Rural Tibetans Benefiting from New Rural Cooperative Medical Care System
2011/11/27
Tashi Chodron, a 62-year-old Tibetan villager, takes her medical care account book to see a doctor at the clinic of Chungga Village, Chosam County, south Tibet's Lhoka Prefecture on Nov. 23, 2011. [Photo/Xinhua]
Since the implementation of the rural cooperative medical care system, authorities have constantly intensified their efforts in medical care and increased subsidies year by year in Tibet Autonomous Region, greatly benefiting rural Tibetans.
The rural cooperative medical care system lightens rural Tibetans' burden of getting medical care and meets their need of treating common diseases.
They are able to get medical treatment for minor illnesses within the village, major illness within the county, and serious illness within the prefecture.
The government-sponsored system is based on free medical treatment. Villagers can join it out of their own will. In the system, the expenses of serious diseases can get comprehensive arrangement and receive medical rescue.
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Thursday, December 1, 2011
Friday, November 18, 2011
Scam In NAFED
Scam In NAFED
The year 2011 will be known in history of India as a year in which largest scams were brought into light and so called VIPs were sent behind the bars. By the end of this year indiancooperative.com published a news on 4th Nov.2011 in respect of recovery of Rs.4000 Crore scam in NAFED. This biggest apex cooperative organization is established to strengthen agriculture produce marketing cooperative organizations. Simply we may understand that directly or indirectly, NAFED is meant to provide benefit to farmers who cover nearly 65% population of our country. This is very shameful that such people are elected or appointed on the top positions from where they materialize there wrongful motives. The responsibility lies with whom? with electoral body or system or policies of the government? I say, lackness of monitoring during elections. The right to hold election under Multistate Cooperative Societies Act 2002 is given to the organization to maintain autonomy of it. But department monitors it. The system is proper. There is no need to change it but it is required to monitor the things in proper way. The Secretary and Registrar both should be appreciated for the action they took for recovery. CBI investigation is also going on.
India is a country where farmers suicide in a large number. NAFED could play a vital role to solve the problems of Indian farmers. There are shortage of werehouses in rural area. Farmers, in large, are incapable to hold there agriculture produce due to shortage of funds and covered area to place it. NAFED could help Primary Agriculture Cooperative Credit Societies (PACS) and Large Scale Multipurpose Cooperative Societies(LAMPS) to build werehouses by which threre member farmers could be served. NAFED is failed in procurement of paddy and wheat crops not due to shortage of funds but due to lackness of will to uplift farmer’s economic status. Honest person with a zeal to serve the nation should be elected or appointed for such posts. This should be monitored by the government as well as electorate.
The year 2011 will be known in history of India as a year in which largest scams were brought into light and so called VIPs were sent behind the bars. By the end of this year indiancooperative.com published a news on 4th Nov.2011 in respect of recovery of Rs.4000 Crore scam in NAFED. This biggest apex cooperative organization is established to strengthen agriculture produce marketing cooperative organizations. Simply we may understand that directly or indirectly, NAFED is meant to provide benefit to farmers who cover nearly 65% population of our country. This is very shameful that such people are elected or appointed on the top positions from where they materialize there wrongful motives. The responsibility lies with whom? with electoral body or system or policies of the government? I say, lackness of monitoring during elections. The right to hold election under Multistate Cooperative Societies Act 2002 is given to the organization to maintain autonomy of it. But department monitors it. The system is proper. There is no need to change it but it is required to monitor the things in proper way. The Secretary and Registrar both should be appreciated for the action they took for recovery. CBI investigation is also going on.
India is a country where farmers suicide in a large number. NAFED could play a vital role to solve the problems of Indian farmers. There are shortage of werehouses in rural area. Farmers, in large, are incapable to hold there agriculture produce due to shortage of funds and covered area to place it. NAFED could help Primary Agriculture Cooperative Credit Societies (PACS) and Large Scale Multipurpose Cooperative Societies(LAMPS) to build werehouses by which threre member farmers could be served. NAFED is failed in procurement of paddy and wheat crops not due to shortage of funds but due to lackness of will to uplift farmer’s economic status. Honest person with a zeal to serve the nation should be elected or appointed for such posts. This should be monitored by the government as well as electorate.
Monday, July 25, 2011
स्वदेशी एवं सहकारिता
स्वदेशी एवं सहकारिता
महात्मा गाँधी के राजनैतिक विचारों में सहकार एवं स्वदेशी का विचार काफी महत्वपूर्ण है। वे इस स्वदेशी विचार का उपयोग जीवन के हर पक्ष में करते रहे, केवल सामाजिक तथा राजनैतिक पक्ष में ही नहीं बल्कि आर्थिक पक्ष में भी। वास्तव में भारत की आर्थिक उन्नति के लिये दृष्टि का स्वावलम्बी बनना उन्हें आवश्यक प्रतीत होता रहा जो केवल स्वदेशी वस्तुओं के भारत में उपयोग से ही सम्भव था। उन्होंने स्वदेशी को असहयोग आन्दोलन का एक अभिन्न अंग बनाया।
स्वराज्य, स्वदेशी तथा स्वावलम्बन समानार्थक हैं। स्वदेशी देश की आत्मा का धर्म है। स्वदेशी की शुद्ध सेवा करने से परदेसी की भी शुद्ध सेवा हो जाती है। सहकार इसका मूल है।
'स्वदेशी' शब्द का शाब्दिक अर्थ है 'अपने देश का'। गाँधी जी भी 'स्वदेशी' शब्द का यही मूलार्थ लेते हैं। उनके अनुसार इस शब्द का भावात्मक अर्थ भी है तथा निषेधात्मक भी। भावात्मक दृष्टि से यह एक राजनैतिक तथा आर्थिक सिद्धान्त प्रस्तुत करता है जो राष्ट्रीय आधार बन जाता है किन्तु निषेधात्मक रूप में यह अन्तर्राष्ट्रीयता का एक अर्थपूर्ण आधार प्रदर्शित करता है। गाँधी जी का कहना है कि 'स्वदेशी' धर्म का पालन करने वाला परदेसी से कभी द्वेष नहीं करेगा'।
गाँधी जी का स्वदेशी विचार सहकारिता से परिपूर्ण अहिंसा का ही एक रूप है। हमारा लक्ष्य गाँवों को संगठित करना व उन्हें अधिक सुखी, सम्पन्न व आरोग्यपूर्ण जीवन प्रदान करना है इसलिए प्रत्येक ग्रामवासी को इकाई व व्यक्ति दोनों रूपों में विकास के अवसर प्रदान करना है। इसके लिए सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक सभी क्षेत्रों में सहकारी प्रयत्नों की आवश्यकता है।
स्वावलम्बन के लिये स्थानीय योजना केवल स्थान विशेष के लिए लाभदायक न होकर, प्रमुख योजना में समन्वित होनी चाहिए। देश की कोई भी योजना यदि जनता की प्राथमिक आवश्कताओं की उपेक्षा करके बनायी जायेगी, मानव शक्ति का ध्यान नहीं रखा जायेगा या पूँजी के अभाव की उपेक्षा की जायेगी तब सफलता प्राप्त करना सम्भव नहीं है।
