे भारत को वाइब्रेंट बनाना होगा। योजना आयोग ने भारतीय जनता पार्टी द्वारा शासित राज्यों की प्रशंसा की है कि उनके प्रदेशों में जनहित के कार्य किये जा रहे हैं। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी जी ने वहां के वित्तमन्त्रियों को केंद्रीय कार्यालय में सम्मानित किया। वे चाहते हैं भारत वाइब्रेंट हो जाय क्योंकि राष्ट्र उनकी प्राथमिकता है, उनका दर्द्गान है, उनका स्वप्न है, उनका जीवन है।
गुजरात स्पंदन कर रहा है, अंगड़ाइयाँ ले रहा है, गतिशील है। अभी विकास की और मंजिलें बाकी हैं जिन्हे प्राप्त करना है, इसलिये गुजरात वाइब्रेंट है। कच्छ से लोकसभा की सदस्य पूनमबेन जाट कहती हैं- 'हमें सोचना पडता है कि विकास का कौन सा कार्य करें जो नहीं हुआ है। नरेन्द्र मोदी जी ने कुछ नहीं छोडा है'। गुजरात को पूर्ण विकसित कर दिया है फिर भी वो गुजरात को वाइब्रेंट गुजरात की संज्ञा देते हैं। वे गुजरात को दुनिया के नक्शे में वह स्थान दिलाना चाहते हैं जिससे विश्व के विकसित देशों के लोग भी भारत की अस्मिता, संस्कृति और परम्परा पर श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिये आतुर हो जायें। इसलिये गुजरात वाइब्रेंट है।
प्रारम्भ से ही गुजरात को समुद्र के किनारे होने का लाभ मिला है। वैश्विक व्यापार समुद्र के रास्ते होता था। लोगों की बुद्धि व्यावसायिक थी। राजनीतिज्ञों की सोच भी उसी दिशा में रही। सहकारिता भी इसी कारण वहां सफल हुई। ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा और व्यावसायिक सोच हो तो आर्थिक उन्नति में देर नहीं लगती। गरीब और सामान्य व्यक्ति के पास यह था। धन की कमीं थी तो सहकारिता ने पूरी कर दी। गरीब भी गरीब नहीं रहा। सामान्य भी धनी हो गया। मोदी जी ने विरासत में जो पाया उसमें चार-चाँद लगा दिया, फिर भी सोच रूकी नहीं। गुजरात वाइब्रेंट है।
यहां के महानगरों और नगरों में शनिवार या रविवार की रात्रि में अधिकांश घरों में खाना नहीं बनता। होटलों में जगह नहीं मिलती। यह रिवाज बन गया है। देश का सबसे विकसित प्रदेश जिसकी प्रति व्यक्ति आय रू. ४५,७७३/- है जो राष्ट्रीय औसत रू. ३८,०८४/- से अधिक है। इसमें सहकारी क्षेत्र का बहुत बड़ा योगदान है। अमूल और अमूल जैसी पूरे प्रदेश में फैली हुई अनेक डेयरी हैं जिन्होंने वहां श्वेत क्रान्ति ला दिया है। लिज्जत पापड, सेवा बैंक महिलाओं की संस्थायें हैं। सिंचाई के पानी के लिये भी ३००० से अधिक सहकारी समितियां हैं। वहां के गाँवों में भी रोजगार है,शहरों का तो पूछना ही क्या है। तभी तो देश के अधिकांश हिस्सों के लोग, उत्तर प्रदेश, बिहार के लोग भागे चले आते हैं। सूरत, बडौदा, जामनगर, भावनगर इनसे भरा पडा है।
भारत में पूर्वात्तर राज्य भी हैं, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा, झारखण्ड और बिहार भी है। वहां गरीबी है, भुखमरी है, पिछडापन है। यह असंतुलन है। मोदी जी को इसके लिये भी सोचना होगा। केवल गुजरात को ही नहीं पूरे भारत को वाइब्रेंट बनाना होगा। योजना आयोग ने भारतीय जनता पार्टी द्वारा शासित राज्यों की प्रशंसा की है कि उनके प्रदेशों में जनहित के कार्य किये जा रहे हैं। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी जी ने वहां के वित्तमन्त्रियों को केंद्रीय कार्यालय में सम्मानित किया। वे चाहते हैं भारत वाइब्रेंट हो जाय क्योंकि राष्ट्र उनकी प्राथमिकता है, उनका दर्द्गान है, उनका स्वप्न है, उनका जीवन है।
Tuesday, June 28, 2011
सहकारी बैंकों को आयकर से मुक्त किया जाये
सहकारी बैंकों को आयकर से मुक्त किया जाये
भारतीय जनता पार्टी के पूर्व अध्यक्ष श्री राजनाथ सिंह ने लोकसभा में दिनांक १७ जुलाई २००९ को कृषि पर चर्चा करते हुए भारत सरकार से बहुत ही जोरदार शब्दों में यह मांग की कि सहकारी बैंकों पर हुए भारत सरकार से बहुत ही जोरदार शब्दों में यह मांग की कि सहकारी बैंकों पर यू.पी.ए. सरकार द्वारा दो-तीन वर्षों पहले लगाया गया आयकर पूर्णतः समाप्त किया जाना चाहिए क्योंकि ये बैंक गरीबों, किसानों और मजदूरों को छोटे कज आसानी से और तुरन्त उपलब्ध कराते हैं।
उन्होंने कहा कि भारत में कार्यरत ०.५ मिलियन सोसाइटीज, २३० मिलियन सदस्य एवं १.५ मिलियऩ सहकारी कर्मचारी हैं यह विश्व का सबसे बडा सहकारिता आन्दोलन है, उसे राजनीति एवं भ्रष्टाचार से मुक्त कर उबारने के लिये गंभीरता पूर्वक विचार करने की आवश्यकता है।
उन्होंने इस बात पर विशेष जोर दिया कि सहकारी बैंकों तथा सहकारी समितियों से जो किसान कर्ज लेना चाहें उन्हें अधिक से अधिक तीन, चार या पांच प्रतिशत ब्याज दर पर ही लोन मिल सके ऐसी व्यवस्था सरकार को करनी चाहिए।
भारतीय जनता पार्टी के पूर्व अध्यक्ष श्री राजनाथ सिंह ने लोकसभा में दिनांक १७ जुलाई २००९ को कृषि पर चर्चा करते हुए भारत सरकार से बहुत ही जोरदार शब्दों में यह मांग की कि सहकारी बैंकों पर हुए भारत सरकार से बहुत ही जोरदार शब्दों में यह मांग की कि सहकारी बैंकों पर यू.पी.ए. सरकार द्वारा दो-तीन वर्षों पहले लगाया गया आयकर पूर्णतः समाप्त किया जाना चाहिए क्योंकि ये बैंक गरीबों, किसानों और मजदूरों को छोटे कज आसानी से और तुरन्त उपलब्ध कराते हैं।
उन्होंने कहा कि भारत में कार्यरत ०.५ मिलियन सोसाइटीज, २३० मिलियन सदस्य एवं १.५ मिलियऩ सहकारी कर्मचारी हैं यह विश्व का सबसे बडा सहकारिता आन्दोलन है, उसे राजनीति एवं भ्रष्टाचार से मुक्त कर उबारने के लिये गंभीरता पूर्वक विचार करने की आवश्यकता है।
उन्होंने इस बात पर विशेष जोर दिया कि सहकारी बैंकों तथा सहकारी समितियों से जो किसान कर्ज लेना चाहें उन्हें अधिक से अधिक तीन, चार या पांच प्रतिशत ब्याज दर पर ही लोन मिल सके ऐसी व्यवस्था सरकार को करनी चाहिए।
वैद्यैद्यनाथन समिति - एक क्रान्ति
वैद्यैद्यनाथन समिति - एक क्रान्ति
सन् २००८ में नाबार्ड ने फाईनैंशल इनक्लूजन (Financial Inclusion) के संदर्भ में एक समिति की नियुक्ति की। इस समिति ने अभ्यास करके अहवाल (प्रतिवेदन) दिया। इसमें समिति ने कहा है कि अनेक राष्ट्रीकृत बैंको ने अपनी शाखाए ग्रामीण क्षेत्र में खोली हैं, इसके बावजूद आज भी देश के कुल ग्रामीण किसानों में ५१ टक्के (प्रतिशत) किसान किसी भी बैंकिंग व्यवस्था से दूर हैं। पूर्वत्तोर राज्य में इसके प्रमाण बहुत हैं, मगर महाराष्ट्र जैसे प्रगत राज्य में भी यह स्थिति २००८ में भी ३४ टक्के (प्रतिशत) है। इन किसानों का किसी भी बैंक में खाता ही नहीं है, ऋण लेने का तो सवाल ही नही। इसका अर्थ होता है कि ५१ प्रतिशत किसान आज भी या तो ऋण ही नही लेता या वह आज भी साहूकारों से ऋण लेते हैं। किसान ऋण लिये बिना खेती कर ही नहीं सकता, यह सत्य जानने के लिए किसी भी सर्वेक्षण की बिल्कुल आवश्यकता नही है। उसे ऋण की जरूरत तो है ही और यह जरूरत वह आज भी साहूकार से और कुछ अंश तक ग्रामीण कृषि सहकारी साख समितियों से पूरी कर लेता है। १९०४ के सहकारिता कानून के अन्तर्गत एक त्रिस्तरीय सहकारी ढ़ांचा निर्माण किया गया था, जिसमें ग्राम स्तर पर प्राथमिक कृषि सहकारी साख समिति की व्यवस्था की गयी थी (इस लेख में समिति कहेंगे), इन साख समितियों को निधि उपलब्ध कराने हेतु जिला स्तर पर जिला सहकारी बैंक और इन बैंकों का राज्य स्तर पर एक अपेक्स बैंक की रचना की गई थी। स्वाधीनता के बाद इस रचना में अच्छी प्रगति हुई है। २००३ में अपने देश में १२,३०९ साख समितियॉ, ३६० जिला बैंक तथा ३० अपेक्स बैंक थे। इन साख समितियों द्वारा किसानों को केवल क्रॉप लोन (फसल हेतु लोन) मिलता था। केवल इस व्यवस्था से न तो साख समितियॉ व्हायेबल (Viable) हुई थी ना ही जिला सहकारी बैंक। धीरे–धीरे सभी राज्यों ने इन जिला बैंको को अन्य व्यवसाय करने के लिए प्रोत्साहित किया, और उनका व्यवसाय बढ़ने लगा। साख समितियों को भी बहुतांश राज्यों ने जन वितरण व्यवस्था (PDS) काम देकर व्यवसाय बढ़ाने के लिए व्यवस्था की, मगर व्हायेबल (Viable) ना होने के कारण वह स्वतंत्र कर्मचारी भी नहीं रख पाते थे। परिणामतः कुछ राज्यों ने केडर की स्थापना की और एक-एक कर्मचारी पाँच-पाँच समितियों का हिसाब रखने लगा। खेती के लिए मिलने वाला ऋण किसान को वर्ष में एक या दो बार और वह भी अधूरा मिलता था। किसान अपनी खेती तथा निजी निर्वाह के लिए साहूकार के पास जाता ही था। परिणामस्वरूप वह समितियों का ऋण वापिस नहीं कर पाता था और समितियॉ घाटे में जाने लगती। अनेक राज्य सरकारों ने कई बार यह ऋण अंशतः माफ किये, कई बार ब्याज माफ किया। केंद्र सरकार ने भी इन्हे कई बार मदद किया। मगर २००३ के आंकड़ों से पता चला कि इस ढाचे का घाटा दस हजार करोड के ऊपर जा रहा है। इसका अर्थ साफ था कि यह त्रिस्तरीय रचना डूबने को थी। तब केंद्र सरकार ने प्रो. वैद्यनाथन की अध्यक्षता में एक समिति का निर्माण किया। इस समिति ने अभ्यास करके २००५ में अपनी रिपोर्ट दी।
इस रिपोर्ट में समिति ने घाटे के कारण और उस पर उपाय योजना के सुझाव दिये, घाटे के निम्न कारण थे :
१. हिसाब पद्धति उचित नहीं है।
२. इस रचना में तंत्रज्ञान का पूरा अभाव था।
३. कर्मचारियों को कार्य के बारें में ज्ञान नहीं था तथा उन्हे प्रशिक्षण देने की कुछ भी व्यवस्था नहीं थी।
४. तीनों स्तर पर एक दूसरे से कानूनन जुड़े होने के कारण परावलंबी थे।
५. राज्य सरकारों का दैनदिन कार्य में बहुत ही हस्तक्षेप हुआ करता था। समिति को बर्खास्त करना, निर्वाचन कार्य समय पर न करना आदि।
६. सरकारों का कृषि विषयक धोरण भी परिणाम करता था। जैसे कभी किसान का ऋण माफ किया तो जो किसान कर्ज वापिस करते हैं, उन्हें लगता कि डिफाल्ट होने से फायदा है और इस प्रकार समितियों का घाटा बढ़ने लगता।
वैद्यनाथन समिति ने इन्हीं कारणों को दूर करने के लिए सुझाव दिये। कारण स्पष्ट था कि यदि यह कारण दूर नहीं हुए और आज इस संरचना का घाटा भर दिया तो आगे चार-पाँच साल में फिर यही स्थिति आ जायेगी।
इसलिए समिति ने निम्नलिखित सुझाव दिये :-
१. पूरी संचरना में हिसाब की एक पद्धति हो।
२. प्रत्येक समिति, बैंक पूरी तरह संगणीकृत हो।
३. हिसाब पद्धति तथा एम.आई.एस. (MIS) प्र० सू० प० का प्रशिक्षण दिया जाए।
४. आर्थिक दृष्टि से प्रत्येक स्तर स्वतंत्र हो
५. प्रशासकीय दृष्टि से भी प्रत्येक स्तर स्वतंत्र हो, राज्य सरकार केवल पंजीकरण और समय पर निर्वाचन कराये। यदि समितियों को लगातार ३ साल घाटा हुआ अथवा कोई भ्रष्टाचार का गंभीर मामला हो अथवा सत्त गणपूर्ति न हो तो समिति स्थगित करें। जिला बैंक भी स्वायत्त हों, मगर शासन का एक प्रतिनिधि कार्यकारी मण्डल में हो और बैंको का कार्य रिर्जव बैंक के निर्देशानुसार चले। इसके लिए प्रत्येक राज्य सरकार को अपने सहकारी कानून में संशोधन करना आवश्यक था, क्योंकि इन समितियों तथा बैंको में प्रत्येक राज्य सरकार ने पूंजी लगायी थी और बंधन भी कानून से लगाये थे।
६. पूरा घाटा भर देना, तंत्रज्ञान एवं प्रशिक्षण के लिए पूरा पन्द्रह हजार करोड़ रूपयों का पैकेज इस संरचना के लिए दिया जाए।
केन्द्र सरकार ने यह रिपोर्ट स्वीकृत की और नाबार्ड को इसके क्रियान्वयन का कार्य सौंपा। यह संरचना स्वायत्त हो, सशक्त हो इसके लिए इसी पैकेज में समितियों का घाटा भरकर प्रत्येक समिति का CRAR 7% हो इसका प्रावधान रखा गया। एक बार इतनी सहायता करने के पश्चात् समिति को बाद में कभी भी, कहीं से भी सहायता नहीं मिलेगी ऐसा प्रावधान किया गया। स्वायत्त, सशक्त, संस्था यदि चलाना नहीं आता तो ऐसी संस्था समाप्त होना ही ठीक है ऐसा विचार वैद्यनाथन् समिति ने दिया। ऐसी स्थिति लाने के लिए राज्य सरकारों को सहकारी कानून में संशोधन करना आवश्यक था। इसलिए नाबार्ड ने प्रथम राज्य सरकार, केन्द्र सरकार, और नाबार्ड के बीच एक ट्रायपार्ट एम.ओ.यू. करने के लिए कहा। इस आपसी समझौता ज्ञापन (MOU) में जहॉ केडर हो वो बर्खास्त करने की भी सूचना थी। राज्य सरकारो ने इसे स्वीकृत करने के लिए दो साल का समय लिया और २००८ में २५ राज्यों ने इसे स्वीकार किया। नाबार्ड ने २००४ के अंको पर विशेष अंकेक्षण (Special Audit) करना तथा अनुदान निश्चित करने का काय प्रारम्भ किया। इसके बाद समितियों के कर्मचारियों का चार दिन का तथा संचालकों का दो दिन का प्रशिक्षण प्रारम्भ किया। आज सभी २५ राज्यों में ८०६०६ समितियों में से ७८५३९ समितियों का विशेष अंकेक्षण (Special Audit) तथा १३ राज्यों से ६२३०१ कर्मचारियों को तथा ८८७७३ संचालकों को प्रशिक्षण दिया गया है। समान लेखा पद्धति (Common Accounting system) का Software तैयार किया है और उसका प्रतिदर्श (Module) तैयार करके राज्यों के पंजीयक सहकारी सोसाईटीज (RCS) को दिया गया है। इसका प्रशिक्षण भी अभी तक ५११०६ कर्मचारियों को दिया गया है। जिला सहकारी बैंको का भी विशेष अंकेक्षण (Special Audit) हो चुका है और उनके संचालकों तथा कर्मचारियों का प्रशिक्षण भी प्रारम्भ हो गया है।
नाबार्ड इस सुझाव का क्रियान्वयन बहुत ही अच्छे ढ़ंग से कर रहा है मगर इससे वैद्यनाथन समिति की अपेक्षाएं तथा देश की अपेक्षाएं पूरी नहीं होंगी। आज तक की स्थिति पूर्ण रूप से एकदम बदल नहीं सकती। आज तक ये समितियां केवल फसल लोन तथा जन वितरण प्रणली PDS का काम ही करती थीं, अब अपेक्षा ऐसी है कि वह स्वतंत्र है अपना कार्य को अपने ढ़ंग से बढ ाने के लिए स्वतंत्र है। आज तक केवल समिति का सचिव और जिला सहकारी बैंक का एक अधिकारी ही समिति किसी भी संचालक को पता नहीं था, वो कुछ जानते भी नहीं थे और उन्हें यह सचिव पूछते भी नहीं थे। अपने कार्यकर्त्ताओं को ऋण मिले इसके लिए स्थानीय राजनीतिक कार्यकर्त्ता सचिव तथा जिला बैंक अधिकारी को अपनाकर काम किया करते थे। जिला बैंक अपने हाथ में रहे ऐसा प्रयास हर राजनीतिक पार्टी करती थी। जिला बैंक के संचालक प्रमुखतः समितियों में से होने के कारण समितियॉ अपने हाथ में रहे ऐसा प्रयास करते थे और हर समिति के संचालकों का यही प्रमुख कार्य था।
गांव का विकास इस समिति से हो सकता है ऐसा जहां भी विचार हुआ वहां की समिति अच्छी हुई। राजनीति मुक्त जो समिति रही वहां अच्छा विकास हुआ। अपने देश में सैकेड़ों समितियॉ बहुत अच्छा काम करती हैं, मगर जैसे वैद्यनाथन समिति ने कहा कि राज्य सरकारों का हस्तक्षेप अच्छा काम नहीं होने देता था, यह सारा बदल देना और गांव के किसानों ने अपनी समिति जनतंत्र के मूल्यानुसार चलाना यह अचानक होने वाला काम नही है। नाबार्ड का प्रयास उत्तम है, मगर यह कार्य ही ऐसा है कि जिसके लिए सतत प्रशिक्षण आवश्यक है। किसानों को आत्मविश्वास दिलाना कि वे समिति चला सकते हैं, उनका संचालक मण्डल स्वायत है, राज्य सरकार का सहकारी विभाग उसे बर्खास्त नहीं कर सकता, वे उनका कार्यस्वरूप स्वयं निश्चित कर सकते हैं, ऋण देना, वसूली करना, ब्याजदर निश्चित करना, डिपॉजिट लेना, कार्य की नई दिशाएं खोजना यह समितियों के संचालक मण्डल का ही अधिकार है। यह कोई सामान्य बात नही है। महात्मा गाँधी ने नमक का सत्याग्रह करके इस देश के सामान्य व्यक्ति को अपने अधिकार का ज्ञान देने का प्रयास किया था। यह कार्य भी उसी श्रेणी का है। जिन्हे अपने अधिकार तथा कर्त्तव्य का ज्ञान है, वह अच्छा काम करते ही हैं। आज देश के करीबन एक लाख समितियों के संचालकों को यह ज्ञान देना बहुत बड़ा काम है। यह केवल सरकार एवं नाबार्ड नहीं कर सकती है बल्कि यह करने के लिए स्वयंसेवी संस्था, सामाजिक कार्यकर्त्ताओं को भी अपनी शक्ति लगाना आवश्यक है। हर राजकीय पक्ष यदि इसमें भाग ले तो यह कार्य जल्दी होगा। मगर उन्हे केवल अपने पार्टी का स्वार्थ देखना छोड ना पडेगा।
इस क्रियान्वयन में कुछ त्रुटियॉ सामने आ रही हैं।
(१) कुछ राज्यों में केडर व्यवस्था है। केडर समाप्त तो हो गया है मगर राज्य सरकारों को भी अचानक हजारों कर्मचारियों को अन्यत्र काम में लगाना संभव नहीं है। मगर तब तक समितियों का काम भी ठहर न जाये इसकी चिंता करनी पड़ेगी। केडर का कर्मचारी ही अनेक समितियों की समस्या है, इसलिए राज्य सरकारों ने जिला स्तर पर यह व्यवस्था करने के लिए प्रयास जारी किये हैं। जो समितियॉ अपना सचिव नियुक्ति करना चाहती हैं, उन्हे करना चाहिए और राज्य सरकारें जो केडर व्यवस्था के लिए निधि समितियों से लेती थीं, उसमें से उन समितियों को छूट देनी चाहिए।
(२) २००४ के अंको पर Special Audit हुआ और अनुदान निश्चित किया गया। वैद्यनाथन समिति का केन्द्र सरकार को कहना है कि सशक्त और स्वायत्त करके समिति किसानों के, यानि संचालको के हाथ सौंप देना चाहिए। उसके बाद यह समिति चलाना उनका काम है। वे अच्छे ढ़ंग से नहीं चलायेंगे तो कुछ हद तक नियंत्रण करने वाली बैंक अथवा नाबार्ड सूचनाएं देती रहेगी मगर वसूली नहीं हुई तो यथावकाश वह समिति समाप्त हो जायेगी केन्द्र सरकार उसे मदद करने वाली नहीं है। विच्चेद्गा अंकेक्षण Special Audit 2004 के अंकों पर २००८ में हुआ। उसके बाद प्रशिक्षण हुआ। प्रशिक्षण में आप स्वतंत्र है ऐसा कहा तो गया, मगर वह पर्याप्त नहीं था। फिर भी २००४ से २००८ तक जो व्यवहार हुआ, उससे यदि घाटा हुआ अथवा CRAR कम हुआ तो इसका जिम्मेदार कौन? उस समिति के संचालकों को २००८ तक कुछ मालूम ही नहीं था। इसका भी विचार केन्द्र या राज्य सरकारों को करना होगा। अभी २००९ तक विच्चेद्गा अंकेक्षण Special Audit का रिपोर्ट भी समिति को पहुंचाए नहीं गये हैं। वे अभी जिला सहकारी बैंको में ही हैं और आज तक पहले जैसा ही जिला सहकारी बैंक कार्य कर रहे हैं।
यह त्रिस्तरीय संरचना एक दूसरे से बहुत जुड़ी हुई है। सालों से जिला सहकारी बैंक और समिति एक साथ काम करते आय हैं। जिला सहकारी बैंक के सकल कारोबार Turn over में समितियों का बहुत हिस्सा है। इसलिए जिला सहकारी बैंक के इस विषय में काम करने वाले अधिकारी, यह समिति जनतंत्रनुसार चलाने में बहुत अच्छे मार्गदर्शक हो सकते हैं। यही सोचकर नाबार्ड ने इन्हीं अधिकारियों को मास्टर ट्रेनर बनाया था। मगर यह कार्य अच्छे ढ़ंग से नहीं हो पाया। जिला बैंक के संचालकों तथा अन्य कार्यकर्त्ताओं को इन अधिकारियों को साथ लेकर एक समिति सुदृढ करनी होगी। इसके लिए चार-पाँच सालों तक सतत प्रशिक्षण का कार्य करना पडेगा तब यह कृषि सहकारी साख समितियॉ अच्छी बनेगीं।
वैद्यनाथन समिति ने क्रान्तिकारी कार्य किया है। हर ग्राम में एक स्वायत्त, सशक्त समिति बनाकर ग्रामवासियों के हाथ में दिया है। सरकार इसे मदद करना चाहती है। यदि यह समिति ठीक ढ़ंग से चले तो हमारा ग्राम विकास का लक्ष्य बहुत शीघ्र पूरा हो सकता है। प्रत्येक समिति गांव के किसानों को हर क्षण मदद कर सकती है और किसान साहूकारों की पकड से मुक्त हो सकता है। किसान की आर्थिक क्षमता बढे तो देश की भी बढेगी और सच्चे रूप से हमारा सकल घरेलू उत्पादन GDP बढेगा।
सन् २००८ में नाबार्ड ने फाईनैंशल इनक्लूजन (Financial Inclusion) के संदर्भ में एक समिति की नियुक्ति की। इस समिति ने अभ्यास करके अहवाल (प्रतिवेदन) दिया। इसमें समिति ने कहा है कि अनेक राष्ट्रीकृत बैंको ने अपनी शाखाए ग्रामीण क्षेत्र में खोली हैं, इसके बावजूद आज भी देश के कुल ग्रामीण किसानों में ५१ टक्के (प्रतिशत) किसान किसी भी बैंकिंग व्यवस्था से दूर हैं। पूर्वत्तोर राज्य में इसके प्रमाण बहुत हैं, मगर महाराष्ट्र जैसे प्रगत राज्य में भी यह स्थिति २००८ में भी ३४ टक्के (प्रतिशत) है। इन किसानों का किसी भी बैंक में खाता ही नहीं है, ऋण लेने का तो सवाल ही नही। इसका अर्थ होता है कि ५१ प्रतिशत किसान आज भी या तो ऋण ही नही लेता या वह आज भी साहूकारों से ऋण लेते हैं। किसान ऋण लिये बिना खेती कर ही नहीं सकता, यह सत्य जानने के लिए किसी भी सर्वेक्षण की बिल्कुल आवश्यकता नही है। उसे ऋण की जरूरत तो है ही और यह जरूरत वह आज भी साहूकार से और कुछ अंश तक ग्रामीण कृषि सहकारी साख समितियों से पूरी कर लेता है। १९०४ के सहकारिता कानून के अन्तर्गत एक त्रिस्तरीय सहकारी ढ़ांचा निर्माण किया गया था, जिसमें ग्राम स्तर पर प्राथमिक कृषि सहकारी साख समिति की व्यवस्था की गयी थी (इस लेख में समिति कहेंगे), इन साख समितियों को निधि उपलब्ध कराने हेतु जिला स्तर पर जिला सहकारी बैंक और इन बैंकों का राज्य स्तर पर एक अपेक्स बैंक की रचना की गई थी। स्वाधीनता के बाद इस रचना में अच्छी प्रगति हुई है। २००३ में अपने देश में १२,३०९ साख समितियॉ, ३६० जिला बैंक तथा ३० अपेक्स बैंक थे। इन साख समितियों द्वारा किसानों को केवल क्रॉप लोन (फसल हेतु लोन) मिलता था। केवल इस व्यवस्था से न तो साख समितियॉ व्हायेबल (Viable) हुई थी ना ही जिला सहकारी बैंक। धीरे–धीरे सभी राज्यों ने इन जिला बैंको को अन्य व्यवसाय करने के लिए प्रोत्साहित किया, और उनका व्यवसाय बढ़ने लगा। साख समितियों को भी बहुतांश राज्यों ने जन वितरण व्यवस्था (PDS) काम देकर व्यवसाय बढ़ाने के लिए व्यवस्था की, मगर व्हायेबल (Viable) ना होने के कारण वह स्वतंत्र कर्मचारी भी नहीं रख पाते थे। परिणामतः कुछ राज्यों ने केडर की स्थापना की और एक-एक कर्मचारी पाँच-पाँच समितियों का हिसाब रखने लगा। खेती के लिए मिलने वाला ऋण किसान को वर्ष में एक या दो बार और वह भी अधूरा मिलता था। किसान अपनी खेती तथा निजी निर्वाह के लिए साहूकार के पास जाता ही था। परिणामस्वरूप वह समितियों का ऋण वापिस नहीं कर पाता था और समितियॉ घाटे में जाने लगती। अनेक राज्य सरकारों ने कई बार यह ऋण अंशतः माफ किये, कई बार ब्याज माफ किया। केंद्र सरकार ने भी इन्हे कई बार मदद किया। मगर २००३ के आंकड़ों से पता चला कि इस ढाचे का घाटा दस हजार करोड के ऊपर जा रहा है। इसका अर्थ साफ था कि यह त्रिस्तरीय रचना डूबने को थी। तब केंद्र सरकार ने प्रो. वैद्यनाथन की अध्यक्षता में एक समिति का निर्माण किया। इस समिति ने अभ्यास करके २००५ में अपनी रिपोर्ट दी।
इस रिपोर्ट में समिति ने घाटे के कारण और उस पर उपाय योजना के सुझाव दिये, घाटे के निम्न कारण थे :
१. हिसाब पद्धति उचित नहीं है।
२. इस रचना में तंत्रज्ञान का पूरा अभाव था।
३. कर्मचारियों को कार्य के बारें में ज्ञान नहीं था तथा उन्हे प्रशिक्षण देने की कुछ भी व्यवस्था नहीं थी।
४. तीनों स्तर पर एक दूसरे से कानूनन जुड़े होने के कारण परावलंबी थे।
५. राज्य सरकारों का दैनदिन कार्य में बहुत ही हस्तक्षेप हुआ करता था। समिति को बर्खास्त करना, निर्वाचन कार्य समय पर न करना आदि।
६. सरकारों का कृषि विषयक धोरण भी परिणाम करता था। जैसे कभी किसान का ऋण माफ किया तो जो किसान कर्ज वापिस करते हैं, उन्हें लगता कि डिफाल्ट होने से फायदा है और इस प्रकार समितियों का घाटा बढ़ने लगता।
वैद्यनाथन समिति ने इन्हीं कारणों को दूर करने के लिए सुझाव दिये। कारण स्पष्ट था कि यदि यह कारण दूर नहीं हुए और आज इस संरचना का घाटा भर दिया तो आगे चार-पाँच साल में फिर यही स्थिति आ जायेगी।
इसलिए समिति ने निम्नलिखित सुझाव दिये :-
१. पूरी संचरना में हिसाब की एक पद्धति हो।
२. प्रत्येक समिति, बैंक पूरी तरह संगणीकृत हो।
३. हिसाब पद्धति तथा एम.आई.एस. (MIS) प्र० सू० प० का प्रशिक्षण दिया जाए।
४. आर्थिक दृष्टि से प्रत्येक स्तर स्वतंत्र हो
५. प्रशासकीय दृष्टि से भी प्रत्येक स्तर स्वतंत्र हो, राज्य सरकार केवल पंजीकरण और समय पर निर्वाचन कराये। यदि समितियों को लगातार ३ साल घाटा हुआ अथवा कोई भ्रष्टाचार का गंभीर मामला हो अथवा सत्त गणपूर्ति न हो तो समिति स्थगित करें। जिला बैंक भी स्वायत्त हों, मगर शासन का एक प्रतिनिधि कार्यकारी मण्डल में हो और बैंको का कार्य रिर्जव बैंक के निर्देशानुसार चले। इसके लिए प्रत्येक राज्य सरकार को अपने सहकारी कानून में संशोधन करना आवश्यक था, क्योंकि इन समितियों तथा बैंको में प्रत्येक राज्य सरकार ने पूंजी लगायी थी और बंधन भी कानून से लगाये थे।
६. पूरा घाटा भर देना, तंत्रज्ञान एवं प्रशिक्षण के लिए पूरा पन्द्रह हजार करोड़ रूपयों का पैकेज इस संरचना के लिए दिया जाए।
केन्द्र सरकार ने यह रिपोर्ट स्वीकृत की और नाबार्ड को इसके क्रियान्वयन का कार्य सौंपा। यह संरचना स्वायत्त हो, सशक्त हो इसके लिए इसी पैकेज में समितियों का घाटा भरकर प्रत्येक समिति का CRAR 7% हो इसका प्रावधान रखा गया। एक बार इतनी सहायता करने के पश्चात् समिति को बाद में कभी भी, कहीं से भी सहायता नहीं मिलेगी ऐसा प्रावधान किया गया। स्वायत्त, सशक्त, संस्था यदि चलाना नहीं आता तो ऐसी संस्था समाप्त होना ही ठीक है ऐसा विचार वैद्यनाथन् समिति ने दिया। ऐसी स्थिति लाने के लिए राज्य सरकारों को सहकारी कानून में संशोधन करना आवश्यक था। इसलिए नाबार्ड ने प्रथम राज्य सरकार, केन्द्र सरकार, और नाबार्ड के बीच एक ट्रायपार्ट एम.ओ.यू. करने के लिए कहा। इस आपसी समझौता ज्ञापन (MOU) में जहॉ केडर हो वो बर्खास्त करने की भी सूचना थी। राज्य सरकारो ने इसे स्वीकृत करने के लिए दो साल का समय लिया और २००८ में २५ राज्यों ने इसे स्वीकार किया। नाबार्ड ने २००४ के अंको पर विशेष अंकेक्षण (Special Audit) करना तथा अनुदान निश्चित करने का काय प्रारम्भ किया। इसके बाद समितियों के कर्मचारियों का चार दिन का तथा संचालकों का दो दिन का प्रशिक्षण प्रारम्भ किया। आज सभी २५ राज्यों में ८०६०६ समितियों में से ७८५३९ समितियों का विशेष अंकेक्षण (Special Audit) तथा १३ राज्यों से ६२३०१ कर्मचारियों को तथा ८८७७३ संचालकों को प्रशिक्षण दिया गया है। समान लेखा पद्धति (Common Accounting system) का Software तैयार किया है और उसका प्रतिदर्श (Module) तैयार करके राज्यों के पंजीयक सहकारी सोसाईटीज (RCS) को दिया गया है। इसका प्रशिक्षण भी अभी तक ५११०६ कर्मचारियों को दिया गया है। जिला सहकारी बैंको का भी विशेष अंकेक्षण (Special Audit) हो चुका है और उनके संचालकों तथा कर्मचारियों का प्रशिक्षण भी प्रारम्भ हो गया है।
नाबार्ड इस सुझाव का क्रियान्वयन बहुत ही अच्छे ढ़ंग से कर रहा है मगर इससे वैद्यनाथन समिति की अपेक्षाएं तथा देश की अपेक्षाएं पूरी नहीं होंगी। आज तक की स्थिति पूर्ण रूप से एकदम बदल नहीं सकती। आज तक ये समितियां केवल फसल लोन तथा जन वितरण प्रणली PDS का काम ही करती थीं, अब अपेक्षा ऐसी है कि वह स्वतंत्र है अपना कार्य को अपने ढ़ंग से बढ ाने के लिए स्वतंत्र है। आज तक केवल समिति का सचिव और जिला सहकारी बैंक का एक अधिकारी ही समिति किसी भी संचालक को पता नहीं था, वो कुछ जानते भी नहीं थे और उन्हें यह सचिव पूछते भी नहीं थे। अपने कार्यकर्त्ताओं को ऋण मिले इसके लिए स्थानीय राजनीतिक कार्यकर्त्ता सचिव तथा जिला बैंक अधिकारी को अपनाकर काम किया करते थे। जिला बैंक अपने हाथ में रहे ऐसा प्रयास हर राजनीतिक पार्टी करती थी। जिला बैंक के संचालक प्रमुखतः समितियों में से होने के कारण समितियॉ अपने हाथ में रहे ऐसा प्रयास करते थे और हर समिति के संचालकों का यही प्रमुख कार्य था।
गांव का विकास इस समिति से हो सकता है ऐसा जहां भी विचार हुआ वहां की समिति अच्छी हुई। राजनीति मुक्त जो समिति रही वहां अच्छा विकास हुआ। अपने देश में सैकेड़ों समितियॉ बहुत अच्छा काम करती हैं, मगर जैसे वैद्यनाथन समिति ने कहा कि राज्य सरकारों का हस्तक्षेप अच्छा काम नहीं होने देता था, यह सारा बदल देना और गांव के किसानों ने अपनी समिति जनतंत्र के मूल्यानुसार चलाना यह अचानक होने वाला काम नही है। नाबार्ड का प्रयास उत्तम है, मगर यह कार्य ही ऐसा है कि जिसके लिए सतत प्रशिक्षण आवश्यक है। किसानों को आत्मविश्वास दिलाना कि वे समिति चला सकते हैं, उनका संचालक मण्डल स्वायत है, राज्य सरकार का सहकारी विभाग उसे बर्खास्त नहीं कर सकता, वे उनका कार्यस्वरूप स्वयं निश्चित कर सकते हैं, ऋण देना, वसूली करना, ब्याजदर निश्चित करना, डिपॉजिट लेना, कार्य की नई दिशाएं खोजना यह समितियों के संचालक मण्डल का ही अधिकार है। यह कोई सामान्य बात नही है। महात्मा गाँधी ने नमक का सत्याग्रह करके इस देश के सामान्य व्यक्ति को अपने अधिकार का ज्ञान देने का प्रयास किया था। यह कार्य भी उसी श्रेणी का है। जिन्हे अपने अधिकार तथा कर्त्तव्य का ज्ञान है, वह अच्छा काम करते ही हैं। आज देश के करीबन एक लाख समितियों के संचालकों को यह ज्ञान देना बहुत बड़ा काम है। यह केवल सरकार एवं नाबार्ड नहीं कर सकती है बल्कि यह करने के लिए स्वयंसेवी संस्था, सामाजिक कार्यकर्त्ताओं को भी अपनी शक्ति लगाना आवश्यक है। हर राजकीय पक्ष यदि इसमें भाग ले तो यह कार्य जल्दी होगा। मगर उन्हे केवल अपने पार्टी का स्वार्थ देखना छोड ना पडेगा।
