गुजरात में सहकारिता
गुजरात सामाजिक एवं आर्थिक मामले में देच्च का एक अग्रणी राज्य है। इस राज्य का सहकारिता आन्दोलन पूरे देश में जाना जाता है। यहां दुग्ध, शक्कर एवं विपणन सहकारितायें बहुत मजबूत स्थिति में हैं।
यहाँ ६२३४३ सहकारी संस्थायें, सहकारी समिति अधिनियम १९६१ के अन्तर्गत पंजीकृत हैं जिनके सदस्यों की संखया १.२५ करोड़ है। इस प्रकार औसत ५ में से १ व्यक्ति सहकारी संस्था का सदस्य है।
गुजरात अमूल जैसी दूध की सहकारी संस्थाओं के कारण अधिक जाना जाता है। यहां १६ दुग्ध जिला यूनियन तथा १२४०२ प्राथमिक दुग्ध सहकारी एवं दुग्ध खरीदी केन्द्र हैं और औसतन प्रतिदिन ६.७ लाख किलो दुग्ध का उत्पादन होता है। 'स्वेत क्रान्ति' का बहुत बडा प्रभाव ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर है। वास्तव में गुजरात में आदिवासी समुदाय दुग्ध सहकारी संस्थाओं, सहकारी द्राक्कर कारखानों एवं लघु सिंचाई से अधिक जुडा है। आदिवासी एवं अनुसूचित जाति समुदाय के लिए योजनाओं में अलग से विशेष व्यवस्था है। दुग्ध सहकारिता क्षेत्र का कुल व्यवसाय प्रतिवर्ष ४ हजार करोड से भी अधिक है।
यहाँ सहकारी क्षेत्र का गरीब किसानों, छोटे व्यवसायियों एवं व्यापारियों की आर्थिक उन्नति में विशेष योगदान है। यहाँ १८ केन्द्रीय सहकारी बैंक कार्यरत हैं तथा प्राथमिक समितियों द्वारा किसानों को कर्ज दिया जाता है। २६० शहरी बैंक गैर कृषि क्षेत्र में कर्ज देते हैं।
यहाँ सहकारी संस्थाओं को लोकतान्त्रिक एवं व्यावसायिक पद्धति से बिना शासन के हस्तक्षेप के आगे बढ़ने का अवसर दिया जाता है। शासन केवल शेयर कैपिटल, प्रोत्साहन बोनस, सहभागिता, कृषि जोखिम एवं हीरा व्यवसाय से
सम्बन्धित किसानों एवं व्यवसायियों विशेषकर अनुसूचित जाति, जनजाति समुदाय को सदस्य बनने में सहायता करती है। हमने सहकारिता के क्षेत्र में बहुत सारी योजनायें तैयार कर लागू की हैं, जिनमें प्रमुख रूप से सहकारी विपणन, भण्डारण तथा वेयर हाउसिंग सम्मिलित है।
वैद्यनाथन कमेटी की अनुशंसायें राज्य में लागू की गई हैं। राज्य सरकार तथा नाबार्ड के आपसी समझौते के प्रारूप पर भी हस्ताक्षर हो चुके हैं। गुजरात सहकारी समिति अधिनियम १९६१ में भी आवश्यकतानुसार २३ जनवरी २००८ को संशोधन किया जा चुका है। राज्य को १२१९ करोड़ रूपये का जो पैकेज मिलने वाला है उसमें से ३५३ करोड रूपये की प्रथम किश्त मार्च २००९ के अन्त तक अवमुक्त किया जा चुका है।
जनसंखया की दृष्टि से एक तिहाई से अधिक गुजरात के क्षेत्र जैसे चिखली डांग, सूरत, भरूच, पंचमहाल, बडौदा एवं वलसाड जिले आदिवासी, वनवासी एवं मजदूर बाहुल्य हैं। सहकारी संस्थाओं की एक बड़ी संखया इन क्षेत्रों में परदे वाली बग्गी, वन एवं वनरोपण, वन सामग्री के संग्रहण तथा लघु वनोपोज की बिक्री में संलग्न हैं। इन्होंने आदिवासीजनों तथा उनके परिवारों की अच्छी सहायता किया है जिससे उनके जीवन यापन में सुधार हुआ है। ये समितियां उनके सामाजिक एवं आर्थिक उत्थान में कार्यरत हैं। इनका प्रयास है कि शिक्क्षा, स्वास्थ्य सेवा, पेय जल एवं समाज कल्याण कार्यों में उनकी सहायता करें। इन समितियों के संघ (Federation) इनको सहायता एवं मार्ग दर्च्चन देते रहते हैं।
गुजरात का समुद्रतटीय क्षेत्र १६६३ किलो मीटर है। प्रदेश के भीतरी भाग एवं समुद्री मछेरों की ४९१ सहकारी समितियों के ५५ हजार सदस्य हैं। मछेरों को फिशिंग गियर (fishing gear) की सुविधा एवं मछेरा उद्योग के विकास के लिए एक राज्यस्तरीय संघ एवं दो केन्द्रीय स्तर की सहकारी संस्थायें कार्यरत हैं। इन्होंने मछेरा समुदाय के सामाजिक एवं आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
१७६६ लिफ्ट सिंचाई सहकारी संस्थायें जो कि कृद्गिा या सिंचाई सम्बन्धित व्यक्तियों द्वारा संगठित हैं, बहुत अच्छी प्रकार से कार्य कर रही हैं। ट्यूबवैल, नहरों, बिजली पम्प मोटरों एवं तेल ऊर्जा से चलित पम्प मोटरों द्वारा सिंचाई के साधन प्रदान किये जा रहे हैं। स्वयंसेवी संस्थायें सद्गुरू सेवा संघ एवं आगाखान ग्रामीण प्रोत्साहन समिति इन कार्यक्रमों के पंजीकरण एवं समितियों के विकास में लगी हैं।
बाइब्रेंट गुजरात में सहकारिता समुदायिक विकास एवं सामाजिक परिवर्तन के लिए एक आर्दश माध्यम है।
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