गाँधी जी की सहकार भावना से युक्त योजना आज के सन्दर्भ में प्रासंगिक तो है ही, साथ ही व्यवहारिक भी है क्योंकि यह वर्तमान अर्थपीड़ित विश्व को ऐसी आर्थिक व्यवस्था प्रदान करती है जो शान्ति, प्रजातन्त्र व मानवीय मूल्यों पर आधारित है। उनकी योजना सर्वाधिक प्रभावशाली, मौलिक व व्यवहार योग्य है। आज तक किसी भी देश में बेरोजगारी के निवारण के लिए ऐसी योजना नहीं बनाई गई है। गाँधी जी ग्रामद्योगों के विकास के लिए विज्ञान व तकनीक के प्रयोग के विरूद्व नहीं थे, यद्यपि वे स्वचालन के विरूद्ध थे क्योंकि भारत जैसे देश में उसकी कोई उपयोगिता नही है।
गाँधी जी मानव की गरिमा में विश्वास करते थे तथा प्रत्येक व्यक्ति को दिव्य मानते थे। गाँधी जी ने गाँवों का नगरों द्वारा शोषण देखा व गाँवों व नगरों के मध्य बढ़ती हुई खाई को भी देखा और समझा। अतः उन्होंने कहा कि ग्रामीण विकास सार्वधिक स्वभाविक विकास है। ग्राम पुनः निर्माण के लिए महत्वपूर्ण है। विकास नीचे से ही प्रारम्भ किया जाए, परन्तु इसका अर्थ यह नही है कि ऊपर से कुछ किया ही न जाए। विकास के लिए रचनात्मक कार्यक्रम जन-सहभागिता व सहकारिता के माध्यम से हो सकता है। भारत जैसे देश के वास्तविक नियोजन में सम्पूर्ण मानव शक्ति व कच्चे माल का ग्रामों में उचित वितरण करना है। कच्चे माल को विदेश में भेजना व तैयार माल ऊँची कीमत पर खरीदना हमारे लिए केवल आत्मघाती ही प्रमाणित होगा।
उनके अनुसार बहुउद्देश्यीय सहकारी समितियाँ ग्राम में उत्पादन, वितरण व विपणन के लिए कार्य करेंगी तथा बीज, खाद, कृषि उपकरण आदि उपलब्ध कराकर जनता व सरकार के मध्य कड़ी के रूप में कार्य करेंगी। सहकारी समितियाँ सभी ग्रामोद्योगों को प्रोत्साहित कर, ग्राम के पुनर्निर्माण का महत्वपूर्ण कार्य कर सकती हैं। केन्द्रीकृत उद्योग केवल वही होंगे, जिनके अलावा राष्ट्र के समक्ष कोई अन्य विकल्प नहीं होगा। इस प्रकार स्पष्ट है कि केवल गाँधीवादी नियोजन ही, जिसमें सहकारिता, स्वदेशी और स्वावलम्बन की प्रधानता हो ग्रामीण भारत के लिये एकमात्र विकल्प है।
सदी का समस्त जन-समाज और मानव संस्कृति निरे जंगलीपन की तरफ बहकर भंयकर संकटों में फँसने से बच जाए और २१वीं सदी में अच्छी तरह प्रवेश करे।
इस प्रकार गाँधी जी का विचार पूरी तरह व्यवहारिक है। गाँधी जी की व्यवस्था में बिचौलियों के लिए कोई स्थान नहीं है।
अतः संक्षेप में हम कह सकते हैं कि विद्यमान सभी व्यवस्थाओं - पूँजीवादी व साम्यवादी से गाँववासी जीवन शैली अधिक श्रेष्ठ है। यह श्रेष्ठ ही नहीं अपितु व्यावहारिक भी है। केवल इसके लिए पूरे हृदय से एकजुट होकर सहकार की भावना से प्रयत्न करने की आवश्यकता है।
महात्मा गाँधी के राजनैतिक विचारों में सहकार एवं स्वदेशी का विचार काफी महत्वपूर्ण है। वे इस स्वदेशी विचार का उपयोग जीवन के हर पक्ष में करते रहे, केवल सामाजिक तथा राजनैतिक पक्ष में ही नहीं बल्कि आर्थिक पक्ष में भी। वास्तव में भारत की आर्थिक उन्नति के लिये दृष्टि का स्वावलम्बी बनना उन्हें आवश्यक प्रतीत होता रहा जो केवल स्वदेशी वस्तुओं के भारत में उपयोग से ही सम्भव था। उन्होंने स्वदेशी को असहयोग आन्दोलन का एक अभिन्न अंग बनाया।
स्वराज्य, स्वदेशी तथा स्वावलम्बन समानार्थक हैं। स्वदेशी देश की आत्मा का धर्म है। स्वदेशी की शुद्ध सेवा करने से परदेसी की भी शुद्ध सेवा हो जाती है। सहकार इसका मूल है।
'स्वदेशी' शब्द का शाब्दिक अर्थ है 'अपने देश का'। गाँधी जी भी 'स्वदेशी' शब्द का यही मूलार्थ लेते हैं। उनके अनुसार इस शब्द का भावात्मक अर्थ भी है तथा निषेधात्मक भी। भावात्मक दृष्टि से यह एक राजनैतिक तथा आर्थिक सिद्धान्त प्रस्तुत करता है जो राष्ट्रीय आधार बन जाता है किन्तु निषेधात्मक रूप में यह अन्तर्राष्ट्रीयता का एक अर्थपूर्ण आधार प्रदर्शित करता है। गाँधी जी का कहना है कि 'स्वदेशी' धर्म का पालन करने वाला परदेसी से कभी द्वेष नहीं करेगा'।
गाँधी जी का स्वदेशी विचार सहकारिता से परिपूर्ण अहिंसा का ही एक रूप है। हमारा लक्ष्य गाँवों को संगठित करना व उन्हें अधिक सुखी, सम्पन्न व आरोग्यपूर्ण जीवन प्रदान करना है इसलिए प्रत्येक ग्रामवासी को इकाई व व्यक्ति दोनों रूपों में विकास के अवसर प्रदान करना है। इसके लिए सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक सभी क्षेत्रों में सहकारी प्रयत्नों की आवश्यकता है।
स्वावलम्बन के लिये स्थानीय योजना केवल स्थान विशेष के लिए लाभदायक न होकर, प्रमुख योजना में समन्वित होनी चाहिए। देश की कोई भी योजना यदि जनता की प्राथमिक आवश्कताओं की उपेक्षा करके बनायी जायेगी, मानव शक्ति का ध्यान नहीं रखा जायेगा या पूँजी के अभाव की उपेक्षा की जायेगी तब सफलता प्राप्त करना सम्भव नहीं है।
गाँधी जी की सहकार भावना से युक्त योजना आज के सन्दर्भ में प्रासंगिक तो है ही, साथ ही व्यवहारिक भी है क्योंकि यह वर्तमान अर्थपीड़ित विश्व को ऐसी आर्थिक व्यवस्था प्रदान करती है जो शान्ति, प्रजातन्त्र व मानवीय मूल्यों पर आधारित है। उनकी योजना सर्वाधिक प्रभावशाली, मौलिक व व्यवहार योग्य है। आज तक किसी भी देश में बेरोजगारी के निवारण के लिए ऐसी योजना नहीं बनाई गई है। गाँधी जी ग्रामद्योगों के विकास के लिए विज्ञान व तकनीक के प्रयोग के विरूद्व नहीं थे, यद्यपि वे स्वचालन के विरूद्ध थे क्योंकि भारत जैसे देश में उसकी कोई उपयोगिता नही है।
गाँधी जी मानव की गरिमा में विश्वास करते थे तथा प्रत्येक व्यक्ति को दिव्य मानते थे। गाँधी जी ने गाँवों का नगरों द्वारा शोषण देखा व गाँवों व नगरों के मध्य बढ़ती हुई खाई को भी देखा और समझा। अतः उन्होंने कहा कि ग्रामीण विकास सार्वधिक स्वभाविक विकास है। ग्राम पुनः निर्माण के लिए महत्वपूर्ण है। विकास नीचे से ही प्रारम्भ किया जाए, परन्तु इसका अर्थ यह नही है कि ऊपर से कुछ किया ही न जाए। विकास के लिए रचनात्मक कार्यक्रम जन-सहभागिता व सहकारिता के माध्यम से हो सकता है। भारत जैसे देश के वास्तविक नियोजन में सम्पूर्ण मानव शक्ति व कच्चे माल का ग्रामों में उचित वितरण करना है। कच्चे माल को विदेश में भेजना व तैयार माल ऊँची कीमत पर खरीदना हमारे लिए केवल आत्मघाती ही प्रमाणित होगा।
उनके अनुसार बहुउद्देश्यीय सहकारी समितियाँ ग्राम में उत्पादन, वितरण व विपणन के लिए कार्य करेंगी तथा बीज, खाद, कृषि उपकरण आदि उपलब्ध कराकर जनता व सरकार के मध्य कड़ी के रूप में कार्य करेंगी। सहकारी समितियाँ सभी ग्रामोद्योगों को प्रोत्साहित कर, ग्राम के पुनर्निर्माण का महत्वपूर्ण कार्य कर सकती हैं। केन्द्रीकृत उद्योग केवल वही होंगे, जिनके अलावा राष्ट्र के समक्ष कोई अन्य विकल्प नहीं होगा। इस प्रकार स्पष्ट है कि केवल गाँधीवादी नियोजन ही, जिसमें सहकारिता, स्वदेशी और स्वावलम्बन की प्रधानता हो ग्रामीण भारत के लिये एकमात्र विकल्प है।
सदी का समस्त जन-समाज और मानव संस्कृति निरे जंगलीपन की तरफ बहकर भंयकर संकटों में फँसने से बच जाए और २१वीं सदी में अच्छी तरह प्रवेश करे।
इस प्रकार गाँधी जी का विचार पूरी तरह व्यवहारिक है। गाँधी जी की व्यवस्था में बिचौलियों के लिए कोई स्थान नहीं है।
अतः संक्षेप में हम कह सकते हैं कि विद्यमान सभी व्यवस्थाओं - पूँजीवादी व साम्यवादी से गाँववासी जीवन शैली अधिक श्रेष्ठ है। यह श्रेष्ठ ही नहीं अपितु व्यावहारिक भी है। केवल इसके लिए पूरे हृदय से एकजुट होकर सहकार की भावना से प्रयत्न करने की आवश्यकता है।
Friday, July 22, 2011
किसान कल्याण समिति
खेतीबाड़ी उत्पन्न बाजार समिति, अहमदाबाद
खेतीबाड़ी उत्पन्न बाजार समिति, अहमदाबाद में प्रतिदिन लगभग २०००० क्विंटल शाकभाजी एवं पूरे वर्ष में लगभग ६९,५१,००० क्विंटल शाकभाजी क्रय-विक्रय के लिये आती है। मार्केट में जगह की कमीं पडने के कारण समिति द्वारा शहर के बाहर जेतलपुर में ८०००० वर्ग गज जमीन २८ करोड रूपये में लेकर भवन निर्माण किया गया। दिनांक २४.०६.२००६ को मुखयमंत्री श्री नरेन्द्र भाई मोदी के कर कमलों से मार्केट यार्ड का उद्घाटन किया गया। वर्तमान में यहां धान, गहूँ, अनाज का कार्य सफलतापूर्वक चल रहा है एवं इसके साथ शाकभाजी एवं अनाज का प्रोसेसिंग प्लांट से लेकर धुलाई, सफाई, लघु आकार देना एवं पैकिंग के साथ-साथ आधुनिक सुविधाओं से युक्त अन्य उपकरण लगाये गये हैं, जिसका कृषक एवं व्यापारी वर्ग पूर्ण लाभ ले रहा है।
इस मार्केट यार्ड को राज्य सरकार ने आदर्श बाजार स्वीकार कर २.५० करोड़ रूपयों की सब्सिडी दी है। संस्था इसके लिए राज्य सरकार का हार्दिक आभार व्यक्त करती है।