इस क्रियान्वयन में कुछ त्रुटियॉ सामने आ रही हैं।
(१) कुछ राज्यों में केडर व्यवस्था है। केडर समाप्त तो हो गया है मगर राज्य सरकारों को भी अचानक हजारों कर्मचारियों को अन्यत्र काम में लगाना संभव नहीं है। मगर तब तक समितियों का काम भी ठहर न जाये इसकी चिंता करनी पड़ेगी। केडर का कर्मचारी ही अनेक समितियों की समस्या है, इसलिए राज्य सरकारों ने जिला स्तर पर यह व्यवस्था करने के लिए प्रयास जारी किये हैं। जो समितियॉ अपना सचिव नियुक्ति करना चाहती हैं, उन्हे करना चाहिए और राज्य सरकारें जो केडर व्यवस्था के लिए निधि समितियों से लेती थीं, उसमें से उन समितियों को छूट देनी चाहिए।
(२) २००४ के अंको पर Special Audit हुआ और अनुदान निश्चित किया गया। वैद्यनाथन समिति का केन्द्र सरकार को कहना है कि सशक्त और स्वायत्त करके समिति किसानों के, यानि संचालको के हाथ सौंप देना चाहिए। उसके बाद यह समिति चलाना उनका काम है। वे अच्छे ढ़ंग से नहीं चलायेंगे तो कुछ हद तक नियंत्रण करने वाली बैंक अथवा नाबार्ड सूचनाएं देती रहेगी मगर वसूली नहीं हुई तो यथावकाश वह समिति समाप्त हो जायेगी केन्द्र सरकार उसे मदद करने वाली नहीं है। विच्चेद्गा अंकेक्षण Special Audit 2004 के अंकों पर २००८ में हुआ। उसके बाद प्रशिक्षण हुआ। प्रशिक्षण में आप स्वतंत्र है ऐसा कहा तो गया, मगर वह पर्याप्त नहीं था। फिर भी २००४ से २००८ तक जो व्यवहार हुआ, उससे यदि घाटा हुआ अथवा CRAR कम हुआ तो इसका जिम्मेदार कौन? उस समिति के संचालकों को २००८ तक कुछ मालूम ही नहीं था। इसका भी विचार केन्द्र या राज्य सरकारों को करना होगा। अभी २००९ तक विच्चेद्गा अंकेक्षण Special Audit का रिपोर्ट भी समिति को पहुंचाए नहीं गये हैं। वे अभी जिला सहकारी बैंको में ही हैं और आज तक पहले जैसा ही जिला सहकारी बैंक कार्य कर रहे हैं।
यह त्रिस्तरीय संरचना एक दूसरे से बहुत जुड़ी हुई है। सालों से जिला सहकारी बैंक और समिति एक साथ काम करते आय हैं। जिला सहकारी बैंक के सकल कारोबार Turn over में समितियों का बहुत हिस्सा है। इसलिए जिला सहकारी बैंक के इस विषय में काम करने वाले अधिकारी, यह समिति जनतंत्रनुसार चलाने में बहुत अच्छे मार्गदर्शक हो सकते हैं। यही सोचकर नाबार्ड ने इन्हीं अधिकारियों को मास्टर ट्रेनर बनाया था। मगर यह कार्य अच्छे ढ़ंग से नहीं हो पाया। जिला बैंक के संचालकों तथा अन्य कार्यकर्त्ताओं को इन अधिकारियों को साथ लेकर एक समिति सुदृढ करनी होगी। इसके लिए चार-पाँच सालों तक सतत प्रशिक्षण का कार्य करना पडेगा तब यह कृषि सहकारी साख समितियॉ अच्छी बनेगीं।
वैद्यनाथन समिति ने क्रान्तिकारी कार्य किया है। हर ग्राम में एक स्वायत्त, सशक्त समिति बनाकर ग्रामवासियों के हाथ में दिया है। सरकार इसे मदद करना चाहती है। यदि यह समिति ठीक ढ़ंग से चले तो हमारा ग्राम विकास का लक्ष्य बहुत शीघ्र पूरा हो सकता है। प्रत्येक समिति गांव के किसानों को हर क्षण मदद कर सकती है और किसान साहूकारों की पकड से मुक्त हो सकता है। किसान की आर्थिक क्षमता बढे तो देश की भी बढेगी और सच्चे रूप से हमारा सकल घरेलू उत्पादन GDP बढेगा।
Sunday, June 26, 2011
छत्तीसगढ़ के किसानों को बिजली की सौगात
स्वतंत्रता दिवस पर छत्तीसगढ़ के किसानों को
मिलेगी निःशुल्क बिजली की सौगात : डॉ. रमन सिंह
रायपुर, २६ जुलाई २००९/ छत्तीसगढ़ के सभी वर्गों के मेहनतकश किसानों को इस वर्ष स्वतंत्रता दिवस के मौके पर राज्य सरकार की ओर से पांच हार्स पावर तक सिंचाई पम्पों के लिए निःशुल्क बिजली की सौगात मिलेगी। मुखयमंत्री डॉ. रमन सिंह ने राजधानी रायपुर में आज भारतीय जनता पार्टी किसान मोर्चा और सहकारिता प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित विशाल किसान आस्था सम्मेलन में यह घोषणा की। डॉ. सिंह ने कहा कि छत्तीसगढ़ भारत का अकेला राज्य है, जहां किसानों को धान के समर्थन मूल्य के साथ प्रति क्विंटल २७० रूपए का बोनस भी दिया जा रहा है। इसके फलस्वरूप छत्तीसगढ के किसानों को उनके धान पर एक हजार रूपए से भी ज्यादा राशि मिल रही है। राज्य सरकार किसानों को धान के बोनस के रूप में ८८० करोड रूपए का वितरण कर रही है। इसकी पहली किश्त का भुगतान किया जा चुका है, जबकि बोनस की दूसरी किश्त के भुगतान की तैयारी भी तेजी से की जा रही है। सम्मेलन में लगभग एक लाख किसान शामिल हुए।
छत्तीसगढ़ की सहकारी समितियों के माध्यम से छह लाख ८५ हजार किसानों को बीते वर्ष में खेती के लिए सिर्फ तीन प्रतिशत ब्याज पर लगभग ७८७ करोड रूपए का ऋण दिया गया है। इसके अलावा उनके लिए कृषि ऋणों की पात्रता सीमा भी बढा दी गई है। इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर भारतीय जनता पार्टी किसान मोर्चा और सहकारिता प्रकोष्ठ ने उनके प्रति राज्य के किसानों की आस्था व्यक्त करने के लिए इस सम्मेलन का आयोजन किया गया। मुखयमंत्री ने अपने सम्बोधन में छत्तीसगढ को अकेला ऐसा राज्य निरूपित किया जहां ३७ लाख गरीब परिवारों को केवल १ रू० और २ रू० किलो की दर से ३५ किलो चावल और दो किलो अमृत नमक की योजना प्रारम्भ की गई है। छत्तीसगढ ऐसा अकेला राज्य है, जहां बिजली की कटौती नहीं हो रही है।
सम्मेलन को कृषि मंत्री श्री चन्द्रशेखर साहू, सहकारिता मंत्री श्री ननकीराम कंवर, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष और लोक सभा सांसद श्री विष्णुदेव साय, कांकेर के लोक सभा सांसद श्री सोहन पोटाई, भाजपा सहकारिता प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष और जिला पंचायत रायपुर के अध्यक्ष श्री अशोक बजाज तथा किसान मोर्चा के अध्यक्ष श्री भूपेन्द्र सिंह ठाकुर ने भी संबोधित किया। सम्मेलन में लोक निर्माण मंत्री श्री बृजमोहन अग्रवाल, जल संसाधन मंत्री श्री हेमचंद यादव, खाद्य मंत्री श्री पुन्नूलाल मोहले, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री श्री केदार कश्यप, महिला और बाल विकास मंत्री सुश्री लता उसेण्डी, संसदीय सचिव श्री भैयालाल राजवाड़े, लोक सभा सांसद सुश्री सरोज पाण्डेय, राज्यसभा सांसद श्री गोपाल व्यास, पूर्व लोक सभा सांसद श्री नंदकुमार साय, राज्य सहकारी विपणन संघ अध्यक्ष श्री राधाकृष्ण गुप्ता, राज्य सहकारी बैंक अध्यक्ष श्री महावीर सिंह राठौर तथा विधायक सर्वश्री नारायण चंदेल, रामजी भारती और खेदूराम साहू सहित अनेक वरिष्ठ नेता उपस्थित थे।
मिलेगी निःशुल्क बिजली की सौगात : डॉ. रमन सिंह
रायपुर, २६ जुलाई २००९/ छत्तीसगढ़ के सभी वर्गों के मेहनतकश किसानों को इस वर्ष स्वतंत्रता दिवस के मौके पर राज्य सरकार की ओर से पांच हार्स पावर तक सिंचाई पम्पों के लिए निःशुल्क बिजली की सौगात मिलेगी। मुखयमंत्री डॉ. रमन सिंह ने राजधानी रायपुर में आज भारतीय जनता पार्टी किसान मोर्चा और सहकारिता प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित विशाल किसान आस्था सम्मेलन में यह घोषणा की। डॉ. सिंह ने कहा कि छत्तीसगढ़ भारत का अकेला राज्य है, जहां किसानों को धान के समर्थन मूल्य के साथ प्रति क्विंटल २७० रूपए का बोनस भी दिया जा रहा है। इसके फलस्वरूप छत्तीसगढ के किसानों को उनके धान पर एक हजार रूपए से भी ज्यादा राशि मिल रही है। राज्य सरकार किसानों को धान के बोनस के रूप में ८८० करोड रूपए का वितरण कर रही है। इसकी पहली किश्त का भुगतान किया जा चुका है, जबकि बोनस की दूसरी किश्त के भुगतान की तैयारी भी तेजी से की जा रही है। सम्मेलन में लगभग एक लाख किसान शामिल हुए।
छत्तीसगढ़ की सहकारी समितियों के माध्यम से छह लाख ८५ हजार किसानों को बीते वर्ष में खेती के लिए सिर्फ तीन प्रतिशत ब्याज पर लगभग ७८७ करोड रूपए का ऋण दिया गया है। इसके अलावा उनके लिए कृषि ऋणों की पात्रता सीमा भी बढा दी गई है। इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर भारतीय जनता पार्टी किसान मोर्चा और सहकारिता प्रकोष्ठ ने उनके प्रति राज्य के किसानों की आस्था व्यक्त करने के लिए इस सम्मेलन का आयोजन किया गया। मुखयमंत्री ने अपने सम्बोधन में छत्तीसगढ को अकेला ऐसा राज्य निरूपित किया जहां ३७ लाख गरीब परिवारों को केवल १ रू० और २ रू० किलो की दर से ३५ किलो चावल और दो किलो अमृत नमक की योजना प्रारम्भ की गई है। छत्तीसगढ ऐसा अकेला राज्य है, जहां बिजली की कटौती नहीं हो रही है।
सम्मेलन को कृषि मंत्री श्री चन्द्रशेखर साहू, सहकारिता मंत्री श्री ननकीराम कंवर, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष और लोक सभा सांसद श्री विष्णुदेव साय, कांकेर के लोक सभा सांसद श्री सोहन पोटाई, भाजपा सहकारिता प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष और जिला पंचायत रायपुर के अध्यक्ष श्री अशोक बजाज तथा किसान मोर्चा के अध्यक्ष श्री भूपेन्द्र सिंह ठाकुर ने भी संबोधित किया। सम्मेलन में लोक निर्माण मंत्री श्री बृजमोहन अग्रवाल, जल संसाधन मंत्री श्री हेमचंद यादव, खाद्य मंत्री श्री पुन्नूलाल मोहले, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री श्री केदार कश्यप, महिला और बाल विकास मंत्री सुश्री लता उसेण्डी, संसदीय सचिव श्री भैयालाल राजवाड़े, लोक सभा सांसद सुश्री सरोज पाण्डेय, राज्यसभा सांसद श्री गोपाल व्यास, पूर्व लोक सभा सांसद श्री नंदकुमार साय, राज्य सहकारी विपणन संघ अध्यक्ष श्री राधाकृष्ण गुप्ता, राज्य सहकारी बैंक अध्यक्ष श्री महावीर सिंह राठौर तथा विधायक सर्वश्री नारायण चंदेल, रामजी भारती और खेदूराम साहू सहित अनेक वरिष्ठ नेता उपस्थित थे।
Tuesday, June 21, 2011
जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक मर्यादित रायपुर (छत्तीसगढ़)
जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक मर्यादित रायपुर (छत्तीसगढ़)
बैंक... एक नजर में
जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक मर्यादित रायपुर की स्थापना ०२ जनवरी सन १९१३ में हुई। अंचल के प्रखयात स्वाधीनता संग्राम सेनानी, छत्तीसगढ के सहकारिता पुरूष पं. वामन बलीराम जी लाखे द्वारा रोपित बरगढ बैंक), अपनी जडें (३४० समितियाँ) और शाखाओं (बैंक की शाखायें ५७) की छांव तले राजस्व जिलों-रायपुर, महासमुन्द एवं धमतरी के लाखों किसानों को अनवरत् सेवाएं प्रदान करते हुए नगद ऋण, कृषि हेतु खाद बीज दवाई ऋण, ट्रैक्टर, आवास आदि के लिए ऋण सुविधा प्रदान कर रहा है।
बैंक की सुविधाओं का केन्द्र-बिन्दु किसान हैं। बैंक की नीतियाँ, योजनाऐं, कार्यक्रम किसान-हित में हैं।
इस बैंक की स्थापना के समय सन १९१३ में बैंक की कार्यशील पूंजी ४३,७३५-०० रूपये थी तथा १०१९ किसानों को राशि रूपये २७,०१३-०० का ऋण प्रदाय किया गया। लेखा वर्ष २००८-०९ में बैंक की कुल कार्यशील पूंजी १२०० करोड़ रूपये से आधिक हो चुकी है। बैंक को राशि ४० करोड रूपये का लाभ प्राप्त हुआ है, जो कि कीर्तिमान है। यह बैंक कार्य व्यवसाय, स्टाफ एवं पूंजी, संसाधनों की दृष्टि से छत्तीसगढ का सबसे बडा सहकारी बैंक हैं। प्रदेश के सहकारी साख आन्दोलन का गौरव है।
छतीसगढ सरकार द्वारा वर्ष २००४ में कृषि ऋणों पर ब्याज दर को घटाकर ९ प्रतिशत किया गया। किसानों के हित में अप्रैल २००६ में कृषि ऋणों पर ब्याज दर ६ प्रतिशत किया गया। छत्तीसगढ के संवेदनशील और किसान-हितैशी मुखयमंत्री डॉ. रमन सिंह द्वारा १५ अगस्त २००८ को राज्य स्तरीय स्वाधीनता दिवस समारोह में घोषणा की गई कि अप्रैल २००८ से किसानों के कृषि ऋणों पर मात्र ३ प्रतिशत ब्याज दर लागू किया जावेगा। आज राज्य में मात्र ३ प्रतिशत ब्याज दर पर किसानों को कृषि ऋण की सुविधा उपलब्ध है। किसानों को मात्र ३ प्रतिशत ब्याज दर पर कृषि ऋण उपलब्ध कराने वाला देच्च का प्रथम राज्य छत्तीसगढ है।
मुखयमंत्री जी द्वारा किसान भाईयों के हित में अब कृषि ऋणों पर ब्याज दर शून्य किये जाने का निर्णय लिया गया है। किसान भाईयों के कल्याण में छ.ग. सरकार का ऐतिहासिक निर्णय है, जिसका देश भर में स्वागत हुआ है।
खरीफ वर्ष २००८-०९ में समर्थन मूल्य पर किसानों से धान उपार्जन में किसानों को २२० रूपये प्रति क्विंटल बोनस राशि प्रदान किये जाने से धान का समर्थन मूल्य ११५०-०० रूपये हुआ, जो देश में सर्वाधिक है। बोनस की राशि का प्रथम किश्त किसानों को प्रदाय भी कर दिया गया है।
जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक रायपुर द्वारा राज्य सरकार के किसान हित की उक्त योजनाओं का सफलतापूर्वक क्रियान्वयन किया जा रहा है। बैंक अपनी ५७ शाखाओं, ३४० सहकारी समितियों, ४६०, खाद केन्द्रों, ११३० से अधिक उपभोक्ता केन्द्र, १८० बचत बैंक एवं १००० से अधिक स्वयं सहायता बहिनी समूहों के विच्चाल नेटवर्क के माध्यम से किसान भाईयों-बहनों की सेवा कर रहा है।
बैंक... एक नजर में
जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक मर्यादित रायपुर की स्थापना ०२ जनवरी सन १९१३ में हुई। अंचल के प्रखयात स्वाधीनता संग्राम सेनानी, छत्तीसगढ के सहकारिता पुरूष पं. वामन बलीराम जी लाखे द्वारा रोपित बरगढ बैंक), अपनी जडें (३४० समितियाँ) और शाखाओं (बैंक की शाखायें ५७) की छांव तले राजस्व जिलों-रायपुर, महासमुन्द एवं धमतरी के लाखों किसानों को अनवरत् सेवाएं प्रदान करते हुए नगद ऋण, कृषि हेतु खाद बीज दवाई ऋण, ट्रैक्टर, आवास आदि के लिए ऋण सुविधा प्रदान कर रहा है।
बैंक की सुविधाओं का केन्द्र-बिन्दु किसान हैं। बैंक की नीतियाँ, योजनाऐं, कार्यक्रम किसान-हित में हैं।
इस बैंक की स्थापना के समय सन १९१३ में बैंक की कार्यशील पूंजी ४३,७३५-०० रूपये थी तथा १०१९ किसानों को राशि रूपये २७,०१३-०० का ऋण प्रदाय किया गया। लेखा वर्ष २००८-०९ में बैंक की कुल कार्यशील पूंजी १२०० करोड़ रूपये से आधिक हो चुकी है। बैंक को राशि ४० करोड रूपये का लाभ प्राप्त हुआ है, जो कि कीर्तिमान है। यह बैंक कार्य व्यवसाय, स्टाफ एवं पूंजी, संसाधनों की दृष्टि से छत्तीसगढ का सबसे बडा सहकारी बैंक हैं। प्रदेश के सहकारी साख आन्दोलन का गौरव है।
छतीसगढ सरकार द्वारा वर्ष २००४ में कृषि ऋणों पर ब्याज दर को घटाकर ९ प्रतिशत किया गया। किसानों के हित में अप्रैल २००६ में कृषि ऋणों पर ब्याज दर ६ प्रतिशत किया गया। छत्तीसगढ के संवेदनशील और किसान-हितैशी मुखयमंत्री डॉ. रमन सिंह द्वारा १५ अगस्त २००८ को राज्य स्तरीय स्वाधीनता दिवस समारोह में घोषणा की गई कि अप्रैल २००८ से किसानों के कृषि ऋणों पर मात्र ३ प्रतिशत ब्याज दर लागू किया जावेगा। आज राज्य में मात्र ३ प्रतिशत ब्याज दर पर किसानों को कृषि ऋण की सुविधा उपलब्ध है। किसानों को मात्र ३ प्रतिशत ब्याज दर पर कृषि ऋण उपलब्ध कराने वाला देच्च का प्रथम राज्य छत्तीसगढ है।
मुखयमंत्री जी द्वारा किसान भाईयों के हित में अब कृषि ऋणों पर ब्याज दर शून्य किये जाने का निर्णय लिया गया है। किसान भाईयों के कल्याण में छ.ग. सरकार का ऐतिहासिक निर्णय है, जिसका देश भर में स्वागत हुआ है।
खरीफ वर्ष २००८-०९ में समर्थन मूल्य पर किसानों से धान उपार्जन में किसानों को २२० रूपये प्रति क्विंटल बोनस राशि प्रदान किये जाने से धान का समर्थन मूल्य ११५०-०० रूपये हुआ, जो देश में सर्वाधिक है। बोनस की राशि का प्रथम किश्त किसानों को प्रदाय भी कर दिया गया है।
जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक रायपुर द्वारा राज्य सरकार के किसान हित की उक्त योजनाओं का सफलतापूर्वक क्रियान्वयन किया जा रहा है। बैंक अपनी ५७ शाखाओं, ३४० सहकारी समितियों, ४६०, खाद केन्द्रों, ११३० से अधिक उपभोक्ता केन्द्र, १८० बचत बैंक एवं १००० से अधिक स्वयं सहायता बहिनी समूहों के विच्चाल नेटवर्क के माध्यम से किसान भाईयों-बहनों की सेवा कर रहा है।
प्राथमिक कृषि सहकारी समिति
प्राथमिक कृषि सहकारी समिति-
मानिकचौरी को भारत सरकार द्वारा
सहकारी उत्कृष्ठता पुरस्कार-२००८
राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम नई दिल्ली के द्वारा प्रदान किया जाने वाला सहकारी उत्कृष्टता पुरस्कार के लिए प्रदेश स्तर पर प्राथमिक कृषि सहकारी समिति मानिक चौरी जिला रायपुर को चुना गया एवं नई दिल्ली एनसीयूआई आडिटोरियम में दिनांक १५ जनवरी २००९ को - पुरस्कार वितरण समारोह के आयोजन पर उत्कृष्ट समिति का पुरस्कार केन्द्रीय कृषि एवं सहकारिता मंत्री मान० श्री शरद पवार, भारत सरकार के द्वारा मानिकचौरी समिति के प्रतिनिधि मंडल को प्रदान किया गया। समारोह में अपेक्स बैंक के संचालक एवं जिला पंचायत रायपुर के अध्यक्ष माननीय श्री अशोक बजाज के साथ मानिक चौरी सहकारी समिति के निर्वाचित अध्यक्ष श्री लखन लाल साहू एवं कार्यकारिणी सदस्य श्री रामगोपाल भार्गव, श्री सीताराम साहू, श्री माखन साहू, श्री मोहन टंडन, श्री गुहाराम तारक, श्री नारायण सिन्हा के द्वारा पुरस्कार ग्रहण किया गया।
मानिक चौरी समिति के अंतर्गत ३६६३ कृषक सदस्य हैं, जिसमें १७१० ऋणी एवं १९५३ अऋणी किसान हैं। संबंद्ध किसानों की कृषिगत आवश्यकताओं की पूर्ति इस समिति के जरिये होती है। वर्ष २००७-०८ में रू. १५४.५५ लाख का कृषि ऋण का वितरण किया गया। समिति द्वारा किसानों को उर्वरक मात्रा ११०८ टन राशि रू ५५.४२ लाख का वितरण किया गया, जिसमें समिति को रू ०.३३ लाख का लाभार्जन हुआ। ऋणों की वसूली ८७ प्रतिशत रही है। समिति द्वारा खरीफ २००७-०८ में समर्थन मूल्य पर ८२००५ क्ंिवटल राशि रू ६२३.२४ लाख की खरीदी की गई, जिसमें समिति को रू. ८.११ लाख का लाभार्जन हुआ। इस समिति की ९४ प्रतिशत अंशपूंजी सदस्यों द्वारा ही दी जाती है। ३१.०३.२००८ की स्थिति पर समिति की कुल कार्यशील पूंजी रू. २७१.३५ लाख है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली अंतर्गत वर्ष २००७-०८ में उपभोक्ता सामग्रियों की बिक्री एवं वितरण में राशि रू. ६०.५० लाख, कार्य व्यवसाय में ३.५७ लाख का लाभ प्राप्त हुआ। पिछले चार वर्षों के व्यापार टर्नओवर में समिति का औसत वार्षिक वृद्धि ४२.६४ प्रतिशत रही है। वर्ष २००६-०७ में १८४ लाख रूपये का व्यापार टर्नओवर किया जिसमें इसे ७.७५ लाख रूपये का लाभ प्राप्त हुआ। (अपने क्षेत्र की ग्रामीण महिलाओं तथा कमजोर वर्गों के लाभ के लिए २२ महिला स्वयं सहायता समूह का गठन कर राशि रू. २.६० लाख की अमानत संकलन कर आर्थिक आत्मनिर्भरता की दिशा में समिति ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाया है।) समिति के अधीन अल्प बचत के लिए बचत बैंक संचालित है, जिसमें किसानों, ग्रामीणों से कुल १३७.१४ लाख रू. जमा की गई है।
अभनपुर विकासखंड स्थित इस समिति के अंतर्गत १४ गांव आते हैं, जिसमें मानिकचौरी, खोला, ठेलकाबांधा, गातापार, जामगांव, जवईबांधा, उमरपोटी, आलेखूटा, सोनेसिल्ली, दादरझोरी, पिपरौद, डोंगीतराई, हसदा एवं टोकरी शामिल हैं। उत्कृष्टता पुरस्कार मिलने पर प्रबंधकारिणी के अलावा सभी गांवों के नागरिकों में हर्ष व्याप्त है। जिला पंचायत अध्यक्ष अशोक बजाज वर्ष १९८२ से इस संस्था से प्रतिनिधित्व कर रहे हैं तथा वर्तमान में इसी सोसाइटी का प्रतिनिधित्व करते हुए राज्य सहकारी बैंक के संचालक भी हैं। छ०ग० से मानिकचौरी समिति को पुरस्कार मिलने से प्रदेश के माननीय मुखयमंत्री डा० रमण सिंह, ने मानिकचौरी समिति के प्रबंधकारिणी सदस्यों को बधाई दिया हैं।
मानिकचौरी को भारत सरकार द्वारा
सहकारी उत्कृष्ठता पुरस्कार-२००८
राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम नई दिल्ली के द्वारा प्रदान किया जाने वाला सहकारी उत्कृष्टता पुरस्कार के लिए प्रदेश स्तर पर प्राथमिक कृषि सहकारी समिति मानिक चौरी जिला रायपुर को चुना गया एवं नई दिल्ली एनसीयूआई आडिटोरियम में दिनांक १५ जनवरी २००९ को - पुरस्कार वितरण समारोह के आयोजन पर उत्कृष्ट समिति का पुरस्कार केन्द्रीय कृषि एवं सहकारिता मंत्री मान० श्री शरद पवार, भारत सरकार के द्वारा मानिकचौरी समिति के प्रतिनिधि मंडल को प्रदान किया गया। समारोह में अपेक्स बैंक के संचालक एवं जिला पंचायत रायपुर के अध्यक्ष माननीय श्री अशोक बजाज के साथ मानिक चौरी सहकारी समिति के निर्वाचित अध्यक्ष श्री लखन लाल साहू एवं कार्यकारिणी सदस्य श्री रामगोपाल भार्गव, श्री सीताराम साहू, श्री माखन साहू, श्री मोहन टंडन, श्री गुहाराम तारक, श्री नारायण सिन्हा के द्वारा पुरस्कार ग्रहण किया गया।
मानिक चौरी समिति के अंतर्गत ३६६३ कृषक सदस्य हैं, जिसमें १७१० ऋणी एवं १९५३ अऋणी किसान हैं। संबंद्ध किसानों की कृषिगत आवश्यकताओं की पूर्ति इस समिति के जरिये होती है। वर्ष २००७-०८ में रू. १५४.५५ लाख का कृषि ऋण का वितरण किया गया। समिति द्वारा किसानों को उर्वरक मात्रा ११०८ टन राशि रू ५५.४२ लाख का वितरण किया गया, जिसमें समिति को रू ०.३३ लाख का लाभार्जन हुआ। ऋणों की वसूली ८७ प्रतिशत रही है। समिति द्वारा खरीफ २००७-०८ में समर्थन मूल्य पर ८२००५ क्ंिवटल राशि रू ६२३.२४ लाख की खरीदी की गई, जिसमें समिति को रू. ८.११ लाख का लाभार्जन हुआ। इस समिति की ९४ प्रतिशत अंशपूंजी सदस्यों द्वारा ही दी जाती है। ३१.०३.२००८ की स्थिति पर समिति की कुल कार्यशील पूंजी रू. २७१.३५ लाख है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली अंतर्गत वर्ष २००७-०८ में उपभोक्ता सामग्रियों की बिक्री एवं वितरण में राशि रू. ६०.५० लाख, कार्य व्यवसाय में ३.५७ लाख का लाभ प्राप्त हुआ। पिछले चार वर्षों के व्यापार टर्नओवर में समिति का औसत वार्षिक वृद्धि ४२.६४ प्रतिशत रही है। वर्ष २००६-०७ में १८४ लाख रूपये का व्यापार टर्नओवर किया जिसमें इसे ७.७५ लाख रूपये का लाभ प्राप्त हुआ। (अपने क्षेत्र की ग्रामीण महिलाओं तथा कमजोर वर्गों के लाभ के लिए २२ महिला स्वयं सहायता समूह का गठन कर राशि रू. २.६० लाख की अमानत संकलन कर आर्थिक आत्मनिर्भरता की दिशा में समिति ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाया है।) समिति के अधीन अल्प बचत के लिए बचत बैंक संचालित है, जिसमें किसानों, ग्रामीणों से कुल १३७.१४ लाख रू. जमा की गई है।
अभनपुर विकासखंड स्थित इस समिति के अंतर्गत १४ गांव आते हैं, जिसमें मानिकचौरी, खोला, ठेलकाबांधा, गातापार, जामगांव, जवईबांधा, उमरपोटी, आलेखूटा, सोनेसिल्ली, दादरझोरी, पिपरौद, डोंगीतराई, हसदा एवं टोकरी शामिल हैं। उत्कृष्टता पुरस्कार मिलने पर प्रबंधकारिणी के अलावा सभी गांवों के नागरिकों में हर्ष व्याप्त है। जिला पंचायत अध्यक्ष अशोक बजाज वर्ष १९८२ से इस संस्था से प्रतिनिधित्व कर रहे हैं तथा वर्तमान में इसी सोसाइटी का प्रतिनिधित्व करते हुए राज्य सहकारी बैंक के संचालक भी हैं। छ०ग० से मानिकचौरी समिति को पुरस्कार मिलने से प्रदेश के माननीय मुखयमंत्री डा० रमण सिंह, ने मानिकचौरी समिति के प्रबंधकारिणी सदस्यों को बधाई दिया हैं।
छत्तीसगढ़ राज्य सहकारी विपणन संघ
छत्तीसगढ़ राज्य सहकारी विपणन संघ
छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माण के पश्चात् प्रजातांत्रिक पद्धति से निर्वाचन द्वारा गठित संचालक मण्डल कार्यरत है । सदस्य संस्थाओं के हित में विपणन संघ सदस्य, सहकारी संस्थाओं के सदस्य, सहकारी संस्थाओं के विकास तथा सुदृढीकरण करने पर विशेष ध्यान दे रहें हैं। शासन को सदस्य संस्थाओं को सुदृढ करने हेतु प्रस्ताव प्रेषित किया गया है। संचालक मण्डल सदैव सदस्य संस्थाओं के विकास के लिए प्रयासरत रहा है तथा आगे भी इसी दिशा में हम कार्य करेंगे ।
खरीफ २००८ में विपणन संघ ने अब तक का सर्वाधिक धान उपार्जन समर्थन मूल्य पर किया है तथा अब तक का सर्वाधिक रासायनिक उर्वरक वितरण भी किया गया है। खरीफ २००८ में कुल ३७ लाख ६० हजार मिट्रिक टन धान की खरीदी की गई है। खरीफ २००८ में ४,२४,५९४ मिट्रिक टन उर्वरक का वितरण किया गया है।
धान उपार्जन संबंधी संव्यवहारों के कम्प्यूटरीकरण की सफलता के पश्चात् अब खाद व्यवसाय, किसान राईस मिलों, पशु आहार व्यवसाय तथा लेखा संधारण के कार्यों का भी कम्प्यूटरीकण करने का लक्ष्य है। विपणन संघ की किसान राईस मिलें बहुत पुरानी तकनीक पर आधारित हैं, जिसके कारण चावल का उत्पादन प्रभावित होता है। हमने यह निर्णय लिया है कि खरीफ २००९ का धान आने के पूर्व ही विपणन संघ की चलने योग्य २२ राईस मिलों का आधुनिकीकरण किया जाए। ०८ स्थानों पर अधिक क्षमता की नई राईस मिलें भी स्थापित की जाएंगी। वर्ष २००९-२०१० में किसानों को उचित मूल्य पर कृषि यंत्रों का वितरण करने का भी प्रयास किया जाएगा । विपणन संघ की सदस्य सहकारी संस्थाओं के प्रतिनिधियों की ओर से वार्षिक साधारण सभा २००८ में प्राप्त सुझावों पर भी आवश्यक कार्यवाही की गई है । प्राथमिक विपणन सहकारी संस्थाओं की बंद राईस मिलों के विपणन संघ द्वारा संचालित किये जाने हेतु गत आमसभा के सुझावानुसार कार्य योजना बनाई जा रही है । विपणन संघ अपने सदस्य संस्थाओं को रसायनिक खाद विक्रय करने हेतु उपलब्ध करा रहा है।
खाद के व्यवसाय में विपणन संघ को तथा प्राथमिक कृषि साख सहकारी संस्थाओं को होने वाली हानि एक बहुत बड़ी समस्या रही है । खरीफ २००८ में विपणन संघ को राज्य शासन द्वारा खाद व्यवसाय में हानि की मदों की प्रतिपूर्ति बतौर रूपये ८.३० करोड प्रदान किया गया है। राज्य विपणन संघ यह प्रयास कर रहा है कि प्राथमिक संस्थाओं को खाद व्यवसाय में होने वाली हानि की भी शत् प्रतिशत पूर्ति राज्य शासन द्वारा की जाए । प्राथमिक समितियों के हित की दृष्टि से उर्वरक वितरण प्रणाली में संशोधन कराने के लिए भी विपणन संघ द्वारा पहल की गई है ।
वित्तीय वर्ष २००२-०३ के लेखा पुस्तकों की आडिट रिपोर्ट पंजीयक, सहकारी संस्थाओं से प्राप्त हुआ है, अंकेक्षित वित्तीय पत्रक, (आडिट रिपोर्ट) में उल्लिखित त्रुटियों के परिशुद्धि का प्रतिवेदन आमसभा के समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा है । विपणन संघ के अन्य संस्थाओं से लेखा मिलान के लंबित कार्य को पूर्ण करने के लिए चार्टर्ड एकाउण्टेंट की नियुक्ति की गई है। गत ८ वर्षों का लेखा मिलान शीघ्र ही पूर्ण होने जा रहा है । यह कार्य पूर्ण हो जाने पर नागरिक आपूर्ति निगम से लेनदारियों की स्थ्ति स्पष्ट हो सकेगी तदुपरान्त उसकी वसूली हेतु कार्यवाही भी सुनिश्चित की जाएगी और विपणन संघ की लेखा पुस्तकों का अंकेक्षण भी अद्यतन हो जायेगा । राज्य विपणन संघ टेली पद्धति अतिशीघ्र चालू करने जा रहा है।
विपणन संघ के लेखा पुस्तकों के आंतरिक अंकेक्षण के लिए समुचित व्यवस्था के अभाव में त्रुटियों की जानकारी कई वर्षों तक ज्ञात नहीं हो पाती थी । अब आंतरिक अंकेक्षण के लिए चार्टर्ड एकाउण्टेंट की नियुक्ति की गई है। गत कई वर्षों से पुराने उपयोगी तथा अनुपयोगी बारदानें बड़ी मात्रा में भंडारित थे, इनका विक्रय करने के लिए निविदायें आमंत्रित कर विक्रय की जा रही है।
विपणन संघ का व्यवसाय निरंतर बढ ता जा रहा है। कर्मचारियों के अभाव के कारण समय पर कार्यो को पूर्ण करने में असुविधाएं होती थी । इस वर्ष हमने कर्मचारी वृन्द का नया सेटअप तैयार करके पंजीयक, सहकारी संस्थाएं को भेजा था, जो उनके द्वारा अनुमोदित कर दिया गया है । इससे विपणन संघ को लगभग ४०० अतिरिक्त कर्मचारी अधिक योग्यता वाले उपलब्ध हो सकेंगे । इसके लिये राज्य द्राासन के व्यवसयिक परीक्षा मण्डल के माध्यम से भर्ती में पारदर्च्चिता रखते हुए कार्यवाही की जा रही है।
कर्मचारियों के विरूद्व विभिन्न प्रकार के कदाचारों के आरोपों के २०० से अधिक अनुशासनिक कार्रवाईयों के प्रकरण लंबित हैं। इनके शीघ्र निराकरण की दृष्टि से एक सेवानिवृत्त जिला एव सत्र न्यायाधीच्च को विभागीय जांच करने के लिए संविदा पर नियुक्त किया गया है । अब विभागीय जांच के प्रकरणों पर कार्यवाही में तेजी आई है ।
संचालक मण्डल द्वारा किसानों के व्यापक हित में निर्णय लेकर दो अति महत्वपूर्ण प्रस्ताव राज्य शासन को भेजे गए हैं । पहला - यह कि समर्थन मूल्य पर धान उपार्जन को विपणन संघ का स्थायी व्यवसाय घोषित किया जाए तथा दूसरा - यह कि प्राथमिक कृषि साख सहकारी संस्थाओं के द्वारा संचालित धान खरीदी केन्द्रों तथा विपणन संघ के धान संग्रहण केन्द्रों को इस प्रकार से विकसित किय जाए कि केन्द्रों पर चबूतरा, शेड्स, पीने के पानी, विद्युत, फैंसिंग, गोदामों आदि की पर्याप्त व्यवस्था हो सके ।
वर्ष २००८ की वार्षिक साधारण सभा द्वारा वित्तीय वर्ष २००८-०९ के लिए रूपये ५३९०.०० लाख का बजट स्वीकृत किया गया था इसे पुनरीक्षित करके रूपये ३९१३.८८ लाख का बजट अनुमान स्वीकृति है। वित्तीय वर्ष २००९-२०१० के लिए रूपयें ५३९६.०० लाख का बजट अनुमान स्वीकृति है। इस वर्ष में रूपये ११४३.० लाख का शुद्धलाभार्जन अनुमानित है ।
छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माण के पश्चात् प्रजातांत्रिक पद्धति से निर्वाचन द्वारा गठित संचालक मण्डल कार्यरत है । सदस्य संस्थाओं के हित में विपणन संघ सदस्य, सहकारी संस्थाओं के सदस्य, सहकारी संस्थाओं के विकास तथा सुदृढीकरण करने पर विशेष ध्यान दे रहें हैं। शासन को सदस्य संस्थाओं को सुदृढ करने हेतु प्रस्ताव प्रेषित किया गया है। संचालक मण्डल सदैव सदस्य संस्थाओं के विकास के लिए प्रयासरत रहा है तथा आगे भी इसी दिशा में हम कार्य करेंगे ।
खरीफ २००८ में विपणन संघ ने अब तक का सर्वाधिक धान उपार्जन समर्थन मूल्य पर किया है तथा अब तक का सर्वाधिक रासायनिक उर्वरक वितरण भी किया गया है। खरीफ २००८ में कुल ३७ लाख ६० हजार मिट्रिक टन धान की खरीदी की गई है। खरीफ २००८ में ४,२४,५९४ मिट्रिक टन उर्वरक का वितरण किया गया है।
धान उपार्जन संबंधी संव्यवहारों के कम्प्यूटरीकरण की सफलता के पश्चात् अब खाद व्यवसाय, किसान राईस मिलों, पशु आहार व्यवसाय तथा लेखा संधारण के कार्यों का भी कम्प्यूटरीकण करने का लक्ष्य है। विपणन संघ की किसान राईस मिलें बहुत पुरानी तकनीक पर आधारित हैं, जिसके कारण चावल का उत्पादन प्रभावित होता है। हमने यह निर्णय लिया है कि खरीफ २००९ का धान आने के पूर्व ही विपणन संघ की चलने योग्य २२ राईस मिलों का आधुनिकीकरण किया जाए। ०८ स्थानों पर अधिक क्षमता की नई राईस मिलें भी स्थापित की जाएंगी। वर्ष २००९-२०१० में किसानों को उचित मूल्य पर कृषि यंत्रों का वितरण करने का भी प्रयास किया जाएगा । विपणन संघ की सदस्य सहकारी संस्थाओं के प्रतिनिधियों की ओर से वार्षिक साधारण सभा २००८ में प्राप्त सुझावों पर भी आवश्यक कार्यवाही की गई है । प्राथमिक विपणन सहकारी संस्थाओं की बंद राईस मिलों के विपणन संघ द्वारा संचालित किये जाने हेतु गत आमसभा के सुझावानुसार कार्य योजना बनाई जा रही है । विपणन संघ अपने सदस्य संस्थाओं को रसायनिक खाद विक्रय करने हेतु उपलब्ध करा रहा है।
खाद के व्यवसाय में विपणन संघ को तथा प्राथमिक कृषि साख सहकारी संस्थाओं को होने वाली हानि एक बहुत बड़ी समस्या रही है । खरीफ २००८ में विपणन संघ को राज्य शासन द्वारा खाद व्यवसाय में हानि की मदों की प्रतिपूर्ति बतौर रूपये ८.३० करोड प्रदान किया गया है। राज्य विपणन संघ यह प्रयास कर रहा है कि प्राथमिक संस्थाओं को खाद व्यवसाय में होने वाली हानि की भी शत् प्रतिशत पूर्ति राज्य शासन द्वारा की जाए । प्राथमिक समितियों के हित की दृष्टि से उर्वरक वितरण प्रणाली में संशोधन कराने के लिए भी विपणन संघ द्वारा पहल की गई है ।
वित्तीय वर्ष २००२-०३ के लेखा पुस्तकों की आडिट रिपोर्ट पंजीयक, सहकारी संस्थाओं से प्राप्त हुआ है, अंकेक्षित वित्तीय पत्रक, (आडिट रिपोर्ट) में उल्लिखित त्रुटियों के परिशुद्धि का प्रतिवेदन आमसभा के समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा है । विपणन संघ के अन्य संस्थाओं से लेखा मिलान के लंबित कार्य को पूर्ण करने के लिए चार्टर्ड एकाउण्टेंट की नियुक्ति की गई है। गत ८ वर्षों का लेखा मिलान शीघ्र ही पूर्ण होने जा रहा है । यह कार्य पूर्ण हो जाने पर नागरिक आपूर्ति निगम से लेनदारियों की स्थ्ति स्पष्ट हो सकेगी तदुपरान्त उसकी वसूली हेतु कार्यवाही भी सुनिश्चित की जाएगी और विपणन संघ की लेखा पुस्तकों का अंकेक्षण भी अद्यतन हो जायेगा । राज्य विपणन संघ टेली पद्धति अतिशीघ्र चालू करने जा रहा है।
विपणन संघ के लेखा पुस्तकों के आंतरिक अंकेक्षण के लिए समुचित व्यवस्था के अभाव में त्रुटियों की जानकारी कई वर्षों तक ज्ञात नहीं हो पाती थी । अब आंतरिक अंकेक्षण के लिए चार्टर्ड एकाउण्टेंट की नियुक्ति की गई है। गत कई वर्षों से पुराने उपयोगी तथा अनुपयोगी बारदानें बड़ी मात्रा में भंडारित थे, इनका विक्रय करने के लिए निविदायें आमंत्रित कर विक्रय की जा रही है।
विपणन संघ का व्यवसाय निरंतर बढ ता जा रहा है। कर्मचारियों के अभाव के कारण समय पर कार्यो को पूर्ण करने में असुविधाएं होती थी । इस वर्ष हमने कर्मचारी वृन्द का नया सेटअप तैयार करके पंजीयक, सहकारी संस्थाएं को भेजा था, जो उनके द्वारा अनुमोदित कर दिया गया है । इससे विपणन संघ को लगभग ४०० अतिरिक्त कर्मचारी अधिक योग्यता वाले उपलब्ध हो सकेंगे । इसके लिये राज्य द्राासन के व्यवसयिक परीक्षा मण्डल के माध्यम से भर्ती में पारदर्च्चिता रखते हुए कार्यवाही की जा रही है।
कर्मचारियों के विरूद्व विभिन्न प्रकार के कदाचारों के आरोपों के २०० से अधिक अनुशासनिक कार्रवाईयों के प्रकरण लंबित हैं। इनके शीघ्र निराकरण की दृष्टि से एक सेवानिवृत्त जिला एव सत्र न्यायाधीच्च को विभागीय जांच करने के लिए संविदा पर नियुक्त किया गया है । अब विभागीय जांच के प्रकरणों पर कार्यवाही में तेजी आई है ।
संचालक मण्डल द्वारा किसानों के व्यापक हित में निर्णय लेकर दो अति महत्वपूर्ण प्रस्ताव राज्य शासन को भेजे गए हैं । पहला - यह कि समर्थन मूल्य पर धान उपार्जन को विपणन संघ का स्थायी व्यवसाय घोषित किया जाए तथा दूसरा - यह कि प्राथमिक कृषि साख सहकारी संस्थाओं के द्वारा संचालित धान खरीदी केन्द्रों तथा विपणन संघ के धान संग्रहण केन्द्रों को इस प्रकार से विकसित किय जाए कि केन्द्रों पर चबूतरा, शेड्स, पीने के पानी, विद्युत, फैंसिंग, गोदामों आदि की पर्याप्त व्यवस्था हो सके ।
वर्ष २००८ की वार्षिक साधारण सभा द्वारा वित्तीय वर्ष २००८-०९ के लिए रूपये ५३९०.०० लाख का बजट स्वीकृत किया गया था इसे पुनरीक्षित करके रूपये ३९१३.८८ लाख का बजट अनुमान स्वीकृति है। वित्तीय वर्ष २००९-२०१० के लिए रूपयें ५३९६.०० लाख का बजट अनुमान स्वीकृति है। इस वर्ष में रूपये ११४३.० लाख का शुद्धलाभार्जन अनुमानित है ।
Monday, June 20, 2011
प्रगति महिला नागरिक सहकारी बैंक मर्यादित, भिलाई, दुर्ग
प्रगति महिला नागरिक सहकारी बैंक मर्यादित, भिलाई, दुर्ग
आज से १३ वर्ष पहले एक छोटे से बीजांकुर के रूप मे प्रगति महिला नागरिक सहकारी बैंक मर्यादित की स्थापना हुई थी। आज उसी बीजांकुर का इतना विशाल वृक्ष का रूप देखकर अभिमान से सर ऊॅचा उठ जाता है। बैंक की स्थापना करने की कल्पना करने वाली उन महिलाओं की छोटी सी टोली से लेकर आज तक अनगिनत व्यक्तियों ने बैंक के कार्य में किसी भी स्वरूप मे हाथ बटाया है उन सभी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त किये बिना नहीं रहा जाता।
मानव जीवन का सामाजिक वास्तव्य ही प्रमुख लक्ष्य रहता है और सहकारिता यह मानवीय गुण है। यह भारतीय जीवन शैली का दर्पण है। अकेला चना भाड़ नही फोड सकता। यह एक अकाट्य तथ्य है। मनुष्य को पग पग पर एक दूसरे के सहयोग की आवश्यकता पडती है और इसी सहयोग ने सहकार तथा सहकारिता को जन्म दिया है। आवश्यकतानुसार इसका रूप-प्रारूप बदलता रहा है। गावों से लेकर महानगरों तक कुछ व्यक्ति एकत्रित होकर विभिन्न प्रकार की समितियां बनाकर सहकारिता का लाभ लेते हैं। परन्तु इनका दुरूपयोग न हो इसके लिये शासन को नियंत्रण लगाना पडा और शासकीय सहकारिता विभाग का अभ्युदय हुआ। इस विभाग सें और इस विभाग मे सहकारिता की कमियां और उससे गैर वाजिब लाभ लेने वालों पर अंकुश लगा हो या नियंत्रण हुआ हो यह चर्चा और शोध का विषय हो सकता है परंतु जिन व्यक्तियों ने सेवाभाव को प्रधानता देते हुए अपनी संस्था को जन्म दिया तथा उसका संवर्धन किया वे संस्थाएं किसी सरकारी सहायता की मोहताज नहीं रही। भिलाई में सन १९९५ में प्रगति महिला नागरिक सहकारी बैंक का रजिस्ट्रेशन कर स्थापना की गयी। अपने समाज सेवा के मूल उद्देश्यों और आदर्शों पर पूरा खरा उतरते हुए इस बैंक ने केवल १० वर्षो में ही छत्तीसगढ़ का सर्वोत्तम सहकारी बैंक का खिताब वर्ष २००६ में अपने नाम किया और आज भी यह कीर्तिमान प्रगति महिला नागरिक सहकारी बैंक भिलाई दुर्ग के पास बना हुआ है। छत्तीसगढ शासन ने वर्ष २००६ के छत्तीसगढ राज्योत्सव में विभिन्न पुरस्कारों के साथ सहकारिता विभाग का ''ठाकुर प्यारे लाल सिंह सहकारिता सम्मान ''पूर्व राष्ट्रपति महामहिम ए.पी. जे. अब्दुल कलाम जी के कर कमलों से, मुखयमंत्री डॉ. रमन सिंह, पूर्व विधान सभा अध्यक्ष श्री प्रेम प्रकाद्गा पांडे, पूर्व राज्यपाल महोदय और अन्य गणमान्य मंत्री महोदय एवं करीबन २ लाख जन समुदाय के समक्ष छत्तीसगढ राज्य के सर्वोत्कृष्ट सहकारी बैंक के सम्मान से विभूषित किया।
रिजर्व बैंक की दृष्टि मे ''लिटिल बट स्ट्रांग'' है यह बैंक
प्रगति महिला नाग. सह. बैंक की सफलता की विकास यात्रा करीबन २० वर्ष पूर्व महाराष्ट्र मंडल सेक्टर ४ से प्रारंभ हुई थी। महाराष्ट्र मे सफलतम व्यवसाय करने वाली सहकारी महिला बैंकों की चर्चा मंडल में हमेशा ही होती रहती थी। अवसर था गोंदिया निवासी श्री राम टोल जी की महिला मंडल से सौजन्य भेंट का। वे गोंदिया नाग. सह. बैंक के सी.ई.ओ. थे।
उस समय महिला समिति बड़ी, पापड, टिफीन, नाश्ता, दीवाली में लगने वाले चकली, गुजिया जैसे पदार्थ का व्यवसाय भी सफलता पूर्वक कर रही थी। श्री टोल जी के समक्ष इन महिलाओं ने अपनी सहकारी महिला बैंक का विचार रखा। खूब चर्चा, संगोष्ठी हुई। यहां महिलाओं में ऐसा अक्षय उर्जा का भंडार उन्हें दिखा तो तुरंत उन्होने सहकारी महिला बैंक स्थापना करने मे पूर्णतः मदद करने की हामी भरी। उस समय मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ में एक भी सहकारी महिला बैंक नहीं थी। चूंकि महाराष्ट्र महिला मंडल में महाराष्ट्र की तर्ज पर महिला सहकारिता का अभ्युदय यह सब मानो आर्थिक जगत में महिलाओं की दस्ते के लिए एक अनुकूल संयोग था। बस फिर क्या था भारत की हृदय स्थली में रहने वाले इस लघु भारत रूप भिलाई की महाराष्ट्रीयन महिलाओं ने अपनी १९८९ की पहली बैठक मे सहकारी महिला बैंक प्रारंभ करने का बीडा उठा ही लिया।
श्रीमती माधुरी ताई बखले के नेतृत्व में सभी चल पड़ीं। श्रीमती स्मिता जोशी प्रारंभ से आज तक की सफल अध्यक्षा, संजीवनी जोशी, नलिनी करकरे, प्राजक्ता करकरे, सुधा ताई देशपांडे, वृंदा भिडे, आरती जोशी तथा मैंने घर घर जाकर इन महिलाओं को महिला बैंक की संकल्पना, शेयर का अर्थ, शेयर मनी की आवश्यकता एवं बाध्यता, उनके पैसे की सुरक्षा का भरोसा दिलाने मे अपना दिन रात एक कर दिया। इस जुनून में अन्य अनेकानेक सखियों ने भी बढ चढ कर साथ दिया। रजिस्ट्रेशन के बाद रिजर्व बैंक का टारगेट पूर्ण करना जो कि १५०० सदस्य एवं १५ लाख अंश राशि खडा करना बडा सा पहाड पार करने वाला था परंतु ३ महीने में ही १७०० सौ सदस्या एवं १८ लाख अंश राशि का लक्ष्य पूरा हुआ।
दिन-दिन बढ़ता शेयर मनी हम महिलाओं के साहस और उत्साह में हर दिन वृदि करता और हर दिन नई योजनाएं, कार्यक्रमों को आंका जाता। फिर शुरू हुई कार्यालयीन कार्यवाही रिजर्व बैंक का लाइसेंस प्राप्त करना। इसके लिए जिला एवं संभागीय कार्यालयों के चक्कर काटना मानो हम महिलाओं की दिनचर्या का अभिन्न अंग बन गया। उस वक्त सहकारिता विभाग का अमला महिलाओं को समर्थक व्यवहार नहीं दे सका। महिला बैंक की स्थापना उनके सुव्यवस्थित संचालन पर उन्हें विश्वास रखना मुश्किल था। हमें बार-बार पूछा जाता था आपके साथ कोई पुरूष नहीं है क्या? हमें हमारी कार्य क्षमता पर उंगली उठती देख हम दुखी होते थे और महिलाए क्या बैंक चलाएंगी? इस नकारात्मक सोच के कारण नित्य हमें उपहास ही सहन करना पड ता था। परंतु कुछ कर दिखाने का जुनून १७०० महिलाओं की भागीदारी और उनकी शिक्षा के कारण अर्जित धैर्य ने कभी भी हम महिलाओं के बढते कदम रोकने के लिए प्रवृत नहीं किया।
हमारा साहस बढ़ाते हुए अग्रिम पंक्ति में कार्य करने वाली महिलाओं के पति भी पर्दे के पीछे सशक्त संबल दे रहे थे और प्रत्यक्ष सहयोग में अनेक बंधुओं के साथ तत्कालीन भाजपा विधायक स्व. दिनकर डांगे एवं संघ एवं भाजपा कार्यकर्ता श्री भाऊ टेंभेकर जी का नाम अविस्मरणीय है। टेंभेकर जी तो निःस्वार्थ हम महिलाओं की रायपुर एवं भोपाल (रिजर्व बैंक के प्रादेच्चिक मुखयालय) प्रवास में ठहरने, खाने की व्यवस्था सहर्द्गा अपने परिजनों के यहां करवा कर हम महिलाओं को सुरक्षा और संबल देते थे और आर्थिक संतुलन भी। क्योंकि १५ - १६ वर्ष पूर्व होटल मे रूकना आमबात भी नहीं था और खर्च के लिए तो कोई मद ही नहीं थी साथ में हमारे युवा साथी अतुल नागले, राजेन्द्र जोशी, अजय डांगे, धनंजय करकरे, विजय जोशी हमें प्रोत्साहित करते थे। इस सारी की सारी प्रक्रिया में हम महिलाओं ने कहीं भी अनाधिकृत आर्थिक प्रलोभनों का सहारा नहीं लिया जिससे कार्यों मे विलंब जरूर हुआ परंतु स्वच्छ आर्थिक व्यवहार की मजबूत नींव भी हमने रखी जो आज हमारी संस्था का पर्यायवाची बन गया है।
लाईसेंस मिलने की प्रक्रिया पूर्णता की ओर बढ़ रही थी व्यवसाय के लिए उचित स्थान की खोज शुरू हुई। प्रारंभिक व्यवस्था में महाराष्ट्र मंडल सेक्टर ४ भिलाई के निर्माणाधीन भवन में ही सब गतिविधियां चल रहीं थी। परंतु इस्पात नगरी भिलाई में स्वस्थ सहकारिता का वातावरण होने के कारण भिलाई इस्पात संयंत्र ने हमें सेक्टर २ ''ए'' मार्केट में जगह उपलब्ध कराकर मानो हमारे काम पर सफलता की मोहर लगा दी।
लाईसेंस और जगह सुनिश्चित होने के बाद दैनंदिन बैंकिंग प्रक्रिया आरंभ करने के लिए हमें अमूल्य मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। मुम्बई सहकारिता के क्षेत्र में अग्रगण्य श्री अरविंद भिड़े, श्री रंजन कुलकर्णी, सहकारी बैंक मुम्बई के श्री सतीश मराठे जो आज भी बैंक को सौजन्य भेंट देते रहते हैं। बैंक स्टाफ की संखया से लेकर सेवा भावना के साथ कार्यकरने के गुरूमंत्र देने का गुरूत्तर कार्य श्री भिडे काका ने किया। हम सब सदा ही उनके अत्यंत ऋणी रहेंगे। सभी घटकों के प्रतिनिधित्व को ध्यान मे रखते हुए प्रथम तदर्थ बोर्ड आफ डायरेक्टर्स का गठन हुआ।
समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्व और बैंक के माध्यम से समाज ऋण से अल्पमात्रा मे ही क्यों न हो उऋण होन के लिए हमने अपने ऐतिहासिक धरोहर को आत्मसात करने का प्रयास किया। फलतः मातृत्व कर्तृत्व और नेतृत्व का पाठ पढ़ाने वाली वंदनीया जीजा बाई, देवी अहिल्या बाई होल्कर और वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई को हमने अपना प्रेरणा स्रोत स्वीकार किया और इनका आदर्द्गा ही आज हमें कतिपय कठिनाईयों का सामना कर अपनी विकास यात्रा पर अग्रसर होने में आत्मिक उत्साह विद्गवास से भर देता है।
क्रमशः हमारे बैंक का वास्तविक प्रारंभ दिन पास आता गया और यहां उल्लेखित और अनुल्लेखित शुभचिंतकों के सहयोग, सदस्यों और भरपूर अंशराशि के साथ आर्शीवाद से हमने २५ जनवरी १९९६ को प्रगति महिला नागरिक सहकारी बैंक भिलाई का दुर्ग नगर एवं तत्कालीन म.प्र. और अब छत्तीसगढ़ सहकारिता विभाग में अवतरण हुआ। आने वाले वर्षो में मध्यम वर्गीय महिलाओं द्वारा आरंभ किये गये बैंक ने अपना कारोबार भी कम लागत व समर्पण भाव से उत्तम सेवा और अधिक लाभ का समीकरण सफलता पूर्वक प्राप्त किया जिसका पूरा श्रेय बैंक के पूर्व प्रबंधक श्रीयुत सुशील सगदेव, प्रबंधक श्री प्रतुल भेलोंडे,सहा. प्रबंधक श्री मुकुंद भोंबे और संपूर्ण स्टाफ को जाता है।
आरंभिक काल मे डिपाजिट लाने सभी करीब २० साख समितियों का विश्वास अर्जित कर उनका कारोबार और डिपाजिटर, ऋणी महिलाओं को अपने बैंक मे लाने के लिए सौ. स्मिता जोशी ने अपने सहयोगिनियों श्रीमती प्राजक्ता करकरे, आरती जोशी आदि के साथ अपनी अध्यक्षीय जिम्मेदारी बखूबी निभाई। सफल बैंक इस्पात संयंत्र के अधिकारियों का सहकार जो कि बैंक के प्रगति में वरद हस्त रहा।
स्थापना के ५ वर्षो में ही हमने हमारा दुर्ग स्थित विस्तार पटल आरंभ किया, भिलाई कार्यालय का नवीन भवन और कम्प्यूटरीकरण पूर्ण किया। निस्वार्थ सेवा भाव एवं इमानदार संचालक मंडल भी बैंक की विश्वासनीयता एवं लोगों का विश्वास पात्र रहा है जिससे व्यवसाय में बढ़ोत्तरी तो हो ही रही है। तीसरी बार इलेक्शन फाइट कर बैंक को सुव्यवस्थित संचालित कर बैंक का कारोबार बढता ही रहा है। महिलाओं के लिए विभिन्न प्रकार के उद्यमिता शिविरों का आयोजन कर आर्थिक, समाजिक, शैक्षणिक विषयों पर विचार मंथन करने का महिलाओं में जागरूकता लाने का कार्य संचालक मंडल एवं स्टाफ द्वारा किया जा रहा है।
राज्य में या देश में आये आपदा में बैंक ने सहायता करने के लिए बढ़ चढ कर हिस्सा लिया है। स्थानीय जनोपयोगी संस्था जैसे आदिवासी छात्रावास, मंदबुद्धि विद्यालयों, महिला बचत समूह, खेलकूद, शैक्षणिक स्कालरशिप आदि सामाजिक कार्यों को बढावा देना, अनुदान अपने धर्मदाय खाते से देना अपना आर्दश ही बना लिया है। बैंक प्रारंभ से ही लाभ में रहा है और अपनी सदस्याओं को बढ़ते क्रम में ११ प्रतिशत लाभांश दे रहा है। व्यवसायिक बैंकिंग प्रतिस्पर्धा में ताकतवर बन कर महिलाओं को आर्थिक संबल प्रदान करने का लक्ष्य रख कर बैंक का व्यवसाय सम्मानजनक है। ''लिटिल बट स्ट्रांग'' बैंक है हमारा।
वर्तमान में ६२०० सदस्य, १४०.३९ लाख अंशपूंजी, ४२२५. २८ लाख कार्यशील पूंजी, Net NPA १.७४% के साथ बैंक प्रथम वर्ष से लगातार ''अ'' वर्ग मे अंकेक्षित है।
बैंक ने वर्ष २००४ में राष्ट्रीय विकास रत्न गोल्ड पुरस्कार, वर्ष २००६ में छत्तीसगढ़ शासन का सहकारिता विभाग का ठाकुर प्यारे लाल पुरस्कार, वर्ष २००८ में इंडियन अचीवर्स फोरम से बेस्ट परफारमिंग को - ऑप. बैंक का पुरस्कार प्राप्त करके अपनी विकास यात्रा को जारी रखा है। हमें पूरा विश्वास है कि छत्तीसगढ राज्य की भारतीय जनता पार्टी की सरकार की महिलाओं को सहकारी क्षेत्र में बढावा देने वाली योजनाओं का लाभ उठाते हुए, व्यवस्था और मूल्यों का उच्च स्तर बनाए रखते हुए अपने कार्य क्षेत्र में सकारात्मक योगदान देते हुए शासन और बैंक दोनो ही गौरवान्वित होंगे।
कामना करते हैं कि समाज के सहयोग से हम कम खर्च अधिक सेवा अधिक लाभ के सिद्धांत से सफलता की नये सोपानों का आरोहण कर सहकारिता विभाग में अपनी उज्वल छवि को हमेशा बनाये रखेंगे।
आज से १३ वर्ष पहले एक छोटे से बीजांकुर के रूप मे प्रगति महिला नागरिक सहकारी बैंक मर्यादित की स्थापना हुई थी। आज उसी बीजांकुर का इतना विशाल वृक्ष का रूप देखकर अभिमान से सर ऊॅचा उठ जाता है। बैंक की स्थापना करने की कल्पना करने वाली उन महिलाओं की छोटी सी टोली से लेकर आज तक अनगिनत व्यक्तियों ने बैंक के कार्य में किसी भी स्वरूप मे हाथ बटाया है उन सभी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त किये बिना नहीं रहा जाता।
मानव जीवन का सामाजिक वास्तव्य ही प्रमुख लक्ष्य रहता है और सहकारिता यह मानवीय गुण है। यह भारतीय जीवन शैली का दर्पण है। अकेला चना भाड़ नही फोड सकता। यह एक अकाट्य तथ्य है। मनुष्य को पग पग पर एक दूसरे के सहयोग की आवश्यकता पडती है और इसी सहयोग ने सहकार तथा सहकारिता को जन्म दिया है। आवश्यकतानुसार इसका रूप-प्रारूप बदलता रहा है। गावों से लेकर महानगरों तक कुछ व्यक्ति एकत्रित होकर विभिन्न प्रकार की समितियां बनाकर सहकारिता का लाभ लेते हैं। परन्तु इनका दुरूपयोग न हो इसके लिये शासन को नियंत्रण लगाना पडा और शासकीय सहकारिता विभाग का अभ्युदय हुआ। इस विभाग सें और इस विभाग मे सहकारिता की कमियां और उससे गैर वाजिब लाभ लेने वालों पर अंकुश लगा हो या नियंत्रण हुआ हो यह चर्चा और शोध का विषय हो सकता है परंतु जिन व्यक्तियों ने सेवाभाव को प्रधानता देते हुए अपनी संस्था को जन्म दिया तथा उसका संवर्धन किया वे संस्थाएं किसी सरकारी सहायता की मोहताज नहीं रही। भिलाई में सन १९९५ में प्रगति महिला नागरिक सहकारी बैंक का रजिस्ट्रेशन कर स्थापना की गयी। अपने समाज सेवा के मूल उद्देश्यों और आदर्शों पर पूरा खरा उतरते हुए इस बैंक ने केवल १० वर्षो में ही छत्तीसगढ़ का सर्वोत्तम सहकारी बैंक का खिताब वर्ष २००६ में अपने नाम किया और आज भी यह कीर्तिमान प्रगति महिला नागरिक सहकारी बैंक भिलाई दुर्ग के पास बना हुआ है। छत्तीसगढ शासन ने वर्ष २००६ के छत्तीसगढ राज्योत्सव में विभिन्न पुरस्कारों के साथ सहकारिता विभाग का ''ठाकुर प्यारे लाल सिंह सहकारिता सम्मान ''पूर्व राष्ट्रपति महामहिम ए.पी. जे. अब्दुल कलाम जी के कर कमलों से, मुखयमंत्री डॉ. रमन सिंह, पूर्व विधान सभा अध्यक्ष श्री प्रेम प्रकाद्गा पांडे, पूर्व राज्यपाल महोदय और अन्य गणमान्य मंत्री महोदय एवं करीबन २ लाख जन समुदाय के समक्ष छत्तीसगढ राज्य के सर्वोत्कृष्ट सहकारी बैंक के सम्मान से विभूषित किया।
रिजर्व बैंक की दृष्टि मे ''लिटिल बट स्ट्रांग'' है यह बैंक
प्रगति महिला नाग. सह. बैंक की सफलता की विकास यात्रा करीबन २० वर्ष पूर्व महाराष्ट्र मंडल सेक्टर ४ से प्रारंभ हुई थी। महाराष्ट्र मे सफलतम व्यवसाय करने वाली सहकारी महिला बैंकों की चर्चा मंडल में हमेशा ही होती रहती थी। अवसर था गोंदिया निवासी श्री राम टोल जी की महिला मंडल से सौजन्य भेंट का। वे गोंदिया नाग. सह. बैंक के सी.ई.ओ. थे।
उस समय महिला समिति बड़ी, पापड, टिफीन, नाश्ता, दीवाली में लगने वाले चकली, गुजिया जैसे पदार्थ का व्यवसाय भी सफलता पूर्वक कर रही थी। श्री टोल जी के समक्ष इन महिलाओं ने अपनी सहकारी महिला बैंक का विचार रखा। खूब चर्चा, संगोष्ठी हुई। यहां महिलाओं में ऐसा अक्षय उर्जा का भंडार उन्हें दिखा तो तुरंत उन्होने सहकारी महिला बैंक स्थापना करने मे पूर्णतः मदद करने की हामी भरी। उस समय मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ में एक भी सहकारी महिला बैंक नहीं थी। चूंकि महाराष्ट्र महिला मंडल में महाराष्ट्र की तर्ज पर महिला सहकारिता का अभ्युदय यह सब मानो आर्थिक जगत में महिलाओं की दस्ते के लिए एक अनुकूल संयोग था। बस फिर क्या था भारत की हृदय स्थली में रहने वाले इस लघु भारत रूप भिलाई की महाराष्ट्रीयन महिलाओं ने अपनी १९८९ की पहली बैठक मे सहकारी महिला बैंक प्रारंभ करने का बीडा उठा ही लिया।
श्रीमती माधुरी ताई बखले के नेतृत्व में सभी चल पड़ीं। श्रीमती स्मिता जोशी प्रारंभ से आज तक की सफल अध्यक्षा, संजीवनी जोशी, नलिनी करकरे, प्राजक्ता करकरे, सुधा ताई देशपांडे, वृंदा भिडे, आरती जोशी तथा मैंने घर घर जाकर इन महिलाओं को महिला बैंक की संकल्पना, शेयर का अर्थ, शेयर मनी की आवश्यकता एवं बाध्यता, उनके पैसे की सुरक्षा का भरोसा दिलाने मे अपना दिन रात एक कर दिया। इस जुनून में अन्य अनेकानेक सखियों ने भी बढ चढ कर साथ दिया। रजिस्ट्रेशन के बाद रिजर्व बैंक का टारगेट पूर्ण करना जो कि १५०० सदस्य एवं १५ लाख अंश राशि खडा करना बडा सा पहाड पार करने वाला था परंतु ३ महीने में ही १७०० सौ सदस्या एवं १८ लाख अंश राशि का लक्ष्य पूरा हुआ।
दिन-दिन बढ़ता शेयर मनी हम महिलाओं के साहस और उत्साह में हर दिन वृदि करता और हर दिन नई योजनाएं, कार्यक्रमों को आंका जाता। फिर शुरू हुई कार्यालयीन कार्यवाही रिजर्व बैंक का लाइसेंस प्राप्त करना। इसके लिए जिला एवं संभागीय कार्यालयों के चक्कर काटना मानो हम महिलाओं की दिनचर्या का अभिन्न अंग बन गया। उस वक्त सहकारिता विभाग का अमला महिलाओं को समर्थक व्यवहार नहीं दे सका। महिला बैंक की स्थापना उनके सुव्यवस्थित संचालन पर उन्हें विश्वास रखना मुश्किल था। हमें बार-बार पूछा जाता था आपके साथ कोई पुरूष नहीं है क्या? हमें हमारी कार्य क्षमता पर उंगली उठती देख हम दुखी होते थे और महिलाए क्या बैंक चलाएंगी? इस नकारात्मक सोच के कारण नित्य हमें उपहास ही सहन करना पड ता था। परंतु कुछ कर दिखाने का जुनून १७०० महिलाओं की भागीदारी और उनकी शिक्षा के कारण अर्जित धैर्य ने कभी भी हम महिलाओं के बढते कदम रोकने के लिए प्रवृत नहीं किया।
हमारा साहस बढ़ाते हुए अग्रिम पंक्ति में कार्य करने वाली महिलाओं के पति भी पर्दे के पीछे सशक्त संबल दे रहे थे और प्रत्यक्ष सहयोग में अनेक बंधुओं के साथ तत्कालीन भाजपा विधायक स्व. दिनकर डांगे एवं संघ एवं भाजपा कार्यकर्ता श्री भाऊ टेंभेकर जी का नाम अविस्मरणीय है। टेंभेकर जी तो निःस्वार्थ हम महिलाओं की रायपुर एवं भोपाल (रिजर्व बैंक के प्रादेच्चिक मुखयालय) प्रवास में ठहरने, खाने की व्यवस्था सहर्द्गा अपने परिजनों के यहां करवा कर हम महिलाओं को सुरक्षा और संबल देते थे और आर्थिक संतुलन भी। क्योंकि १५ - १६ वर्ष पूर्व होटल मे रूकना आमबात भी नहीं था और खर्च के लिए तो कोई मद ही नहीं थी साथ में हमारे युवा साथी अतुल नागले, राजेन्द्र जोशी, अजय डांगे, धनंजय करकरे, विजय जोशी हमें प्रोत्साहित करते थे। इस सारी की सारी प्रक्रिया में हम महिलाओं ने कहीं भी अनाधिकृत आर्थिक प्रलोभनों का सहारा नहीं लिया जिससे कार्यों मे विलंब जरूर हुआ परंतु स्वच्छ आर्थिक व्यवहार की मजबूत नींव भी हमने रखी जो आज हमारी संस्था का पर्यायवाची बन गया है।
लाईसेंस मिलने की प्रक्रिया पूर्णता की ओर बढ़ रही थी व्यवसाय के लिए उचित स्थान की खोज शुरू हुई। प्रारंभिक व्यवस्था में महाराष्ट्र मंडल सेक्टर ४ भिलाई के निर्माणाधीन भवन में ही सब गतिविधियां चल रहीं थी। परंतु इस्पात नगरी भिलाई में स्वस्थ सहकारिता का वातावरण होने के कारण भिलाई इस्पात संयंत्र ने हमें सेक्टर २ ''ए'' मार्केट में जगह उपलब्ध कराकर मानो हमारे काम पर सफलता की मोहर लगा दी।
लाईसेंस और जगह सुनिश्चित होने के बाद दैनंदिन बैंकिंग प्रक्रिया आरंभ करने के लिए हमें अमूल्य मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। मुम्बई सहकारिता के क्षेत्र में अग्रगण्य श्री अरविंद भिड़े, श्री रंजन कुलकर्णी, सहकारी बैंक मुम्बई के श्री सतीश मराठे जो आज भी बैंक को सौजन्य भेंट देते रहते हैं। बैंक स्टाफ की संखया से लेकर सेवा भावना के साथ कार्यकरने के गुरूमंत्र देने का गुरूत्तर कार्य श्री भिडे काका ने किया। हम सब सदा ही उनके अत्यंत ऋणी रहेंगे। सभी घटकों के प्रतिनिधित्व को ध्यान मे रखते हुए प्रथम तदर्थ बोर्ड आफ डायरेक्टर्स का गठन हुआ।
समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्व और बैंक के माध्यम से समाज ऋण से अल्पमात्रा मे ही क्यों न हो उऋण होन के लिए हमने अपने ऐतिहासिक धरोहर को आत्मसात करने का प्रयास किया। फलतः मातृत्व कर्तृत्व और नेतृत्व का पाठ पढ़ाने वाली वंदनीया जीजा बाई, देवी अहिल्या बाई होल्कर और वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई को हमने अपना प्रेरणा स्रोत स्वीकार किया और इनका आदर्द्गा ही आज हमें कतिपय कठिनाईयों का सामना कर अपनी विकास यात्रा पर अग्रसर होने में आत्मिक उत्साह विद्गवास से भर देता है।
क्रमशः हमारे बैंक का वास्तविक प्रारंभ दिन पास आता गया और यहां उल्लेखित और अनुल्लेखित शुभचिंतकों के सहयोग, सदस्यों और भरपूर अंशराशि के साथ आर्शीवाद से हमने २५ जनवरी १९९६ को प्रगति महिला नागरिक सहकारी बैंक भिलाई का दुर्ग नगर एवं तत्कालीन म.प्र. और अब छत्तीसगढ़ सहकारिता विभाग में अवतरण हुआ। आने वाले वर्षो में मध्यम वर्गीय महिलाओं द्वारा आरंभ किये गये बैंक ने अपना कारोबार भी कम लागत व समर्पण भाव से उत्तम सेवा और अधिक लाभ का समीकरण सफलता पूर्वक प्राप्त किया जिसका पूरा श्रेय बैंक के पूर्व प्रबंधक श्रीयुत सुशील सगदेव, प्रबंधक श्री प्रतुल भेलोंडे,सहा. प्रबंधक श्री मुकुंद भोंबे और संपूर्ण स्टाफ को जाता है।
आरंभिक काल मे डिपाजिट लाने सभी करीब २० साख समितियों का विश्वास अर्जित कर उनका कारोबार और डिपाजिटर, ऋणी महिलाओं को अपने बैंक मे लाने के लिए सौ. स्मिता जोशी ने अपने सहयोगिनियों श्रीमती प्राजक्ता करकरे, आरती जोशी आदि के साथ अपनी अध्यक्षीय जिम्मेदारी बखूबी निभाई। सफल बैंक इस्पात संयंत्र के अधिकारियों का सहकार जो कि बैंक के प्रगति में वरद हस्त रहा।
स्थापना के ५ वर्षो में ही हमने हमारा दुर्ग स्थित विस्तार पटल आरंभ किया, भिलाई कार्यालय का नवीन भवन और कम्प्यूटरीकरण पूर्ण किया। निस्वार्थ सेवा भाव एवं इमानदार संचालक मंडल भी बैंक की विश्वासनीयता एवं लोगों का विश्वास पात्र रहा है जिससे व्यवसाय में बढ़ोत्तरी तो हो ही रही है। तीसरी बार इलेक्शन फाइट कर बैंक को सुव्यवस्थित संचालित कर बैंक का कारोबार बढता ही रहा है। महिलाओं के लिए विभिन्न प्रकार के उद्यमिता शिविरों का आयोजन कर आर्थिक, समाजिक, शैक्षणिक विषयों पर विचार मंथन करने का महिलाओं में जागरूकता लाने का कार्य संचालक मंडल एवं स्टाफ द्वारा किया जा रहा है।