किसान कल्याण समिति सितम्बर २००४ में पदभार संभालने वाली नई बाजार समिति के नव निर्वाचित अध्यक्ष श्री बाबूभाई जमनादास पटेल ने अभूतपूर्व कार्य करके किसान कल्याण समिति की स्थापना की। जिसमें समिति ने मार्केट की बचत में से १०% रकम राशि को रिजर्व फण्ड बनाकर वार्षिक रूपया एक करोड तक किसान कल्याण फण्ड जमा किया। इस फण्ड द्वारा किसानों के लिये सामूहिक बीमा योजना, अकस्मात् मृत्यु सहायता, कृषि कार्य में वैज्ञानिक पद्धतियों के उपयोग के लिये सहायता, औजार सुधारने के लिए सहायता तथा अन्य कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं। इसके पश्चात् नेशनल हाईवे तथा स्टेट हाईवे पर दसक्रोई तालुका के ग्रामों में ग्राम पंचायतों द्वारा प्रस्ताव करके ४९% जनभागीदारी देने पर बाजार समिति द्वारा शेष ५१% की सहायता कर कलात्मक प्रवेश द्वार बनायेगी। यह कार्य लगभग १० ग्रॉम पंचायतों द्वारा पूरा किया जा चुका है।
भविष्य में A.P.M.C. द्वारा एक विश्व स्तर का मार्केट का निर्माण करने की योजना के लिये समिति ने ६ लाख वर्ग गज जमीन खरीदी है। उस जमीन पर सब्जी, आलू प्याज एवं फूल मार्केट, अलग-अलग क्षेत्रों में आधुनिक सुविधाओं से युक्त जैसे शीत भण्डार (कोल्ड स्टोरेज), मिनी थियेटर (लघु सिनेमाघर), शॉपिंग माल, स्वीमिंगपूल का निर्माण कर २५० से ३०० करोड़ तक व्यय करने की योजना है।
जय किसान-जय सहकार-जय विज्ञान
खेतीबाड़ी उत्पन्न बाजार समिति, अहमदाबाद में प्रतिदिन लगभग २०००० क्विंटल शाकभाजी एवं पूरे वर्ष में लगभग ६९,५१,००० क्विंटल शाकभाजी क्रय-विक्रय के लिये आती है। मार्केट में जगह की कमीं पडने के कारण समिति द्वारा शहर के बाहर जेतलपुर में ८०००० वर्ग गज जमीन २८ करोड रूपये में लेकर भवन निर्माण किया गया। दिनांक २४.०६.२००६ को मुखयमंत्री श्री नरेन्द्र भाई मोदी के कर कमलों से मार्केट यार्ड का उद्घाटन किया गया। वर्तमान में यहां धान, गहूँ, अनाज का कार्य सफलतापूर्वक चल रहा है एवं इसके साथ शाकभाजी एवं अनाज का प्रोसेसिंग प्लांट से लेकर धुलाई, सफाई, लघु आकार देना एवं पैकिंग के साथ-साथ आधुनिक सुविधाओं से युक्त अन्य उपकरण लगाये गये हैं, जिसका कृषक एवं व्यापारी वर्ग पूर्ण लाभ ले रहा है।
इस मार्केट यार्ड को राज्य सरकार ने आदर्श बाजार स्वीकार कर २.५० करोड़ रूपयों की सब्सिडी दी है। संस्था इसके लिए राज्य सरकार का हार्दिक आभार व्यक्त करती है।
किसान कल्याण समिति सितम्बर २००४ में पदभार संभालने वाली नई बाजार समिति के नव निर्वाचित अध्यक्ष श्री बाबूभाई जमनादास पटेल ने अभूतपूर्व कार्य करके किसान कल्याण समिति की स्थापना की। जिसमें समिति ने मार्केट की बचत में से १०% रकम राशि को रिजर्व फण्ड बनाकर वार्षिक रूपया एक करोड तक किसान कल्याण फण्ड जमा किया। इस फण्ड द्वारा किसानों के लिये सामूहिक बीमा योजना, अकस्मात् मृत्यु सहायता, कृषि कार्य में वैज्ञानिक पद्धतियों के उपयोग के लिये सहायता, औजार सुधारने के लिए सहायता तथा अन्य कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं। इसके पश्चात् नेशनल हाईवे तथा स्टेट हाईवे पर दसक्रोई तालुका के ग्रामों में ग्राम पंचायतों द्वारा प्रस्ताव करके ४९% जनभागीदारी देने पर बाजार समिति द्वारा शेष ५१% की सहायता कर कलात्मक प्रवेश द्वार बनायेगी। यह कार्य लगभग १० ग्रॉम पंचायतों द्वारा पूरा किया जा चुका है।
भविष्य में A.P.M.C. द्वारा एक विश्व स्तर का मार्केट का निर्माण करने की योजना के लिये समिति ने ६ लाख वर्ग गज जमीन खरीदी है। उस जमीन पर सब्जी, आलू प्याज एवं फूल मार्केट, अलग-अलग क्षेत्रों में आधुनिक सुविधाओं से युक्त जैसे शीत भण्डार (कोल्ड स्टोरेज), मिनी थियेटर (लघु सिनेमाघर), शॉपिंग माल, स्वीमिंगपूल का निर्माण कर २५० से ३०० करोड़ तक व्यय करने की योजना है।
जय किसान-जय सहकार-जय विज्ञान
सहकारिता के चुनाव
सहकारिता के चुनाव
सहकारी संस्थाओं में आज दिग्गज वर्ग हावी है। आम जनता में सहकारिता के प्रति रुचि तो बढ़ी है, पर सहकारिता के विषय में उनका ज्ञान कम है। सहकारी संस्थाओं के चुनाव नजदीक आते ही एक विशेष वर्ग इन चुनावों में सक्रिय हो जाता है।
बहुत से राज्यों में सहकारिता की स्थिति ऐसी नहीं है। उन्होंने सहकारिता के माध्यम से प्रगति के सोपान तय किये हैं। आम जनता को भी सहकारी कानूनों, विधियों एवं पद्धतियों का ज्ञान कराना जरूरी है। सहकारिता के चुनावों में सभी सदस्यों की भागीदारी हो इसके लिय निम्न बिन्दु उपयोगी हो सकते हैं :-
१. सहकारिता से जुड़े लोगों के लिए अल्प अवधि का प्रशिक्षण सहकारी विभाग द्वारा दिये जाने की व्यवस्था अभियान के रूप में करनी चाहिए। विशेष कर सहकारी संस्थाओं के निर्वाचन से ६ माह पूर्व यह व्यवस्था प्रत्येक ऐसे केन्द्र के पास की जाय जहां सहकारी संस्थायें अधिक संखया में कार्यरत हैं।
२. प्रशिक्षण में चुनाव प्रक्रिया की जानकारी सदस्यों को दी जाय जिससे उनकी भागीदारी निश्चित रूप से हो सके।
३. आज भी सहकारिता के चुनाव का समय नजदीक आने या निर्वाचन की घोषणा होने पर भी उसकी पद्धति की जानकारी सदस्यों को नहीं होती। यह खाई पाटने की आवश्यकता है। चुनाव लड़ने के लिए किस प्रक्रिया को अपनाना है यह सम्बन्धित व्यक्ति को प्रशिक्षण में जानकारी दी जानी चाहिए।
४. सहकारिता के निर्वाचन के लिये अलग से निर्वाचन अधिकारियों का पैनल राज्य सरकारें घोषित करें, जो निष्पक्ष हो एवं सहकारिता से न जुडा हो।
५. चुनाव के समय शासकीय हस्तक्षेप बिल्कुल नहीं होना चाहिए।
६. निर्वाचन तिथि की घोषणा के ३ माह पूर्व सहकारी संस्थाओं पर यह प्रतिबन्ध होना चाहिए कि वह चुनाव समाप्त होने तक संस्था के किसी नियम अथवा उसके विधान में परिवर्तन न करें। शासन भी इस बीच कोई नया नियम या संस्था का विधान परिवर्तन स्वीकृत न करे।
७. सहकारी संस्थाओं के चुनावों में पूर्ण पारदर्शिता एवं लोकतन्त्रीकरण की व्यवस्था अवश्य की जानी चाहिये।
सहकारी संस्थाओं में आज दिग्गज वर्ग हावी है। आम जनता में सहकारिता के प्रति रुचि तो बढ़ी है, पर सहकारिता के विषय में उनका ज्ञान कम है। सहकारी संस्थाओं के चुनाव नजदीक आते ही एक विशेष वर्ग इन चुनावों में सक्रिय हो जाता है।
बहुत से राज्यों में सहकारिता की स्थिति ऐसी नहीं है। उन्होंने सहकारिता के माध्यम से प्रगति के सोपान तय किये हैं। आम जनता को भी सहकारी कानूनों, विधियों एवं पद्धतियों का ज्ञान कराना जरूरी है। सहकारिता के चुनावों में सभी सदस्यों की भागीदारी हो इसके लिय निम्न बिन्दु उपयोगी हो सकते हैं :-
१. सहकारिता से जुड़े लोगों के लिए अल्प अवधि का प्रशिक्षण सहकारी विभाग द्वारा दिये जाने की व्यवस्था अभियान के रूप में करनी चाहिए। विशेष कर सहकारी संस्थाओं के निर्वाचन से ६ माह पूर्व यह व्यवस्था प्रत्येक ऐसे केन्द्र के पास की जाय जहां सहकारी संस्थायें अधिक संखया में कार्यरत हैं।
२. प्रशिक्षण में चुनाव प्रक्रिया की जानकारी सदस्यों को दी जाय जिससे उनकी भागीदारी निश्चित रूप से हो सके।
३. आज भी सहकारिता के चुनाव का समय नजदीक आने या निर्वाचन की घोषणा होने पर भी उसकी पद्धति की जानकारी सदस्यों को नहीं होती। यह खाई पाटने की आवश्यकता है। चुनाव लड़ने के लिए किस प्रक्रिया को अपनाना है यह सम्बन्धित व्यक्ति को प्रशिक्षण में जानकारी दी जानी चाहिए।
४. सहकारिता के निर्वाचन के लिये अलग से निर्वाचन अधिकारियों का पैनल राज्य सरकारें घोषित करें, जो निष्पक्ष हो एवं सहकारिता से न जुडा हो।
५. चुनाव के समय शासकीय हस्तक्षेप बिल्कुल नहीं होना चाहिए।
६. निर्वाचन तिथि की घोषणा के ३ माह पूर्व सहकारी संस्थाओं पर यह प्रतिबन्ध होना चाहिए कि वह चुनाव समाप्त होने तक संस्था के किसी नियम अथवा उसके विधान में परिवर्तन न करें। शासन भी इस बीच कोई नया नियम या संस्था का विधान परिवर्तन स्वीकृत न करे।
७. सहकारी संस्थाओं के चुनावों में पूर्ण पारदर्शिता एवं लोकतन्त्रीकरण की व्यवस्था अवश्य की जानी चाहिये।
खेतीबाड़ी उत्पन्न बाजार समिति, अहमदाबाद
खेतीबाड़ी उत्पन्न बाजार समिति, अहमदाबाद
खेतीबाड़ी उत्पन्न बाजार समिति (Agriculture Produce Marketing Society) अहमदाबाद पूरे भारत में सब्जीभाजी के नियंत्रित बाजार में अग्रिम स्थान रखती है। सन् १९४२-४४ में अहमदाबाद के राजनगर बाजार में सब्जीभाजी का व्यापार पूरी तरह दलालों के हाथ में था। ये दलाल अपनी इच्छानुसार भाव निश्चित करते थे, माप-तोल में गडबडी करते थे, उत्पादकों को नगद राशि भी नहीं देते थे तथा किसानों से सस्ते में सब्जीभाजी खरीदकर व्यापारियों को ऊंचे दाम में बेचकर भारी मुनाफा कमाते थे।
इन परिस्थितियों में सन् १९४२-४४ की अवधि में अहमदाबाद शहर तथा दसक्रोई तालुका के अग्रणी सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं उत्पादकों ने सहकारी कानून के अन्तर्गत अहमदाबाद कॉपरेटिव फ्रूट एण्ड वेजीटेबल ग्रोवर्स एसोसियेशन लि. एवं दी पोटेटो ग्रोवर्स कॉपरेटिव एसोसियेशन लि. की स्थापना करके शाकभाजी में दलालों के एकाधिकारवाद से व्यापार को मुक्त करा दिया एवं तत्कालीन परिस्थितियों का सामना करते हुए सफलतापूर्वक कार्य प्रारम्भ कर दिया।
सन् १९४८ में गुजरात में बाजार कानून द्वारा शाकभाजी के व्यापार को नियन्त्रण में ले लिया गया। दलालों के एकाधिकार का कठोरतापूर्वक सामना करते हुए राजनगर बाजार को सहकारी समिति को सौंप दिया गया। माणिक चौक मार्किट यार्ड में सब्जीभाजी का नियंत्रित बाजार सफलतापूर्वक चलाया गया। राजनगर मार्केट के पास बाबूभाई वंडा वाले स्थान पर जगत बाजार समिति ने किराये पर मार्केट यार्ड में थोड़ी जगह ले ली।
राजनगर बाबूभाई वंडा मार्केट यार्ड का विस्तार ६००० वर्ग गज है परन्तु अहमदाबाद शहर की जनसंखया और व्यापार में वृद्धि के कारण स्थान छोटा पडने लगा। सन् १९६७ में समिति ने प्रयत्न शुरू किया जिसके फलस्वरूप १९७३ में सरकार ने अहमदाबाद नगर निगम की सीमा के अन्दर बेहरामपुरा में मार्केट यार्ड के लिये १४९२३ वर्ग मीटर जमीन आवंटित कर दिया। इस जमीन पर भवन निर्माण के लिए सीमित कोष होने के कारण व्यापारियों से बिना ब्याज की राशि (डिपाजिट) प्राप्त कर निर्माण कार्य पूर्ण किया गया। सन् १९८० में इस स्थान पर विधिवत् व्यापार स्थानांतरित कर कार्य प्रारम्भ किया गया। वर्तमान में सरदार पटेल मार्केट शाकभाजी के नियंत्रित बाजार में देश भर में अग्रिम स्थान रखता है।
सन् १९८७ में भविष्य को ध्यान में रखकर समिति ने प्रयास करके अहमदाबाद नगर निगम से वासना मकतमपुरा सीमा के पास सरकार के मुखय नगर नियोजन विभाग द्वारा निश्चित किये गये मूल्य पर ५०,००० वर्ग गज स्थान क्रय किया। इस जमीन पर दिनांक १२.०७.१९९० को निर्माण कार्य का उद्घाटन तत्कालीन मुखयमंत्री श्री चिमन भाई पटेल के कर कमलों द्वारा किया गया। इस मार्केट का निर्माण कार्य पूर्ण होने पर ०७ जुलाई ९६ को सरदार पटेल मार्केट यार्ड के आलू प्याज के जनरल कमीशन ऐजेन्ट एवं अन्य लाईसेंस प्राप्त जनरल कमीशन ऐजेन्टों को नये यार्ड में स्थानांतरित कर दिया गया। सरदार पटेल मार्केट यार्ड शाकभाजी के लिये एवं वासना वाला श्री चिमन भाई पटेल मार्केट यार्ड आलू प्याज के लिये अलग-अलग व्यवस्था में सफलतापूर्वक कार्य करने लगे।
सन् १९९७-९८ में नरोडा में स्थित फ्रूट होलसेल, तथा 'फूल बाजार' को भी बाजार नियंत्रण कानून के अन्तर्गत खेतीबाड़ी उत्पन्न बाजार समिति, अहमदाबाद में सम्मिलित कर लिया गया। इससे उन सभी कृषक भाईयों को बहुत राहत मिली तथा उन्होंने बाजार समिति के पदाधिकारियों एवं कारोबारी समिति को शुभकामनाएं दी।
खेतीबाड़ी उत्पन्न बाजार समिति (Agriculture Produce Marketing Society) अहमदाबाद पूरे भारत में सब्जीभाजी के नियंत्रित बाजार में अग्रिम स्थान रखती है। सन् १९४२-४४ में अहमदाबाद के राजनगर बाजार में सब्जीभाजी का व्यापार पूरी तरह दलालों के हाथ में था। ये दलाल अपनी इच्छानुसार भाव निश्चित करते थे, माप-तोल में गडबडी करते थे, उत्पादकों को नगद राशि भी नहीं देते थे तथा किसानों से सस्ते में सब्जीभाजी खरीदकर व्यापारियों को ऊंचे दाम में बेचकर भारी मुनाफा कमाते थे।
इन परिस्थितियों में सन् १९४२-४४ की अवधि में अहमदाबाद शहर तथा दसक्रोई तालुका के अग्रणी सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं उत्पादकों ने सहकारी कानून के अन्तर्गत अहमदाबाद कॉपरेटिव फ्रूट एण्ड वेजीटेबल ग्रोवर्स एसोसियेशन लि. एवं दी पोटेटो ग्रोवर्स कॉपरेटिव एसोसियेशन लि. की स्थापना करके शाकभाजी में दलालों के एकाधिकारवाद से व्यापार को मुक्त करा दिया एवं तत्कालीन परिस्थितियों का सामना करते हुए सफलतापूर्वक कार्य प्रारम्भ कर दिया।
सन् १९४८ में गुजरात में बाजार कानून द्वारा शाकभाजी के व्यापार को नियन्त्रण में ले लिया गया। दलालों के एकाधिकार का कठोरतापूर्वक सामना करते हुए राजनगर बाजार को सहकारी समिति को सौंप दिया गया। माणिक चौक मार्किट यार्ड में सब्जीभाजी का नियंत्रित बाजार सफलतापूर्वक चलाया गया। राजनगर मार्केट के पास बाबूभाई वंडा वाले स्थान पर जगत बाजार समिति ने किराये पर मार्केट यार्ड में थोड़ी जगह ले ली।
राजनगर बाबूभाई वंडा मार्केट यार्ड का विस्तार ६००० वर्ग गज है परन्तु अहमदाबाद शहर की जनसंखया और व्यापार में वृद्धि के कारण स्थान छोटा पडने लगा। सन् १९६७ में समिति ने प्रयत्न शुरू किया जिसके फलस्वरूप १९७३ में सरकार ने अहमदाबाद नगर निगम की सीमा के अन्दर बेहरामपुरा में मार्केट यार्ड के लिये १४९२३ वर्ग मीटर जमीन आवंटित कर दिया। इस जमीन पर भवन निर्माण के लिए सीमित कोष होने के कारण व्यापारियों से बिना ब्याज की राशि (डिपाजिट) प्राप्त कर निर्माण कार्य पूर्ण किया गया। सन् १९८० में इस स्थान पर विधिवत् व्यापार स्थानांतरित कर कार्य प्रारम्भ किया गया। वर्तमान में सरदार पटेल मार्केट शाकभाजी के नियंत्रित बाजार में देश भर में अग्रिम स्थान रखता है।
सन् १९८७ में भविष्य को ध्यान में रखकर समिति ने प्रयास करके अहमदाबाद नगर निगम से वासना मकतमपुरा सीमा के पास सरकार के मुखय नगर नियोजन विभाग द्वारा निश्चित किये गये मूल्य पर ५०,००० वर्ग गज स्थान क्रय किया। इस जमीन पर दिनांक १२.०७.१९९० को निर्माण कार्य का उद्घाटन तत्कालीन मुखयमंत्री श्री चिमन भाई पटेल के कर कमलों द्वारा किया गया। इस मार्केट का निर्माण कार्य पूर्ण होने पर ०७ जुलाई ९६ को सरदार पटेल मार्केट यार्ड के आलू प्याज के जनरल कमीशन ऐजेन्ट एवं अन्य लाईसेंस प्राप्त जनरल कमीशन ऐजेन्टों को नये यार्ड में स्थानांतरित कर दिया गया। सरदार पटेल मार्केट यार्ड शाकभाजी के लिये एवं वासना वाला श्री चिमन भाई पटेल मार्केट यार्ड आलू प्याज के लिये अलग-अलग व्यवस्था में सफलतापूर्वक कार्य करने लगे।
सन् १९९७-९८ में नरोडा में स्थित फ्रूट होलसेल, तथा 'फूल बाजार' को भी बाजार नियंत्रण कानून के अन्तर्गत खेतीबाड़ी उत्पन्न बाजार समिति, अहमदाबाद में सम्मिलित कर लिया गया। इससे उन सभी कृषक भाईयों को बहुत राहत मिली तथा उन्होंने बाजार समिति के पदाधिकारियों एवं कारोबारी समिति को शुभकामनाएं दी।
Thursday, July 21, 2011
सोने जैसे व्यक्तित्व का चाँदी से तौल
सोने जैसे व्यक्तित्व का चाँदी से तौल
दिनांक ०७ नवम्बर २००९ अमरेली।
अमरेली की जनता द्वारा पूज्य श्री रमेश भाई ओझा, श्री वल्कू बापू, श्री द्वारकेश लाल जी महाराज तथा माननीय गुजरात के मंत्रियों सर्वश्री वजूभाई वाडा, नितिन भाई पटेल एवं अमित भाई शाह की उपस्थिति में श्री दिलीप भाई को १०६ किलो चाँदी से तौल कर सम्मानित किया गया।
श्री दिलीप भाई संघानी को कृभको द्वारा सहकार शिरोमणि पुरस्कार से सम्मानित किये जाने पर गुजरात में हर्ष एवं गौरव की लहर फैली, देश एवं प्रदेश भर से आये हुए कार्यकर्ताओं की उपस्थिति में सहकारिता शिरोमणि पुरस्कार से सम्मानित होने के पश्चात् अमरेली में प्रखयात कथाकार संदीपनी गुरुकुल के अधिष्ठाता पूज्य श्री रमेश भाई ओझा की अध्यक्षता में भव्य एवं गरिमापूर्ण समारोह में श्री संघानी जी का सम्मान किया गया जिसमें उन्हें १०६ किलो चाँदी से तोला गया। श्री रामभाई मुकरिया एवं संखयाबद्ध मित्रों ने श्री संघानी जी को चाँदी एवं सोने का मुकुट पहनाकर सम्मानित किया तथा डॉ० भरत भाई कानाबारे द्वारा श्री दिलीप भाई के विद्गाय में लिखित पुस्तक का विमोचन पूज्यश्री वल्कूबापू द्वारा किया गया।
श्री संघानी जी ने अपने व्यक्तित्व के अनुरूप १०६ किलो चाँदी अनुमानित मूल्य लगभग ३० लाख रूपये, गरीब एवं जरूरतमंद विद्यार्थियों की सहायता हेतु अर्पण कर दी। उन्होंने कहा कि उनकी प्रगति एवं यश के अधिकारी उनके मित्र एवं शिक्षक हैं। भाजपा ने मेरी योग्यता से भी कई गुणा मुझे दिया है। मैं हृदय से इन सभी का आभार व्यक्त करता हूँ। अपने भाषण में घोषणा करते हुए उन्होंने कहा कि भाजपा प्रदेश अध्यक्ष श्री पुरूषोत्तम भाई रूपाला एवं मित्रों के साथ चर्चा कर एक न्यास बनाकर गरीब एवं जरूरतमंद विद्यार्थियों के लिए इस राशि से सहायता की जायेगी। उनकी इस उदारता का उपस्थित हजारों जनता ने हर्ष से ताली बजाकर सम्मान किया।
इस अवसर पर पूज्य श्री रमेश भाई ओझा ने श्री संघानी जी की ३५ वर्ष की सेवाओं की प्रशंसा की और आज की घटना को उन्होंने जनता द्वारा प्रदान किया गया शिरोमणि पुरस्कार प्रतिपादित किया।
पूज्य श्री वल्कू बापू ने कहा कि 'व्यक्ति हंसता, सस्ता, खस्ता एवं कर्ता होना चाहिए' जिसका मूर्त रूप श्री दिलीप भाई हैं।