राज्य में या देश में आये आपदा में बैंक ने सहायता करने के लिए बढ़ चढ कर हिस्सा लिया है। स्थानीय जनोपयोगी संस्था जैसे आदिवासी छात्रावास, मंदबुद्धि विद्यालयों, महिला बचत समूह, खेलकूद, शैक्षणिक स्कालरशिप आदि सामाजिक कार्यों को बढावा देना, अनुदान अपने धर्मदाय खाते से देना अपना आर्दश ही बना लिया है। बैंक प्रारंभ से ही लाभ में रहा है और अपनी सदस्याओं को बढ़ते क्रम में ११ प्रतिशत लाभांश दे रहा है। व्यवसायिक बैंकिंग प्रतिस्पर्धा में ताकतवर बन कर महिलाओं को आर्थिक संबल प्रदान करने का लक्ष्य रख कर बैंक का व्यवसाय सम्मानजनक है। ''लिटिल बट स्ट्रांग'' बैंक है हमारा।
वर्तमान में ६२०० सदस्य, १४०.३९ लाख अंशपूंजी, ४२२५. २८ लाख कार्यशील पूंजी, Net NPA १.७४% के साथ बैंक प्रथम वर्ष से लगातार ''अ'' वर्ग मे अंकेक्षित है।
बैंक ने वर्ष २००४ में राष्ट्रीय विकास रत्न गोल्ड पुरस्कार, वर्ष २००६ में छत्तीसगढ़ शासन का सहकारिता विभाग का ठाकुर प्यारे लाल पुरस्कार, वर्ष २००८ में इंडियन अचीवर्स फोरम से बेस्ट परफारमिंग को - ऑप. बैंक का पुरस्कार प्राप्त करके अपनी विकास यात्रा को जारी रखा है। हमें पूरा विश्वास है कि छत्तीसगढ राज्य की भारतीय जनता पार्टी की सरकार की महिलाओं को सहकारी क्षेत्र में बढावा देने वाली योजनाओं का लाभ उठाते हुए, व्यवस्था और मूल्यों का उच्च स्तर बनाए रखते हुए अपने कार्य क्षेत्र में सकारात्मक योगदान देते हुए शासन और बैंक दोनो ही गौरवान्वित होंगे।
कामना करते हैं कि समाज के सहयोग से हम कम खर्च अधिक सेवा अधिक लाभ के सिद्धांत से सफलता की नये सोपानों का आरोहण कर सहकारिता विभाग में अपनी उज्वल छवि को हमेशा बनाये रखेंगे।
प्रगति महिला नागरिक सहकारी बैंक मर्यादित, भिलाई, दुर्ग
प्रगति महिला नागरिक सहकारी बैंक मर्यादित, भिलाई, दुर्ग
आज से १३ वर्ष पहले एक छोटे से बीजांकुर के रूप मे प्रगति महिला नागरिक सहकारी बैंक मर्यादित की स्थापना हुई थी। आज उसी बीजांकुर का इतना विशाल वृक्ष का रूप देखकर अभिमान से सर ऊॅचा उठ जाता है। बैंक की स्थापना करने की कल्पना करने वाली उन महिलाओं की छोटी सी टोली से लेकर आज तक अनगिनत व्यक्तियों ने बैंक के कार्य में किसी भी स्वरूप मे हाथ बटाया है उन सभी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त किये बिना नहीं रहा जाता।
मानव जीवन का सामाजिक वास्तव्य ही प्रमुख लक्ष्य रहता है और सहकारिता यह मानवीय गुण है। यह भारतीय जीवन शैली का दर्पण है। अकेला चना भाड़ नही फोड सकता। यह एक अकाट्य तथ्य है। मनुष्य को पग पग पर एक दूसरे के सहयोग की आवश्यकता पडती है और इसी सहयोग ने सहकार तथा सहकारिता को जन्म दिया है। आवश्यकतानुसार इसका रूप-प्रारूप बदलता रहा है। गावों से लेकर महानगरों तक कुछ व्यक्ति एकत्रित होकर विभिन्न प्रकार की समितियां बनाकर सहकारिता का लाभ लेते हैं। परन्तु इनका दुरूपयोग न हो इसके लिये शासन को नियंत्रण लगाना पडा और शासकीय सहकारिता विभाग का अभ्युदय हुआ। इस विभाग सें और इस विभाग मे सहकारिता की कमियां और उससे गैर वाजिब लाभ लेने वालों पर अंकुश लगा हो या नियंत्रण हुआ हो यह चर्चा और शोध का विषय हो सकता है परंतु जिन व्यक्तियों ने सेवाभाव को प्रधानता देते हुए अपनी संस्था को जन्म दिया तथा उसका संवर्धन किया वे संस्थाएं किसी सरकारी सहायता की मोहताज नहीं रही। भिलाई में सन १९९५ में प्रगति महिला नागरिक सहकारी बैंक का रजिस्ट्रेशन कर स्थापना की गयी। अपने समाज सेवा के मूल उद्देश्यों और आदर्शों पर पूरा खरा उतरते हुए इस बैंक ने केवल १० वर्षो में ही छत्तीसगढ़ का सर्वोत्तम सहकारी बैंक का खिताब वर्ष २००६ में अपने नाम किया और आज भी यह कीर्तिमान प्रगति महिला नागरिक सहकारी बैंक भिलाई दुर्ग के पास बना हुआ है। छत्तीसगढ शासन ने वर्ष २००६ के छत्तीसगढ राज्योत्सव में विभिन्न पुरस्कारों के साथ सहकारिता विभाग का ''ठाकुर प्यारे लाल सिंह सहकारिता सम्मान ''पूर्व राष्ट्रपति महामहिम ए.पी. जे. अब्दुल कलाम जी के कर कमलों से, मुखयमंत्री डॉ. रमन सिंह, पूर्व विधान सभा अध्यक्ष श्री प्रेम प्रकाद्गा पांडे, पूर्व राज्यपाल महोदय और अन्य गणमान्य मंत्री महोदय एवं करीबन २ लाख जन समुदाय के समक्ष छत्तीसगढ राज्य के सर्वोत्कृष्ट सहकारी बैंक के सम्मान से विभूषित किया।
रिजर्व बैंक की दृष्टि मे ''लिटिल बट स्ट्रांग'' है यह बैंक
प्रगति महिला नाग. सह. बैंक की सफलता की विकास यात्रा करीबन २० वर्ष पूर्व महाराष्ट्र मंडल सेक्टर ४ से प्रारंभ हुई थी। महाराष्ट्र मे सफलतम व्यवसाय करने वाली सहकारी महिला बैंकों की चर्चा मंडल में हमेशा ही होती रहती थी। अवसर था गोंदिया निवासी श्री राम टोल जी की महिला मंडल से सौजन्य भेंट का। वे गोंदिया नाग. सह. बैंक के सी.ई.ओ. थे।
उस समय महिला समिति बड़ी, पापड, टिफीन, नाश्ता, दीवाली में लगने वाले चकली, गुजिया जैसे पदार्थ का व्यवसाय भी सफलता पूर्वक कर रही थी। श्री टोल जी के समक्ष इन महिलाओं ने अपनी सहकारी महिला बैंक का विचार रखा। खूब चर्चा, संगोष्ठी हुई। यहां महिलाओं में ऐसा अक्षय उर्जा का भंडार उन्हें दिखा तो तुरंत उन्होने सहकारी महिला बैंक स्थापना करने मे पूर्णतः मदद करने की हामी भरी। उस समय मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ में एक भी सहकारी महिला बैंक नहीं थी। चूंकि महाराष्ट्र महिला मंडल में महाराष्ट्र की तर्ज पर महिला सहकारिता का अभ्युदय यह सब मानो आर्थिक जगत में महिलाओं की दस्ते के लिए एक अनुकूल संयोग था। बस फिर क्या था भारत की हृदय स्थली में रहने वाले इस लघु भारत रूप भिलाई की महाराष्ट्रीयन महिलाओं ने अपनी १९८९ की पहली बैठक मे सहकारी महिला बैंक प्रारंभ करने का बीडा उठा ही लिया।
श्रीमती माधुरी ताई बखले के नेतृत्व में सभी चल पड़ीं। श्रीमती स्मिता जोशी प्रारंभ से आज तक की सफल अध्यक्षा, संजीवनी जोशी, नलिनी करकरे, प्राजक्ता करकरे, सुधा ताई देशपांडे, वृंदा भिडे, आरती जोशी तथा मैंने घर घर जाकर इन महिलाओं को महिला बैंक की संकल्पना, शेयर का अर्थ, शेयर मनी की आवश्यकता एवं बाध्यता, उनके पैसे की सुरक्षा का भरोसा दिलाने मे अपना दिन रात एक कर दिया। इस जुनून में अन्य अनेकानेक सखियों ने भी बढ चढ कर साथ दिया। रजिस्ट्रेशन के बाद रिजर्व बैंक का टारगेट पूर्ण करना जो कि १५०० सदस्य एवं १५ लाख अंश राशि खडा करना बडा सा पहाड पार करने वाला था परंतु ३ महीने में ही १७०० सौ सदस्या एवं १८ लाख अंश राशि का लक्ष्य पूरा हुआ।
दिन-दिन बढ़ता शेयर मनी हम महिलाओं के साहस और उत्साह में हर दिन वृदि करता और हर दिन नई योजनाएं, कार्यक्रमों को आंका जाता। फिर शुरू हुई कार्यालयीन कार्यवाही रिजर्व बैंक का लाइसेंस प्राप्त करना। इसके लिए जिला एवं संभागीय कार्यालयों के चक्कर काटना मानो हम महिलाओं की दिनचर्या का अभिन्न अंग बन गया। उस वक्त सहकारिता विभाग का अमला महिलाओं को समर्थक व्यवहार नहीं दे सका। महिला बैंक की स्थापना उनके सुव्यवस्थित संचालन पर उन्हें विश्वास रखना मुश्किल था। हमें बार-बार पूछा जाता था आपके साथ कोई पुरूष नहीं है क्या? हमें हमारी कार्य क्षमता पर उंगली उठती देख हम दुखी होते थे और महिलाए क्या बैंक चलाएंगी? इस नकारात्मक सोच के कारण नित्य हमें उपहास ही सहन करना पड ता था। परंतु कुछ कर दिखाने का जुनून १७०० महिलाओं की भागीदारी और उनकी शिक्षा के कारण अर्जित धैर्य ने कभी भी हम महिलाओं के बढते कदम रोकने के लिए प्रवृत नहीं किया।
हमारा साहस बढ़ाते हुए अग्रिम पंक्ति में कार्य करने वाली महिलाओं के पति भी पर्दे के पीछे सशक्त संबल दे रहे थे और प्रत्यक्ष सहयोग में अनेक बंधुओं के साथ तत्कालीन भाजपा विधायक स्व. दिनकर डांगे एवं संघ एवं भाजपा कार्यकर्ता श्री भाऊ टेंभेकर जी का नाम अविस्मरणीय है। टेंभेकर जी तो निःस्वार्थ हम महिलाओं की रायपुर एवं भोपाल (रिजर्व बैंक के प्रादेच्चिक मुखयालय) प्रवास में ठहरने, खाने की व्यवस्था सहर्द्गा अपने परिजनों के यहां करवा कर हम महिलाओं को सुरक्षा और संबल देते थे और आर्थिक संतुलन भी। क्योंकि १५ - १६ वर्ष पूर्व होटल मे रूकना आमबात भी नहीं था और खर्च के लिए तो कोई मद ही नहीं थी साथ में हमारे युवा साथी अतुल नागले, राजेन्द्र जोशी, अजय डांगे, धनंजय करकरे, विजय जोशी हमें प्रोत्साहित करते थे। इस सारी की सारी प्रक्रिया में हम महिलाओं ने कहीं भी अनाधिकृत आर्थिक प्रलोभनों का सहारा नहीं लिया जिससे कार्यों मे विलंब जरूर हुआ परंतु स्वच्छ आर्थिक व्यवहार की मजबूत नींव भी हमने रखी जो आज हमारी संस्था का पर्यायवाची बन गया है।
लाईसेंस मिलने की प्रक्रिया पूर्णता की ओर बढ़ रही थी व्यवसाय के लिए उचित स्थान की खोज शुरू हुई। प्रारंभिक व्यवस्था में महाराष्ट्र मंडल सेक्टर ४ भिलाई के निर्माणाधीन भवन में ही सब गतिविधियां चल रहीं थी। परंतु इस्पात नगरी भिलाई में स्वस्थ सहकारिता का वातावरण होने के कारण भिलाई इस्पात संयंत्र ने हमें सेक्टर २ ''ए'' मार्केट में जगह उपलब्ध कराकर मानो हमारे काम पर सफलता की मोहर लगा दी।
लाईसेंस और जगह सुनिश्चित होने के बाद दैनंदिन बैंकिंग प्रक्रिया आरंभ करने के लिए हमें अमूल्य मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। मुम्बई सहकारिता के क्षेत्र में अग्रगण्य श्री अरविंद भिड़े, श्री रंजन कुलकर्णी, सहकारी बैंक मुम्बई के श्री सतीश मराठे जो आज भी बैंक को सौजन्य भेंट देते रहते हैं। बैंक स्टाफ की संखया से लेकर सेवा भावना के साथ कार्यकरने के गुरूमंत्र देने का गुरूत्तर कार्य श्री भिडे काका ने किया। हम सब सदा ही उनके अत्यंत ऋणी रहेंगे। सभी घटकों के प्रतिनिधित्व को ध्यान मे रखते हुए प्रथम तदर्थ बोर्ड आफ डायरेक्टर्स का गठन हुआ।
समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्व और बैंक के माध्यम से समाज ऋण से अल्पमात्रा मे ही क्यों न हो उऋण होन के लिए हमने अपने ऐतिहासिक धरोहर को आत्मसात करने का प्रयास किया। फलतः मातृत्व कर्तृत्व और नेतृत्व का पाठ पढ़ाने वाली वंदनीया जीजा बाई, देवी अहिल्या बाई होल्कर और वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई को हमने अपना प्रेरणा स्रोत स्वीकार किया और इनका आदर्द्गा ही आज हमें कतिपय कठिनाईयों का सामना कर अपनी विकास यात्रा पर अग्रसर होने में आत्मिक उत्साह विद्गवास से भर देता है।
क्रमशः हमारे बैंक का वास्तविक प्रारंभ दिन पास आता गया और यहां उल्लेखित और अनुल्लेखित शुभचिंतकों के सहयोग, सदस्यों और भरपूर अंशराशि के साथ आर्शीवाद से हमने २५ जनवरी १९९६ को प्रगति महिला नागरिक सहकारी बैंक भिलाई का दुर्ग नगर एवं तत्कालीन म.प्र. और अब छत्तीसगढ़ सहकारिता विभाग में अवतरण हुआ। आने वाले वर्षो में मध्यम वर्गीय महिलाओं द्वारा आरंभ किये गये बैंक ने अपना कारोबार भी कम लागत व समर्पण भाव से उत्तम सेवा और अधिक लाभ का समीकरण सफलता पूर्वक प्राप्त किया जिसका पूरा श्रेय बैंक के पूर्व प्रबंधक श्रीयुत सुशील सगदेव, प्रबंधक श्री प्रतुल भेलोंडे,सहा. प्रबंधक श्री मुकुंद भोंबे और संपूर्ण स्टाफ को जाता है।
आरंभिक काल मे डिपाजिट लाने सभी करीब २० साख समितियों का विश्वास अर्जित कर उनका कारोबार और डिपाजिटर, ऋणी महिलाओं को अपने बैंक मे लाने के लिए सौ. स्मिता जोशी ने अपने सहयोगिनियों श्रीमती प्राजक्ता करकरे, आरती जोशी आदि के साथ अपनी अध्यक्षीय जिम्मेदारी बखूबी निभाई। सफल बैंक इस्पात संयंत्र के अधिकारियों का सहकार जो कि बैंक के प्रगति में वरद हस्त रहा।
स्थापना के ५ वर्षो में ही हमने हमारा दुर्ग स्थित विस्तार पटल आरंभ किया, भिलाई कार्यालय का नवीन भवन और कम्प्यूटरीकरण पूर्ण किया। निस्वार्थ सेवा भाव एवं इमानदार संचालक मंडल भी बैंक की विश्वासनीयता एवं लोगों का विश्वास पात्र रहा है जिससे व्यवसाय में बढ़ोत्तरी तो हो ही रही है। तीसरी बार इलेक्शन फाइट कर बैंक को सुव्यवस्थित संचालित कर बैंक का कारोबार बढता ही रहा है। महिलाओं के लिए विभिन्न प्रकार के उद्यमिता शिविरों का आयोजन कर आर्थिक, समाजिक, शैक्षणिक विषयों पर विचार मंथन करने का महिलाओं में जागरूकता लाने का कार्य संचालक मंडल एवं स्टाफ द्वारा किया जा रहा है।
राज्य में या देश में आये आपदा में बैंक ने सहायता करने के लिए बढ़ चढ कर हिस्सा लिया है। स्थानीय जनोपयोगी संस्था जैसे आदिवासी छात्रावास, मंदबुद्धि विद्यालयों, महिला बचत समूह, खेलकूद, शैक्षणिक स्कालरशिप आदि सामाजिक कार्यों को बढावा देना, अनुदान अपने धर्मदाय खाते से देना अपना आर्दश ही बना लिया है। बैंक प्रारंभ से ही लाभ में रहा है और अपनी सदस्याओं को बढ़ते क्रम में ११ प्रतिशत लाभांश दे रहा है। व्यवसायिक बैंकिंग प्रतिस्पर्धा में ताकतवर बन कर महिलाओं को आर्थिक संबल प्रदान करने का लक्ष्य रख कर बैंक का व्यवसाय सम्मानजनक है। ''लिटिल बट स्ट्रांग'' बैंक है हमारा।
वर्तमान में ६२०० सदस्य, १४०.३९ लाख अंशपूंजी, ४२२५. २८ लाख कार्यशील पूंजी, Net NPA १.७४% के साथ बैंक प्रथम वर्ष से लगातार ''अ'' वर्ग मे अंकेक्षित है।
बैंक ने वर्ष २००४ में राष्ट्रीय विकास रत्न गोल्ड पुरस्कार, वर्ष २००६ में छत्तीसगढ़ शासन का सहकारिता विभाग का ठाकुर प्यारे लाल पुरस्कार, वर्ष २००८ में इंडियन अचीवर्स फोरम से बेस्ट परफारमिंग को - ऑप. बैंक का पुरस्कार प्राप्त करके अपनी विकास यात्रा को जारी रखा है। हमें पूरा विश्वास है कि छत्तीसगढ राज्य की भारतीय जनता पार्टी की सरकार की महिलाओं को सहकारी क्षेत्र में बढावा देने वाली योजनाओं का लाभ उठाते हुए, व्यवस्था और मूल्यों का उच्च स्तर बनाए रखते हुए अपने कार्य क्षेत्र में सकारात्मक योगदान देते हुए शासन और बैंक दोनो ही गौरवान्वित होंगे।
कामना करते हैं कि समाज के सहयोग से हम कम खर्च अधिक सेवा अधिक लाभ के सिद्धांत से सफलता की नये सोपानों का आरोहण कर सहकारिता विभाग में अपनी उज्वल छवि को हमेशा बनाये रखेंगे।
आज से १३ वर्ष पहले एक छोटे से बीजांकुर के रूप मे प्रगति महिला नागरिक सहकारी बैंक मर्यादित की स्थापना हुई थी। आज उसी बीजांकुर का इतना विशाल वृक्ष का रूप देखकर अभिमान से सर ऊॅचा उठ जाता है। बैंक की स्थापना करने की कल्पना करने वाली उन महिलाओं की छोटी सी टोली से लेकर आज तक अनगिनत व्यक्तियों ने बैंक के कार्य में किसी भी स्वरूप मे हाथ बटाया है उन सभी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त किये बिना नहीं रहा जाता।
मानव जीवन का सामाजिक वास्तव्य ही प्रमुख लक्ष्य रहता है और सहकारिता यह मानवीय गुण है। यह भारतीय जीवन शैली का दर्पण है। अकेला चना भाड़ नही फोड सकता। यह एक अकाट्य तथ्य है। मनुष्य को पग पग पर एक दूसरे के सहयोग की आवश्यकता पडती है और इसी सहयोग ने सहकार तथा सहकारिता को जन्म दिया है। आवश्यकतानुसार इसका रूप-प्रारूप बदलता रहा है। गावों से लेकर महानगरों तक कुछ व्यक्ति एकत्रित होकर विभिन्न प्रकार की समितियां बनाकर सहकारिता का लाभ लेते हैं। परन्तु इनका दुरूपयोग न हो इसके लिये शासन को नियंत्रण लगाना पडा और शासकीय सहकारिता विभाग का अभ्युदय हुआ। इस विभाग सें और इस विभाग मे सहकारिता की कमियां और उससे गैर वाजिब लाभ लेने वालों पर अंकुश लगा हो या नियंत्रण हुआ हो यह चर्चा और शोध का विषय हो सकता है परंतु जिन व्यक्तियों ने सेवाभाव को प्रधानता देते हुए अपनी संस्था को जन्म दिया तथा उसका संवर्धन किया वे संस्थाएं किसी सरकारी सहायता की मोहताज नहीं रही। भिलाई में सन १९९५ में प्रगति महिला नागरिक सहकारी बैंक का रजिस्ट्रेशन कर स्थापना की गयी। अपने समाज सेवा के मूल उद्देश्यों और आदर्शों पर पूरा खरा उतरते हुए इस बैंक ने केवल १० वर्षो में ही छत्तीसगढ़ का सर्वोत्तम सहकारी बैंक का खिताब वर्ष २००६ में अपने नाम किया और आज भी यह कीर्तिमान प्रगति महिला नागरिक सहकारी बैंक भिलाई दुर्ग के पास बना हुआ है। छत्तीसगढ शासन ने वर्ष २००६ के छत्तीसगढ राज्योत्सव में विभिन्न पुरस्कारों के साथ सहकारिता विभाग का ''ठाकुर प्यारे लाल सिंह सहकारिता सम्मान ''पूर्व राष्ट्रपति महामहिम ए.पी. जे. अब्दुल कलाम जी के कर कमलों से, मुखयमंत्री डॉ. रमन सिंह, पूर्व विधान सभा अध्यक्ष श्री प्रेम प्रकाद्गा पांडे, पूर्व राज्यपाल महोदय और अन्य गणमान्य मंत्री महोदय एवं करीबन २ लाख जन समुदाय के समक्ष छत्तीसगढ राज्य के सर्वोत्कृष्ट सहकारी बैंक के सम्मान से विभूषित किया।
रिजर्व बैंक की दृष्टि मे ''लिटिल बट स्ट्रांग'' है यह बैंक
प्रगति महिला नाग. सह. बैंक की सफलता की विकास यात्रा करीबन २० वर्ष पूर्व महाराष्ट्र मंडल सेक्टर ४ से प्रारंभ हुई थी। महाराष्ट्र मे सफलतम व्यवसाय करने वाली सहकारी महिला बैंकों की चर्चा मंडल में हमेशा ही होती रहती थी। अवसर था गोंदिया निवासी श्री राम टोल जी की महिला मंडल से सौजन्य भेंट का। वे गोंदिया नाग. सह. बैंक के सी.ई.ओ. थे।
उस समय महिला समिति बड़ी, पापड, टिफीन, नाश्ता, दीवाली में लगने वाले चकली, गुजिया जैसे पदार्थ का व्यवसाय भी सफलता पूर्वक कर रही थी। श्री टोल जी के समक्ष इन महिलाओं ने अपनी सहकारी महिला बैंक का विचार रखा। खूब चर्चा, संगोष्ठी हुई। यहां महिलाओं में ऐसा अक्षय उर्जा का भंडार उन्हें दिखा तो तुरंत उन्होने सहकारी महिला बैंक स्थापना करने मे पूर्णतः मदद करने की हामी भरी। उस समय मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ में एक भी सहकारी महिला बैंक नहीं थी। चूंकि महाराष्ट्र महिला मंडल में महाराष्ट्र की तर्ज पर महिला सहकारिता का अभ्युदय यह सब मानो आर्थिक जगत में महिलाओं की दस्ते के लिए एक अनुकूल संयोग था। बस फिर क्या था भारत की हृदय स्थली में रहने वाले इस लघु भारत रूप भिलाई की महाराष्ट्रीयन महिलाओं ने अपनी १९८९ की पहली बैठक मे सहकारी महिला बैंक प्रारंभ करने का बीडा उठा ही लिया।
श्रीमती माधुरी ताई बखले के नेतृत्व में सभी चल पड़ीं। श्रीमती स्मिता जोशी प्रारंभ से आज तक की सफल अध्यक्षा, संजीवनी जोशी, नलिनी करकरे, प्राजक्ता करकरे, सुधा ताई देशपांडे, वृंदा भिडे, आरती जोशी तथा मैंने घर घर जाकर इन महिलाओं को महिला बैंक की संकल्पना, शेयर का अर्थ, शेयर मनी की आवश्यकता एवं बाध्यता, उनके पैसे की सुरक्षा का भरोसा दिलाने मे अपना दिन रात एक कर दिया। इस जुनून में अन्य अनेकानेक सखियों ने भी बढ चढ कर साथ दिया। रजिस्ट्रेशन के बाद रिजर्व बैंक का टारगेट पूर्ण करना जो कि १५०० सदस्य एवं १५ लाख अंश राशि खडा करना बडा सा पहाड पार करने वाला था परंतु ३ महीने में ही १७०० सौ सदस्या एवं १८ लाख अंश राशि का लक्ष्य पूरा हुआ।
दिन-दिन बढ़ता शेयर मनी हम महिलाओं के साहस और उत्साह में हर दिन वृदि करता और हर दिन नई योजनाएं, कार्यक्रमों को आंका जाता। फिर शुरू हुई कार्यालयीन कार्यवाही रिजर्व बैंक का लाइसेंस प्राप्त करना। इसके लिए जिला एवं संभागीय कार्यालयों के चक्कर काटना मानो हम महिलाओं की दिनचर्या का अभिन्न अंग बन गया। उस वक्त सहकारिता विभाग का अमला महिलाओं को समर्थक व्यवहार नहीं दे सका। महिला बैंक की स्थापना उनके सुव्यवस्थित संचालन पर उन्हें विश्वास रखना मुश्किल था। हमें बार-बार पूछा जाता था आपके साथ कोई पुरूष नहीं है क्या? हमें हमारी कार्य क्षमता पर उंगली उठती देख हम दुखी होते थे और महिलाए क्या बैंक चलाएंगी? इस नकारात्मक सोच के कारण नित्य हमें उपहास ही सहन करना पड ता था। परंतु कुछ कर दिखाने का जुनून १७०० महिलाओं की भागीदारी और उनकी शिक्षा के कारण अर्जित धैर्य ने कभी भी हम महिलाओं के बढते कदम रोकने के लिए प्रवृत नहीं किया।
हमारा साहस बढ़ाते हुए अग्रिम पंक्ति में कार्य करने वाली महिलाओं के पति भी पर्दे के पीछे सशक्त संबल दे रहे थे और प्रत्यक्ष सहयोग में अनेक बंधुओं के साथ तत्कालीन भाजपा विधायक स्व. दिनकर डांगे एवं संघ एवं भाजपा कार्यकर्ता श्री भाऊ टेंभेकर जी का नाम अविस्मरणीय है। टेंभेकर जी तो निःस्वार्थ हम महिलाओं की रायपुर एवं भोपाल (रिजर्व बैंक के प्रादेच्चिक मुखयालय) प्रवास में ठहरने, खाने की व्यवस्था सहर्द्गा अपने परिजनों के यहां करवा कर हम महिलाओं को सुरक्षा और संबल देते थे और आर्थिक संतुलन भी। क्योंकि १५ - १६ वर्ष पूर्व होटल मे रूकना आमबात भी नहीं था और खर्च के लिए तो कोई मद ही नहीं थी साथ में हमारे युवा साथी अतुल नागले, राजेन्द्र जोशी, अजय डांगे, धनंजय करकरे, विजय जोशी हमें प्रोत्साहित करते थे। इस सारी की सारी प्रक्रिया में हम महिलाओं ने कहीं भी अनाधिकृत आर्थिक प्रलोभनों का सहारा नहीं लिया जिससे कार्यों मे विलंब जरूर हुआ परंतु स्वच्छ आर्थिक व्यवहार की मजबूत नींव भी हमने रखी जो आज हमारी संस्था का पर्यायवाची बन गया है।
लाईसेंस मिलने की प्रक्रिया पूर्णता की ओर बढ़ रही थी व्यवसाय के लिए उचित स्थान की खोज शुरू हुई। प्रारंभिक व्यवस्था में महाराष्ट्र मंडल सेक्टर ४ भिलाई के निर्माणाधीन भवन में ही सब गतिविधियां चल रहीं थी। परंतु इस्पात नगरी भिलाई में स्वस्थ सहकारिता का वातावरण होने के कारण भिलाई इस्पात संयंत्र ने हमें सेक्टर २ ''ए'' मार्केट में जगह उपलब्ध कराकर मानो हमारे काम पर सफलता की मोहर लगा दी।
लाईसेंस और जगह सुनिश्चित होने के बाद दैनंदिन बैंकिंग प्रक्रिया आरंभ करने के लिए हमें अमूल्य मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। मुम्बई सहकारिता के क्षेत्र में अग्रगण्य श्री अरविंद भिड़े, श्री रंजन कुलकर्णी, सहकारी बैंक मुम्बई के श्री सतीश मराठे जो आज भी बैंक को सौजन्य भेंट देते रहते हैं। बैंक स्टाफ की संखया से लेकर सेवा भावना के साथ कार्यकरने के गुरूमंत्र देने का गुरूत्तर कार्य श्री भिडे काका ने किया। हम सब सदा ही उनके अत्यंत ऋणी रहेंगे। सभी घटकों के प्रतिनिधित्व को ध्यान मे रखते हुए प्रथम तदर्थ बोर्ड आफ डायरेक्टर्स का गठन हुआ।
समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्व और बैंक के माध्यम से समाज ऋण से अल्पमात्रा मे ही क्यों न हो उऋण होन के लिए हमने अपने ऐतिहासिक धरोहर को आत्मसात करने का प्रयास किया। फलतः मातृत्व कर्तृत्व और नेतृत्व का पाठ पढ़ाने वाली वंदनीया जीजा बाई, देवी अहिल्या बाई होल्कर और वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई को हमने अपना प्रेरणा स्रोत स्वीकार किया और इनका आदर्द्गा ही आज हमें कतिपय कठिनाईयों का सामना कर अपनी विकास यात्रा पर अग्रसर होने में आत्मिक उत्साह विद्गवास से भर देता है।
क्रमशः हमारे बैंक का वास्तविक प्रारंभ दिन पास आता गया और यहां उल्लेखित और अनुल्लेखित शुभचिंतकों के सहयोग, सदस्यों और भरपूर अंशराशि के साथ आर्शीवाद से हमने २५ जनवरी १९९६ को प्रगति महिला नागरिक सहकारी बैंक भिलाई का दुर्ग नगर एवं तत्कालीन म.प्र. और अब छत्तीसगढ़ सहकारिता विभाग में अवतरण हुआ। आने वाले वर्षो में मध्यम वर्गीय महिलाओं द्वारा आरंभ किये गये बैंक ने अपना कारोबार भी कम लागत व समर्पण भाव से उत्तम सेवा और अधिक लाभ का समीकरण सफलता पूर्वक प्राप्त किया जिसका पूरा श्रेय बैंक के पूर्व प्रबंधक श्रीयुत सुशील सगदेव, प्रबंधक श्री प्रतुल भेलोंडे,सहा. प्रबंधक श्री मुकुंद भोंबे और संपूर्ण स्टाफ को जाता है।
आरंभिक काल मे डिपाजिट लाने सभी करीब २० साख समितियों का विश्वास अर्जित कर उनका कारोबार और डिपाजिटर, ऋणी महिलाओं को अपने बैंक मे लाने के लिए सौ. स्मिता जोशी ने अपने सहयोगिनियों श्रीमती प्राजक्ता करकरे, आरती जोशी आदि के साथ अपनी अध्यक्षीय जिम्मेदारी बखूबी निभाई। सफल बैंक इस्पात संयंत्र के अधिकारियों का सहकार जो कि बैंक के प्रगति में वरद हस्त रहा।
स्थापना के ५ वर्षो में ही हमने हमारा दुर्ग स्थित विस्तार पटल आरंभ किया, भिलाई कार्यालय का नवीन भवन और कम्प्यूटरीकरण पूर्ण किया। निस्वार्थ सेवा भाव एवं इमानदार संचालक मंडल भी बैंक की विश्वासनीयता एवं लोगों का विश्वास पात्र रहा है जिससे व्यवसाय में बढ़ोत्तरी तो हो ही रही है। तीसरी बार इलेक्शन फाइट कर बैंक को सुव्यवस्थित संचालित कर बैंक का कारोबार बढता ही रहा है। महिलाओं के लिए विभिन्न प्रकार के उद्यमिता शिविरों का आयोजन कर आर्थिक, समाजिक, शैक्षणिक विषयों पर विचार मंथन करने का महिलाओं में जागरूकता लाने का कार्य संचालक मंडल एवं स्टाफ द्वारा किया जा रहा है।
राज्य में या देश में आये आपदा में बैंक ने सहायता करने के लिए बढ़ चढ कर हिस्सा लिया है। स्थानीय जनोपयोगी संस्था जैसे आदिवासी छात्रावास, मंदबुद्धि विद्यालयों, महिला बचत समूह, खेलकूद, शैक्षणिक स्कालरशिप आदि सामाजिक कार्यों को बढावा देना, अनुदान अपने धर्मदाय खाते से देना अपना आर्दश ही बना लिया है। बैंक प्रारंभ से ही लाभ में रहा है और अपनी सदस्याओं को बढ़ते क्रम में ११ प्रतिशत लाभांश दे रहा है। व्यवसायिक बैंकिंग प्रतिस्पर्धा में ताकतवर बन कर महिलाओं को आर्थिक संबल प्रदान करने का लक्ष्य रख कर बैंक का व्यवसाय सम्मानजनक है। ''लिटिल बट स्ट्रांग'' बैंक है हमारा।
वर्तमान में ६२०० सदस्य, १४०.३९ लाख अंशपूंजी, ४२२५. २८ लाख कार्यशील पूंजी, Net NPA १.७४% के साथ बैंक प्रथम वर्ष से लगातार ''अ'' वर्ग मे अंकेक्षित है।
बैंक ने वर्ष २००४ में राष्ट्रीय विकास रत्न गोल्ड पुरस्कार, वर्ष २००६ में छत्तीसगढ़ शासन का सहकारिता विभाग का ठाकुर प्यारे लाल पुरस्कार, वर्ष २००८ में इंडियन अचीवर्स फोरम से बेस्ट परफारमिंग को - ऑप. बैंक का पुरस्कार प्राप्त करके अपनी विकास यात्रा को जारी रखा है। हमें पूरा विश्वास है कि छत्तीसगढ राज्य की भारतीय जनता पार्टी की सरकार की महिलाओं को सहकारी क्षेत्र में बढावा देने वाली योजनाओं का लाभ उठाते हुए, व्यवस्था और मूल्यों का उच्च स्तर बनाए रखते हुए अपने कार्य क्षेत्र में सकारात्मक योगदान देते हुए शासन और बैंक दोनो ही गौरवान्वित होंगे।
कामना करते हैं कि समाज के सहयोग से हम कम खर्च अधिक सेवा अधिक लाभ के सिद्धांत से सफलता की नये सोपानों का आरोहण कर सहकारिता विभाग में अपनी उज्वल छवि को हमेशा बनाये रखेंगे।
Sunday, June 19, 2011
छत्तीसगढ़ शासन, सहकारिता विभाग
छत्तीसगढ़ शासन, सहकारिता विभाग
परिचय एवं उद्देश्य
राज्य की जनता विशेषकर आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के सामाजिक उत्थान हेतु सहकारी संस्थाओं का गठन किया जाता है। विभाग की गतिविधियों का क्रियान्वयन सहकारी संस्थाओं के माध्यम से किया जाता है। विभाग द्वारा सहकारी संस्थाओं का पंजीयन, निर्वाचन, अंकेक्षण, विवादों का निपटारा एवं परिसमापन का कार्य किया जाता है।
ऋण वितरण
कृषकों को इस त्रिस्तरीय व्यवस्था के माध्यम से अल्पकालीन कृषि ऋण ३ प्रतिशत ब्याज दर पर वर्ष २००८-०९ से ऋण वितरण करने वाला देश का प्रथम प्रदेश है। वर्ष २००८-०९ में ६,८५,११४ कृषकों को राशि रू. ७८६.८७ करोड़ का ऋण वितरण किया गया है जो वर्ष २०००-०१ की तुलना में चार गुणा से अधिक है। लाभान्वित कृषक भी वर्ष २०००-०१ की तुलना में २ गुणे से अधिक है।
वर्ष २००९-१० में कृषकों को ३ प्रतिशत ब्याज दर पर ऋण् वितरण का रू.१३००.०० करोड़ का लक्ष्य रखा गया है। वर्ष २००९-१० से कृषि ऋण के अतिरिक्त अन्य कार्य, मत्स्य पालन एवं हार्टिकल्चर से संबंधित कार्य, परम्परागत गौ-पालन (डेयरी व्यवसाय) के लिये भी ३ प्रतिशत ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराया जायेगा।
किसान क्रेडिट कार्ड
प्रदेश के कृषकों को सुलभ ऋण वितरण हेतु प्राथमिक सहकारी समितियों के द्वारा क्रेडिट कार्ड की सुविधा प्रदान की गई है। वर्ष २००८-०९ तक कुल ९१२६७० कृषकों को क्रेडिट कार्ड उपलब्ध कराकर रू. २१९५.४१ करोड़ की साख सीमा स्वीकृत की गई है। जारी क्रेडिट कार्ड वर्ष २०००-०१ की तुलना में सोलह गुणा से भी अधिक है। स्वीकृत साख सीमा छब्बीस गुणा से अधिक है।
ब्याज अनुदान
प्रदेश के कृषकों को ३ प्रतिशत ब्याज दर पर कृषि ऋण उपलब्ध कराने हेतु सहकारी बैंकों एवं समितियों को ब्याज अनुदान दिया जाता है। वर्ष २००८-०९ में राज्य शासन द्वारा रू. ४०.०२ करोड़ ब्याज अनुदान दिया गया। वर्ष २००९-१० में ८ लाख कृषकों को ३ प्रतिशत ब्याज दर पर कृषि ऋण उपलब्ध कराने हेतु बैंकों/समितियों हेतु रू. ४६.०० करोड बजट में प्रावधान किया है।
ऋण माफी