पूज्य श्री द्वारकेश लाल जी ने कहा कि 'धर्म सभा, राज्य सत्ता एवं प्रजा सत्ता का त्रिवेणी संगम जहां होता है वहां कल्याण राज्य की स्थापना होती है, यह सभी दिलीप भाई ने कर दिखाया है।
सभा में अन्य गणमान्य व्यक्तियों द्वारा श्री दिलीप भाई के गौरवपूर्ण कार्यों की प्रशंसा की गयी। इस विशाल सभा में गुजरात के संसदीय सचिव एल.टी. राजानी, जिले के विधायकगण, गुजरात मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन लि० के अध्यक्ष श्री परथी भाई भटोड़, गुजरात शहरी सहकारी बैंक संघ के अध्यक्ष ज्योतिन्द्र भाई मेहता, सांसदगण सर्वश्री दीनू भाई सोंलकी एवं नारायण भाई कछाडि या, राज्य अपेक्स बैंक के अध्यक्ष श्री अजय भाई पटेल, उपाध्यक्ष डॉलर भाई कोटेचा सहित बडी संखया में सहकारी कार्यकर्ता एवं अमरेली की जनता उपस्थित थी।
दिनांक ०७ नवम्बर २००९ अमरेली।
अमरेली की जनता द्वारा पूज्य श्री रमेश भाई ओझा, श्री वल्कू बापू, श्री द्वारकेश लाल जी महाराज तथा माननीय गुजरात के मंत्रियों सर्वश्री वजूभाई वाडा, नितिन भाई पटेल एवं अमित भाई शाह की उपस्थिति में श्री दिलीप भाई को १०६ किलो चाँदी से तौल कर सम्मानित किया गया।
श्री दिलीप भाई संघानी को कृभको द्वारा सहकार शिरोमणि पुरस्कार से सम्मानित किये जाने पर गुजरात में हर्ष एवं गौरव की लहर फैली, देश एवं प्रदेश भर से आये हुए कार्यकर्ताओं की उपस्थिति में सहकारिता शिरोमणि पुरस्कार से सम्मानित होने के पश्चात् अमरेली में प्रखयात कथाकार संदीपनी गुरुकुल के अधिष्ठाता पूज्य श्री रमेश भाई ओझा की अध्यक्षता में भव्य एवं गरिमापूर्ण समारोह में श्री संघानी जी का सम्मान किया गया जिसमें उन्हें १०६ किलो चाँदी से तोला गया। श्री रामभाई मुकरिया एवं संखयाबद्ध मित्रों ने श्री संघानी जी को चाँदी एवं सोने का मुकुट पहनाकर सम्मानित किया तथा डॉ० भरत भाई कानाबारे द्वारा श्री दिलीप भाई के विद्गाय में लिखित पुस्तक का विमोचन पूज्यश्री वल्कूबापू द्वारा किया गया।
श्री संघानी जी ने अपने व्यक्तित्व के अनुरूप १०६ किलो चाँदी अनुमानित मूल्य लगभग ३० लाख रूपये, गरीब एवं जरूरतमंद विद्यार्थियों की सहायता हेतु अर्पण कर दी। उन्होंने कहा कि उनकी प्रगति एवं यश के अधिकारी उनके मित्र एवं शिक्षक हैं। भाजपा ने मेरी योग्यता से भी कई गुणा मुझे दिया है। मैं हृदय से इन सभी का आभार व्यक्त करता हूँ। अपने भाषण में घोषणा करते हुए उन्होंने कहा कि भाजपा प्रदेश अध्यक्ष श्री पुरूषोत्तम भाई रूपाला एवं मित्रों के साथ चर्चा कर एक न्यास बनाकर गरीब एवं जरूरतमंद विद्यार्थियों के लिए इस राशि से सहायता की जायेगी। उनकी इस उदारता का उपस्थित हजारों जनता ने हर्ष से ताली बजाकर सम्मान किया।
इस अवसर पर पूज्य श्री रमेश भाई ओझा ने श्री संघानी जी की ३५ वर्ष की सेवाओं की प्रशंसा की और आज की घटना को उन्होंने जनता द्वारा प्रदान किया गया शिरोमणि पुरस्कार प्रतिपादित किया।
पूज्य श्री वल्कू बापू ने कहा कि 'व्यक्ति हंसता, सस्ता, खस्ता एवं कर्ता होना चाहिए' जिसका मूर्त रूप श्री दिलीप भाई हैं।
पूज्य श्री द्वारकेश लाल जी ने कहा कि 'धर्म सभा, राज्य सत्ता एवं प्रजा सत्ता का त्रिवेणी संगम जहां होता है वहां कल्याण राज्य की स्थापना होती है, यह सभी दिलीप भाई ने कर दिखाया है।
सभा में अन्य गणमान्य व्यक्तियों द्वारा श्री दिलीप भाई के गौरवपूर्ण कार्यों की प्रशंसा की गयी। इस विशाल सभा में गुजरात के संसदीय सचिव एल.टी. राजानी, जिले के विधायकगण, गुजरात मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन लि० के अध्यक्ष श्री परथी भाई भटोड़, गुजरात शहरी सहकारी बैंक संघ के अध्यक्ष ज्योतिन्द्र भाई मेहता, सांसदगण सर्वश्री दीनू भाई सोंलकी एवं नारायण भाई कछाडि या, राज्य अपेक्स बैंक के अध्यक्ष श्री अजय भाई पटेल, उपाध्यक्ष डॉलर भाई कोटेचा सहित बडी संखया में सहकारी कार्यकर्ता एवं अमरेली की जनता उपस्थित थी।
सहकारिता शिरोमणि पुरस्कार से श्री दिलीप भाई संघानी विभूषित
सहकारिता शिरोमणि पुरस्कार से
श्री दिलीप भाई संघानी विभूषित
दिनांकः १७.०९.२००९, स्थान केन्द्रीय कार्यालय भाजपा, नई दिल्ली।
भाजपा केन्द्रीय सहकारिता प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित स्वागत कार्यक्रम में गुजरात के श्री दिलीप भाई नानू भाई संघानी, जो इस समय गुजरात भाजपा सरकार में सहकारिता मंत्री का पद सुशोभित कर रहे हैं, का कृभको (कृषक भारती कॉपरेटिव लि०) द्वारा सहकारिता शिरोमणि पुरस्कार से सम्मानित किये जाने के उपलक्ष्य में मुखय अतिथि माननीय डॉ० मुरली मनोहर जोशी के आशीर्वचन के साथ केन्द्रीय सहकारिता प्रकोष्ठ भारतीय जनता पार्टी के केन्द्रीय कार्यालय ११ अशोक रोड में अभिनन्दन किया गया।
माननीय डॉ० मुरली मनोहर जोशी द्वारा दीप प्रज्ज्वलन कर कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया। इस अवसर पर कार्यक्रम के स्वागताध्यक्ष सहकारिता प्रकोष्ठ के सहसंयोजक श्री धंनजय कुमार सिंह द्वारा मुखय अतिथि डॉ० मुरली मनोहर जोशी का पुष्प माल, शाल एवं स्मृति चिह्न प्रदान कर स्वागत किया गया। सहकारिता शिरोमणि के सम्मान से विभूद्गित श्री दिलीप भाई संघानी जी का मुखय अतिथि डॉ० मुरली मनोहर जोशी ने स्वयं माल्यार्पण कर आशीर्वाद दिया। सहकारिता प्रकोष्ठ द्वारा संघानी जी तथा अन्य उपस्थित अतिथिगणों छत्तीसगढ़ से संसद सदस्य श्री मुरारीलाल सिंह, चन्दूलाल साहू, गुजरात की सांसद श्रीमती जय श्री बेन, श्री नारायण भाई कछाडिया, पूर्व केन्द्रीय मंत्री श्रीमती भावना बेन चिखलिया एवं सहकार भारती के श्री सूर्यकांत केलकर का स्वागत गणमान्य व्यक्तियों द्वारा स्मृति चिह्न भेंट कर किया गया।
स्वागत भाषण में श्री धनंजय कुमार सिंह ने आज के दिन को सहकारिता प्रकोष्ठ के लिये दोहरी खुशी का दिन निरूपित किया क्योंकि यू.पी.ए. शासन के दौरान भाजपा के कार्यकर्ता श्री दिलीप भाई को राष्ट्रीय सम्मान मिला तथा इस उपलक्ष्य में स्वागत कार्यक्रम में माननीय डॉ० जोशी जी की गरिमामय उपस्थिति अपने आप में महत्वपूर्ण रही।
श्री दिलीप संघानी जी ने अपने उद्बोधन में इस सम्मान प्राप्ति को सहकारिता से जुडे कार्यकर्ताओं का सम्मान घोषित किया। सरकार द्वारा प्राप्त सम्मान जोशी १ लाख १००० में २५००० अपनी तरफ से जोड कर उन्होंने सम्पूर्ण राशि गुजरात सरकार के 'कन्या शिक्षा' कार्यक्रम को अर्पण कर दी। भाव विह्वल शब्दों में उन्होंने कहा कि इस पुरस्कार का गौरव मैं केवल भाजपा कार्यकर्ता के नाते प्राप्त कर सकता हूँ। मा० मुरली मनोहर जोशी जी की उपस्थिति में आज मुझे सम्मानित किया जा रहा है यह अपने आप में मेरे लिये गौरवमयी क्षण है। भाजपा ने विभिन्न पदों पर मुझे जो अवसर दिया है वह अभूतपूर्व है।
मुखय अतिथि डॉ० मुरली मनोहर जोशी ने कहा कि यह मेरे लिये प्रसन्नता का अवसर है कि सहकारिता शिरोमणि सम्मान प्राप्त कार्यकर्ता के स्वागत के लिए आयोजित कार्यक्रम में मुझे आमंत्रित किया गया। उन्होंने संघानी जी को संघ से प्रेरित वस्तु गोविन्दम्, जनहितैषी योजनाओं के लिये समर्पित एवं संगठन के हर आदेश को पूरा करने वाला कार्यकर्ता बताया।
उन्होंने कहा कि संघानी जी द्वारा पुरस्कार राशि में और अपनी तरफ से २५००० हजार जोड़ कर कन्या शिक्षा कार्यक्रम में प्रदान करना, भारत की परम्परा का प्रतीक है, जो मिला समाज को दिया और अधिक जोड कर कृतज्ञता का भाव सम्मिलित कर समाज को वापिस करना इस भावना का सर्वोत्तम उदाहरण है।
उन्होंने महाराज अग्रसेन की उक्ति को दोहराया कि 'सभी सहकार करो' यही एक भाव भारत भूमि में व्याप्त रहा है, सर्वे भवन्तु सुखिनः।
कार्यक्रम का संचालन दिल्ली प्रदेश भाजपा, सहकारिता प्रकोष्ठ के संयोजक श्री अशोक ठाकुर ने किया। कार्यक्रम के अंत में के.सह.प्रको. भाजपा के सह-संयोजक मा. भंवर सिंह शेखावत जी ने सभी उपस्थित बन्धुओं, सांसदगणों एवं अन्य गणमान्य बन्धुओं का धन्यवाद ज्ञापन किया।
श्री दिलीप भाई संघानी विभूषित
दिनांकः १७.०९.२००९, स्थान केन्द्रीय कार्यालय भाजपा, नई दिल्ली।
भाजपा केन्द्रीय सहकारिता प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित स्वागत कार्यक्रम में गुजरात के श्री दिलीप भाई नानू भाई संघानी, जो इस समय गुजरात भाजपा सरकार में सहकारिता मंत्री का पद सुशोभित कर रहे हैं, का कृभको (कृषक भारती कॉपरेटिव लि०) द्वारा सहकारिता शिरोमणि पुरस्कार से सम्मानित किये जाने के उपलक्ष्य में मुखय अतिथि माननीय डॉ० मुरली मनोहर जोशी के आशीर्वचन के साथ केन्द्रीय सहकारिता प्रकोष्ठ भारतीय जनता पार्टी के केन्द्रीय कार्यालय ११ अशोक रोड में अभिनन्दन किया गया।
माननीय डॉ० मुरली मनोहर जोशी द्वारा दीप प्रज्ज्वलन कर कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया। इस अवसर पर कार्यक्रम के स्वागताध्यक्ष सहकारिता प्रकोष्ठ के सहसंयोजक श्री धंनजय कुमार सिंह द्वारा मुखय अतिथि डॉ० मुरली मनोहर जोशी का पुष्प माल, शाल एवं स्मृति चिह्न प्रदान कर स्वागत किया गया। सहकारिता शिरोमणि के सम्मान से विभूद्गित श्री दिलीप भाई संघानी जी का मुखय अतिथि डॉ० मुरली मनोहर जोशी ने स्वयं माल्यार्पण कर आशीर्वाद दिया। सहकारिता प्रकोष्ठ द्वारा संघानी जी तथा अन्य उपस्थित अतिथिगणों छत्तीसगढ़ से संसद सदस्य श्री मुरारीलाल सिंह, चन्दूलाल साहू, गुजरात की सांसद श्रीमती जय श्री बेन, श्री नारायण भाई कछाडिया, पूर्व केन्द्रीय मंत्री श्रीमती भावना बेन चिखलिया एवं सहकार भारती के श्री सूर्यकांत केलकर का स्वागत गणमान्य व्यक्तियों द्वारा स्मृति चिह्न भेंट कर किया गया।
स्वागत भाषण में श्री धनंजय कुमार सिंह ने आज के दिन को सहकारिता प्रकोष्ठ के लिये दोहरी खुशी का दिन निरूपित किया क्योंकि यू.पी.ए. शासन के दौरान भाजपा के कार्यकर्ता श्री दिलीप भाई को राष्ट्रीय सम्मान मिला तथा इस उपलक्ष्य में स्वागत कार्यक्रम में माननीय डॉ० जोशी जी की गरिमामय उपस्थिति अपने आप में महत्वपूर्ण रही।
श्री दिलीप संघानी जी ने अपने उद्बोधन में इस सम्मान प्राप्ति को सहकारिता से जुडे कार्यकर्ताओं का सम्मान घोषित किया। सरकार द्वारा प्राप्त सम्मान जोशी १ लाख १००० में २५००० अपनी तरफ से जोड कर उन्होंने सम्पूर्ण राशि गुजरात सरकार के 'कन्या शिक्षा' कार्यक्रम को अर्पण कर दी। भाव विह्वल शब्दों में उन्होंने कहा कि इस पुरस्कार का गौरव मैं केवल भाजपा कार्यकर्ता के नाते प्राप्त कर सकता हूँ। मा० मुरली मनोहर जोशी जी की उपस्थिति में आज मुझे सम्मानित किया जा रहा है यह अपने आप में मेरे लिये गौरवमयी क्षण है। भाजपा ने विभिन्न पदों पर मुझे जो अवसर दिया है वह अभूतपूर्व है।
मुखय अतिथि डॉ० मुरली मनोहर जोशी ने कहा कि यह मेरे लिये प्रसन्नता का अवसर है कि सहकारिता शिरोमणि सम्मान प्राप्त कार्यकर्ता के स्वागत के लिए आयोजित कार्यक्रम में मुझे आमंत्रित किया गया। उन्होंने संघानी जी को संघ से प्रेरित वस्तु गोविन्दम्, जनहितैषी योजनाओं के लिये समर्पित एवं संगठन के हर आदेश को पूरा करने वाला कार्यकर्ता बताया।
उन्होंने कहा कि संघानी जी द्वारा पुरस्कार राशि में और अपनी तरफ से २५००० हजार जोड़ कर कन्या शिक्षा कार्यक्रम में प्रदान करना, भारत की परम्परा का प्रतीक है, जो मिला समाज को दिया और अधिक जोड कर कृतज्ञता का भाव सम्मिलित कर समाज को वापिस करना इस भावना का सर्वोत्तम उदाहरण है।
उन्होंने महाराज अग्रसेन की उक्ति को दोहराया कि 'सभी सहकार करो' यही एक भाव भारत भूमि में व्याप्त रहा है, सर्वे भवन्तु सुखिनः।
कार्यक्रम का संचालन दिल्ली प्रदेश भाजपा, सहकारिता प्रकोष्ठ के संयोजक श्री अशोक ठाकुर ने किया। कार्यक्रम के अंत में के.सह.प्रको. भाजपा के सह-संयोजक मा. भंवर सिंह शेखावत जी ने सभी उपस्थित बन्धुओं, सांसदगणों एवं अन्य गणमान्य बन्धुओं का धन्यवाद ज्ञापन किया।
Tuesday, July 19, 2011
गुजरात में सहकारी प्रवृत्तिया
गुजरात में सहकारी प्रवृत्तिया
ऋग्वेद का एक जाना माना श्लोक है 'संगच्छध्वं संवदध्वसं वो मनांसि जानताम समानो मंत्रः' जिसका अर्थ है, हम साथ-साथ चलें, एक साथ होकर संवाद करें और अपने निर्णयों में सर्वमत बनायें, हमारी प्रार्थना एक समान हो... सहकारी प्रवृत्तियों के सिद्धांतों की बुनियाद में इन बातों को ही समाविष्ट किया गया है।
सहकारी प्रवृत्ति प्राचीन युग से चली आ रही सामाजिक और आर्थिक उन्नति के सिद्धांत पर टिकी हुई एक सामूहिक प्रवृत्ति है। करीब १०५ साल से वह हमारे राज्य में पनपती रही है। अविरतरूप से और आयोजनपूर्वक कार्यरत रही है। विशेष रूप से इसमें जनता के आर्थिक हितों और सामाजिक क्षेत्र के विकास पर बल दिया गया है, जिस वजह से आम जनता के जीवन में काफी परिवर्तन हुआ है। कृषि, व्यापार, वाणिज्य एवं सेवा के क्षेत्र से इसका गहरा नाता रहा है। गुजरात में वर्तमान में विभिन्न प्रकार की करीब ६२,००० से भी अधिक सहकारी समितियां विद्यमान हैं और इन समितियों की सदस्य संखया करीब १३० लाख की है। इन समितियों में प्राथमिक कृषि विषयक उधार मंडलियों, दुग्ध समिति, क्रय-विक्रय समिति, गृह मंडली, नागरिक सहकारी बैंक, ग्राहक समिति और कृद्गिा समिति आदि व्यापक रूप से समाविष्ट हैं।
कृषि से संलग्न प्रवृत्तियों में लगने वाली ऋण राशि का 46.15% (प्रतिच्चत) भाग सहकारी क्षेत्र के द्वारा ही उपलब्ध कराया जाता है।
राज्य के करीब ७० प्रतिशत छोटे और सीमांत कृषक सहकारी संरचना में शामिल हैं और उनमें लगभग १३ लाख से अधिक छोटे और सीमांत किसान तथा दुर्बल वर्ग के किसान अपना अल्पकालीन कृषि ऋण सहकारी ढाँचे के द्वारा प्राप्त करते हैं। इस ऋण की राशि अब तक ज्यादातर सहकारी बैंकों द्वारा १० से १३ प्रतिशत के ब्याज दर से उपलब्ध कराई जाती है, जबकि वाणिज्य बैंक इस ऋण को केवल ९ प्रतिशत ब्याज से उपलब्ध कराते हैं। आश्चर्य अब यह है कि जो किसान सहकारी बैंक के विस्तृत ढाँचे से संलग्न हैं उन्हें भी यह ऋण ९ प्रतिशत दरों से प्राप्त हो। अतः जो रत्न कलाकार मंदी के माहौल से प्रभावित हुए हैं, जिनका निर्वाह अपने लघु कृषि पर निर्भर हो तथा धंधा छोड़कर अपने प्रदेश में जा चुके हों, उन्हें इस प्रकार का कृषि ऋण सस्ते दर से प्राप्त हो सके, यह आवश्यक है। इस चिंतन के साथ सहकारिता के कृषि और सहकार विभाग द्वारा एक प्रस्ताव पारित किया गया, जो इस प्रकार है। 'रत्नकलाकारी' के साथ जुडे हुए किसानों को ६ प्रतिशत ब्याज दर से ऋण उपलब्ध कराने वाले सहकारी बैंक को नाबार्ड की ओर से अल्प अवधि ऋण के लिये जो 7% प्रतिशत ब्याज दर से रि-फाईनेंस (पुनर्वित्त प्रबंध) और ब्याज राहत दी जाती है। राज्य सरकार अपनी ओर से अपने स्त्रोत से २ प्रतिशत की ऋण राहत देती थी उसे बढ़ाकर तीन प्रतिशत की ब्याज राहत दी जाये। (ठहराव क्रमांकः सीएसबी/१२२००७/एम/१२८/सीएच दिनांक २७.०२.२००९) जिसके अंतर्गत इस वर्ष २००९-१० में लगभग रू. ३.८५ करोड की राशि किसानों को ब्याज राहत के रूप में दी जायेगी।
गुजरात राज्य में किसानों को अपनी फसल के अर्थसक्षम और पुष्टिसक्षम दरों की प्राप्ति हो सके इस हेतु कृषि उपज मंडी समितियां कार्यशील हैं। ऐसी करीब २०७ ए.पी.एम.सी. (कृषि उपज विपणन समिति) मंडलियां (समितियां) अपने यहां रू. १६९८९.९७ करोड़ के वार्षिक कृषि उत्पादनों की बिक्री करते हुए किसानों को आर्थिक लाभ दिलवाने की दिशा में अपना योगदान कर रही हैं। सम्मानीय मुखयमंत्री श्री नरेन्द्र भाई मोदी के प्रेरणादायी और प्रभावी नेतृत्व में अन्य क्षेत्रों के साथ-साथ सहकारी प्रवृत्ति के क्षेत्र में भी गुजरात ने ए.पी.एम.सी के द्वारा कृषि उत्पादित पदार्थों की बिक्री में सफलता के उच्चतम शिखर छू लिये हैं। ए.पी.एम.सी. धारा में आवश्यक अन्वेषणों को प्रधानता देते हुए ई-मार्किट, निजी मार्किट और कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग आदि को अधिनियम में समाविष्ट करते हुए उसे आदर्श अधिनियम (मॉडल एक्ट) का स्वरूप देना उचित समझा गया है। कृषि बाजारों के विकास तथा संवर्धन हेतु राज्य सरकार ने गुजरात कृषि बोर्ड की रचना कर दी है जो राज्य भर की सभी ए.पी.एम.सी. की सुविधायें उपलब्ध कराने की दिच्चा में प्रयत्नशील है। अहमदाबाद और ऊंझा की ए.पी.एम.सी. अपने कार्य में उत्तमता प्राप्त कर चुकी हैं।
सन् २००१ के दौरान कुछ अवधि के लिये नागरिक सहकारी बैंकों में संचालन और आर्थिक स्थिति के बारे में समस्यायें खडी हुई थीं। राज्य सरकार ने उस समय समयोचित कदम उठाये। सहकारी कानूनों में सर्वप्रथम नागरिक सहकारी बैंकों के लिये (कंडिका) प्रकरण-१० को शामिल करवाया गया, जिसके अन्तर्गत विशेष रूप से बैंक के संचालक बोर्ड के उत्तरदायित्व को सक्षम बनाकर शिक्षात्मक/दंडनात्मक प्रथा सम्मिलित की गई। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के साथ एम.ओ.यू. (आपसी समझौता ज्ञापन) द्वारा टास्कबल (Task force) की रचना करना, दूसरा कदम था। प्रतिमास इसकी बैठक बुलाकर और नियमित रूप से नागरिक बैंकों की कार्यवाही की समीक्षा की जाती है और सुधार के लक्ष्य की प्राप्ति के लिये ठोस कदम उठाये जाते हैं। परिणामस्वरूप, नागरिक सहकारी बैंकों के प्रति संरक्षणात्मक अभिमत के द्वारा निर्बल बैंकों को अन्य सुदृढ़ बैंक के साथ मिला देने में सफलता प्राप्त हुई है। इस प्रकार अब तक करीब २२ बैंकों का विलय किया जा चुका है।