ऐसे कृषक सदस्य जिनको ३१.३.१९९७ से ३१.३.२००७ के मध्य ऋण वितरण किया गया हो तथा दिनांक ३१.१२.२००७ को ऋण कालातीत हो और २९.२.२००८ तक जिसका भुगतान नही होगा वे इस योजना के पात्र हैं । लघु एवं सीमांत कृषकों में मामले में संपूर्ण पात्र राशि की मांफी की जावेगी। प्रदेश में कुल २७०१०० कृषक सदस्यों को २०६.८६ करोड़ की ऋण माफी लाभ प्राप्त होगा। इन योजनाओं में भारत सरकार से अब तक रू. २०६.८६ करोड के विरूद्ध अब तक की राशि रू. १४४.०२ करोड प्राप्त हो चुकी है। भारत सरकार से प्राप्त राशि संबंधित कृषकों को ऋण खाते में समायोजित होगी। ऋण माफी की शेष राशि रू. ६२.८४ करोड़ आगामी दो वर्षो में भारत सरकार से प्राप्त होगी।
ऋण राहत
लघु एवं सीमांत कृषकों के अतिरिक्त अन्य कृषकों के मामले में एक बारगी निपटान योजना (ओ.टी.एस.) है। इस योजना में किसानों को इस शर्त के अधीन पात्र राशि में २५ प्रतिशत की छूट दी जावेगी कि वह पात्र राशि के शेष ७५ प्रतिशत का भुगतान कर दें। प्रदेश में ८ जिले क्रमशः बस्तर, बिलासपुर, दंतेवाड़ा, दुर्ग, जांजगीर, चांपा, कबीरधाम, कोरबा, एवं राजनांदगांव के अन्य किसानों के मामले ऋण राहत पात्र राशि के २५ प्रतिशत या ऋण २०,०००/- इससे जो भी अधिक हो की छूट होगी यदि किसान शेष पात्र राशि का भुगतान कर दे ७५ प्रतिशत ऋण राशि की अदायगी कृषकों द्वारा ३ किस्तों में ३०.९.२००८, ३१.३.२००९ और ३०.६.२००९ में अदा करने की दशा में ही ऋण राहत की पात्रता होगी। प्रदेश में कुल ४७६०१ कृषक सदस्यों को राशि ऋण ७०.५७ करोड़ का लाभ ऋण राहत योजना के अंतर्गत होगा।
अल्पकालीन कृषि सहकारी साख संरचना के सुदृढ़ीकरण हेतु प्रो. वैद्यनाथन पैकेज
अल्पकालीन साख संरचना के पुनरूत्थान हेतु प्रो. ए. वैद्यनाथन कमेटी की अनुशंसाए लागू करने हेतु राज्य शासन, नाबार्ड एवं केन्द्र शासन के मध्य दिनांक २५.०९.२००७ को समझौता ज्ञापन हस्ताक्षरित किया गया। इस योजना के तहत् प्रदेश के १३३३ प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियां एवं ६ जिला सहकारी केन्द्रीय बैंकों को आर्थिक सहायता दी जावेगी। प्रथम चरण में प्राथमिक कृषि साख समितियों का विशेष अंकेक्षण नाबार्ड के मार्गदर्शन में कर उनको उपलब्ध कराई जाने वाली राशि का आंकलन किया गया।
उक्त समितियों में से ऐसी १०४३ समितियां जिनकी ऋण वसूली जून २००७ की स्थिति में ५०% है
उपरोक्तानुसार अब तक प्रथम चरण में समितियों को केन्द्र शासन से अपने हिस्से की ७५% राशि रू. १६२.१९ करोड़ एवं राज्य शासन के द्वारा ३१.४३ करोड की सहायता उपलब्ध करा दी गई है। आगामी वित्तीय वर्ष २००९-१० में राज्य शासन द्वारा इस योजना हेतु रू. ५०.०० करोड का प्रावधान किया गया है। उक्त योजना का क्रियान्वयन की कार्यवाही नाबार्ड के मार्गदर्शन में की जा रही है।
दीर्घकालीन कृषि ऋण वितरण
राज्य के कृषको को ५ वर्ष से १५ वर्ष की कालावधि के लिये ऋण दिया जाता है। बैंक द्वारा कृषकों को (१) लघु सिंचाई - नलकूप, पंप, बोर खनन आदि, (२) प्रक्षेत्र नवीनीकरण- टे्रक्टर, हार्वेस्टर, पावर टिलर, पावर रिपर, प्रेसर (३) अन्य विविधीकृत-मत्स्यपालन, मुर्गीपालन, डेयरी, वानिकी, फलोद्यान (४) अकृषि ऋण- कुटीर उद्योग, सड़क वाहन, बढ ई, कपडा, लोहारी, आदि कार्य हेतु ऋण दिया जाता है।
बैंक द्वारा वर्ष २००८-०९ हेतु रु. १७००.०० लाख के लक्ष्य के विरूद्ध रू. १६८२.७८ लाख का ऋण वितरण किया गया।
सहकारी समितियों द्वारा किये जा रहे अन्य कार्य
(प) छ.ग. राज्य सहकारी विपणन संघ द्वारा वर्ष २००८-०९ में समर्थन मूल्य पर १३३३ प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों के माध्यम से ३७.६९ लाख मे.टन धान का उपार्जन किया गया । धान खरीदी केन्द्रों को पूर्णतः कम्प्यूटरीकृत किया गया है।
(पप) छ.ग. राज्य सहकारी विपणन संघ द्वारा प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों के माध्यम से कृषकों को रासायनिक उर्वरकों का वितरण किया जाता है। वर्ष २००८-०९ में ४८४३६० में. टन खाद का वितरण किया गया।
राज्य के सहकारी शक्कर कारखाने
राज्य का प्रथम सहकारी शक्कर कारखाना जिला कबीरधाम में संचालित है। इसकी क्षमता २५०० टी.सी.डी. है। इस कारखाने द्वारा वर्ष २००८-०९ में १५०४२५ में. टन गन्ना की पेराई की गई, जिससें १२७०६० क्विं. शक्कर का उत्पादन हुआ ।
राज्य का द्वितीय सहकारी शक्कर कारखाना बालोद जिला दुर्ग में राशि रू. ४८.५० करोड़ की लागत से १२५० टी.सी.डी. क्षमता का निर्माण पूर्णता पर है।
तीसरा सहकारी शक्कर कारखाना जिला अंबिकापुर में २५०० टी.सी.डी. क्षमता का राशि रू. १०५.६९ करोड की लागत से निर्माणाधीन है।
परिचय एवं उद्देश्य
राज्य की जनता विशेषकर आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के सामाजिक उत्थान हेतु सहकारी संस्थाओं का गठन किया जाता है। विभाग की गतिविधियों का क्रियान्वयन सहकारी संस्थाओं के माध्यम से किया जाता है। विभाग द्वारा सहकारी संस्थाओं का पंजीयन, निर्वाचन, अंकेक्षण, विवादों का निपटारा एवं परिसमापन का कार्य किया जाता है।
ऋण वितरण
कृषकों को इस त्रिस्तरीय व्यवस्था के माध्यम से अल्पकालीन कृषि ऋण ३ प्रतिशत ब्याज दर पर वर्ष २००८-०९ से ऋण वितरण करने वाला देश का प्रथम प्रदेश है। वर्ष २००८-०९ में ६,८५,११४ कृषकों को राशि रू. ७८६.८७ करोड़ का ऋण वितरण किया गया है जो वर्ष २०००-०१ की तुलना में चार गुणा से अधिक है। लाभान्वित कृषक भी वर्ष २०००-०१ की तुलना में २ गुणे से अधिक है।
वर्ष २००९-१० में कृषकों को ३ प्रतिशत ब्याज दर पर ऋण् वितरण का रू.१३००.०० करोड़ का लक्ष्य रखा गया है। वर्ष २००९-१० से कृषि ऋण के अतिरिक्त अन्य कार्य, मत्स्य पालन एवं हार्टिकल्चर से संबंधित कार्य, परम्परागत गौ-पालन (डेयरी व्यवसाय) के लिये भी ३ प्रतिशत ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराया जायेगा।
किसान क्रेडिट कार्ड
प्रदेश के कृषकों को सुलभ ऋण वितरण हेतु प्राथमिक सहकारी समितियों के द्वारा क्रेडिट कार्ड की सुविधा प्रदान की गई है। वर्ष २००८-०९ तक कुल ९१२६७० कृषकों को क्रेडिट कार्ड उपलब्ध कराकर रू. २१९५.४१ करोड़ की साख सीमा स्वीकृत की गई है। जारी क्रेडिट कार्ड वर्ष २०००-०१ की तुलना में सोलह गुणा से भी अधिक है। स्वीकृत साख सीमा छब्बीस गुणा से अधिक है।
ब्याज अनुदान
प्रदेश के कृषकों को ३ प्रतिशत ब्याज दर पर कृषि ऋण उपलब्ध कराने हेतु सहकारी बैंकों एवं समितियों को ब्याज अनुदान दिया जाता है। वर्ष २००८-०९ में राज्य शासन द्वारा रू. ४०.०२ करोड़ ब्याज अनुदान दिया गया। वर्ष २००९-१० में ८ लाख कृषकों को ३ प्रतिशत ब्याज दर पर कृषि ऋण उपलब्ध कराने हेतु बैंकों/समितियों हेतु रू. ४६.०० करोड बजट में प्रावधान किया है।
ऋण माफी
ऐसे कृषक सदस्य जिनको ३१.३.१९९७ से ३१.३.२००७ के मध्य ऋण वितरण किया गया हो तथा दिनांक ३१.१२.२००७ को ऋण कालातीत हो और २९.२.२००८ तक जिसका भुगतान नही होगा वे इस योजना के पात्र हैं । लघु एवं सीमांत कृषकों में मामले में संपूर्ण पात्र राशि की मांफी की जावेगी। प्रदेश में कुल २७०१०० कृषक सदस्यों को २०६.८६ करोड़ की ऋण माफी लाभ प्राप्त होगा। इन योजनाओं में भारत सरकार से अब तक रू. २०६.८६ करोड के विरूद्ध अब तक की राशि रू. १४४.०२ करोड प्राप्त हो चुकी है। भारत सरकार से प्राप्त राशि संबंधित कृषकों को ऋण खाते में समायोजित होगी। ऋण माफी की शेष राशि रू. ६२.८४ करोड़ आगामी दो वर्षो में भारत सरकार से प्राप्त होगी।
ऋण राहत
लघु एवं सीमांत कृषकों के अतिरिक्त अन्य कृषकों के मामले में एक बारगी निपटान योजना (ओ.टी.एस.) है। इस योजना में किसानों को इस शर्त के अधीन पात्र राशि में २५ प्रतिशत की छूट दी जावेगी कि वह पात्र राशि के शेष ७५ प्रतिशत का भुगतान कर दें। प्रदेश में ८ जिले क्रमशः बस्तर, बिलासपुर, दंतेवाड़ा, दुर्ग, जांजगीर, चांपा, कबीरधाम, कोरबा, एवं राजनांदगांव के अन्य किसानों के मामले ऋण राहत पात्र राशि के २५ प्रतिशत या ऋण २०,०००/- इससे जो भी अधिक हो की छूट होगी यदि किसान शेष पात्र राशि का भुगतान कर दे ७५ प्रतिशत ऋण राशि की अदायगी कृषकों द्वारा ३ किस्तों में ३०.९.२००८, ३१.३.२००९ और ३०.६.२००९ में अदा करने की दशा में ही ऋण राहत की पात्रता होगी। प्रदेश में कुल ४७६०१ कृषक सदस्यों को राशि ऋण ७०.५७ करोड़ का लाभ ऋण राहत योजना के अंतर्गत होगा।
अल्पकालीन कृषि सहकारी साख संरचना के सुदृढ़ीकरण हेतु प्रो. वैद्यनाथन पैकेज
अल्पकालीन साख संरचना के पुनरूत्थान हेतु प्रो. ए. वैद्यनाथन कमेटी की अनुशंसाए लागू करने हेतु राज्य शासन, नाबार्ड एवं केन्द्र शासन के मध्य दिनांक २५.०९.२००७ को समझौता ज्ञापन हस्ताक्षरित किया गया। इस योजना के तहत् प्रदेश के १३३३ प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियां एवं ६ जिला सहकारी केन्द्रीय बैंकों को आर्थिक सहायता दी जावेगी। प्रथम चरण में प्राथमिक कृषि साख समितियों का विशेष अंकेक्षण नाबार्ड के मार्गदर्शन में कर उनको उपलब्ध कराई जाने वाली राशि का आंकलन किया गया।
उक्त समितियों में से ऐसी १०४३ समितियां जिनकी ऋण वसूली जून २००७ की स्थिति में ५०% है
उपरोक्तानुसार अब तक प्रथम चरण में समितियों को केन्द्र शासन से अपने हिस्से की ७५% राशि रू. १६२.१९ करोड़ एवं राज्य शासन के द्वारा ३१.४३ करोड की सहायता उपलब्ध करा दी गई है। आगामी वित्तीय वर्ष २००९-१० में राज्य शासन द्वारा इस योजना हेतु रू. ५०.०० करोड का प्रावधान किया गया है। उक्त योजना का क्रियान्वयन की कार्यवाही नाबार्ड के मार्गदर्शन में की जा रही है।
दीर्घकालीन कृषि ऋण वितरण
राज्य के कृषको को ५ वर्ष से १५ वर्ष की कालावधि के लिये ऋण दिया जाता है। बैंक द्वारा कृषकों को (१) लघु सिंचाई - नलकूप, पंप, बोर खनन आदि, (२) प्रक्षेत्र नवीनीकरण- टे्रक्टर, हार्वेस्टर, पावर टिलर, पावर रिपर, प्रेसर (३) अन्य विविधीकृत-मत्स्यपालन, मुर्गीपालन, डेयरी, वानिकी, फलोद्यान (४) अकृषि ऋण- कुटीर उद्योग, सड़क वाहन, बढ ई, कपडा, लोहारी, आदि कार्य हेतु ऋण दिया जाता है।
बैंक द्वारा वर्ष २००८-०९ हेतु रु. १७००.०० लाख के लक्ष्य के विरूद्ध रू. १६८२.७८ लाख का ऋण वितरण किया गया।
सहकारी समितियों द्वारा किये जा रहे अन्य कार्य
(प) छ.ग. राज्य सहकारी विपणन संघ द्वारा वर्ष २००८-०९ में समर्थन मूल्य पर १३३३ प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों के माध्यम से ३७.६९ लाख मे.टन धान का उपार्जन किया गया । धान खरीदी केन्द्रों को पूर्णतः कम्प्यूटरीकृत किया गया है।
(पप) छ.ग. राज्य सहकारी विपणन संघ द्वारा प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों के माध्यम से कृषकों को रासायनिक उर्वरकों का वितरण किया जाता है। वर्ष २००८-०९ में ४८४३६० में. टन खाद का वितरण किया गया।
राज्य के सहकारी शक्कर कारखाने
राज्य का प्रथम सहकारी शक्कर कारखाना जिला कबीरधाम में संचालित है। इसकी क्षमता २५०० टी.सी.डी. है। इस कारखाने द्वारा वर्ष २००८-०९ में १५०४२५ में. टन गन्ना की पेराई की गई, जिससें १२७०६० क्विं. शक्कर का उत्पादन हुआ ।
राज्य का द्वितीय सहकारी शक्कर कारखाना बालोद जिला दुर्ग में राशि रू. ४८.५० करोड़ की लागत से १२५० टी.सी.डी. क्षमता का निर्माण पूर्णता पर है।
तीसरा सहकारी शक्कर कारखाना जिला अंबिकापुर में २५०० टी.सी.डी. क्षमता का राशि रू. १०५.६९ करोड की लागत से निर्माणाधीन है।
इडोटोरियल जुलाई २००९
इडोटोरियल जुलाई २००९
सहकारी बैंकों की हालत कठिन होती चली जा रही है। बहुत से सहकारी बैंक, बैंकों के नक्शों से हट चुके हैं। इसका कारण है नान परफारमिंग एसेट्स, अनुशासनहीनता आदि। कई बैंकों का कैश रिजर्वरेपोमेंटेन न होने के कारण डिपाजिटर्स का पैसा वापस नहीं मिल पा रहा है।
यह ध्यान देने योग्य है कि हिन्दुस्थान की प्रगति में सहकारिता का बहुत बड़ा योगदान है विशेषकर कृषि एवं ग्रामीण क्षेत्रों में। सहकारिता भारत में एक शताब्दी पूरी कर चुकी है। कृषि कर्जों की माफी के कारण सहकारी बैंकों को बहुत घाटा उठाना पडा है। लोगों को ऐसा लग रहा है कि अगली बार भी हमें ऋण नहीं चुकाने पडेंगे, सरकार माफ कर देगी इसलिए रिकवरी नहीं हो रही है। इसका बैंकों पर बुरा प्रभाव पड रहा है। अब तक सभी बैंकों को ऋण माफी योजना का पैसा नहीं मिला है।
केन्द्र की सरकार का विशेष ध्यान केवल महाराष्ट्र की सहकारी चीनी मिलों पर ही है। उनको हर साल पैकेज दिया जा रहा है लेकिन सहकारी बैंकों को ऐसा कोई पैकेज आज तक कभी नहीं दिया गया। राष्ट्रीयकृत बैंकों को अवश्य पैकेज दिये जाते हैं। किसान और गरीब को आसानी से छोटा ऋण (Micro Finance) उपलब्ध कराने वाले इन सहकारी बैंकों के प्रति केन्द्र सरकार की दृष्टि सौतेली है। भारत सरकार के इस दृष्टिकोण में यदि परिवर्तन नहीं हुआ तो भविष्य में कोई सहकारी बैंक डूबने से नहीं बचेगा। ऐसा रिर्जव बैंक आफ इण्डिया (RBI) स्वीकार करता है।
RBI के अधीन डिपाजिट इश्योरेंस गारण्टी कॉपोरेशन (D.I.G.C.) चलाया जाता है, लेकिन समय पर ठीक ढ़ंग से प्रीमियम जमा करने के बाद भी इन्श्योरेंस के क्लेम का पैसा समय पर नहीं मिलता। परिणाम यह होता है कि सहकारी बैंक बन्द हो जाते हैं और उन्हें यह क्लेम का पैसा बन्द होने के बाद भी चार या पाँच वर्ष तक नहीं मिल पाता। ऐसे बहुत से बैंक हैं जिनके ग्राहकों को अपना पैसा नहीं मिल पा रहा है। ऐसा माना जा रहा है कि DIGC की खुद की स्थिति ग्राहकों का पैसा वापिस करने की नहीं है। इसका जिम्मेदार कौन है? रिर्जव बैंक आफ इण्डिया (RBI) या भारत सरकार। डिपाजिटर्स को उनका डिपाजिट कब तक मिलेगा RBI को यह स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए।
शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकों पर कठोर नियम लगाये गये हैं। जो नियम अमेरिका और रूस जैसे विकसित देशों के बैंकों पर लागू हैं उसी तरह के नियम हमारे निर्बल, ग्रामीण और कृषि आधारित बैंकों और रोजगार प्रदान करने का प्रयास करने वाले असंगठित क्षेत्रों में कार्यरत बैंकों पर भी लागू है, क्या यह उचित है?
सबसे मजेदार बात यह है कि जिस प्रणाली को आधार बनाकर भारत में सहकारिता ने प्रगति के सौ वर्ष पूरे किये उसे ही RBI गलत ठहराकर अपना अंकुश लगा रही है। अमेरिका और रूस जैसे विकसित देशों की नकल करके उनके नियमों को अपने यहाँ लागू करना तो इस देश का मजाक उड़ाना है। यह तो हमारे गाँव की गंगूबाई की तुलना अमेरिका की हिलेरी क्लिंगटन से करने जैसा है। गंगूबाई को दस दिन का नोटिस देकर हिलेरी क्लिंगटन जैसे रूप, रंग और मानसिक स्थिति बनाने की अपेक्षा करने जैसी सोच RBI की सहकारी बैंकों के प्रति है।
जिस आधार पर बैंकों को इससे पहले अशक्त (weak) घोषित किया जाता था उसका तरीका बदल दिया गया है। बैंकों की ग्रेडिंग की जा रही है। उनको शक्तिहीन घोषित करने का मूल आधार Capital Risk Adequacy Ratio बनाया गया है। काल्पनिक भयग्रस्तता (imaginary fear) द्वारा उनको शक्तिहीन घोषित किया जा रहा है। जैसे कि स्टेट बैंक में रखे हुए पैसों का risk weight २०% है यानि स्टेट बैंक के डूबने का अवसर बीस प्रतिशत है? या जिला सहकारी बैंक या किसी और सहकारी बैंको का रिस्कवेट इसमें बीस प्रतिशत ही बताया जा रहा है।
एक और गलत बात इसमें यह है कि बैंकों को अदा किये हुए ऋणों का रिस्कवेट कई जगह ७४% है तो कई जगह १००% है। मजाक की भी हद होती है। कई जगह यह इससे पूर्व में १२५% भी था और सभी बैंको का १२५% (सौ में से एक सौ पच्चीस) रिस्क वेट लगाया गया था।
भारतीय संसद ने सभी अधिकार RBI को सौंप दिये हैं। इसका पुनिरीक्षण और पुनर्विचार किया जाना अत्यावश्यक है। इस विषय पर सहकारी बैंको के प्रबंधकों एवं संचालको को बेझिझक अपनी राय प्रकट करनी चाहिए परन्तु RBI की वक्रदृष्टि उन पर न पड़े इसलिए वे ऐसा नहीं कर पा रहे हैं। क्या यह लोकतन्त्र है?
कोढ में खाज। सहकारी बैंको की इस बुरी हालत में उनके ऊपर आयकर। स्वतन्त्रता की प्राप्ति के बाद पहली बार यू.पी.ए. सरकार ने दो-तीन वर्ष पहले सहकारी संस्थाओं पर आयकर और सेवाकर लगा कर उनके ताबूत में कील ठोंकने का कार्य किया है। भारतीय जनता पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री राजनाथ सिंह ने लोकसभा में १७ जुलाई २००९ को कृषि सम्बन्धी प्रस्ताव पर चर्चा करते हुए सहकारी संस्थाओं से आयकर हटाने की माँग भारत सरकार से बहुत जोरदार शब्दों में किया। इससे गाँव, गरीब और किसान के हित में भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रव्यापी सोच स्पष्ट होती है।
सहकारी बैंकों की हालत कठिन होती चली जा रही है। बहुत से सहकारी बैंक, बैंकों के नक्शों से हट चुके हैं। इसका कारण है नान परफारमिंग एसेट्स, अनुशासनहीनता आदि। कई बैंकों का कैश रिजर्वरेपोमेंटेन न होने के कारण डिपाजिटर्स का पैसा वापस नहीं मिल पा रहा है।
यह ध्यान देने योग्य है कि हिन्दुस्थान की प्रगति में सहकारिता का बहुत बड़ा योगदान है विशेषकर कृषि एवं ग्रामीण क्षेत्रों में। सहकारिता भारत में एक शताब्दी पूरी कर चुकी है। कृषि कर्जों की माफी के कारण सहकारी बैंकों को बहुत घाटा उठाना पडा है। लोगों को ऐसा लग रहा है कि अगली बार भी हमें ऋण नहीं चुकाने पडेंगे, सरकार माफ कर देगी इसलिए रिकवरी नहीं हो रही है। इसका बैंकों पर बुरा प्रभाव पड रहा है। अब तक सभी बैंकों को ऋण माफी योजना का पैसा नहीं मिला है।
केन्द्र की सरकार का विशेष ध्यान केवल महाराष्ट्र की सहकारी चीनी मिलों पर ही है। उनको हर साल पैकेज दिया जा रहा है लेकिन सहकारी बैंकों को ऐसा कोई पैकेज आज तक कभी नहीं दिया गया। राष्ट्रीयकृत बैंकों को अवश्य पैकेज दिये जाते हैं। किसान और गरीब को आसानी से छोटा ऋण (Micro Finance) उपलब्ध कराने वाले इन सहकारी बैंकों के प्रति केन्द्र सरकार की दृष्टि सौतेली है। भारत सरकार के इस दृष्टिकोण में यदि परिवर्तन नहीं हुआ तो भविष्य में कोई सहकारी बैंक डूबने से नहीं बचेगा। ऐसा रिर्जव बैंक आफ इण्डिया (RBI) स्वीकार करता है।
RBI के अधीन डिपाजिट इश्योरेंस गारण्टी कॉपोरेशन (D.I.G.C.) चलाया जाता है, लेकिन समय पर ठीक ढ़ंग से प्रीमियम जमा करने के बाद भी इन्श्योरेंस के क्लेम का पैसा समय पर नहीं मिलता। परिणाम यह होता है कि सहकारी बैंक बन्द हो जाते हैं और उन्हें यह क्लेम का पैसा बन्द होने के बाद भी चार या पाँच वर्ष तक नहीं मिल पाता। ऐसे बहुत से बैंक हैं जिनके ग्राहकों को अपना पैसा नहीं मिल पा रहा है। ऐसा माना जा रहा है कि DIGC की खुद की स्थिति ग्राहकों का पैसा वापिस करने की नहीं है। इसका जिम्मेदार कौन है? रिर्जव बैंक आफ इण्डिया (RBI) या भारत सरकार। डिपाजिटर्स को उनका डिपाजिट कब तक मिलेगा RBI को यह स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए।
शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकों पर कठोर नियम लगाये गये हैं। जो नियम अमेरिका और रूस जैसे विकसित देशों के बैंकों पर लागू हैं उसी तरह के नियम हमारे निर्बल, ग्रामीण और कृषि आधारित बैंकों और रोजगार प्रदान करने का प्रयास करने वाले असंगठित क्षेत्रों में कार्यरत बैंकों पर भी लागू है, क्या यह उचित है?
सबसे मजेदार बात यह है कि जिस प्रणाली को आधार बनाकर भारत में सहकारिता ने प्रगति के सौ वर्ष पूरे किये उसे ही RBI गलत ठहराकर अपना अंकुश लगा रही है। अमेरिका और रूस जैसे विकसित देशों की नकल करके उनके नियमों को अपने यहाँ लागू करना तो इस देश का मजाक उड़ाना है। यह तो हमारे गाँव की गंगूबाई की तुलना अमेरिका की हिलेरी क्लिंगटन से करने जैसा है। गंगूबाई को दस दिन का नोटिस देकर हिलेरी क्लिंगटन जैसे रूप, रंग और मानसिक स्थिति बनाने की अपेक्षा करने जैसी सोच RBI की सहकारी बैंकों के प्रति है।
जिस आधार पर बैंकों को इससे पहले अशक्त (weak) घोषित किया जाता था उसका तरीका बदल दिया गया है। बैंकों की ग्रेडिंग की जा रही है। उनको शक्तिहीन घोषित करने का मूल आधार Capital Risk Adequacy Ratio बनाया गया है। काल्पनिक भयग्रस्तता (imaginary fear) द्वारा उनको शक्तिहीन घोषित किया जा रहा है। जैसे कि स्टेट बैंक में रखे हुए पैसों का risk weight २०% है यानि स्टेट बैंक के डूबने का अवसर बीस प्रतिशत है? या जिला सहकारी बैंक या किसी और सहकारी बैंको का रिस्कवेट इसमें बीस प्रतिशत ही बताया जा रहा है।
एक और गलत बात इसमें यह है कि बैंकों को अदा किये हुए ऋणों का रिस्कवेट कई जगह ७४% है तो कई जगह १००% है। मजाक की भी हद होती है। कई जगह यह इससे पूर्व में १२५% भी था और सभी बैंको का १२५% (सौ में से एक सौ पच्चीस) रिस्क वेट लगाया गया था।
भारतीय संसद ने सभी अधिकार RBI को सौंप दिये हैं। इसका पुनिरीक्षण और पुनर्विचार किया जाना अत्यावश्यक है। इस विषय पर सहकारी बैंको के प्रबंधकों एवं संचालको को बेझिझक अपनी राय प्रकट करनी चाहिए परन्तु RBI की वक्रदृष्टि उन पर न पड़े इसलिए वे ऐसा नहीं कर पा रहे हैं। क्या यह लोकतन्त्र है?
कोढ में खाज। सहकारी बैंको की इस बुरी हालत में उनके ऊपर आयकर। स्वतन्त्रता की प्राप्ति के बाद पहली बार यू.पी.ए. सरकार ने दो-तीन वर्ष पहले सहकारी संस्थाओं पर आयकर और सेवाकर लगा कर उनके ताबूत में कील ठोंकने का कार्य किया है। भारतीय जनता पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री राजनाथ सिंह ने लोकसभा में १७ जुलाई २००९ को कृषि सम्बन्धी प्रस्ताव पर चर्चा करते हुए सहकारी संस्थाओं से आयकर हटाने की माँग भारत सरकार से बहुत जोरदार शब्दों में किया। इससे गाँव, गरीब और किसान के हित में भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रव्यापी सोच स्पष्ट होती है।
Friday, June 17, 2011
सहकारी आंदोलन के स्वर्णिम युग की शुरुआत
सहकारी आंदोलन के स्वर्णिम युग की शुरुआत
सन् २००३ के पूर्व छत्तीसगढ़ राज्य में सहकारी संस्थाओं को जेबी संस्था मान कर चलाने की प्रवृत्ति थी। इसी प्रवृत्ति का परिणाम है कि छत्तीसगढ़ की सहकारी संस्थाओं में जो लोग बैठे वे हमेशा के लिए कुण्डली मार बैठ गये। सहकारी संस्थाओं का संचालन सहकारिता की भावना से होने के बजाय पदाधिकारियों की मर्जी से होने लगा। यूं तो सहकारी संस्थाओं में लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम है। यहां सदस्यों द्वारा निश्चित समय के लिए चुने गये पदाधिकारी ही बागडोर संभालते हैं, लेकिन वास्तव में इन संस्थाओं के चुनाव कई-कई वर्षों तक नहीं होते थे। यदि चुनाव होते भी थे तो चुपके-चुपके निर्वाचन सम्पन्न हो जाता था। कतिपय संस्थाओं में कुछ जागरूक सदस्य निर्वाचन में भाग लेना चाहते थे लेकिन उनका नामांकन पत्र ही निरस्त कर दिया जाता था। फलस्वरूप, छत्तीसगढ में सहकारिता के प्रति जन विश्वास में कमी आई और सामान्य लोग सहकारिता आंदोलन से दूर हटते गए।
इस दम घुटते सहकारी आंदोलन को नई दिशा तब मिली जब प्रदेश में वर्ष २००४ में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी तथा मुखयमंत्री डा. रमन सिंह ने सहकारी आंदोलन में निखार लाने के लिए नये सिरे से प्रयास किये। उन्होंने प्रदेश की बागडोर संम्भालते ही सहकारी अधिनियम में छत्तीसगढ़ की परिस्थितियों के अनुकूल संशोधन हेतु सहकारी अधिनियम समिति का गठन किया। इस कमेटी की रिपोर्ट पर विधान सभा में मुहर लग चुकी है तथा राज्यपाल के पास विचाराधीन है।
राज्य शासन ने कृषि के क्षेत्र में कार्य करने वाली प्राथमिक कृषि साख समितियों के पुनर्गठन हेतु पुनर्गठन समितियों का गठन किया। प्रदेश में वर्तमान में ६ जिला केन्द्रीय बैंक सक्रिय हैं। बैंक स्तर पर पुनर्गठन समितियों के गठन करने के पीछे सरकार की यही इच्छा थी कि प्राथमिक समिति के कृषक सदस्यों को लेन-देन के लिए अधिक दूर न जाना पड़े। पुनर्गठन समितियों ने शासन को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। लेकिन इस बीच सहकारी समितियों के चुनाव की प्रक्रिया प्रारंभ हो गई इसलिए समितियों की रिपोर्ट लागू न हो सकी है। लगभग ५० नई प्राथमिक समितियों को मिलाकर वर्तमान संखया १३३३ से बढकर १३८२ हो जायेगी।
छत्तीसगढ़ शासन ने सहकारी समितियों के प्रबन्धन में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के उदेश्य से ३३% आरक्षण का निर्णय लिया है। सहकारी अधिनियम संच्चोधन विधेयक में इस बिन्दू को शामिल किये जाने से यह मामला भी राज्यपाल के पास विचाराधीन है। .
प्रदेश सरकार ने साहसिक निर्णय लेते हुए प्रो. वेदनाथन कमेटी की सिफारिशों को लागू करने के उदेश्य से केन्द्र सरकार के साथ एम ओ यू किया है। इसके लागू होने से वित्तीय संकट से जूझ रही सरकारी संस्थाओं को आत्मनिर्भर बनने का नया अवसर मिलेगा।
छत्तीसगढ़ सरकार ने सहकारी संस्थाओं एवं इससे जुडे सदस्यों के उत्थान के लिए अनेक निर्णय लिये हैं, मसलन ११७ बुनकर सहकारी समितियों की ७.५ करोड रुपये की ऋण माफी की गई। शासन ने सहकारी समितियों के माध्यम से कृषि ऋण पर ब्याज दर १४% से घटाकर ३% कर दिया है। शासन का यह निर्णय किसानों के लिए वरदान सिद्ध हो रहा है। इस निर्णय के फलस्वरूप सहकारी समितियों से ऋण लेने वाले सदस्यों की संखया में इजाफा हुआ है। शासन की मंशा भविष्य में शून्य प्रतिशत ब्याज दर पर फसल ऋण देने की है। यदि सरकार इस व्यवस्था को लागू कर देती है तो किसानों को बिना ब्याज के ऋण देने वाला छत्तीसगढ पहला राज्य होगा।
यूं तो सरकार की उपलब्धियां अनगिनत हैं जिसे किसी पत्रिका के एक कॉलम में समेटना संभव नहीं है, लेकिन प्रदेश में संपन्न हुये सहकारिता के चुनाव का उल्लेख करना आवश्यक है। शासन की मंशा के अनुरूप प्रदेश में प्राथमिक समितियों से लेकर शीर्ष बैंकों के चुनाव निर्विवाद रूप से सम्पन्न हुये। चुनाव की प्रक्रिया पूरी तरह स्वतंत्र तथा प्रदर्शिता-पूर्ण होने से समितियों एवं संस्थाओं के सदस्यों ने निर्भीक होकर चुनाव में भाग लिया। चुनाव में बड़ी संखया में लोगों का भाग लेना इस बात को दर्शाता है कि तेजी से विस्तार होगा एवं सहकारी आंदोलन जन आंदोलन के रूप में उभरेगा। हमें यह यह कहने में कोई संकोच नही कि डा. रमन सिंह सरकार के सकरात्मक दृष्टिकोण एवं रचनात्मक फैसले से छत्तीसगढ़ में सहकारी आंदोलन के स्वर्णिम युग का सूत्रपात हुआ है।
सन् २००३ के पूर्व छत्तीसगढ़ राज्य में सहकारी संस्थाओं को जेबी संस्था मान कर चलाने की प्रवृत्ति थी। इसी प्रवृत्ति का परिणाम है कि छत्तीसगढ़ की सहकारी संस्थाओं में जो लोग बैठे वे हमेशा के लिए कुण्डली मार बैठ गये। सहकारी संस्थाओं का संचालन सहकारिता की भावना से होने के बजाय पदाधिकारियों की मर्जी से होने लगा। यूं तो सहकारी संस्थाओं में लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम है। यहां सदस्यों द्वारा निश्चित समय के लिए चुने गये पदाधिकारी ही बागडोर संभालते हैं, लेकिन वास्तव में इन संस्थाओं के चुनाव कई-कई वर्षों तक नहीं होते थे। यदि चुनाव होते भी थे तो चुपके-चुपके निर्वाचन सम्पन्न हो जाता था। कतिपय संस्थाओं में कुछ जागरूक सदस्य निर्वाचन में भाग लेना चाहते थे लेकिन उनका नामांकन पत्र ही निरस्त कर दिया जाता था। फलस्वरूप, छत्तीसगढ में सहकारिता के प्रति जन विश्वास में कमी आई और सामान्य लोग सहकारिता आंदोलन से दूर हटते गए।
इस दम घुटते सहकारी आंदोलन को नई दिशा तब मिली जब प्रदेश में वर्ष २००४ में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी तथा मुखयमंत्री डा. रमन सिंह ने सहकारी आंदोलन में निखार लाने के लिए नये सिरे से प्रयास किये। उन्होंने प्रदेश की बागडोर संम्भालते ही सहकारी अधिनियम में छत्तीसगढ़ की परिस्थितियों के अनुकूल संशोधन हेतु सहकारी अधिनियम समिति का गठन किया। इस कमेटी की रिपोर्ट पर विधान सभा में मुहर लग चुकी है तथा राज्यपाल के पास विचाराधीन है।
राज्य शासन ने कृषि के क्षेत्र में कार्य करने वाली प्राथमिक कृषि साख समितियों के पुनर्गठन हेतु पुनर्गठन समितियों का गठन किया। प्रदेश में वर्तमान में ६ जिला केन्द्रीय बैंक सक्रिय हैं। बैंक स्तर पर पुनर्गठन समितियों के गठन करने के पीछे सरकार की यही इच्छा थी कि प्राथमिक समिति के कृषक सदस्यों को लेन-देन के लिए अधिक दूर न जाना पड़े। पुनर्गठन समितियों ने शासन को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। लेकिन इस बीच सहकारी समितियों के चुनाव की प्रक्रिया प्रारंभ हो गई इसलिए समितियों की रिपोर्ट लागू न हो सकी है। लगभग ५० नई प्राथमिक समितियों को मिलाकर वर्तमान संखया १३३३ से बढकर १३८२ हो जायेगी।
छत्तीसगढ़ शासन ने सहकारी समितियों के प्रबन्धन में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के उदेश्य से ३३% आरक्षण का निर्णय लिया है। सहकारी अधिनियम संच्चोधन विधेयक में इस बिन्दू को शामिल किये जाने से यह मामला भी राज्यपाल के पास विचाराधीन है। .
प्रदेश सरकार ने साहसिक निर्णय लेते हुए प्रो. वेदनाथन कमेटी की सिफारिशों को लागू करने के उदेश्य से केन्द्र सरकार के साथ एम ओ यू किया है। इसके लागू होने से वित्तीय संकट से जूझ रही सरकारी संस्थाओं को आत्मनिर्भर बनने का नया अवसर मिलेगा।
छत्तीसगढ़ सरकार ने सहकारी संस्थाओं एवं इससे जुडे सदस्यों के उत्थान के लिए अनेक निर्णय लिये हैं, मसलन ११७ बुनकर सहकारी समितियों की ७.५ करोड रुपये की ऋण माफी की गई। शासन ने सहकारी समितियों के माध्यम से कृषि ऋण पर ब्याज दर १४% से घटाकर ३% कर दिया है। शासन का यह निर्णय किसानों के लिए वरदान सिद्ध हो रहा है। इस निर्णय के फलस्वरूप सहकारी समितियों से ऋण लेने वाले सदस्यों की संखया में इजाफा हुआ है। शासन की मंशा भविष्य में शून्य प्रतिशत ब्याज दर पर फसल ऋण देने की है। यदि सरकार इस व्यवस्था को लागू कर देती है तो किसानों को बिना ब्याज के ऋण देने वाला छत्तीसगढ पहला राज्य होगा।
यूं तो सरकार की उपलब्धियां अनगिनत हैं जिसे किसी पत्रिका के एक कॉलम में समेटना संभव नहीं है, लेकिन प्रदेश में संपन्न हुये सहकारिता के चुनाव का उल्लेख करना आवश्यक है। शासन की मंशा के अनुरूप प्रदेश में प्राथमिक समितियों से लेकर शीर्ष बैंकों के चुनाव निर्विवाद रूप से सम्पन्न हुये। चुनाव की प्रक्रिया पूरी तरह स्वतंत्र तथा प्रदर्शिता-पूर्ण होने से समितियों एवं संस्थाओं के सदस्यों ने निर्भीक होकर चुनाव में भाग लिया। चुनाव में बड़ी संखया में लोगों का भाग लेना इस बात को दर्शाता है कि तेजी से विस्तार होगा एवं सहकारी आंदोलन जन आंदोलन के रूप में उभरेगा। हमें यह यह कहने में कोई संकोच नही कि डा. रमन सिंह सरकार के सकरात्मक दृष्टिकोण एवं रचनात्मक फैसले से छत्तीसगढ़ में सहकारी आंदोलन के स्वर्णिम युग का सूत्रपात हुआ है।
छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ, रायपुर
छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ, रायपुर
संघ वनोपज के संग्राहकों एवं वनवासियों के विकास हेतु कृत संकलित है।
वर्ष २००६-०७ एवं वर्ष २००७-०८ में निम्नानसुार कार्य निष्पादित किए गएः
सालबीज संग्रहण वर्ष २००७
सालबीज के व्यापार से प्राप्त लाभ की राशि से रूपये ४.०६ करोड प्रोत्साहन पारिश्रमिक (बोनस) राशि का वितरण संग्राहकों में किया गया ।
तेन्दूपत्ता संग्रहण वर्ष २००६
तेन्दूपत्ता व्यापार से प्राप्त लाभ की राशि रूपये १०३.०१ करोड प्रोत्साहन पारिश्रमिक (बोनस) राशि का वितरण संग्राहकों में किया गया ।
तेन्दूपत्ता संग्रहण वर्ष २००७
तेन्दूपत्ता व्यापार से प्राप्त लाभ की राशि रूपये ३१.४४ करोड का वितरण प्रोत्साहन पारिश्रमिक (बोनस) संग्राहकों में किया गया ।
चरणपादुका का कार्य
वर्ष २००६ में १२.३२ लाख तेन्दूपत्ता संग्राहक परिवार के एक सदस्य को उनकी इच्छानुसार महिला अथवा पुरूष संग्राहक को चरणपादुका वितरित किया गया ।
वर्ष २००७ में १२.५७ लाख तेन्दूपत्ता संग्राहक परिवार के एक सदस्य को उनकी इच्छानुसार महिला अथवा पुरूष संग्राहक को चरणपादुका वितरित किया गया ।
वर्ष २००८ में १२.८२ लाख तेन्दूपत्ता संग्राहक परिवार के एक महिला सदस्य को चरणपादुका वितरित किया गया ।
वर्ष २००९ में १२.८५ लाख तेन्दूपत्ता संग्राहक परिवार के एक महिला सदस्य को चरणपादुका वितरण की कार्यवाही प्रगति पर है।
तेन्दूपत्ता संग्राहकों हेतु जनश्री बीमा योजना
प्रत्येक तेन्दूपत्ता संग्राहक परिवार के १८ वर्ष से ५९ वर्ष तक की आयु के मुखिया की ०१/०५/२००७ से 'जनश्री' बीमा योजना लागू की गई है । इस योजना के तहत संग्राहक परिवार को निम्नानुसार सुविधाएं उपलब्ध होंगी :-
संग्राहक परिवार के मुखिया की साधारण मृत्यु होने के दशा में उसके नामांकित व्यक्ति को रूपये २०,०००/-
अस्थायी अपंगता की दशा में संग्राहक परिवार के मुखिया को रूपये २५,०००/-
स्थायी अपंगता/दुर्घटना जनित मृत्यु की दशा में परिवार के मुखिया को या उसके नामित व्यक्ति को रूपये ५०,०००/- की राशि का भुगतान किया जाता है।
इसके अतिरिक्त परिवार में ९वीं से १२वीं कक्षा अथवा आई.टी.आईमुरारी में पढ़ रहे दो बच्चों को रूपये ३००/- प्रति तिमाही शिष्यवृत्ति भी उपलब्ध कराई जाती है ।
जनश्री बीमा योजना अन्तर्गत वर्ष २००८-०९ हेतु प्रीमियम की राशि रूपये ९,५९,१३,९२०/- का भुगतान भारतीय जीवन बीमा निगम को किया गया है । शासन से रूपये १०,५५,००,०००/- की राशि प्राप्त हुई है।
भारतीय जीवन बीमा निगम द्वारा स्वीकृत प्रकरणों की संखया- ३६९२
भारतीय जीवन बीमा निगम द्वारा स्वीकृत प्रकरणों की राशि- ७,८५,२५,०००/-
भारतीय जीवन बीमा निगम द्वारा छात्र-छात्राओं के लिये छात्रवृत्ति की राशि का प्रदायः-
छात्र-छात्राओं की संखया ९३०५२
स्वीकृत राशि ६,६८,६३,४००/-
तेन्दूपत्ता संग्राहकों हेतु समूह बीमा योजना
तेन्दूपत्ता संग्राहक परिवार के मुखिया के अतिरिक्त परिवार के १८ वर्ष से ५९ वर्ष तक के आयु के किसी अन्य सदस्य की मृत्यु/ विकलांगता होने पर अर्थात् साधारण मृत्यु की दशा में रूपय ३,५००/-, आंशिक विकलांगता की दशा में रूपये १२,५००/- तथा दुर्घटना जनित मृत्यु अथवा पूर्ण विकलांगता होने पर रूपये २५,०००/- की राशि के भुगतान का प्रावधान है ।
वर्ष २००८-०९ में भारतीय जीवन बीमा निगम को दो तिमाही की राशि रूपये १,८०,६८,७५०/- का भुगतान किया जा चुका है। नियमानुसार दावों का निस्तारण किया जा चुका है।
छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ का चुनाव
९१३ प्राथमिक वनोपज सहकारी समिति का चुनाव तीन चरणों में संपन्न किया गया।
राज्य की ३२ जिला वनोपज सहकारी यूनियनों का चुनाव संपन्न किया गया।
जिला वनोपज सहकारी यूनियनों के चुनाव के उपरांत छत्तीसगढ़ में पहली बार छ.ग.राज्य लघु वनोपज सहकारी संघ मर्यादित, रायपुर के संचालक मंडल का निर्वाचन दिनांक १२.०९.२००८ को संपन्न किया गया ।
इस प्रकार वर्तमान में राज्य में लघु वनोपज से संबंधित सभी सहकारी संस्थाओं में निर्वाचित संचालक मंडल कार्यरत हैं ।
संघ वनोपज के संग्राहकों एवं वनवासियों के विकास हेतु कृत संकलित है।
वर्ष २००६-०७ एवं वर्ष २००७-०८ में निम्नानसुार कार्य निष्पादित किए गएः
सालबीज संग्रहण वर्ष २००७
सालबीज के व्यापार से प्राप्त लाभ की राशि से रूपये ४.०६ करोड प्रोत्साहन पारिश्रमिक (बोनस) राशि का वितरण संग्राहकों में किया गया ।
तेन्दूपत्ता संग्रहण वर्ष २००६
तेन्दूपत्ता व्यापार से प्राप्त लाभ की राशि रूपये १०३.०१ करोड प्रोत्साहन पारिश्रमिक (बोनस) राशि का वितरण संग्राहकों में किया गया ।
तेन्दूपत्ता संग्रहण वर्ष २००७
तेन्दूपत्ता व्यापार से प्राप्त लाभ की राशि रूपये ३१.४४ करोड का वितरण प्रोत्साहन पारिश्रमिक (बोनस) संग्राहकों में किया गया ।
चरणपादुका का कार्य
वर्ष २००६ में १२.३२ लाख तेन्दूपत्ता संग्राहक परिवार के एक सदस्य को उनकी इच्छानुसार महिला अथवा पुरूष संग्राहक को चरणपादुका वितरित किया गया ।
वर्ष २००७ में १२.५७ लाख तेन्दूपत्ता संग्राहक परिवार के एक सदस्य को उनकी इच्छानुसार महिला अथवा पुरूष संग्राहक को चरणपादुका वितरित किया गया ।
वर्ष २००८ में १२.८२ लाख तेन्दूपत्ता संग्राहक परिवार के एक महिला सदस्य को चरणपादुका वितरित किया गया ।
वर्ष २००९ में १२.८५ लाख तेन्दूपत्ता संग्राहक परिवार के एक महिला सदस्य को चरणपादुका वितरण की कार्यवाही प्रगति पर है।
तेन्दूपत्ता संग्राहकों हेतु जनश्री बीमा योजना
प्रत्येक तेन्दूपत्ता संग्राहक परिवार के १८ वर्ष से ५९ वर्ष तक की आयु के मुखिया की ०१/०५/२००७ से 'जनश्री' बीमा योजना लागू की गई है । इस योजना के तहत संग्राहक परिवार को निम्नानुसार सुविधाएं उपलब्ध होंगी :-
संग्राहक परिवार के मुखिया की साधारण मृत्यु होने के दशा में उसके नामांकित व्यक्ति को रूपये २०,०००/-
अस्थायी अपंगता की दशा में संग्राहक परिवार के मुखिया को रूपये २५,०००/-
स्थायी अपंगता/दुर्घटना जनित मृत्यु की दशा में परिवार के मुखिया को या उसके नामित व्यक्ति को रूपये ५०,०००/- की राशि का भुगतान किया जाता है।
इसके अतिरिक्त परिवार में ९वीं से १२वीं कक्षा अथवा आई.टी.आईमुरारी में पढ़ रहे दो बच्चों को रूपये ३००/- प्रति तिमाही शिष्यवृत्ति भी उपलब्ध कराई जाती है ।
जनश्री बीमा योजना अन्तर्गत वर्ष २००८-०९ हेतु प्रीमियम की राशि रूपये ९,५९,१३,९२०/- का भुगतान भारतीय जीवन बीमा निगम को किया गया है । शासन से रूपये १०,५५,००,०००/- की राशि प्राप्त हुई है।
भारतीय जीवन बीमा निगम द्वारा स्वीकृत प्रकरणों की संखया- ३६९२
भारतीय जीवन बीमा निगम द्वारा स्वीकृत प्रकरणों की राशि- ७,८५,२५,०००/-
भारतीय जीवन बीमा निगम द्वारा छात्र-छात्राओं के लिये छात्रवृत्ति की राशि का प्रदायः-
छात्र-छात्राओं की संखया ९३०५२
स्वीकृत राशि ६,६८,६३,४००/-
तेन्दूपत्ता संग्राहकों हेतु समूह बीमा योजना
तेन्दूपत्ता संग्राहक परिवार के मुखिया के अतिरिक्त परिवार के १८ वर्ष से ५९ वर्ष तक के आयु के किसी अन्य सदस्य की मृत्यु/ विकलांगता होने पर अर्थात् साधारण मृत्यु की दशा में रूपय ३,५००/-, आंशिक विकलांगता की दशा में रूपये १२,५००/- तथा दुर्घटना जनित मृत्यु अथवा पूर्ण विकलांगता होने पर रूपये २५,०००/- की राशि के भुगतान का प्रावधान है ।
वर्ष २००८-०९ में भारतीय जीवन बीमा निगम को दो तिमाही की राशि रूपये १,८०,६८,७५०/- का भुगतान किया जा चुका है। नियमानुसार दावों का निस्तारण किया जा चुका है।
छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ का चुनाव
९१३ प्राथमिक वनोपज सहकारी समिति का चुनाव तीन चरणों में संपन्न किया गया।
राज्य की ३२ जिला वनोपज सहकारी यूनियनों का चुनाव संपन्न किया गया।
जिला वनोपज सहकारी यूनियनों के चुनाव के उपरांत छत्तीसगढ़ में पहली बार छ.ग.राज्य लघु वनोपज सहकारी संघ मर्यादित, रायपुर के संचालक मंडल का निर्वाचन दिनांक १२.०९.२००८ को संपन्न किया गया ।
इस प्रकार वर्तमान में राज्य में लघु वनोपज से संबंधित सभी सहकारी संस्थाओं में निर्वाचित संचालक मंडल कार्यरत हैं ।
महिलाओं के संगठन और सक्षमता का चिराग
महिलाओं के संगठन और सक्षमता का चिराग
देश की आधी जनसंखया महिलाओं की है। स्वाभावतः महिला भारतीय अर्थव्यवस्था का मूलाधार है। पूरे देश का भविष्य महिलाओं पर उनकी कार्यक्षमता और कार्यकुशलता पर निर्भर है। महिला आर्थिक दृष्टि से स्वयंपूर्ण होनी चाहिए। ये समय की माँग है। विशेषतः ग्रामीण क्षेत्र में महिलाओं की प्रगति धीमी गति से होती नजर आ रही है। ये हर कार्यकर्ता की जिम्मेदारी है कि महिलाओं का उचित ढंग से संगठन करो, उनको खुद की सहायता करने के लिए प्रेरित करो। उनको आर्थिक सक्षम बनाने के लिए उत्तरदायी बनाओ। उनको राष्ट्र के प्रमुख प्रवाह में शामिल होने का अवसर दो। ये सब जिस माध्यम से होता नजर आ रहा है;उस माध्यम का नाम है ''स्वयं सहायता समूह''। इनकी अनेक विशेषताएँ होती है।
सर्वप्रथम देखा जाये, कि स्वयं सहायता समूह सिर्फ महिलाओं का ही समूह होना चाहिए। ऐसा नहीं है कि स्वयं सहायता समूह सिर्फ ग्रामीण और गरीब महिलाओं का ही संगठन है संगठन की आवश्यकता सिर्फ महिलाओं को नहीं होती। बल्कि महिलाओं को संगठन की आवश्यकता सबसे अधिक होती है। उनकी खुद की अनेक समस्याएँ होती है और अपनी समस्याएँ सुलझाने में ये महिला एक दूसरे की मददगार साबित होती है।
मेरा निरीक्षण है कि महिलाएँ जब आपस में घुलमील जाती है, बाते करती है तब उनमें विश्वास काफी मात्रा में बढ़ता है। उनको ज्यादातर समस्याएँ अपने कुटुंब के स्तर पर होती है। बच्चों की शैक्षणिक समस्याएँ, पति द्वारा उनकी हो रही पिटाई, अपना कुटुंब चलाने में हो रही उलझन ये सब बाते आपस में करना उनकी जरुरी होती है। महिलाओं का शोषण, कौटुंबिक हिंसा आदि प्रमुख समस्याओं का हल इससे पहले खुदकुशी ही था। अब ये हालात बदल रहे हैं। सच कहा जाय तो महिलाओं में अब चेतना आ रही है, और आर्थिक उत्साह से स्वयं प्रेरणा से महिलाओं का संगठन होता जा रहा है। इससे सामाजिक समस्या का हल निकल रहा है।
इतिहास काल से महिलाओं को बचत करना अनिवार्य महसूस हुआ है। शायद इसी का प्रभाव 'महिलाओं का बचत करने वाली मशीन' मानकर सभी की नजरे महिलाओं पर केंद्रित रही हैं। आज तक महिलाएँ जो बचत करती थी वो भविष्य के बुरे समय को नजर रखकर परंतु अब समय की मागं बदलती जा रही है और महिलाए छोटे-मोटे व्यवसाय शुरू कर रही हैं और राष्ट्र की प्रतिव्यक्ति आय भी बढती जा रही है।
पूरे परिवार में एक ही ऐसा व्यक्ति होता है, जो कमाऊ सदस्य होता है। शहर में ये प्रमाण अलग हो सकता है। ग्रामीण महिलाओं के कुटुंब की स्थिति बड़ी शोचनीय होती है। साहुकार से कर्जा लेना, परिवार का प्रमुख व्यक्ति शराबी होता है, इतना ही नहीं बारिश में घर की हालात बहुत ही कठिन होते हैं। घर में शौचालय जैसी सुविधा नजर नहीं आती। ऐसे गरीब हालात में जिन महिलाओं ने स्वयं सहायता समूह को अपनाया उनके घर में आज शौचालय की सुविधा तो हो ही गयी, उसके साथ-साथ घर की हालत भी अभी बेहतर हो गयी है। इस कारण पुरुष भी स्वयं सहायता समूह में भाग लेने के लिए अब महिलाओं को टोकते नहीं।
हमारे बैंकों को भी अब स्वयं सहायता समूहों के लिए काम करने की आवश्यकता महसूस हो गयी है। इससे पूर्व बैंकों को सेल्फ हेल्फ ग्रुप के नाम का डर था। बहुत सी गलतफहमी थी लेकिन नाबार्ड और रिजर्व बैंक ने इसका महत्व स्पष्ट किया और धीरे-धीरे बैंकों का बिजनेस बढ़ गया। ग्राहक संखया भी बढ ती गयी। छोटे-छोटे ऋण सुविधा के कारण एन.पी.ए. का प्रमाण भी मर्यादित रहना शुरु हुआ। इसका फायदा न केवल बैंकों को, या कुटुंबों को, बल्कि सोशल लिडर्स भी ले चुके है। अब तो सभी पॉलिटिकल पार्टीज भी इसमें आगे है।
दस से बीस महिलाओं को इकट्ठा करना ये स्वयं सहायता समूह से सबसे पहला कार्य है। महिलाएं एक ही स्तर की होती है। उनकी समस्याएँ एक जैसी होती है। जैसे गाँव में पानी ना होना ये उस गाँव की समस्या है और उस गाँव में जो गुट निर्माण होगा उसका महिलाओं को इस समस्या का सामना करना अनिवार्य है।
स्वयं सहायता समूह में काम करनेवाले सदस्यों की बचत करने की आदत हो जाती है। साहूकार से ऋण लेने के बजाय अपने ही साथियों की बचत में से ऋण लेना अधिक सम्मानदायी और उचित होता है। कुटुंब स्तर पर वित्तीय अनुशासन का अनुभव महिलाएँ करने लगती है।
परिवार का एक ही सदस्य स्वयं सहायता समूह का सदस्य होता है। समूह की नियमित रूप से बैठक आयोजित की जाती है। महिलाएँ गाना गाती है। खेलकूद भी करती है। पिकनिक भी मनाती है। जिससे महिलाओं का मानसिक पोषण अच्छी तरह से होता है। ऐक्य बना रहता है और बढ़ता जाता है। किसी भी सामाजिक राजकीय, कौटुंबिक समस्या पर एक होकर लड ना उनकी आदत सी हो जाती है।
लेखा-बहियों का उपयोग करके समूह की अर्थ व्यवस्था पारदर्शी बनी रहती है। लेखा-बहियों का रखरखाव करने से धीरे-धीरे सभी समूह सदस्य मदद करते है। इन समूहों की 'फेडरेशन' भी जिलास्तर पर बनाई जाती है। फेडरेशन कार्यवृत पुस्तिका, बैठकों के नियम, अकॉंटिंग पॉलिसी और लेखा बहियों का रखरखाव आदि में मार्गदर्शन और सहायता मिलता है।
बचत राशि इकट्ठा करके नजदीक के किसी बैंक में खाता खोला जाता है। स्वयं सहायता समूह का खाता खोलना आसान होता है। एक साथ और अलग-अलग हो रही बचत और बचत करने के लिए प्रेरणादायी साबित होती है। इसमें कई बैंकों का आर्थिक सहभाग भी होने से जितनी बचत होती है उससे कई अधिक ऋण जरुरतमंद सदस्यों को अनुशासन से प्राप्त होते है।
समूह सभी नियम अनुभव से अपने आप बनाना भी सीखते हैं। इससे सामाजिक लगाव सबसे ज्यादा होने के कारण किसी भी सदस्य की कठिनाई सारे समूह की कठिनाई बन जाती है और सारा समूह जन समस्याओं पर 'हल्ला बोल' करता है। और समस्या का समाधान होता जाता है।
सभी कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण देना आवश्यक होता है। इससे स्वयं सहायता समूह की गुणवत्ता बढ़ाई जाती है और बर्नी रहती है। समूह के सभी महिला अध्यक्षों की परिषद, समूह का सहजभाव से प्रशिक्षण होने से सामूहिक रूप से सभाओं का स्वरूप देकर कुछ विचार समाज को प्रभावित करने के लिए सामने रखे जा सकते हैं।
ऋण राशिका उपयोग उचित होने से समूह की विश्वसनीयता बढ़ती है। और महिलाओं की आर्थिक उन्नति के लिए बैंको द्वारा एक कदम आगे बढता है और बैंकों को इसके फलस्वरुप सामाजिक पहचान बढने में मदद मिलती है। बैंकों की और समूहों की गुणवत्ता जाँची जाती है।
महिलाओं के संघटन में अत्यंत प्रभावशाली होने वाला ये घटक राष्ट्र उद्धार के कार्यकाली घटक माना जायेगा। घर-घर में खुशहाली के दीप जलते नजर आयेंगे। प्रतिव्यक्ति आय बढेगी और देश की आर्थिक प्रगति आसान हो जायेगी। इसलिए स्वयं सहायता यज्ञ राष्ट्र के प्रति समर्पित करने के लिए सभी कार्यकर्ताओं को शुभेच्छा!
देश की आधी जनसंखया महिलाओं की है। स्वाभावतः महिला भारतीय अर्थव्यवस्था का मूलाधार है। पूरे देश का भविष्य महिलाओं पर उनकी कार्यक्षमता और कार्यकुशलता पर निर्भर है। महिला आर्थिक दृष्टि से स्वयंपूर्ण होनी चाहिए। ये समय की माँग है। विशेषतः ग्रामीण क्षेत्र में महिलाओं की प्रगति धीमी गति से होती नजर आ रही है। ये हर कार्यकर्ता की जिम्मेदारी है कि महिलाओं का उचित ढंग से संगठन करो, उनको खुद की सहायता करने के लिए प्रेरित करो। उनको आर्थिक सक्षम बनाने के लिए उत्तरदायी बनाओ। उनको राष्ट्र के प्रमुख प्रवाह में शामिल होने का अवसर दो। ये सब जिस माध्यम से होता नजर आ रहा है;उस माध्यम का नाम है ''स्वयं सहायता समूह''। इनकी अनेक विशेषताएँ होती है।
सर्वप्रथम देखा जाये, कि स्वयं सहायता समूह सिर्फ महिलाओं का ही समूह होना चाहिए। ऐसा नहीं है कि स्वयं सहायता समूह सिर्फ ग्रामीण और गरीब महिलाओं का ही संगठन है संगठन की आवश्यकता सिर्फ महिलाओं को नहीं होती। बल्कि महिलाओं को संगठन की आवश्यकता सबसे अधिक होती है। उनकी खुद की अनेक समस्याएँ होती है और अपनी समस्याएँ सुलझाने में ये महिला एक दूसरे की मददगार साबित होती है।
मेरा निरीक्षण है कि महिलाएँ जब आपस में घुलमील जाती है, बाते करती है तब उनमें विश्वास काफी मात्रा में बढ़ता है। उनको ज्यादातर समस्याएँ अपने कुटुंब के स्तर पर होती है। बच्चों की शैक्षणिक समस्याएँ, पति द्वारा उनकी हो रही पिटाई, अपना कुटुंब चलाने में हो रही उलझन ये सब बाते आपस में करना उनकी जरुरी होती है। महिलाओं का शोषण, कौटुंबिक हिंसा आदि प्रमुख समस्याओं का हल इससे पहले खुदकुशी ही था। अब ये हालात बदल रहे हैं। सच कहा जाय तो महिलाओं में अब चेतना आ रही है, और आर्थिक उत्साह से स्वयं प्रेरणा से महिलाओं का संगठन होता जा रहा है। इससे सामाजिक समस्या का हल निकल रहा है।
इतिहास काल से महिलाओं को बचत करना अनिवार्य महसूस हुआ है। शायद इसी का प्रभाव 'महिलाओं का बचत करने वाली मशीन' मानकर सभी की नजरे महिलाओं पर केंद्रित रही हैं। आज तक महिलाएँ जो बचत करती थी वो भविष्य के बुरे समय को नजर रखकर परंतु अब समय की मागं बदलती जा रही है और महिलाए छोटे-मोटे व्यवसाय शुरू कर रही हैं और राष्ट्र की प्रतिव्यक्ति आय भी बढती जा रही है।
पूरे परिवार में एक ही ऐसा व्यक्ति होता है, जो कमाऊ सदस्य होता है। शहर में ये प्रमाण अलग हो सकता है। ग्रामीण महिलाओं के कुटुंब की स्थिति बड़ी शोचनीय होती है। साहुकार से कर्जा लेना, परिवार का प्रमुख व्यक्ति शराबी होता है, इतना ही नहीं बारिश में घर की हालात बहुत ही कठिन होते हैं। घर में शौचालय जैसी सुविधा नजर नहीं आती। ऐसे गरीब हालात में जिन महिलाओं ने स्वयं सहायता समूह को अपनाया उनके घर में आज शौचालय की सुविधा तो हो ही गयी, उसके साथ-साथ घर की हालत भी अभी बेहतर हो गयी है। इस कारण पुरुष भी स्वयं सहायता समूह में भाग लेने के लिए अब महिलाओं को टोकते नहीं।
हमारे बैंकों को भी अब स्वयं सहायता समूहों के लिए काम करने की आवश्यकता महसूस हो गयी है। इससे पूर्व बैंकों को सेल्फ हेल्फ ग्रुप के नाम का डर था। बहुत सी गलतफहमी थी लेकिन नाबार्ड और रिजर्व बैंक ने इसका महत्व स्पष्ट किया और धीरे-धीरे बैंकों का बिजनेस बढ़ गया। ग्राहक संखया भी बढ ती गयी। छोटे-छोटे ऋण सुविधा के कारण एन.पी.ए. का प्रमाण भी मर्यादित रहना शुरु हुआ। इसका फायदा न केवल बैंकों को, या कुटुंबों को, बल्कि सोशल लिडर्स भी ले चुके है। अब तो सभी पॉलिटिकल पार्टीज भी इसमें आगे है।
दस से बीस महिलाओं को इकट्ठा करना ये स्वयं सहायता समूह से सबसे पहला कार्य है। महिलाएं एक ही स्तर की होती है। उनकी समस्याएँ एक जैसी होती है। जैसे गाँव में पानी ना होना ये उस गाँव की समस्या है और उस गाँव में जो गुट निर्माण होगा उसका महिलाओं को इस समस्या का सामना करना अनिवार्य है।
स्वयं सहायता समूह में काम करनेवाले सदस्यों की बचत करने की आदत हो जाती है। साहूकार से ऋण लेने के बजाय अपने ही साथियों की बचत में से ऋण लेना अधिक सम्मानदायी और उचित होता है। कुटुंब स्तर पर वित्तीय अनुशासन का अनुभव महिलाएँ करने लगती है।
परिवार का एक ही सदस्य स्वयं सहायता समूह का सदस्य होता है। समूह की नियमित रूप से बैठक आयोजित की जाती है। महिलाएँ गाना गाती है। खेलकूद भी करती है। पिकनिक भी मनाती है। जिससे महिलाओं का मानसिक पोषण अच्छी तरह से होता है। ऐक्य बना रहता है और बढ़ता जाता है। किसी भी सामाजिक राजकीय, कौटुंबिक समस्या पर एक होकर लड ना उनकी आदत सी हो जाती है।
लेखा-बहियों का उपयोग करके समूह की अर्थ व्यवस्था पारदर्शी बनी रहती है। लेखा-बहियों का रखरखाव करने से धीरे-धीरे सभी समूह सदस्य मदद करते है। इन समूहों की 'फेडरेशन' भी जिलास्तर पर बनाई जाती है। फेडरेशन कार्यवृत पुस्तिका, बैठकों के नियम, अकॉंटिंग पॉलिसी और लेखा बहियों का रखरखाव आदि में मार्गदर्शन और सहायता मिलता है।
बचत राशि इकट्ठा करके नजदीक के किसी बैंक में खाता खोला जाता है। स्वयं सहायता समूह का खाता खोलना आसान होता है। एक साथ और अलग-अलग हो रही बचत और बचत करने के लिए प्रेरणादायी साबित होती है। इसमें कई बैंकों का आर्थिक सहभाग भी होने से जितनी बचत होती है उससे कई अधिक ऋण जरुरतमंद सदस्यों को अनुशासन से प्राप्त होते है।
समूह सभी नियम अनुभव से अपने आप बनाना भी सीखते हैं। इससे सामाजिक लगाव सबसे ज्यादा होने के कारण किसी भी सदस्य की कठिनाई सारे समूह की कठिनाई बन जाती है और सारा समूह जन समस्याओं पर 'हल्ला बोल' करता है। और समस्या का समाधान होता जाता है।
सभी कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण देना आवश्यक होता है। इससे स्वयं सहायता समूह की गुणवत्ता बढ़ाई जाती है और बर्नी रहती है। समूह के सभी महिला अध्यक्षों की परिषद, समूह का सहजभाव से प्रशिक्षण होने से सामूहिक रूप से सभाओं का स्वरूप देकर कुछ विचार समाज को प्रभावित करने के लिए सामने रखे जा सकते हैं।
ऋण राशिका उपयोग उचित होने से समूह की विश्वसनीयता बढ़ती है। और महिलाओं की आर्थिक उन्नति के लिए बैंको द्वारा एक कदम आगे बढता है और बैंकों को इसके फलस्वरुप सामाजिक पहचान बढने में मदद मिलती है। बैंकों की और समूहों की गुणवत्ता जाँची जाती है।
महिलाओं के संघटन में अत्यंत प्रभावशाली होने वाला ये घटक राष्ट्र उद्धार के कार्यकाली घटक माना जायेगा। घर-घर में खुशहाली के दीप जलते नजर आयेंगे। प्रतिव्यक्ति आय बढेगी और देश की आर्थिक प्रगति आसान हो जायेगी। इसलिए स्वयं सहायता यज्ञ राष्ट्र के प्रति समर्पित करने के लिए सभी कार्यकर्ताओं को शुभेच्छा!
Thursday, June 16, 2011
सहकारिता के माध्यम से निम्नतम आयवर्ग की महिलाओं का आर्थिक विकास
सहकारिता के माध्यम से निम्नतम
आयवर्ग की महिलाओं का आर्थिक विकास
निम्नतम आय वर्ग की महिलाओं को सहकारिता के माध्यम से सच्चक्त बनाने की दिशा में हमारा यह पहला प्रयास है जो केन्द्र से लेकर देश के अन्य राज्यों में भी फैलेगा। महिला सशक्तिकरण की इस राष्ट्रीय कार्यशाला में आज हम उन महिलाओं के आर्थिक उत्थान व सामाजिक सशक्तता के बारे में चर्चा करने के लिए इकट्ठा हुए हैं, जिन महिलाओं की आय निम्नतम है। समाज की ऐसी महिलाओं को किस तरह मजबूत बनाया जाए, उनको सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक संरचनाओं से जोड़ा जाए इसके बारे में आज हमें सोचना है।
आज महिलाओं को सामाजिक क्षेत्र में आगे आने की जरूरत है, आर्थिक रूप से मजबूत होने के लिए महिलाओं को संगठित रूप से आगे आना होगा। जब माँ, बहनें शिक्षित होंगी तो पूरा परिवार शिक्षित होगा जिससे एक स्वस्थ समाज का निर्माण होगा। सहकारिता, लोकतंत्र का विद्यालय है, इस दिशा में महिलाओं को आगे आने की आवश्यकता है। जो हमारा संघीय और लोकतांत्रिक ढांचा है उसमें महिलाओं को मजबूती के साथ आगे आना होगा।
इस दिशा में आज तक सार्थक प्रयास विभिन्न सामाजिक क्षेत्रों की महिलाएं करती आयी हैं पर आज इसको और आगे ले जाने की आवश्यकता है। भारतीय जनता पार्टी ने अपने संगठन में महिलाओं को ३३ प्रतिशत भागीदारी देकर एक इतिहास बनाया है। उस इतिहास को भविष्य की नीतियों के साथ परिवर्तित करके हमें आगे बढ़ाना होगा।
आज इस देश में महिलाओं को उन महिलाओं के बारे में सोचना होगा जो इस देश की आबादी में सबसे ज्यादा हैं। उनको अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए हमारी उन बहनों को आगे आना होगा जो समर्पित भाव से इनके बीच में काम करने की इच्छा रखती हों। आपको इनके बीच में ही, इनके समाज में ही, उन महिलाओं को चिन्हित करना होगा जो इनके लिए काम करना चाहती हैं। आपको पूर्णकालिक बनकर आगे आना होगा।
मैं विशेष रूप से बहनों का इस कार्यशाला के माध्यम से आह्वान करता हूँ कि वे आगे आएं। उनके आर्थिक खर्चों के लिए सहकारिता प्रकोष्ठ प्रयत्न करेगा, पूरे देश में इस प्रकार के प्रशिक्षण की योजना बनाई जा रही है। पूरी तरह से महिलाएं शिक्षित और समृद्ध तभी हो पाएंगी जब हम इनके लिए सार्थक प्रयास करेंगे।
आज स्वयं सहायता समूहों की समाज के प्रत्येक क्षेत्र में अनिवार्यता और अपरिहार्यता बढी है, उन स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से अभी तक जो लाभ मिलता आया है आज उसे द्विगुणित ही नहीं कई गुना करने की आवश्यकता है। ऐसे फेडरल समूहों, संगठनों, सहकारी समितियों का निर्माण करना है जो इनको अपने साथ जोड कर इनका आर्थिक उत्थान कर सकें। इसके बारे में सहकार भारती के मदन गुप्ता जी व सेवा केन्द्र की जयश्री व्यास जी आपसे विस्तार से चर्चा करेंगें।
प्रदेश के हर जिले, ग्रामीण स्तर, शहरों के वार्ड स्तर तथा विधान सभाओं तक ऐसी ही प्रशिक्षिण कार्यशालाएं आपके सहयोग से आयोजित होनी हैं, जहाँ-जहाँ हमारी सरकारें हैं वहाँ सरकारी खर्चे पर इस प्रकार के आयोजन करने हैं। यह बहनों का कार्य है और बहनों की भालाई के लिए बहनों को ही आगे आना होगा। जड़ को मजबूत करना होगा। इसमें पूर्णकालिक महिला कार्यकर्ताओं को यह जिम्मेदारी लेनी होगी।
सहकारिता का इस प्रकार का प्रशिक्षिण समाज के अन्य क्षेत्रों जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, चाइल्ड केयर, परिवारों का आपसी सामंजस्य, सामाजिक और आर्थिक सुदृढता आदि विषयों पर आधारित होगा। विशेष रूप से चिकित्सा और शिक्षा की सेवाएं आज महंगी होने के कारण सबको प्राप्त नहीं हो रही हैं और ग्रामीण स्तर पर इनका नितांत अभाव है। जो सुविधाएं हैं वह भी मिलती नहीं हैं। हम ऐसे लक्ष्य को लेकर आगे बढ रहे हैं। यह हमारा मिशन होगा।
KVIC और IRD की कई योजनाएं ऐसी हैं जिसमें महिलाओं को ५० प्रतिशत की ग्रांट और सब्सिडी मिलती है। आपके क्षेत्र में रहने वाली निम्नतम आयवर्ग की महिलाओं के बीच में ऐसे उद्योग स्थापित करने की योजना है। जहाँ तक सहकारिता में महिलाओं के आरक्षण की बात है तो अनेक सरकारों ने अपने-अपने राज्यों में प्रबंधकीय बोर्ड में आरक्षण दिया है। प. बंगाल, गुजरात, तमिलनाडु, केरल में 3%, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश में बोर्ड में एक सदस्य तथा उड़ीसा आदि राज्यों में पति-पत्नी की संयुक्त सदस्यता का प्रावधान किया गया है। यह अभी काफी कम है। कई राज्यों में महिला सहकार बाजार, महिलाओं के हाथों से बनी वस्तुओं की प्रदर्शनी, इनके द्वारा उत्पादित वस्तुओं का बाजार, महिलाओं को सशक्त बनाने की दिशा में कार्य कर रहा है। सहकारिता के माध्यम से अल्प, निम्नतम आय वर्ग की महिलाएँ स्वयं संगठित होकर आगे बढ रही हैं। कुछ रुकावटें हैं, पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं की सामाजिक सुरक्षा को संकल्प के साथ चुनौती के रूप में महिलाओं को लेना होगा। इसी के लिए हमारी बहनों का आगे आना होगा। परिवर्तन हो रहा है, कुछ व्यावहारिक और नियमों, कानूनों की कठिनाइयाँ हैं जिनमें धीरे-धीरे सुधार हो रहा है।
इस कार्यशाला में जिन लोगों को आपको आमंत्रित करने के लिए कहा गया था उनसे अनुरोध किया गया था कि इसमें उन्हीं बहनों को आमंत्रित किया जाय जो इस क्षेत्र में रुचि रखती हों तथा काम करने के लिए तैयार हों। इसमें संखया में भले ही कम हों लेकिन समर्पित भाव से काम करने वाली बहनें हों। आप ही बहनों को उन बहनों के लिए सोचना है। क्रांति की दिशा में यह पहला कदम है- मुझे विश्वास है कि आपके सहयोग से यह क्रांति आगे बढ़ेगी और समाज की वह महिला जो निम्नतम आय वर्ग की है उसका सहकारिता के माध्यम से आर्थिक उत्थान होगा। पं. दीनदयाल उपाध्याय के ''एकात्म मानववाद'' का सपना साकार करने की दिच्चा में यह सार्थक कदम होगा।
आपको अपना समय उनके लिए, उनके बीच में निकालना होगा। ऐसी बहनें जो दिल से इनकी भलाई के लिए आगे आना चाहती हों, उनका स्वागत है। आप सबको यहां आने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
आयवर्ग की महिलाओं का आर्थिक विकास
निम्नतम आय वर्ग की महिलाओं को सहकारिता के माध्यम से सच्चक्त बनाने की दिशा में हमारा यह पहला प्रयास है जो केन्द्र से लेकर देश के अन्य राज्यों में भी फैलेगा। महिला सशक्तिकरण की इस राष्ट्रीय कार्यशाला में आज हम उन महिलाओं के आर्थिक उत्थान व सामाजिक सशक्तता के बारे में चर्चा करने के लिए इकट्ठा हुए हैं, जिन महिलाओं की आय निम्नतम है। समाज की ऐसी महिलाओं को किस तरह मजबूत बनाया जाए, उनको सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक संरचनाओं से जोड़ा जाए इसके बारे में आज हमें सोचना है।
आज महिलाओं को सामाजिक क्षेत्र में आगे आने की जरूरत है, आर्थिक रूप से मजबूत होने के लिए महिलाओं को संगठित रूप से आगे आना होगा। जब माँ, बहनें शिक्षित होंगी तो पूरा परिवार शिक्षित होगा जिससे एक स्वस्थ समाज का निर्माण होगा। सहकारिता, लोकतंत्र का विद्यालय है, इस दिशा में महिलाओं को आगे आने की आवश्यकता है। जो हमारा संघीय और लोकतांत्रिक ढांचा है उसमें महिलाओं को मजबूती के साथ आगे आना होगा।
इस दिशा में आज तक सार्थक प्रयास विभिन्न सामाजिक क्षेत्रों की महिलाएं करती आयी हैं पर आज इसको और आगे ले जाने की आवश्यकता है। भारतीय जनता पार्टी ने अपने संगठन में महिलाओं को ३३ प्रतिशत भागीदारी देकर एक इतिहास बनाया है। उस इतिहास को भविष्य की नीतियों के साथ परिवर्तित करके हमें आगे बढ़ाना होगा।
आज इस देश में महिलाओं को उन महिलाओं के बारे में सोचना होगा जो इस देश की आबादी में सबसे ज्यादा हैं। उनको अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए हमारी उन बहनों को आगे आना होगा जो समर्पित भाव से इनके बीच में काम करने की इच्छा रखती हों। आपको इनके बीच में ही, इनके समाज में ही, उन महिलाओं को चिन्हित करना होगा जो इनके लिए काम करना चाहती हैं। आपको पूर्णकालिक बनकर आगे आना होगा।
मैं विशेष रूप से बहनों का इस कार्यशाला के माध्यम से आह्वान करता हूँ कि वे आगे आएं। उनके आर्थिक खर्चों के लिए सहकारिता प्रकोष्ठ प्रयत्न करेगा, पूरे देश में इस प्रकार के प्रशिक्षण की योजना बनाई जा रही है। पूरी तरह से महिलाएं शिक्षित और समृद्ध तभी हो पाएंगी जब हम इनके लिए सार्थक प्रयास करेंगे।
आज स्वयं सहायता समूहों की समाज के प्रत्येक क्षेत्र में अनिवार्यता और अपरिहार्यता बढी है, उन स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से अभी तक जो लाभ मिलता आया है आज उसे द्विगुणित ही नहीं कई गुना करने की आवश्यकता है। ऐसे फेडरल समूहों, संगठनों, सहकारी समितियों का निर्माण करना है जो इनको अपने साथ जोड कर इनका आर्थिक उत्थान कर सकें। इसके बारे में सहकार भारती के मदन गुप्ता जी व सेवा केन्द्र की जयश्री व्यास जी आपसे विस्तार से चर्चा करेंगें।
प्रदेश के हर जिले, ग्रामीण स्तर, शहरों के वार्ड स्तर तथा विधान सभाओं तक ऐसी ही प्रशिक्षिण कार्यशालाएं आपके सहयोग से आयोजित होनी हैं, जहाँ-जहाँ हमारी सरकारें हैं वहाँ सरकारी खर्चे पर इस प्रकार के आयोजन करने हैं। यह बहनों का कार्य है और बहनों की भालाई के लिए बहनों को ही आगे आना होगा। जड़ को मजबूत करना होगा। इसमें पूर्णकालिक महिला कार्यकर्ताओं को यह जिम्मेदारी लेनी होगी।
सहकारिता का इस प्रकार का प्रशिक्षिण समाज के अन्य क्षेत्रों जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, चाइल्ड केयर, परिवारों का आपसी सामंजस्य, सामाजिक और आर्थिक सुदृढता आदि विषयों पर आधारित होगा। विशेष रूप से चिकित्सा और शिक्षा की सेवाएं आज महंगी होने के कारण सबको प्राप्त नहीं हो रही हैं और ग्रामीण स्तर पर इनका नितांत अभाव है। जो सुविधाएं हैं वह भी मिलती नहीं हैं। हम ऐसे लक्ष्य को लेकर आगे बढ रहे हैं। यह हमारा मिशन होगा।
KVIC और IRD की कई योजनाएं ऐसी हैं जिसमें महिलाओं को ५० प्रतिशत की ग्रांट और सब्सिडी मिलती है। आपके क्षेत्र में रहने वाली निम्नतम आयवर्ग की महिलाओं के बीच में ऐसे उद्योग स्थापित करने की योजना है। जहाँ तक सहकारिता में महिलाओं के आरक्षण की बात है तो अनेक सरकारों ने अपने-अपने राज्यों में प्रबंधकीय बोर्ड में आरक्षण दिया है। प. बंगाल, गुजरात, तमिलनाडु, केरल में 3%, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश में बोर्ड में एक सदस्य तथा उड़ीसा आदि राज्यों में पति-पत्नी की संयुक्त सदस्यता का प्रावधान किया गया है। यह अभी काफी कम है। कई राज्यों में महिला सहकार बाजार, महिलाओं के हाथों से बनी वस्तुओं की प्रदर्शनी, इनके द्वारा उत्पादित वस्तुओं का बाजार, महिलाओं को सशक्त बनाने की दिशा में कार्य कर रहा है। सहकारिता के माध्यम से अल्प, निम्नतम आय वर्ग की महिलाएँ स्वयं संगठित होकर आगे बढ रही हैं। कुछ रुकावटें हैं, पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं की सामाजिक सुरक्षा को संकल्प के साथ चुनौती के रूप में महिलाओं को लेना होगा। इसी के लिए हमारी बहनों का आगे आना होगा। परिवर्तन हो रहा है, कुछ व्यावहारिक और नियमों, कानूनों की कठिनाइयाँ हैं जिनमें धीरे-धीरे सुधार हो रहा है।
इस कार्यशाला में जिन लोगों को आपको आमंत्रित करने के लिए कहा गया था उनसे अनुरोध किया गया था कि इसमें उन्हीं बहनों को आमंत्रित किया जाय जो इस क्षेत्र में रुचि रखती हों तथा काम करने के लिए तैयार हों। इसमें संखया में भले ही कम हों लेकिन समर्पित भाव से काम करने वाली बहनें हों। आप ही बहनों को उन बहनों के लिए सोचना है। क्रांति की दिशा में यह पहला कदम है- मुझे विश्वास है कि आपके सहयोग से यह क्रांति आगे बढ़ेगी और समाज की वह महिला जो निम्नतम आय वर्ग की है उसका सहकारिता के माध्यम से आर्थिक उत्थान होगा। पं. दीनदयाल उपाध्याय के ''एकात्म मानववाद'' का सपना साकार करने की दिच्चा में यह सार्थक कदम होगा।
आपको अपना समय उनके लिए, उनके बीच में निकालना होगा। ऐसी बहनें जो दिल से इनकी भलाई के लिए आगे आना चाहती हों, उनका स्वागत है। आप सबको यहां आने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
अपना मध्यप्रदेश-मेरा मध्यप्रदेश
अपना मध्यप्रदेश-मेरा मध्यप्रदेश
श्री शिवराजसिंह चौहान
माननीय मुखयमंत्री, मध्यप्रदेश्
हमारी ओर से शान्तिमय तथा समृद्धशाली नववर्ष २००९ की शुभकामनाएं स्वीकार करें।
बहुत-बहुत धन्यवाद!