गुजरात के माननीय मुखयमंत्री श्री नरेन्द्रभाई मोदी के नेतृत्व और मार्गदर्शन में 'निरोग बाल' और 'जलसंग्रह अभियान' के अन्तर्गत बच्चों तथा माताओं को पोष्टिक आहार 'सुखड़ी और दूध' उपहार के रूप में राज्य की सहकारी संस्थाओं द्वारा दिया जा सके इस हेतु दान प्रवृत्ति को मंजूरी दी गई है जिसके अंतर्गत करीब १० हजार किलो सुखड़ी और ७५००० लीटर दूध बच्चों और माताओं के लिये वितरण हेतु भेजा गया है। इस तरह से जलसंचय और जलसंग्रह की प्रवृत्तियों के लिये भी श्री मोदी के अभियान के अंतर्गत राज्य के सभी तालाबों को और चेकडैमों को गहरे करने का कार्य प्रारंभ कर दिया गया है। इसके लिए गुजरात के सहकारी संगठनों से ५० लाख की राच्चि का सहयोग प्राप्त हो चुका है। इस प्रकार सहकारी क्षेत्रों
द्वारा समाज के उत्कर्ष की दिशा में ठोस कार्य हो रहा है।
महात्मा गाँधी और सरदार पटेल की जन्मभूमि गुजरात, महान पुरूषों की विचारधारा से समृद्ध और संपन्न है। यहां सदा समानता, सेवा, निष्ठा और ट्रस्टीशिप के सिद्धांत पनपते रहे हैं। यहां ग्राम विकास, स्वावलंबन और स्वदेशी की झलकियों के दर्शन मिलते हैं। यह सभी तत्व हमारे सहकारी सिद्धांतों में उजागर होते दिखाई पडते हैं। गुजरात में सहकारी प्रवृत्ति ने सामाजिक उत्थान और सामाजिक उत्तरदायित्व की ओर तथा सूदखोर, मुनाफाखोर, व्यापारियों के शोषण से मुक्ति दिलाने का कार्य सहकारिता द्वारा हुआ है। सहकारी प्रवृत्ति एक सभी के लिये और सभी एक के लिए, के सिद्धांत को लेकर गतिशील रहती है। मूलतः यह प्रवृत्ति गाँधीजी और सरदार पटेल की विचारधारा से प्रेरित हुई थी जो आज गुजरात के सम्माननीय मुखयमंत्री श्री नरेन्द्रभाई मोदी के प्रभावी नेतृत्व के साथ आधुनिक तंत्रज्ञान, कम्प्युटराईजेशन और व्यवसायिक दृष्टिकोण को लेकर स्पर्धात्मक आर्थिक प्रवृत्ति के साथ सम्मिलित होती आगे बढ रही है। सहकारी संस्थायें अपने करोडों सदस्यों को साथ लेकर सामाजिक और आर्थिक उत्थान की दिशा में आगे कदम बढा रही हैं।
ऋग्वेद का एक जाना माना श्लोक है 'संगच्छध्वं संवदध्वसं वो मनांसि जानताम समानो मंत्रः' जिसका अर्थ है, हम साथ-साथ चलें, एक साथ होकर संवाद करें और अपने निर्णयों में सर्वमत बनायें, हमारी प्रार्थना एक समान हो... सहकारी प्रवृत्तियों के सिद्धांतों की बुनियाद में इन बातों को ही समाविष्ट किया गया है।
सहकारी प्रवृत्ति प्राचीन युग से चली आ रही सामाजिक और आर्थिक उन्नति के सिद्धांत पर टिकी हुई एक सामूहिक प्रवृत्ति है। करीब १०५ साल से वह हमारे राज्य में पनपती रही है। अविरतरूप से और आयोजनपूर्वक कार्यरत रही है। विशेष रूप से इसमें जनता के आर्थिक हितों और सामाजिक क्षेत्र के विकास पर बल दिया गया है, जिस वजह से आम जनता के जीवन में काफी परिवर्तन हुआ है। कृषि, व्यापार, वाणिज्य एवं सेवा के क्षेत्र से इसका गहरा नाता रहा है। गुजरात में वर्तमान में विभिन्न प्रकार की करीब ६२,००० से भी अधिक सहकारी समितियां विद्यमान हैं और इन समितियों की सदस्य संखया करीब १३० लाख की है। इन समितियों में प्राथमिक कृषि विषयक उधार मंडलियों, दुग्ध समिति, क्रय-विक्रय समिति, गृह मंडली, नागरिक सहकारी बैंक, ग्राहक समिति और कृद्गिा समिति आदि व्यापक रूप से समाविष्ट हैं।
कृषि से संलग्न प्रवृत्तियों में लगने वाली ऋण राशि का 46.15% (प्रतिच्चत) भाग सहकारी क्षेत्र के द्वारा ही उपलब्ध कराया जाता है।
राज्य के करीब ७० प्रतिशत छोटे और सीमांत कृषक सहकारी संरचना में शामिल हैं और उनमें लगभग १३ लाख से अधिक छोटे और सीमांत किसान तथा दुर्बल वर्ग के किसान अपना अल्पकालीन कृषि ऋण सहकारी ढाँचे के द्वारा प्राप्त करते हैं। इस ऋण की राशि अब तक ज्यादातर सहकारी बैंकों द्वारा १० से १३ प्रतिशत के ब्याज दर से उपलब्ध कराई जाती है, जबकि वाणिज्य बैंक इस ऋण को केवल ९ प्रतिशत ब्याज से उपलब्ध कराते हैं। आश्चर्य अब यह है कि जो किसान सहकारी बैंक के विस्तृत ढाँचे से संलग्न हैं उन्हें भी यह ऋण ९ प्रतिशत दरों से प्राप्त हो। अतः जो रत्न कलाकार मंदी के माहौल से प्रभावित हुए हैं, जिनका निर्वाह अपने लघु कृषि पर निर्भर हो तथा धंधा छोड़कर अपने प्रदेश में जा चुके हों, उन्हें इस प्रकार का कृषि ऋण सस्ते दर से प्राप्त हो सके, यह आवश्यक है। इस चिंतन के साथ सहकारिता के कृषि और सहकार विभाग द्वारा एक प्रस्ताव पारित किया गया, जो इस प्रकार है। 'रत्नकलाकारी' के साथ जुडे हुए किसानों को ६ प्रतिशत ब्याज दर से ऋण उपलब्ध कराने वाले सहकारी बैंक को नाबार्ड की ओर से अल्प अवधि ऋण के लिये जो 7% प्रतिशत ब्याज दर से रि-फाईनेंस (पुनर्वित्त प्रबंध) और ब्याज राहत दी जाती है। राज्य सरकार अपनी ओर से अपने स्त्रोत से २ प्रतिशत की ऋण राहत देती थी उसे बढ़ाकर तीन प्रतिशत की ब्याज राहत दी जाये। (ठहराव क्रमांकः सीएसबी/१२२००७/एम/१२८/सीएच दिनांक २७.०२.२००९) जिसके अंतर्गत इस वर्ष २००९-१० में लगभग रू. ३.८५ करोड की राशि किसानों को ब्याज राहत के रूप में दी जायेगी।
गुजरात राज्य में किसानों को अपनी फसल के अर्थसक्षम और पुष्टिसक्षम दरों की प्राप्ति हो सके इस हेतु कृषि उपज मंडी समितियां कार्यशील हैं। ऐसी करीब २०७ ए.पी.एम.सी. (कृषि उपज विपणन समिति) मंडलियां (समितियां) अपने यहां रू. १६९८९.९७ करोड़ के वार्षिक कृषि उत्पादनों की बिक्री करते हुए किसानों को आर्थिक लाभ दिलवाने की दिशा में अपना योगदान कर रही हैं। सम्मानीय मुखयमंत्री श्री नरेन्द्र भाई मोदी के प्रेरणादायी और प्रभावी नेतृत्व में अन्य क्षेत्रों के साथ-साथ सहकारी प्रवृत्ति के क्षेत्र में भी गुजरात ने ए.पी.एम.सी के द्वारा कृषि उत्पादित पदार्थों की बिक्री में सफलता के उच्चतम शिखर छू लिये हैं। ए.पी.एम.सी. धारा में आवश्यक अन्वेषणों को प्रधानता देते हुए ई-मार्किट, निजी मार्किट और कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग आदि को अधिनियम में समाविष्ट करते हुए उसे आदर्श अधिनियम (मॉडल एक्ट) का स्वरूप देना उचित समझा गया है। कृषि बाजारों के विकास तथा संवर्धन हेतु राज्य सरकार ने गुजरात कृषि बोर्ड की रचना कर दी है जो राज्य भर की सभी ए.पी.एम.सी. की सुविधायें उपलब्ध कराने की दिच्चा में प्रयत्नशील है। अहमदाबाद और ऊंझा की ए.पी.एम.सी. अपने कार्य में उत्तमता प्राप्त कर चुकी हैं।
सन् २००१ के दौरान कुछ अवधि के लिये नागरिक सहकारी बैंकों में संचालन और आर्थिक स्थिति के बारे में समस्यायें खडी हुई थीं। राज्य सरकार ने उस समय समयोचित कदम उठाये। सहकारी कानूनों में सर्वप्रथम नागरिक सहकारी बैंकों के लिये (कंडिका) प्रकरण-१० को शामिल करवाया गया, जिसके अन्तर्गत विशेष रूप से बैंक के संचालक बोर्ड के उत्तरदायित्व को सक्षम बनाकर शिक्षात्मक/दंडनात्मक प्रथा सम्मिलित की गई। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के साथ एम.ओ.यू. (आपसी समझौता ज्ञापन) द्वारा टास्कबल (Task force) की रचना करना, दूसरा कदम था। प्रतिमास इसकी बैठक बुलाकर और नियमित रूप से नागरिक बैंकों की कार्यवाही की समीक्षा की जाती है और सुधार के लक्ष्य की प्राप्ति के लिये ठोस कदम उठाये जाते हैं। परिणामस्वरूप, नागरिक सहकारी बैंकों के प्रति संरक्षणात्मक अभिमत के द्वारा निर्बल बैंकों को अन्य सुदृढ़ बैंक के साथ मिला देने में सफलता प्राप्त हुई है। इस प्रकार अब तक करीब २२ बैंकों का विलय किया जा चुका है।
गुजरात के माननीय मुखयमंत्री श्री नरेन्द्रभाई मोदी के नेतृत्व और मार्गदर्शन में 'निरोग बाल' और 'जलसंग्रह अभियान' के अन्तर्गत बच्चों तथा माताओं को पोष्टिक आहार 'सुखड़ी और दूध' उपहार के रूप में राज्य की सहकारी संस्थाओं द्वारा दिया जा सके इस हेतु दान प्रवृत्ति को मंजूरी दी गई है जिसके अंतर्गत करीब १० हजार किलो सुखड़ी और ७५००० लीटर दूध बच्चों और माताओं के लिये वितरण हेतु भेजा गया है। इस तरह से जलसंचय और जलसंग्रह की प्रवृत्तियों के लिये भी श्री मोदी के अभियान के अंतर्गत राज्य के सभी तालाबों को और चेकडैमों को गहरे करने का कार्य प्रारंभ कर दिया गया है। इसके लिए गुजरात के सहकारी संगठनों से ५० लाख की राच्चि का सहयोग प्राप्त हो चुका है। इस प्रकार सहकारी क्षेत्रों
द्वारा समाज के उत्कर्ष की दिशा में ठोस कार्य हो रहा है।