आज तक आपके राज्य में सहकारिता के क्षेत्र में क्या प्रगति हुई है?
सहकारिता के क्षेत्र में हम तेजी से आगे बढ रहे हैं। पांच सालों में पचास सालों की जो अराजकता है, भ्रष्टाचार है, एकाधिकारवाद था, राजनीति थी उसे समाप्त करना कठिन था लेकिन हमने यह कर दिखाया । आज प्रदेश का सहकारिता आंदोलन राजनीति, एकाधिकारवाद से न केवल मुक्त है बल्कि स्वच्छ, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के जरिए प्रदेश में सहकारिता की कमान उन लोगों के हाथों में है जो सहकारी आंदोलन के प्रति समर्पित है। सहकारिता अधिनियम में संशोधन कर हमने अब यह तय किया है कि कोई भी विधायक, सांसद, स्थानीय निकायों का पदाधिकारी, सहकारी संस्थाओं का पदाधिकारी नहीं रह सकेगा । इस निर्णय से सहकारी आंदोलन राजनीति से मुक्त हुआ है। हमने यह भी तय किया है कि सहकारी संस्थाओं का कोई भी पदाधिकारी दो कार्यकाल से अधिक सहकारी संस्थाओं का पदाधिकारी नहीं बन सकेगा। इस निर्णय से हमने सहकारी क्षेत्र को एकाधिकारवाद से मुक्त किया है। सहकारिता क्षेत्र में पिछले पांच साल में भ्रष्टाचार और अराजकता के वातावरण से मुक्ति का परिणाम यह निकला है कि आज प्रदेश के अधिकांश सहकारी एवं शीर्ष सहकारी संस्थाएं और बैंक वर्षों के घाटे से उबरकर लाभ की स्थिति में पहुंच गए हैं। मैंने पहले ही कहा कि अभी यह प्रगति पूरी नहीं है, हमारा लक्ष्य सहकारिता के माध्यम से समाज के सबसे अंतिम छोर में खड़े व्यक्ति तक पहुंचना और उसका सर्वांगीण विकास करना है ।
जहां तक सहकारी क्षे़त्र के आच्छादन क सवाल है आज प्रदेश के ८० प्रतिशत ग्रामीण कृषक परिवार इससे जुडे हैं। हर दूसरा परिवार और पांचवां व्यक्ति सहकारिता से जुडा है। वर्ष १९५६-५७ में प्रदेश के गठन के समय प्रदेश के लगभग ४८.५० प्रतिशत ग्राम सहकारिता से जुडे थे वहीं आज शत प्रतिशत गांव सहकारी क्षेत्र से जुड गए हैं।
आपके विचार से राज्य के आर्थिक विकास में सहकारिता क्षेत्र क्या भूमिका अदा कर सकता है?
मेरा मानना है कि प्रदेश के आर्थिक विकास में सहकारिता आंदोलन एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है । यही वह माध्यम है जिसकी गतिविधि और संरचना ऊपर से नहीं नीचे से शुरू होती है। इसके लिए थोड े से प्रयासों की जरूरत है। हमने पिछले कार्यकाल में कृषकों को ५ प्रतिशत ब्याज दर पर कृषि ऋण उपलब्ध कराया। यह ऋण पहले उन्हें १५-१६ प्रतिशत पर मिलता था। ऐसा करने वाला मध्यप्रदेश देश का पहला राज्य था। इसके लिये राज्य शासन ने अपने बजट में प्रावधान किया है। इसी तरह अब हम आगे यह ब्याज दर ३ प्रतिशत करने जा रहे है । इससे प्रदेश में कृषि उत्पादन बढा। इस वर्ष गेहूं की सरकारी खरीद अब तक की सर्वाधिक २४ मूल्य पर अधिक बोनस देकर की। इसके अलावा पशुपालन, दुग्ध उत्पादन, मत्स्य उत्पादन जैसी सहकारी क्षेत्र की वे गतिविधियां हैं जो जाहिर तौर पर प्रदेश के लोगों के आर्थिक हालत में व्यापक परिवर्तन लायेंगी।.
मध्यप्रदेश में हमने नए सिरे से मिले जनादेश के बाद प्रदेश को स्वर्णिम प्रदेश बनाने के लिए सात सर्वोच्च प्राथमिकताएं तय की हैं। इनमें से एक है खेती को लाभदायी बनाना। सहकारी क्षेत्र इस प्राथमिकता की पूर्ति में महत्त्वपूर्ण घटक होगा। उत्पादन लागत को कम कर और किसानों को उनकी उपज का वाजिब मूल्य दिलाने में सहकारी क्षेत्र बड़ा कारगर होगा!
राज्य में सहकारिता क्षेत्र के विकास के लिए आपने क्या योजनाऐं और कार्यक्रम तैयार किए हैं?
प्रदेश में सहकारिता के विकास के लिए सहकारिता की हर गतिविधि को निचले स्तर तक पहुंचाया जा रहा है । समाज के अंतिम व्यक्ति तक सहकारिता पहुंचे इसके लिए सहकारी साख आन्दोलन को सुदृढ और आज की तकनीक से जोडा जा रहा है। वित्तीय समावेशन (फायनेंशल इन्क्लूजन) के माध्यम से गा्मीण क्षेत्र के प्रत्येक व्यक्ति तक घर-पहुंच सेवा का लक्ष्य आरै इसके लिए सहकारी बैंकों में कोर बैंकिंग शुरू करने क लिए अघोसंरचना का विकास किया जा रहा ह।
आपके प्रदेश में अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में सहकारिता किस प्रकार सहायक हो सकती है ?
समाज के वंचित वर्ग तक योजनाओं, कार्यक्रमों का लाभ पहुंचे। उनके कल्याण की गतिविधियों का लाभ उन्हें मिले इसके लिए सहकारी आंदोलन के जरिए हमने बिचौलियों की भूमिका समाप्त की है। उत्पादक और उपभोक्ता को सीधे जोड़ा है
इससे निश्चित ही दोनो लाभान्वित होंगे। सहकारी साख संरचना के साथ ही हथकरघा, कुटीर उद्योग, दुग्ध उत्पादन तथा सहकारी उपभोक्ता आंदोलन के माध्यम से अब तक जिन आर्थिक क्षेत्रों म सहकारी आंदोलन नहीं पहुंचा वहां तक उसकी पहुंच सुनिश्चित कराई है ।
अर्थव्यवस्था के अभी तक अछूते रहे क्षेत्रों में सहकारिता किस तरह महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है?
दरअसल सहकारिता ही वह माध्यम है जिससे हम समाज के कमजोर वर्ग को जीने का हक सही अर्थों में दिला सकते हैं। उनका आर्थिक उत्थान कर सकते हैं। स्वतंत्रता के बाद ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी दूर वित्तीय सहायता पहुंचाने के लिए सहकारी आंदोलन की शुरूआत की गई जो किसी विचारधारा के पिंजरे में कैद नहीं थी। उसकी केवल एक ही भावना थी वह थी सहकार भावना। सहकारिता एक ऐसा आदर्श जरिया है जिससे हम समाज के सबसे जरूरतमंद और वंचित वर्ग तक संवाद बनाते है। उसकी व्यवहारिक और बुनियादी जरूरतों को पहचान कर हम उसकी आर्थिक प्रगति का जरिया बनते हैं इसलिए समाज के सर्वांगीण विकास के लिए सहकारिता आंदोलन बहुत जरूरी है। बिना सहकार नहीं उद्धार-की उक्ति हमारे यहां युगों से है। अकेले और फिर गरीब व्यक्ति का उद्धार नहीं हो सकता। सामूहिकता में ताकत और निगरानी दोनों निहित है। सामूहिकता ही आज की दशा में सहकारिता है और सबके उत्थान की आदर्श संभावना भी।
क्या आप सोचते हैं कि पिछडे़, अल्पसंखयक तथा अनुसूचित जनजाति वर्गों के आर्थिक विकास में सहकारिता आंदोलन की महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती है?
हम मध्यप्रदेश में हर वंचित वर्ग का सहकारिता आंदोलन से जोड़ रहे हैं ताकि उसका उत्थान हो सके। इसके लिए बडी संखया में उन्हें सहकारी समितियों का सदस्य बनाया जा रहा है। स्व-सहायता समूहों के जरिए भी हमने प्रयास कर पूरे प्रदेश में आर्थिक विकास की एक नई आधारभूत संरचना स्थापित की है। कुटीर उद्योगों, हाथकरघा सहित छोटे-छोटे व्यवसायों के उत्पाद के विपणन की एक रणनीति बनाई गई है ताकि उनके उत्पादों को बाजार मिल सके। किसानों को सस्ते ब्याज दर पर ऋण मिले उन्हें अन्य व्यवसायों के लिए भी कम ब्याज पर ऋण मिले, इसके प्रयास हम कर रहे हैं ताकि प्रदेश का हर व्यक्ति खुशहाल हो सके।
आई.सी.डी.पी. (इंटीग्रेटेड कॉपरेटिव डेवलपमेंट प्रोग्राम) के अंतर्गत आपके प्रदेश में क्या गतिविधियां चल रहीं हैं?
एकीकृत सहकारी विकास (आई.सी.डी.पी.) की पंद्रह परियोजना हमारे प्रदेश में चल रही हैं। परियोजनाओं के लिए १८४ करोड की राशि स्वीकृत है। बारह परियोजनाए भारत सरकार के समक्ष स्वीकृति के लिए लंबित है। इन परियोजनाओं के जरिए हम प्रदेश में सहकारी संस्थाओं के लिए अधोसरंचना का विकास कर रहे हैं। इसके साथ ही सहकारी व्यवसाय में वृद्धि के लिए आर्थिक सहायता भी उपलब्ध करा रहे हैं। कमजोर वर्ग के लोगों को संगठित कर उनके व्यवसाय तथा आय में वृद्धि इस परियोजना से सुनिश्चित हो रही है । सागर जिला जहां बीड़ी का बडा उद्योग है, यहां बीडी मजदूरों को स्वयं बीडी निर्माण से जोड कर उन्हें सीधे बाजार उपलब्ध कराने का प्रयास भी किया गया है। इस तरह के प्रयास पूरे प्रदेश में इन परियोजनाओं के माध्यम से किए जा रहे हैं।
क्या आपके राज्य में वैद्यनाथन समिति की सिफारिच्चें लागू कर दी गई हैं? यदि हाँ, तो इससे राज्य को किस तरह का लाभ हुआ है? यदि नहीं लागू की गईं तो, इसके रास्ते की रुकावटें क्या हैं?
प्रो. वैद्यनाथन कमेटी की सिफारिशों को लागू करने वाला मध्यप्रदेश देश का पहला राज्य है। इसकी सिफारिशों को न केवल लागू करने में हमने सहमति प्रदान की बल्कि भारत सरकार से सबसे पहले हमने ही एम०ओ०यू० साइन किया । वै्द्यनाथन कमेटी की सिफारिशों के अनुरूप हमने अपने सहकारिता अधिनियम में संशोधन भी किया है। प्रो. वैद्यनाथन कमेटी की सिफारिशें लागू होने के बाद प्रदेश की सहकारी साख सरंचना को व्यवसायिक स्वतंत्रता मिली है। सहकारिता आंदोलन अनावश्यक शासकीय नियंत्रण से मुक्त हआ है। प्रो. वैद्यनाथन पैकेज के तहत प्रदेश को लगभग ७०० करोड़ रूपये की सहायता मिली है जिसे २०९४ सहकारी साख सरंचना संस्थाओं को भी प्रदान किया जा चुका है। इस वर्ष के अंत तक ६०० करोड रूपये की सहायता मिलने का अनुमान है। प्रा वैद्यनाथन कमेटी की सिफारिशों के अनुसार प्रदेश को १७९७ करोड रूपये की कुल मदद प्राप्त होगी। मध्यप्रदेश में वैद्यनाथन कमेटी की सिफारिशें लागू करने में कोई रूकावट नहीं है।
प्रदेश की जनता को आप क्या संदेश देना चाहते हैं।
सहकारिता से प्रदेश की जनता अधिक से अधिक जुड़े लोगों की भावना सहकार की हो, अपने से छोटे और गरीब वर्ग को उपर लाने, उन्हें बराबरी पर खडा करने की भावना हो, यही मेरी सबसे अपील है। मेरा प्रयास होगा कि प्रदेश की जनता के श्रम का समुचित उपयोग कर उन्हें अधिकाधिक आय अजिर्त करा सकूं आरै प्रदेशों के आथि उत्थान में उनकी भागीदारी सुनश्चित करा सकूं ।
मेरा मानना है कि स्वर्णिम मध्यप्रदेश का मेरा सपना तब तक साकार नहीं हो सकता जब तक उसमें समाज की सहभागिता न हो। सब अपने-अपने कर्मक्षेत्र में ईमानदारी से अपने कर्त्तव्यों का पालन कर इस बडे काम में मदद कर सकते हैं। एक बात और कि मध्यप्रदेश के लोगों को किन्हीं और अर्थों में नहीं परन्तु प्रदेश के विकास और जन-कल्याण के कामों की दृष्टि से ''अपना मध्यप्रदेश-मेरा मध्यप्रदेश'' का स्थायी भाव जागृत करना होगा।
श्री शिवराजसिंह चौहान
माननीय मुखयमंत्री, मध्यप्रदेश्
हमारी ओर से शान्तिमय तथा समृद्धशाली नववर्ष २००९ की शुभकामनाएं स्वीकार करें।
बहुत-बहुत धन्यवाद!
आज तक आपके राज्य में सहकारिता के क्षेत्र में क्या प्रगति हुई है?
सहकारिता के क्षेत्र में हम तेजी से आगे बढ रहे हैं। पांच सालों में पचास सालों की जो अराजकता है, भ्रष्टाचार है, एकाधिकारवाद था, राजनीति थी उसे समाप्त करना कठिन था लेकिन हमने यह कर दिखाया । आज प्रदेश का सहकारिता आंदोलन राजनीति, एकाधिकारवाद से न केवल मुक्त है बल्कि स्वच्छ, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के जरिए प्रदेश में सहकारिता की कमान उन लोगों के हाथों में है जो सहकारी आंदोलन के प्रति समर्पित है। सहकारिता अधिनियम में संशोधन कर हमने अब यह तय किया है कि कोई भी विधायक, सांसद, स्थानीय निकायों का पदाधिकारी, सहकारी संस्थाओं का पदाधिकारी नहीं रह सकेगा । इस निर्णय से सहकारी आंदोलन राजनीति से मुक्त हुआ है। हमने यह भी तय किया है कि सहकारी संस्थाओं का कोई भी पदाधिकारी दो कार्यकाल से अधिक सहकारी संस्थाओं का पदाधिकारी नहीं बन सकेगा। इस निर्णय से हमने सहकारी क्षेत्र को एकाधिकारवाद से मुक्त किया है। सहकारिता क्षेत्र में पिछले पांच साल में भ्रष्टाचार और अराजकता के वातावरण से मुक्ति का परिणाम यह निकला है कि आज प्रदेश के अधिकांश सहकारी एवं शीर्ष सहकारी संस्थाएं और बैंक वर्षों के घाटे से उबरकर लाभ की स्थिति में पहुंच गए हैं। मैंने पहले ही कहा कि अभी यह प्रगति पूरी नहीं है, हमारा लक्ष्य सहकारिता के माध्यम से समाज के सबसे अंतिम छोर में खड़े व्यक्ति तक पहुंचना और उसका सर्वांगीण विकास करना है ।
जहां तक सहकारी क्षे़त्र के आच्छादन क सवाल है आज प्रदेश के ८० प्रतिशत ग्रामीण कृषक परिवार इससे जुडे हैं। हर दूसरा परिवार और पांचवां व्यक्ति सहकारिता से जुडा है। वर्ष १९५६-५७ में प्रदेश के गठन के समय प्रदेश के लगभग ४८.५० प्रतिशत ग्राम सहकारिता से जुडे थे वहीं आज शत प्रतिशत गांव सहकारी क्षेत्र से जुड गए हैं।
आपके विचार से राज्य के आर्थिक विकास में सहकारिता क्षेत्र क्या भूमिका अदा कर सकता है?
मेरा मानना है कि प्रदेश के आर्थिक विकास में सहकारिता आंदोलन एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है । यही वह माध्यम है जिसकी गतिविधि और संरचना ऊपर से नहीं नीचे से शुरू होती है। इसके लिए थोड े से प्रयासों की जरूरत है। हमने पिछले कार्यकाल में कृषकों को ५ प्रतिशत ब्याज दर पर कृषि ऋण उपलब्ध कराया। यह ऋण पहले उन्हें १५-१६ प्रतिशत पर मिलता था। ऐसा करने वाला मध्यप्रदेश देश का पहला राज्य था। इसके लिये राज्य शासन ने अपने बजट में प्रावधान किया है। इसी तरह अब हम आगे यह ब्याज दर ३ प्रतिशत करने जा रहे है । इससे प्रदेश में कृषि उत्पादन बढा। इस वर्ष गेहूं की सरकारी खरीद अब तक की सर्वाधिक २४ मूल्य पर अधिक बोनस देकर की। इसके अलावा पशुपालन, दुग्ध उत्पादन, मत्स्य उत्पादन जैसी सहकारी क्षेत्र की वे गतिविधियां हैं जो जाहिर तौर पर प्रदेश के लोगों के आर्थिक हालत में व्यापक परिवर्तन लायेंगी।.
मध्यप्रदेश में हमने नए सिरे से मिले जनादेश के बाद प्रदेश को स्वर्णिम प्रदेश बनाने के लिए सात सर्वोच्च प्राथमिकताएं तय की हैं। इनमें से एक है खेती को लाभदायी बनाना। सहकारी क्षेत्र इस प्राथमिकता की पूर्ति में महत्त्वपूर्ण घटक होगा। उत्पादन लागत को कम कर और किसानों को उनकी उपज का वाजिब मूल्य दिलाने में सहकारी क्षेत्र बड़ा कारगर होगा!
राज्य में सहकारिता क्षेत्र के विकास के लिए आपने क्या योजनाऐं और कार्यक्रम तैयार किए हैं?
प्रदेश में सहकारिता के विकास के लिए सहकारिता की हर गतिविधि को निचले स्तर तक पहुंचाया जा रहा है । समाज के अंतिम व्यक्ति तक सहकारिता पहुंचे इसके लिए सहकारी साख आन्दोलन को सुदृढ और आज की तकनीक से जोडा जा रहा है। वित्तीय समावेशन (फायनेंशल इन्क्लूजन) के माध्यम से गा्मीण क्षेत्र के प्रत्येक व्यक्ति तक घर-पहुंच सेवा का लक्ष्य आरै इसके लिए सहकारी बैंकों में कोर बैंकिंग शुरू करने क लिए अघोसंरचना का विकास किया जा रहा ह।
आपके प्रदेश में अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में सहकारिता किस प्रकार सहायक हो सकती है ?
समाज के वंचित वर्ग तक योजनाओं, कार्यक्रमों का लाभ पहुंचे। उनके कल्याण की गतिविधियों का लाभ उन्हें मिले इसके लिए सहकारी आंदोलन के जरिए हमने बिचौलियों की भूमिका समाप्त की है। उत्पादक और उपभोक्ता को सीधे जोड़ा है
इससे निश्चित ही दोनो लाभान्वित होंगे। सहकारी साख संरचना के साथ ही हथकरघा, कुटीर उद्योग, दुग्ध उत्पादन तथा सहकारी उपभोक्ता आंदोलन के माध्यम से अब तक जिन आर्थिक क्षेत्रों म सहकारी आंदोलन नहीं पहुंचा वहां तक उसकी पहुंच सुनिश्चित कराई है ।
अर्थव्यवस्था के अभी तक अछूते रहे क्षेत्रों में सहकारिता किस तरह महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है?
दरअसल सहकारिता ही वह माध्यम है जिससे हम समाज के कमजोर वर्ग को जीने का हक सही अर्थों में दिला सकते हैं। उनका आर्थिक उत्थान कर सकते हैं। स्वतंत्रता के बाद ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी दूर वित्तीय सहायता पहुंचाने के लिए सहकारी आंदोलन की शुरूआत की गई जो किसी विचारधारा के पिंजरे में कैद नहीं थी। उसकी केवल एक ही भावना थी वह थी सहकार भावना। सहकारिता एक ऐसा आदर्श जरिया है जिससे हम समाज के सबसे जरूरतमंद और वंचित वर्ग तक संवाद बनाते है। उसकी व्यवहारिक और बुनियादी जरूरतों को पहचान कर हम उसकी आर्थिक प्रगति का जरिया बनते हैं इसलिए समाज के सर्वांगीण विकास के लिए सहकारिता आंदोलन बहुत जरूरी है। बिना सहकार नहीं उद्धार-की उक्ति हमारे यहां युगों से है। अकेले और फिर गरीब व्यक्ति का उद्धार नहीं हो सकता। सामूहिकता में ताकत और निगरानी दोनों निहित है। सामूहिकता ही आज की दशा में सहकारिता है और सबके उत्थान की आदर्श संभावना भी।
क्या आप सोचते हैं कि पिछडे़, अल्पसंखयक तथा अनुसूचित जनजाति वर्गों के आर्थिक विकास में सहकारिता आंदोलन की महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती है?
हम मध्यप्रदेश में हर वंचित वर्ग का सहकारिता आंदोलन से जोड़ रहे हैं ताकि उसका उत्थान हो सके। इसके लिए बडी संखया में उन्हें सहकारी समितियों का सदस्य बनाया जा रहा है। स्व-सहायता समूहों के जरिए भी हमने प्रयास कर पूरे प्रदेश में आर्थिक विकास की एक नई आधारभूत संरचना स्थापित की है। कुटीर उद्योगों, हाथकरघा सहित छोटे-छोटे व्यवसायों के उत्पाद के विपणन की एक रणनीति बनाई गई है ताकि उनके उत्पादों को बाजार मिल सके। किसानों को सस्ते ब्याज दर पर ऋण मिले उन्हें अन्य व्यवसायों के लिए भी कम ब्याज पर ऋण मिले, इसके प्रयास हम कर रहे हैं ताकि प्रदेश का हर व्यक्ति खुशहाल हो सके।
आई.सी.डी.पी. (इंटीग्रेटेड कॉपरेटिव डेवलपमेंट प्रोग्राम) के अंतर्गत आपके प्रदेश में क्या गतिविधियां चल रहीं हैं?
एकीकृत सहकारी विकास (आई.सी.डी.पी.) की पंद्रह परियोजना हमारे प्रदेश में चल रही हैं। परियोजनाओं के लिए १८४ करोड की राशि स्वीकृत है। बारह परियोजनाए भारत सरकार के समक्ष स्वीकृति के लिए लंबित है। इन परियोजनाओं के जरिए हम प्रदेश में सहकारी संस्थाओं के लिए अधोसरंचना का विकास कर रहे हैं। इसके साथ ही सहकारी व्यवसाय में वृद्धि के लिए आर्थिक सहायता भी उपलब्ध करा रहे हैं। कमजोर वर्ग के लोगों को संगठित कर उनके व्यवसाय तथा आय में वृद्धि इस परियोजना से सुनिश्चित हो रही है । सागर जिला जहां बीड़ी का बडा उद्योग है, यहां बीडी मजदूरों को स्वयं बीडी निर्माण से जोड कर उन्हें सीधे बाजार उपलब्ध कराने का प्रयास भी किया गया है। इस तरह के प्रयास पूरे प्रदेश में इन परियोजनाओं के माध्यम से किए जा रहे हैं।
क्या आपके राज्य में वैद्यनाथन समिति की सिफारिच्चें लागू कर दी गई हैं? यदि हाँ, तो इससे राज्य को किस तरह का लाभ हुआ है? यदि नहीं लागू की गईं तो, इसके रास्ते की रुकावटें क्या हैं?
प्रो. वैद्यनाथन कमेटी की सिफारिशों को लागू करने वाला मध्यप्रदेश देश का पहला राज्य है। इसकी सिफारिशों को न केवल लागू करने में हमने सहमति प्रदान की बल्कि भारत सरकार से सबसे पहले हमने ही एम०ओ०यू० साइन किया । वै्द्यनाथन कमेटी की सिफारिशों के अनुरूप हमने अपने सहकारिता अधिनियम में संशोधन भी किया है। प्रो. वैद्यनाथन कमेटी की सिफारिशें लागू होने के बाद प्रदेश की सहकारी साख सरंचना को व्यवसायिक स्वतंत्रता मिली है। सहकारिता आंदोलन अनावश्यक शासकीय नियंत्रण से मुक्त हआ है। प्रो. वैद्यनाथन पैकेज के तहत प्रदेश को लगभग ७०० करोड़ रूपये की सहायता मिली है जिसे २०९४ सहकारी साख सरंचना संस्थाओं को भी प्रदान किया जा चुका है। इस वर्ष के अंत तक ६०० करोड रूपये की सहायता मिलने का अनुमान है। प्रा वैद्यनाथन कमेटी की सिफारिशों के अनुसार प्रदेश को १७९७ करोड रूपये की कुल मदद प्राप्त होगी। मध्यप्रदेश में वैद्यनाथन कमेटी की सिफारिशें लागू करने में कोई रूकावट नहीं है।
प्रदेश की जनता को आप क्या संदेश देना चाहते हैं।
सहकारिता से प्रदेश की जनता अधिक से अधिक जुड़े लोगों की भावना सहकार की हो, अपने से छोटे और गरीब वर्ग को उपर लाने, उन्हें बराबरी पर खडा करने की भावना हो, यही मेरी सबसे अपील है। मेरा प्रयास होगा कि प्रदेश की जनता के श्रम का समुचित उपयोग कर उन्हें अधिकाधिक आय अजिर्त करा सकूं आरै प्रदेशों के आथि उत्थान में उनकी भागीदारी सुनश्चित करा सकूं ।
मेरा मानना है कि स्वर्णिम मध्यप्रदेश का मेरा सपना तब तक साकार नहीं हो सकता जब तक उसमें समाज की सहभागिता न हो। सब अपने-अपने कर्मक्षेत्र में ईमानदारी से अपने कर्त्तव्यों का पालन कर इस बडे काम में मदद कर सकते हैं। एक बात और कि मध्यप्रदेश के लोगों को किन्हीं और अर्थों में नहीं परन्तु प्रदेश के विकास और जन-कल्याण के कामों की दृष्टि से ''अपना मध्यप्रदेश-मेरा मध्यप्रदेश'' का स्थायी भाव जागृत करना होगा।
Wednesday, June 15, 2011
मध्य प्रदेश राज्य सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंक मर्यादित
मध्य प्रदेश राज्य सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंक मर्यादित
मार्च २००८ में बैंक के प्रगतिशील ४७ वर्ष पूर्ण।
अभी तक प्रदेश के ९३५२८९ से अधिक कृषकों को जिला सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंकों के माध्यम से कृषि/अकृषि प्रयोजनों हेतु रू. २६७७.९८ करोड़ से अधिक के दीर्घावधि ऋण वितरित।
३८ जिला सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंकों की ३६६ शाखाओं के माध्ये से ५ से १५ वर्षो तक की अवधि के लिये सरल ब्याज दर पर कृषि अकृषि ऋण उपलब्ध कराया जाता है।
लघु कुटीर, ग्रामोद्योग आयोग और अन्य वित्तीय संस्थाओं की विभिन्न योजनाओं के क्रियान्वयन हेतु ऋण उपलब्ध।
वार्षिक किस्तें देय तिथि के पूर्व चुकाने पर ब्याज दर में ०.५ प्रतिशत की छूट।
महिलाओं को ऋण में प्राथमिकता।
कृषि और ग्रामीण विकास तथा ऐसे अन्य सभी प्रयोजनों, जिनके लिए राष्ट्रीय बैंक से पुनर्वित्त सुविधाएं उपलब्ध है, के लिए ऋण।
ऋण माफी तथा ऋण राहत योजना २००८ के अन्तर्गत १०५७२८ सीमांत एवं लघु कृषकों के रूपये ३०१.३९ करोड़ के कालातीत ऋण माफ किये गये तथा अन्य श्रेणी के १८८९४ कृषकों को १९.६८ करोड की राहत दी गई।
सावधि निक्षेप
३१ दिसम्बर ०८ तक प्राप्त फिक्स्ड डिपॉजित पर ब्याज की कुल परिलब्धि एक वर्ष हेतु ९.५२ प्रतिशत, २ वर्ष हेतु १०.०३ प्रतिशत और ३ वर्ष या अधिक अवधि के लिए १०.५९ प्रतिशत होगी।
निक्षेप राशि पर ७५ प्रतिशत राशि पर ७५ प्रतिशत तक ऋण सुविधा।
वरिष्ठ नागरिकों को जमा राशियों पर ब्याज में विशेष आकर्षण।
अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं कमजोर वर्ग के कृषकों को अधिक से अधिक ऋण उपलब्ध कराने में प्राथमिकता
मार्च २००८ में बैंक के प्रगतिशील ४७ वर्ष पूर्ण।
अभी तक प्रदेश के ९३५२८९ से अधिक कृषकों को जिला सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंकों के माध्यम से कृषि/अकृषि प्रयोजनों हेतु रू. २६७७.९८ करोड़ से अधिक के दीर्घावधि ऋण वितरित।
३८ जिला सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंकों की ३६६ शाखाओं के माध्ये से ५ से १५ वर्षो तक की अवधि के लिये सरल ब्याज दर पर कृषि अकृषि ऋण उपलब्ध कराया जाता है।
लघु कुटीर, ग्रामोद्योग आयोग और अन्य वित्तीय संस्थाओं की विभिन्न योजनाओं के क्रियान्वयन हेतु ऋण उपलब्ध।
वार्षिक किस्तें देय तिथि के पूर्व चुकाने पर ब्याज दर में ०.५ प्रतिशत की छूट।
महिलाओं को ऋण में प्राथमिकता।
कृषि और ग्रामीण विकास तथा ऐसे अन्य सभी प्रयोजनों, जिनके लिए राष्ट्रीय बैंक से पुनर्वित्त सुविधाएं उपलब्ध है, के लिए ऋण।
ऋण माफी तथा ऋण राहत योजना २००८ के अन्तर्गत १०५७२८ सीमांत एवं लघु कृषकों के रूपये ३०१.३९ करोड़ के कालातीत ऋण माफ किये गये तथा अन्य श्रेणी के १८८९४ कृषकों को १९.६८ करोड की राहत दी गई।
सावधि निक्षेप
३१ दिसम्बर ०८ तक प्राप्त फिक्स्ड डिपॉजित पर ब्याज की कुल परिलब्धि एक वर्ष हेतु ९.५२ प्रतिशत, २ वर्ष हेतु १०.०३ प्रतिशत और ३ वर्ष या अधिक अवधि के लिए १०.५९ प्रतिशत होगी।
निक्षेप राशि पर ७५ प्रतिशत राशि पर ७५ प्रतिशत तक ऋण सुविधा।
वरिष्ठ नागरिकों को जमा राशियों पर ब्याज में विशेष आकर्षण।
अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं कमजोर वर्ग के कृषकों को अधिक से अधिक ऋण उपलब्ध कराने में प्राथमिकता
Tuesday, June 14, 2011
छत्तीसगढ़ राज्य में सहकारिता के क्षेत्र में प्रगति
छत्तीसगढ़ राज्य में सहकारिता के क्षेत्र में प्रगति
डा रमन सिंह, माननीय मुखयमंत्री जी के साथ बातचीत पर आधारित
हमारी ओर से शांतिमय तथा समृद्धशाली नववर्ष २००९ की शुभकामनाएं स्वीकार करें।
धन्यवाद! आपको और केन्द्रीय सहकारिता प्रकोष्ठ तथा इससे पूरे देश में जुडे सदस्यों को भी मेरी बधाई और शुभकामनाएं। नया वर्ष आप सबके मिशन को सफलता के नए शिखर पर पहुँचने का मार्ग प्रशस्त करे।
आज तक आपके राज्य में सहकारिता के क्षेत्र में क्या प्रगति हुई है?
छत्तीसगढ़ में हमने अल्पकालीन साख संरचना के त्रिस्तरीय ढांचे को मजबूत बनाया है। राज्य सहकारी बैंक (एपेक्स बैंक) तथा राज्य सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक राज्य स्तर पर कार्यच्चील हैं। जिला स्तर पर ६ जिला केन्द्रीय सहकारी बैंक तथा १२ जिला सहकारी कृषि तथा ग्रामीण विकास बैंक कार्य कर रहे हैं। १३३३ प्राथमिक कृषि सहकारी साख समितियाँ और १४ शहरी ऋण समितियाँ जिला स्तरीय संस्थाओं से जुडी हुई हैं। प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों के माध्यम से सहकारी बैंकों द्वारा कृषकों को नगद एवं वस्तु ऋण उपलब्ध कराया जाता है। रासायनिक खाद, कीटनाशक औषधि, कृषि यंत्र, उन्नत बीज वितरण, कृषि उपज विपणन एवं शासन की अन्य जन कल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में इन समितियों द्वारा मुखय भूमिका निभाई जा रही है। प्रदेश में कुल १३३३ प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियां कार्यरत हैं, जिसमें ८५७ प्राथमिक कृषि सहकारी समितियां (पैक्स) एवं ४७६ वृहद् आदिवासी बहुउदेश्यीय समितिया (लम्पस) है सहकारिता विभाग का वर्ष २०००-०१ में ९.४३ करोड रुपये का बजट प्रावधान था, जो वर्ष २००८-०९ में बढ कर १४.३२ करोड रु. का हो गया है। संस्थाओं के सुदृढीकरण के लिए हमने वैद्यनाथन कमेटी की अनुच्चंसाएँ लागू करने हेतु २५ सितम्बर २००७ को राज्य सरकार, केन्द्र सरकार एवं नाबार्ड के साथ त्रिपक्षीय एम.ओ.यू. (समझौता ज्ञापन) पर हस्ताक्षर किये गये हैं। इसके क्रियान्वयन के लिए केन्द्र के आगामी कदम का इंतजार है।
आपके विचार से राज्य के आर्थिक विकास में सहकारिता क्षेत्र क्या भूमिका अदा कर सकता है?
आपको विदित ही है कि छत्तीसगढ़ का ४४ प्रतिच्चत हिस्सा जंगलों से घिरा है, जहां की आबादी मूलतः अपनी आजीविका के लिए वनोपज पर आश्रित है। इसी तरह राज्य की ८० फीसदी आबादी कृषि पर आश्रित है। इसके अलावा छोटे-छोटे पारंपरिक कार्य करने वाले भी अनेक समूह और समुदाय हैं जैसे च्चिल्पकार, मत्स्य पालक, बुनकर आदि। हमारा मानना है कि बडी पूंजी और विपणन सुविधाओं के अभाव में इन क्षेत्रों में विकास नहीं हो पाया। इसलिए हमारी सरकार ने ऐसे क्षेत्रों को सहकारिता क्षेत्र से जोडा है। मेरा मानना है कि इन वर्गों के लोग जब अपना परंपरागत व्यवसाय मिलजुल कर करेंगे तो अच्छा लाभार्जन कर सकेंगे। सरकार इन्हें प्रोत्साहित करेगी। हमने दस हजार से अधिक बुनकर समितियों का ८ करोड रुपए का कर्ज भी माफ किया है तथा हमारा प्रयास है कि इन समितियों से उत्पादित वस्तुओं की सरकारी संस्थाओं में खरीदी की जाए। इसके अलावा सरकारी तालाबों में मत्स्य पालन हेतु मछुआ सहकारी समितियों को प्राथमिकता दी जा रही है।
राज्य में सहकारिता क्षेत्र के विकास के लिए आपने क्या योजनाऐं और कार्यक्रम तैयार किए हैं?
जैसा कि मैंने पहले बताया है कि किन क्षेत्रों को सहकारिता से जोड़ना फायदेमंद हो सकता है। मैं आपको बताना चाहता हूं कि हमने तो छत्तीसगढ में पूरी सार्वजनिक वितरण प्रणाली का ही सहकारीकरण कर दिया है। राशन दुकानें निजी व्यक्तियों के हाथों से वापस लेकर महिला स्वसहायता समूहों, लैम्प्स, वन सुरक्षा समितियों जैसी सहकारी समितियों को सौंप दी हैं। वनोपज के बहुत बडे कारोबार में वन प्रबंधन समितियों के माध्यम से स्थानीय लोगों को सीधे भागीदार बनाया गया है। समर्थन मूल्य में धान खरीदी में प्राथमिक साख सहकारी समितियों के द्वारा बनाए गए १५५५ खरीदी केन्द्रों की भूमिका को महत्वपूर्ण बनाया गया है। इतना ही नहीं इस सम्पूर्ण प्रणाली को सूचना प्रौद्योगिकी से जोड दिया गया है। वन सुरक्षा से लेकर अस्पतालों के प्रबंधन तक, स्वसहायता समूहों के जरिए उत्पादन से लेकर विपणन तक, कृषि उत्पादन से लेकर सिंचाई के लिए पानी के वितरण तक। अनेक गतिविधियों में सहकारी क्षेत्र को जिम्मेदारी सौंपी गई है। इस दिशा में हमारी सोच और क्रियान्वयन की प्रगति लगातार जारी है।
अर्थव्यवस्था के अभी तक अछूते रहे क्षेत्रों में सहकारिता किस तरह महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है?
आपको यह जानकर आच्च्चर्य होगा कि प्राथमिक क्षेत्र ही नहीं, बहुत बड़ी पूंजी की आवश्यकता वाले क्षेत्रों में भी सहकारिता को दाखिल करा दिया है। छत्तीसगढ में एक हजार मेगावाट से ज्यादा क्षमता का बिजलीघर राज्य सरकार और इफ को जैसे देश के प्रतिष्ठित सहकारी संस्थान के संयुक्त प्रयास से स्थापित किया रहा है। ऐसे ही अनेक उत्पादक उपक्रमों से सहकारिता को जोडने का प्रयास हम कर रहे हैं।
क्या आप सोचते हैं कि पिछड़, अल्पसंखयक तथा अनुसूचित जनजाति वर्गों के आर्थिक विकास में सहकारिता आंदोलन की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है?
हमने देखा है कि जहाँ पूंजी की समस्या हो, सम्यक् संगठन और प्रच्चिक्षण की समस्या हो, यथोचित नेतृत्त्व की समस्या हो, ऐसे क्षेत्रों में एक दूसरे को साथ लेकर आगे बढने का रास्ता आसान होता है। हमने अपने राज्य की एक अभिनव योजना गरीबी उन्मूलन परियोजना 'नवा अंजोर' के अंतर्गत समहित समूहों का गठन किया। वनों की रक्षा, वनोपज के कारोबार और वन प्रबंधन के लिए वहां रहने वाले लोगों की समिति बनाई गई। इसी तरह स्व-सहायता समूहों के माध्यम से भी लोगों को संगठित किया गया। ऐसे समूहों में लाभान्वित होने वाले लोगों में से ज्यादातर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा पिछडा वर्ग के ही हैं। मैं साचता हूं कि सहकारिता आंदोलन इन वर्गों के लिए वरदान साबित हो सकता है।
क्या आपके राज्य में वैद्यनाथन समिति की सिफारिशे लागू कर दी गई हैं? यदि हाँ तो इससे राज्य को किस तरह का लाभ हुआ है। यदि नहीं लागू की गईं तो, इसके रास्ते की रुकावटें क्या हैं?
वैद्यनाथन कमेटी की अनुशंसा को लागू करने हेतु दिनांक २५.०९.२००७ को हमने केन्द्र सरकार एवं नाबार्ड के साथ एम.ओ.यू किया है। केन्द्र का अंश प्राप्त होते ही संबंधित सहकारी संस्थाओं व समितियों को समझौते के अनुसार राशि प्रदान कर दी जाएगी।
डा रमन सिंह, माननीय मुखयमंत्री जी के साथ बातचीत पर आधारित
हमारी ओर से शांतिमय तथा समृद्धशाली नववर्ष २००९ की शुभकामनाएं स्वीकार करें।
धन्यवाद! आपको और केन्द्रीय सहकारिता प्रकोष्ठ तथा इससे पूरे देश में जुडे सदस्यों को भी मेरी बधाई और शुभकामनाएं। नया वर्ष आप सबके मिशन को सफलता के नए शिखर पर पहुँचने का मार्ग प्रशस्त करे।
आज तक आपके राज्य में सहकारिता के क्षेत्र में क्या प्रगति हुई है?
छत्तीसगढ़ में हमने अल्पकालीन साख संरचना के त्रिस्तरीय ढांचे को मजबूत बनाया है। राज्य सहकारी बैंक (एपेक्स बैंक) तथा राज्य सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक राज्य स्तर पर कार्यच्चील हैं। जिला स्तर पर ६ जिला केन्द्रीय सहकारी बैंक तथा १२ जिला सहकारी कृषि तथा ग्रामीण विकास बैंक कार्य कर रहे हैं। १३३३ प्राथमिक कृषि सहकारी साख समितियाँ और १४ शहरी ऋण समितियाँ जिला स्तरीय संस्थाओं से जुडी हुई हैं। प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों के माध्यम से सहकारी बैंकों द्वारा कृषकों को नगद एवं वस्तु ऋण उपलब्ध कराया जाता है। रासायनिक खाद, कीटनाशक औषधि, कृषि यंत्र, उन्नत बीज वितरण, कृषि उपज विपणन एवं शासन की अन्य जन कल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में इन समितियों द्वारा मुखय भूमिका निभाई जा रही है। प्रदेश में कुल १३३३ प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियां कार्यरत हैं, जिसमें ८५७ प्राथमिक कृषि सहकारी समितियां (पैक्स) एवं ४७६ वृहद् आदिवासी बहुउदेश्यीय समितिया (लम्पस) है सहकारिता विभाग का वर्ष २०००-०१ में ९.४३ करोड रुपये का बजट प्रावधान था, जो वर्ष २००८-०९ में बढ कर १४.३२ करोड रु. का हो गया है। संस्थाओं के सुदृढीकरण के लिए हमने वैद्यनाथन कमेटी की अनुच्चंसाएँ लागू करने हेतु २५ सितम्बर २००७ को राज्य सरकार, केन्द्र सरकार एवं नाबार्ड के साथ त्रिपक्षीय एम.ओ.यू. (समझौता ज्ञापन) पर हस्ताक्षर किये गये हैं। इसके क्रियान्वयन के लिए केन्द्र के आगामी कदम का इंतजार है।
आपके विचार से राज्य के आर्थिक विकास में सहकारिता क्षेत्र क्या भूमिका अदा कर सकता है?
आपको विदित ही है कि छत्तीसगढ़ का ४४ प्रतिच्चत हिस्सा जंगलों से घिरा है, जहां की आबादी मूलतः अपनी आजीविका के लिए वनोपज पर आश्रित है। इसी तरह राज्य की ८० फीसदी आबादी कृषि पर आश्रित है। इसके अलावा छोटे-छोटे पारंपरिक कार्य करने वाले भी अनेक समूह और समुदाय हैं जैसे च्चिल्पकार, मत्स्य पालक, बुनकर आदि। हमारा मानना है कि बडी पूंजी और विपणन सुविधाओं के अभाव में इन क्षेत्रों में विकास नहीं हो पाया। इसलिए हमारी सरकार ने ऐसे क्षेत्रों को सहकारिता क्षेत्र से जोडा है। मेरा मानना है कि इन वर्गों के लोग जब अपना परंपरागत व्यवसाय मिलजुल कर करेंगे तो अच्छा लाभार्जन कर सकेंगे। सरकार इन्हें प्रोत्साहित करेगी। हमने दस हजार से अधिक बुनकर समितियों का ८ करोड रुपए का कर्ज भी माफ किया है तथा हमारा प्रयास है कि इन समितियों से उत्पादित वस्तुओं की सरकारी संस्थाओं में खरीदी की जाए। इसके अलावा सरकारी तालाबों में मत्स्य पालन हेतु मछुआ सहकारी समितियों को प्राथमिकता दी जा रही है।
राज्य में सहकारिता क्षेत्र के विकास के लिए आपने क्या योजनाऐं और कार्यक्रम तैयार किए हैं?
जैसा कि मैंने पहले बताया है कि किन क्षेत्रों को सहकारिता से जोड़ना फायदेमंद हो सकता है। मैं आपको बताना चाहता हूं कि हमने तो छत्तीसगढ में पूरी सार्वजनिक वितरण प्रणाली का ही सहकारीकरण कर दिया है। राशन दुकानें निजी व्यक्तियों के हाथों से वापस लेकर महिला स्वसहायता समूहों, लैम्प्स, वन सुरक्षा समितियों जैसी सहकारी समितियों को सौंप दी हैं। वनोपज के बहुत बडे कारोबार में वन प्रबंधन समितियों के माध्यम से स्थानीय लोगों को सीधे भागीदार बनाया गया है। समर्थन मूल्य में धान खरीदी में प्राथमिक साख सहकारी समितियों के द्वारा बनाए गए १५५५ खरीदी केन्द्रों की भूमिका को महत्वपूर्ण बनाया गया है। इतना ही नहीं इस सम्पूर्ण प्रणाली को सूचना प्रौद्योगिकी से जोड दिया गया है। वन सुरक्षा से लेकर अस्पतालों के प्रबंधन तक, स्वसहायता समूहों के जरिए उत्पादन से लेकर विपणन तक, कृषि उत्पादन से लेकर सिंचाई के लिए पानी के वितरण तक। अनेक गतिविधियों में सहकारी क्षेत्र को जिम्मेदारी सौंपी गई है। इस दिशा में हमारी सोच और क्रियान्वयन की प्रगति लगातार जारी है।
अर्थव्यवस्था के अभी तक अछूते रहे क्षेत्रों में सहकारिता किस तरह महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है?
आपको यह जानकर आच्च्चर्य होगा कि प्राथमिक क्षेत्र ही नहीं, बहुत बड़ी पूंजी की आवश्यकता वाले क्षेत्रों में भी सहकारिता को दाखिल करा दिया है। छत्तीसगढ में एक हजार मेगावाट से ज्यादा क्षमता का बिजलीघर राज्य सरकार और इफ को जैसे देश के प्रतिष्ठित सहकारी संस्थान के संयुक्त प्रयास से स्थापित किया रहा है। ऐसे ही अनेक उत्पादक उपक्रमों से सहकारिता को जोडने का प्रयास हम कर रहे हैं।
क्या आप सोचते हैं कि पिछड़, अल्पसंखयक तथा अनुसूचित जनजाति वर्गों के आर्थिक विकास में सहकारिता आंदोलन की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है?
हमने देखा है कि जहाँ पूंजी की समस्या हो, सम्यक् संगठन और प्रच्चिक्षण की समस्या हो, यथोचित नेतृत्त्व की समस्या हो, ऐसे क्षेत्रों में एक दूसरे को साथ लेकर आगे बढने का रास्ता आसान होता है। हमने अपने राज्य की एक अभिनव योजना गरीबी उन्मूलन परियोजना 'नवा अंजोर' के अंतर्गत समहित समूहों का गठन किया। वनों की रक्षा, वनोपज के कारोबार और वन प्रबंधन के लिए वहां रहने वाले लोगों की समिति बनाई गई। इसी तरह स्व-सहायता समूहों के माध्यम से भी लोगों को संगठित किया गया। ऐसे समूहों में लाभान्वित होने वाले लोगों में से ज्यादातर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा पिछडा वर्ग के ही हैं। मैं साचता हूं कि सहकारिता आंदोलन इन वर्गों के लिए वरदान साबित हो सकता है।
क्या आपके राज्य में वैद्यनाथन समिति की सिफारिशे लागू कर दी गई हैं? यदि हाँ तो इससे राज्य को किस तरह का लाभ हुआ है। यदि नहीं लागू की गईं तो, इसके रास्ते की रुकावटें क्या हैं?
वैद्यनाथन कमेटी की अनुशंसा को लागू करने हेतु दिनांक २५.०९.२००७ को हमने केन्द्र सरकार एवं नाबार्ड के साथ एम.ओ.यू किया है। केन्द्र का अंश प्राप्त होते ही संबंधित सहकारी संस्थाओं व समितियों को समझौते के अनुसार राशि प्रदान कर दी जाएगी।
सहकारिता क्षेत्र को ''टेकन फार ग्रांटेड'' लेना बंद करना होगा
सहकारिता क्षेत्र को ''टेकन फार ग्रांटेड'' लेना बंद करना होगा
सहकारी क्षेत्र को ''टेकन फार ग्रांटेड'' लेना बंद करना होगा। दरअसल सहकारिता वह माध्यम है जिससे हम वास्तविक रूप में गरीब को, किसान को मदद पहुंचा सकते हैं उनका आर्थिक विकास कर सकते हैं। पिछले पचास-साठ सालों में हम निरंतर जिन वर्गों की चिन्ता करते रहे वे आज भी उसी स्थान पर हैं जहां वे थे। भारत में किसान, गरीब और वह वर्ग जो हमारे विकास के एजेंडे से नदारद था उसे समेटने के लिए सहकारिता आंदोलन की शुरूआत हुई, पर वह अपेक्षित सफलता हमें नहीं मिली जो मिलनी थी। कारण वही, सहकारिता जिसे सरकार के विशेष ध्यान की आवश्यकता थी, उससे वह वंचित रहा। फिर वह कुछ ऐसे लोगों का माध्यम बन गया जिन्होने उसे अपने सत्ता और शक्ति का हथियार बनाया। मध्य प्रदेश इसका प्रत्यक्ष उदाहरण रहा है। जहां एक ही व्यक्ति विधायक और मंत्री रहते हुए बारह वर्षो तक सहकारी शीर्ष का अध्यक्ष बना रहा। एकाधिकार के चलते सहकारिता आंदोलन जड़ता का शिकार हो गया। और जहां से हम चले थे वह सब वहीं रहा और उसे चलाने वाले लोग प्रगति के पायदान पर शिखर तक पहुंच गये।
सहकारिता को अगर वास्तव में पंक्ति में खड़े अंतिक व्यक्ति के विकास का माध्यम बनाना है उसे देश की अर्थव्यवस्था की रीढ कृषि को संरक्षित करना है तो हमें उसे राजनीति तथा निज स्वार्थों से मुक्त कर ऐसे समर्पित लोगों के हाथों में सौंपना होगा जिनकी नीयत और नीति दोनो में गरीब व्यक्ति और एक सीमांत लघु कृषक के कल्याण की भावना समाहित हो। यह सब एकदम से नहीं होगा। लेकिन कुछ राष्ट्रवादी सोच के लोगों द्वारा इसकी एक सुनियोजित नीति बनानी होगी तभी हम युग-दृष्टा दीनदयाल जी उपाध्याय की सोच के अनुरूप समाज के सबसे नीचे, सबसे अंतिम व्यक्ति की मदद कर पाने का सपना पूरा कर सकते हैं।
समय के साथ सहकारिता क्षेत्र के सामने चुनौतियाँ और बढ़ गई हैं। यह चुनौती इसलिए भी गंभीर है क्योंकि हम निचले स्तर तक सहकारिता की जडों को मजबूत नहीं बना पाए हैं। सहकार भावना तो हमारी पुरातन कालीन संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा है। आज जरूरत इस बात की है कि हम संस्कृति के इस हिस्से को एक संगठित रूप प्रदान करें। गाँव-गाँव में सहकारिता से लोगों को जोडें। सहकारिता की गतिविधियाँ लोगो की आय बढाने और उनके आर्थिक उत्थान का माध्यम बनें, इस दिशा में सार्थक प्रयास करें। इसके लिए हमें जमीनी तौर पर एक ऐसी रणनीति तैयार करनी होगी जो हर स्थिति का मुकाबला करने में सक्षम हो सके। विश्व आज जिस आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा है ऐसी स्थिति में सहकारिता हमें बहुत याद आती हैं क्योंकि यही एक वह जरिया है जो कभी भी कैसी भी मंदी के दौर में लोगों के आर्थिक जीवन की रक्षा कर सकती है। इसका कारण सिर्फ एक ही है कि सहकारिता जमीन से जुड़ी उस व्यवस्था से संबद्ध होती है जिसके हाथों में श्रम हैं, ऊर्जा है और जज्बा है। जरूरत सिर्फ उसे एक दिशा और दृष्टि देने की है। भारत जैसे कृषि प्रधान और ग्राम-आधारित व्यवस्था में सहकारिता एक सही और सशक्त हथियार है जो देश और देश के लोगों की आर्थिक उन्नति का माध्यम बन सकता है। हमारे सहकारिता विकास के एजेंडे में प्राथमिकता इससे जुड़ी सहकारी समितियों और शीर्ष सहकारी संस्थाओं को सत्ता प्रदान करने की होनी चाहिए। प्रो० वैघनाथन कमेटी की सिफारिश उनकी मदद का पैकेज निश्चित ही ऐसे समय में सहकारी संस्थाओं के लिए संजीवनी बना है जबकि वह मरणासन्न स्थिति में पहुंच रही थी पर प्रो० वैघनाथन कमेटी के पैजेज के बाद सहकारी संस्थाएं जीवित होकर अगो बढे यह हमारे सामने एक चुनौती है। अगर पूर्व के हालात नहीं बदले तो निश्चित ही सहकारी आंदोलन को जानलेवा आघात सहना होगा। सरकारी मदद और गरीब किसान की अपनी जो भी जिस स्तर की पूंजी हो उससे हमें सहकारिता आंदोलन को जोड़ना होगा। हमारा प्रयास होना चाहिए कि बाद में सरकारी मदद नगण्य हो और सहकारिता आंदोलन सिर्फ गरीब और किसान की पूंजी पर ही खडा होकर स्थापित हो।
मध्य प्रदेश में सहकारिता आंदोलन को चास सालों बाद वास्तविक अर्थो में एक नई दिशा मिली है। वर्ष २००३ में राज्य में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद सहकारिता क्षेत्र को सर्वोच्च प्राथमिकता पर रखा गया। जाहिर है इसके सुखद, परिणाम आने ही थे। सहकारिता आंदोलन को राजनीति, एकाधिकारवाद और भ्रष्टाचार से मुक्त कराने के लिए ठोस कदम उठाए गए। पहली बार यह तय हुआ कि अब कोई भी विधायक, सांसद और स्थानीय निकायों का पदाधिकारी सहकारी संस्थाओं का पदाधिकारी नहीं बनेगा। इससे सहकारिता को एक ही झटके में राजनीति का अखाड़ा बनने से रोक दिया गया जो इसकी प्रगति में सबसे बडा रोडा था। दूसरा एक महत्वपूर्ण निर्णय मध्य प्रदेश में सरकार ने लिया, वह था कि सहकारी संस्थाओं का कोई भी पदाधिकारी दो कार्यकाल से अधिक नहीं रह सकेगा। इससे सहकारिता के क्षेत्र को एकाधिकारवाद से मुक्ति मिली। इन दोनों फैसलों को सहकारिता अधिनियम का हिस्सा बनाया गया। पहली बार मध्य प्रदेश में सहकारिता के क्षेत्र में स्वच्छ और पारदर्शी चुनाव हुए। सहकारिता के क्षेत्र में समर्पित हाथा्रे को इसकी बागडोर सौंपी गई। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है कि चुनाव को लेकर निचली अदालस से लेकर उच्चतम अदालतों तक विरोधी पक्ष गया लेकिन वह सफल नहीं हो सके। भाजपा सरकार के इरादों और मंशा को देखते हुए सहकारिता क्षेत्र में सुख परिणाम आने ही थे। आज प्रदेश की कई शीर्घ संस्थाऐं वर्षो के घाटे से उबरकर लाभ का व्यवसाय कर रही है। प्रदेश की ३४ में से ३३ बैंक लाभ कमा रही हैं। ये वो संकेत हैं जो सहकारिता आंदोलन को प्रदेश में सुदृढ़ आधार प्रदान कर रहे है॥ सहकारिता आंदोलन को पुनर्जीवित कर स्थापित करने की दृढ इच्छाशक्ति के चलते ही मध्य प्रदेश पूरे देश में वह पहला राज्य था जिसनें प्रो. वैघपनाथन कमेटी की सिफारिशों को मंजूर किया, उसके अनुरूप अपने एक्ट में संशोधन किया। भारत सरकार के साथ एम.ओ.यू. किया। आज प्रदेश ने इस पैकेज के तहत ७०० करोड रूपये की सहायता प्राप्त कर सहकारी समितियों तक यह राशि पहंचा दी है। इससे निचली सहकारी संस्थाओं में आर्थिक सुदृढता आई है।
एक सहकारी शीर्ष संस्था के अध्यक्ष होने के नाते मेरी सोच है कि अब सहकारी बैंकों और प्राथमिक समितियों के ऋण व्यवसाय में वृद्धि हेतु अत्यधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। हमारा अधिकांश कृष् ऋण फसल ऋणों तक ही सीमित हो गया है। हमें अन्य योजनाबद्ध प्रयोजनों के लिए कृषि सम्बद्ध गतिविधियों जैसे फार्म मशीनीकरण, भूमि विकास, वानिकी-उद्यानिकी डयेरी, पोल्ट्री आदि के लिए भी ऋण प्रदाय को प्रोत्साहित करना होगा। व्यावसायिक बैंकों ने कृषि ऋणों के प्रदाय में सहकारी बैंकों के समक्ष कड़ी चुनौती उपस्थित कर दी है। हमें योजनाबद्ध तरीके से न केवल इस चुनौती का मुकाबला करना होगा बल्कि अकृषि क्षेत्रों जैसे आवास, वाहन उपभोक्त सामगी, शिक्षा-ऋण, व्यापारियों को साख सीमाएं, कुटीर एवं लघु उद्यमियों को ऋण सुविधाएं आदि देने पर भी विशेष ध्यान देना होगा।
जरूरी है कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सहकारी बैंकों को अपने कृषक सदस्यों की ऋण आवश्यकताओं के साथ-साथ अन्य वित्तीय सेवाएं उपलब्ध कराने का भी प्रयास करना चाहिए। अप्रेक्स बैंक द्वारा सहकारी बैंकों एवं समितियों के माध्यम से जीवन बीमा और सामान्य बीमा का व्यवसाय प्रारंभ किया गया है।
इन योजनाओं के क्रियान्वयन से हम न केवल अपने सदस्यों को लाभान्वित कर सकते हैं वरन् इससे हमारी संस्थाओं का लार्भाजन भी बढ़ सकता है। वर्तमान बचत बैंकों को सक्रिय करने के साथ-साथ हमें शेष समितियों में भी बचत बैंक स्थापित करते हुए ग्रामीण क्षेत्रों में बचत के अधिकाधिक संकलन की भी कार्यवाही करनी होगी। इससे हमारी स्वयं की निधियां बढ़ेंगी और निधियों की लागत भी कम हो सकेगी। इसके साथ ही स्वयं सहायता मूहों के गठन और उनके वित्त पोषण की दिशा में भी ठोस कदम उठाये जाने की जरूरत है ताकि समाज के कमजोर वर्गो और विशेषतः महिलाओं को सहकारी आंदोलन से जोडा जाकर उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत बनाया जा सके। वर्तमान बैंकिंग परिदृश्य में हमें आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करते हुए कम्प्यूटरीकरण की दिशा में भी एक प्रभावी पहल करना है। मुझे आशा है कि नाबार्ड के मार्गदर्शन और सहयोग से हम निकट भविष्य में ही प्राथमिक समितियों के स्तर तक कम्प्यूटरीकरण का लक्ष्य हासिल कर सकेगें। सहकारी बैंकों के सुप्रबंधन के लिए उनमें कुशल और दक्ष मानव संसाधन का विकास एक महती आवश्यकता है। इसके लिए व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त योग्य युवाओं की नियुक्ति के अतिरिक्त वर्तमान अधिकारियों एवं कर्मचारियों के लिए उपयुक्त प्रशिक्षण संस्थानों में प्रशिक्षित कराया जाए। इस कार्य को और तेजी प्रदान की जानी चाहिए।
सहकारिता आंदोलन का भविष्य सुनहरा हो, यह हम सबको सपना है। मध्य प्रदेश में इस सपने को अभी तक जो भी साकार रूप मिला है उसका श्रेय हमारी प्रदेश के यशस्वी मुखयमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान को है। सहकारिता के प्रति उनकी सकारात्मक सोच, समर्थन और सहयोग से ही हमने अपना एक लक्ष्य, एक सूत्र वाक्य बनाया है 'सशक्त सहकारिता, समृद्ध मध्य प्रदेश' हम अपने इस लक्ष्य को पाने के लिए वचनबद्ध है।
सहकारी क्षेत्र को ''टेकन फार ग्रांटेड'' लेना बंद करना होगा। दरअसल सहकारिता वह माध्यम है जिससे हम वास्तविक रूप में गरीब को, किसान को मदद पहुंचा सकते हैं उनका आर्थिक विकास कर सकते हैं। पिछले पचास-साठ सालों में हम निरंतर जिन वर्गों की चिन्ता करते रहे वे आज भी उसी स्थान पर हैं जहां वे थे। भारत में किसान, गरीब और वह वर्ग जो हमारे विकास के एजेंडे से नदारद था उसे समेटने के लिए सहकारिता आंदोलन की शुरूआत हुई, पर वह अपेक्षित सफलता हमें नहीं मिली जो मिलनी थी। कारण वही, सहकारिता जिसे सरकार के विशेष ध्यान की आवश्यकता थी, उससे वह वंचित रहा। फिर वह कुछ ऐसे लोगों का माध्यम बन गया जिन्होने उसे अपने सत्ता और शक्ति का हथियार बनाया। मध्य प्रदेश इसका प्रत्यक्ष उदाहरण रहा है। जहां एक ही व्यक्ति विधायक और मंत्री रहते हुए बारह वर्षो तक सहकारी शीर्ष का अध्यक्ष बना रहा। एकाधिकार के चलते सहकारिता आंदोलन जड़ता का शिकार हो गया। और जहां से हम चले थे वह सब वहीं रहा और उसे चलाने वाले लोग प्रगति के पायदान पर शिखर तक पहुंच गये।
सहकारिता को अगर वास्तव में पंक्ति में खड़े अंतिक व्यक्ति के विकास का माध्यम बनाना है उसे देश की अर्थव्यवस्था की रीढ कृषि को संरक्षित करना है तो हमें उसे राजनीति तथा निज स्वार्थों से मुक्त कर ऐसे समर्पित लोगों के हाथों में सौंपना होगा जिनकी नीयत और नीति दोनो में गरीब व्यक्ति और एक सीमांत लघु कृषक के कल्याण की भावना समाहित हो। यह सब एकदम से नहीं होगा। लेकिन कुछ राष्ट्रवादी सोच के लोगों द्वारा इसकी एक सुनियोजित नीति बनानी होगी तभी हम युग-दृष्टा दीनदयाल जी उपाध्याय की सोच के अनुरूप समाज के सबसे नीचे, सबसे अंतिम व्यक्ति की मदद कर पाने का सपना पूरा कर सकते हैं।
समय के साथ सहकारिता क्षेत्र के सामने चुनौतियाँ और बढ़ गई हैं। यह चुनौती इसलिए भी गंभीर है क्योंकि हम निचले स्तर तक सहकारिता की जडों को मजबूत नहीं बना पाए हैं। सहकार भावना तो हमारी पुरातन कालीन संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा है। आज जरूरत इस बात की है कि हम संस्कृति के इस हिस्से को एक संगठित रूप प्रदान करें। गाँव-गाँव में सहकारिता से लोगों को जोडें। सहकारिता की गतिविधियाँ लोगो की आय बढाने और उनके आर्थिक उत्थान का माध्यम बनें, इस दिशा में सार्थक प्रयास करें। इसके लिए हमें जमीनी तौर पर एक ऐसी रणनीति तैयार करनी होगी जो हर स्थिति का मुकाबला करने में सक्षम हो सके। विश्व आज जिस आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा है ऐसी स्थिति में सहकारिता हमें बहुत याद आती हैं क्योंकि यही एक वह जरिया है जो कभी भी कैसी भी मंदी के दौर में लोगों के आर्थिक जीवन की रक्षा कर सकती है। इसका कारण सिर्फ एक ही है कि सहकारिता जमीन से जुड़ी उस व्यवस्था से संबद्ध होती है जिसके हाथों में श्रम हैं, ऊर्जा है और जज्बा है। जरूरत सिर्फ उसे एक दिशा और दृष्टि देने की है। भारत जैसे कृषि प्रधान और ग्राम-आधारित व्यवस्था में सहकारिता एक सही और सशक्त हथियार है जो देश और देश के लोगों की आर्थिक उन्नति का माध्यम बन सकता है। हमारे सहकारिता विकास के एजेंडे में प्राथमिकता इससे जुड़ी सहकारी समितियों और शीर्ष सहकारी संस्थाओं को सत्ता प्रदान करने की होनी चाहिए। प्रो० वैघनाथन कमेटी की सिफारिश उनकी मदद का पैकेज निश्चित ही ऐसे समय में सहकारी संस्थाओं के लिए संजीवनी बना है जबकि वह मरणासन्न स्थिति में पहुंच रही थी पर प्रो० वैघनाथन कमेटी के पैजेज के बाद सहकारी संस्थाएं जीवित होकर अगो बढे यह हमारे सामने एक चुनौती है। अगर पूर्व के हालात नहीं बदले तो निश्चित ही सहकारी आंदोलन को जानलेवा आघात सहना होगा। सरकारी मदद और गरीब किसान की अपनी जो भी जिस स्तर की पूंजी हो उससे हमें सहकारिता आंदोलन को जोड़ना होगा। हमारा प्रयास होना चाहिए कि बाद में सरकारी मदद नगण्य हो और सहकारिता आंदोलन सिर्फ गरीब और किसान की पूंजी पर ही खडा होकर स्थापित हो।
मध्य प्रदेश में सहकारिता आंदोलन को चास सालों बाद वास्तविक अर्थो में एक नई दिशा मिली है। वर्ष २००३ में राज्य में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद सहकारिता क्षेत्र को सर्वोच्च प्राथमिकता पर रखा गया। जाहिर है इसके सुखद, परिणाम आने ही थे। सहकारिता आंदोलन को राजनीति, एकाधिकारवाद और भ्रष्टाचार से मुक्त कराने के लिए ठोस कदम उठाए गए। पहली बार यह तय हुआ कि अब कोई भी विधायक, सांसद और स्थानीय निकायों का पदाधिकारी सहकारी संस्थाओं का पदाधिकारी नहीं बनेगा। इससे सहकारिता को एक ही झटके में राजनीति का अखाड़ा बनने से रोक दिया गया जो इसकी प्रगति में सबसे बडा रोडा था। दूसरा एक महत्वपूर्ण निर्णय मध्य प्रदेश में सरकार ने लिया, वह था कि सहकारी संस्थाओं का कोई भी पदाधिकारी दो कार्यकाल से अधिक नहीं रह सकेगा। इससे सहकारिता के क्षेत्र को एकाधिकारवाद से मुक्ति मिली। इन दोनों फैसलों को सहकारिता अधिनियम का हिस्सा बनाया गया। पहली बार मध्य प्रदेश में सहकारिता के क्षेत्र में स्वच्छ और पारदर्शी चुनाव हुए। सहकारिता के क्षेत्र में समर्पित हाथा्रे को इसकी बागडोर सौंपी गई। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है कि चुनाव को लेकर निचली अदालस से लेकर उच्चतम अदालतों तक विरोधी पक्ष गया लेकिन वह सफल नहीं हो सके। भाजपा सरकार के इरादों और मंशा को देखते हुए सहकारिता क्षेत्र में सुख परिणाम आने ही थे। आज प्रदेश की कई शीर्घ संस्थाऐं वर्षो के घाटे से उबरकर लाभ का व्यवसाय कर रही है। प्रदेश की ३४ में से ३३ बैंक लाभ कमा रही हैं। ये वो संकेत हैं जो सहकारिता आंदोलन को प्रदेश में सुदृढ़ आधार प्रदान कर रहे है॥ सहकारिता आंदोलन को पुनर्जीवित कर स्थापित करने की दृढ इच्छाशक्ति के चलते ही मध्य प्रदेश पूरे देश में वह पहला राज्य था जिसनें प्रो. वैघपनाथन कमेटी की सिफारिशों को मंजूर किया, उसके अनुरूप अपने एक्ट में संशोधन किया। भारत सरकार के साथ एम.ओ.यू. किया। आज प्रदेश ने इस पैकेज के तहत ७०० करोड रूपये की सहायता प्राप्त कर सहकारी समितियों तक यह राशि पहंचा दी है। इससे निचली सहकारी संस्थाओं में आर्थिक सुदृढता आई है।
एक सहकारी शीर्ष संस्था के अध्यक्ष होने के नाते मेरी सोच है कि अब सहकारी बैंकों और प्राथमिक समितियों के ऋण व्यवसाय में वृद्धि हेतु अत्यधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। हमारा अधिकांश कृष् ऋण फसल ऋणों तक ही सीमित हो गया है। हमें अन्य योजनाबद्ध प्रयोजनों के लिए कृषि सम्बद्ध गतिविधियों जैसे फार्म मशीनीकरण, भूमि विकास, वानिकी-उद्यानिकी डयेरी, पोल्ट्री आदि के लिए भी ऋण प्रदाय को प्रोत्साहित करना होगा। व्यावसायिक बैंकों ने कृषि ऋणों के प्रदाय में सहकारी बैंकों के समक्ष कड़ी चुनौती उपस्थित कर दी है। हमें योजनाबद्ध तरीके से न केवल इस चुनौती का मुकाबला करना होगा बल्कि अकृषि क्षेत्रों जैसे आवास, वाहन उपभोक्त सामगी, शिक्षा-ऋण, व्यापारियों को साख सीमाएं, कुटीर एवं लघु उद्यमियों को ऋण सुविधाएं आदि देने पर भी विशेष ध्यान देना होगा।
जरूरी है कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सहकारी बैंकों को अपने कृषक सदस्यों की ऋण आवश्यकताओं के साथ-साथ अन्य वित्तीय सेवाएं उपलब्ध कराने का भी प्रयास करना चाहिए। अप्रेक्स बैंक द्वारा सहकारी बैंकों एवं समितियों के माध्यम से जीवन बीमा और सामान्य बीमा का व्यवसाय प्रारंभ किया गया है।
इन योजनाओं के क्रियान्वयन से हम न केवल अपने सदस्यों को लाभान्वित कर सकते हैं वरन् इससे हमारी संस्थाओं का लार्भाजन भी बढ़ सकता है। वर्तमान बचत बैंकों को सक्रिय करने के साथ-साथ हमें शेष समितियों में भी बचत बैंक स्थापित करते हुए ग्रामीण क्षेत्रों में बचत के अधिकाधिक संकलन की भी कार्यवाही करनी होगी। इससे हमारी स्वयं की निधियां बढ़ेंगी और निधियों की लागत भी कम हो सकेगी। इसके साथ ही स्वयं सहायता मूहों के गठन और उनके वित्त पोषण की दिशा में भी ठोस कदम उठाये जाने की जरूरत है ताकि समाज के कमजोर वर्गो और विशेषतः महिलाओं को सहकारी आंदोलन से जोडा जाकर उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत बनाया जा सके। वर्तमान बैंकिंग परिदृश्य में हमें आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करते हुए कम्प्यूटरीकरण की दिशा में भी एक प्रभावी पहल करना है। मुझे आशा है कि नाबार्ड के मार्गदर्शन और सहयोग से हम निकट भविष्य में ही प्राथमिक समितियों के स्तर तक कम्प्यूटरीकरण का लक्ष्य हासिल कर सकेगें। सहकारी बैंकों के सुप्रबंधन के लिए उनमें कुशल और दक्ष मानव संसाधन का विकास एक महती आवश्यकता है। इसके लिए व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त योग्य युवाओं की नियुक्ति के अतिरिक्त वर्तमान अधिकारियों एवं कर्मचारियों के लिए उपयुक्त प्रशिक्षण संस्थानों में प्रशिक्षित कराया जाए। इस कार्य को और तेजी प्रदान की जानी चाहिए।
सहकारिता आंदोलन का भविष्य सुनहरा हो, यह हम सबको सपना है। मध्य प्रदेश में इस सपने को अभी तक जो भी साकार रूप मिला है उसका श्रेय हमारी प्रदेश के यशस्वी मुखयमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान को है। सहकारिता के प्रति उनकी सकारात्मक सोच, समर्थन और सहयोग से ही हमने अपना एक लक्ष्य, एक सूत्र वाक्य बनाया है 'सशक्त सहकारिता, समृद्ध मध्य प्रदेश' हम अपने इस लक्ष्य को पाने के लिए वचनबद्ध है।
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