महात्मा गाँधी और सरदार पटेल की जन्मभूमि गुजरात, महान पुरूषों की विचारधारा से समृद्ध और संपन्न है। यहां सदा समानता, सेवा, निष्ठा और ट्रस्टीशिप के सिद्धांत पनपते रहे हैं। यहां ग्राम विकास, स्वावलंबन और स्वदेशी की झलकियों के दर्शन मिलते हैं। यह सभी तत्व हमारे सहकारी सिद्धांतों में उजागर होते दिखाई पडते हैं। गुजरात में सहकारी प्रवृत्ति ने सामाजिक उत्थान और सामाजिक उत्तरदायित्व की ओर तथा सूदखोर, मुनाफाखोर, व्यापारियों के शोषण से मुक्ति दिलाने का कार्य सहकारिता द्वारा हुआ है। सहकारी प्रवृत्ति एक सभी के लिये और सभी एक के लिए, के सिद्धांत को लेकर गतिशील रहती है। मूलतः यह प्रवृत्ति गाँधीजी और सरदार पटेल की विचारधारा से प्रेरित हुई थी जो आज गुजरात के सम्माननीय मुखयमंत्री श्री नरेन्द्रभाई मोदी के प्रभावी नेतृत्व के साथ आधुनिक तंत्रज्ञान, कम्प्युटराईजेशन और व्यवसायिक दृष्टिकोण को लेकर स्पर्धात्मक आर्थिक प्रवृत्ति के साथ सम्मिलित होती आगे बढ रही है। सहकारी संस्थायें अपने करोडों सदस्यों को साथ लेकर सामाजिक और आर्थिक उत्थान की दिशा में आगे कदम बढा रही हैं।
रा०स्व०संघ सेवा विभाग द्वारा गुजरात में ग्राम विकास का कार्य
रा०स्व०संघ सेवा विभाग द्वारा गुजरात में ग्राम विकास का कार्य
कठाडा गांव, तहसील दसाड़ा, जिला सुरेन्द्र नगर
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सेवा विभाग द्वारा देश के प्रत्येक जिले में एक गाँव का चयन करके समग्र ग्राम विकास योजना के अंतर्गत ग्राम विकास का कार्य सम्पन्न किया जाता है। गुजरात प्रदेश में संघ की दृष्टि से कुल ३३ जिले हैं, जिसमें अधिकांश जिलों में ग्राम विकास का कार्य प्रारम्भ किया गया है तथा सबसे अधिक कार्य कठाडा गांव, तहसील, दसाडा, जिला सुरेन्द्र नगर में चल रहा है। इस गाँव की जनसंखया १७६६ है। मुखय रोजगार कृषि, पशुपालन, मजदूरी इत्यादि है।
ग्राम में एक प्राथमिक पाठशाला, दो बाल मंदिर तथा एक आयुर्वेदिक चिकित्सा केन्द्र है। संघ के सेवा विभाग द्वारा आयुर्वेदिक औद्गाधियों का संग्रहण कार्य भी होता है। यहाँ १९८३ से संघ की शाखा निरन्तर चल रही है। बहनों एवं भाईयों की अलग-अलग प्रभात शाखायें एवं भजन मंडलियाँ हैं। प्रतिदिन प्रभात फेरी होती है। वर्तमान में बहनों के दो बचत समूह हैं। बहनों के सिलाई वर्ग में दस-दस के तीन दल (Batch) सम्पन्न हुए हैं एवं चौथे दल का वर्ग चल रहा है। यह सभी सेवा बस्ती के रहने वाले हैं। संस्कार केन्द्र प्रत्येक रविवार सायं ४ से ५ बजे समाज के मन्दिर में चलता रहा है। ग्राम समिति की बैठक हर माह पहली तारीख को रात्रि ८ से ९ बजे होती है और समिति में समाज के सभी वर्गों के ११ सदस्य सम्मिलित हैं। बैठक की कार्यवाही लिखित होती है। अन्य समितियों का विवरण निम्नलिखित है :-
(१) बहनों की ग्राम समिति ११ सदस्यों की
(२) समाज मंदिर समिति ७ सदस्यों की
(३) समाचार फलक समिति ४ सदस्यों की
(४) आरोग्य समिति १७ सदस्यों की
(५) कुल १२ सेवा प्रकल्प
ग्राम देवगढ़, तहसील माण्डवी, जिला सूरत
यह ग्राम वनवासी लोगों का है। पहले यह देशी दारू का उत्पादन केन्द्र एवं लडाई झगडे का गढ था। सेवा कार्य प्रारम्भ होने के पश्चात् ग्राम के प्राथमिक पाठशाला के एक शिक्षक श्री रायसिंह भाई चौधरी ने बहुत श्रम करके ग्राम में दारू गुटका आदि बंद कराया। समाज की ओर से प्रारम्भ में थोडा बहुत विरोध हुआ परन्तु अन्ततः सब शान्त हो गया। गांव में प्रदेश संघ की बैठक हुई। निवर्तमान परम पूज्य सर संघचालक श्री सुदर्शन जी ग्राम में पधारे। वर्ष २००३ में ग्राम वासियों ने मिलकर २ लाख ३० हजार के व्यय से आटा चक्की और चावल मिल शेड का निर्माण किया। जिसके लिए बैंक से १ लाख २२ हजार का कर्ज भी लिया गया था। २ वर्ष के भीतर उसकी भरपाई की गई। एक लाख ३० हजार का लाभ खाते में है। चावल मिल का लाभ ग्रामीण एवं उसके आस-पास के ग्रामों के कृषक भी लेते हैं। ग्राम में भाईयों के दो बचत घर चल रहे हैं, जिनकी बचत १.५० लाख है। बहनों के चार बचत घर हैं, जिनकी बचत १ लाख है। दिनांक ०६.१०.२००९ को विश्व मंगल गौ ग्राम यात्रा द्वारा कृद्गिा च्चिविर का आयोजन ग्राम में रखा गया था जिसका लाभ ग्राम के १५० भाई बहनों ने लिया। कृषि शिविर के डॉ० अशोक भाई शाह जो वि०मं०गौ ग्राम यात्रा के अध्यक्ष हैं, समारोह के मुखय वक्ता थे।
ग्राम कोठाओं, तहसील कर्जन, जिला बड़ौदा
ग्राम में प्रभात शाखा चलती है। बहनों के लिये प्रारम्भ सिलाई केन्द्र में ४२ बहनों ने शिक्षा ग्रहण की तथा सिलाई मशीन का प्रयोग घर में ही प्रारम्भ किया। १ से लेकर ८वीं कक्षा तक की पाठशाला के बालकों के लिये शिक्षा वर्ग प्रारम्भ किये गये हैं। शिक्षा ग्रहण में कमजोर बालकों के लिये ट्यूशन वर्ग एवं उनके लिये संस्कार केन्द्र चल रहे हैं। सामाजिक समानता हेतु अम्बा माताजी के मन्दिर की प्राण प्रतिष्ठा के महोत्सव के समय अति उत्तम वातावरण ग्राम में बना। हरिजन समाज के लोग प्रतिदिन मंदिर आते हैं तथा सभी कार्यक्रमों में साथ में भोजन करते हैं। ग्राम की बहनों ने संघ के सेवा कार्य के प्रयास से गृह उद्योग जैसे पैरधन, मोमबत्ती, अगरबत्ती, चाकलेट, जाम, जेली, अचार, शर्बत, जैसे अनेक पदार्थ तैयार करने की शिक्षा ली है तथा आपसी सहकार के माध्यम से स्वावलम्बन की ओर बढ़ रहे हैं।
कठाडा गांव, तहसील दसाड़ा, जिला सुरेन्द्र नगर
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सेवा विभाग द्वारा देश के प्रत्येक जिले में एक गाँव का चयन करके समग्र ग्राम विकास योजना के अंतर्गत ग्राम विकास का कार्य सम्पन्न किया जाता है। गुजरात प्रदेश में संघ की दृष्टि से कुल ३३ जिले हैं, जिसमें अधिकांश जिलों में ग्राम विकास का कार्य प्रारम्भ किया गया है तथा सबसे अधिक कार्य कठाडा गांव, तहसील, दसाडा, जिला सुरेन्द्र नगर में चल रहा है। इस गाँव की जनसंखया १७६६ है। मुखय रोजगार कृषि, पशुपालन, मजदूरी इत्यादि है।
ग्राम में एक प्राथमिक पाठशाला, दो बाल मंदिर तथा एक आयुर्वेदिक चिकित्सा केन्द्र है। संघ के सेवा विभाग द्वारा आयुर्वेदिक औद्गाधियों का संग्रहण कार्य भी होता है। यहाँ १९८३ से संघ की शाखा निरन्तर चल रही है। बहनों एवं भाईयों की अलग-अलग प्रभात शाखायें एवं भजन मंडलियाँ हैं। प्रतिदिन प्रभात फेरी होती है। वर्तमान में बहनों के दो बचत समूह हैं। बहनों के सिलाई वर्ग में दस-दस के तीन दल (Batch) सम्पन्न हुए हैं एवं चौथे दल का वर्ग चल रहा है। यह सभी सेवा बस्ती के रहने वाले हैं। संस्कार केन्द्र प्रत्येक रविवार सायं ४ से ५ बजे समाज के मन्दिर में चलता रहा है। ग्राम समिति की बैठक हर माह पहली तारीख को रात्रि ८ से ९ बजे होती है और समिति में समाज के सभी वर्गों के ११ सदस्य सम्मिलित हैं। बैठक की कार्यवाही लिखित होती है। अन्य समितियों का विवरण निम्नलिखित है :-
(१) बहनों की ग्राम समिति ११ सदस्यों की
(२) समाज मंदिर समिति ७ सदस्यों की
(३) समाचार फलक समिति ४ सदस्यों की
(४) आरोग्य समिति १७ सदस्यों की
(५) कुल १२ सेवा प्रकल्प
ग्राम देवगढ़, तहसील माण्डवी, जिला सूरत
यह ग्राम वनवासी लोगों का है। पहले यह देशी दारू का उत्पादन केन्द्र एवं लडाई झगडे का गढ था। सेवा कार्य प्रारम्भ होने के पश्चात् ग्राम के प्राथमिक पाठशाला के एक शिक्षक श्री रायसिंह भाई चौधरी ने बहुत श्रम करके ग्राम में दारू गुटका आदि बंद कराया। समाज की ओर से प्रारम्भ में थोडा बहुत विरोध हुआ परन्तु अन्ततः सब शान्त हो गया। गांव में प्रदेश संघ की बैठक हुई। निवर्तमान परम पूज्य सर संघचालक श्री सुदर्शन जी ग्राम में पधारे। वर्ष २००३ में ग्राम वासियों ने मिलकर २ लाख ३० हजार के व्यय से आटा चक्की और चावल मिल शेड का निर्माण किया। जिसके लिए बैंक से १ लाख २२ हजार का कर्ज भी लिया गया था। २ वर्ष के भीतर उसकी भरपाई की गई। एक लाख ३० हजार का लाभ खाते में है। चावल मिल का लाभ ग्रामीण एवं उसके आस-पास के ग्रामों के कृषक भी लेते हैं। ग्राम में भाईयों के दो बचत घर चल रहे हैं, जिनकी बचत १.५० लाख है। बहनों के चार बचत घर हैं, जिनकी बचत १ लाख है। दिनांक ०६.१०.२००९ को विश्व मंगल गौ ग्राम यात्रा द्वारा कृद्गिा च्चिविर का आयोजन ग्राम में रखा गया था जिसका लाभ ग्राम के १५० भाई बहनों ने लिया। कृषि शिविर के डॉ० अशोक भाई शाह जो वि०मं०गौ ग्राम यात्रा के अध्यक्ष हैं, समारोह के मुखय वक्ता थे।
ग्राम कोठाओं, तहसील कर्जन, जिला बड़ौदा
ग्राम में प्रभात शाखा चलती है। बहनों के लिये प्रारम्भ सिलाई केन्द्र में ४२ बहनों ने शिक्षा ग्रहण की तथा सिलाई मशीन का प्रयोग घर में ही प्रारम्भ किया। १ से लेकर ८वीं कक्षा तक की पाठशाला के बालकों के लिये शिक्षा वर्ग प्रारम्भ किये गये हैं। शिक्षा ग्रहण में कमजोर बालकों के लिये ट्यूशन वर्ग एवं उनके लिये संस्कार केन्द्र चल रहे हैं। सामाजिक समानता हेतु अम्बा माताजी के मन्दिर की प्राण प्रतिष्ठा के महोत्सव के समय अति उत्तम वातावरण ग्राम में बना। हरिजन समाज के लोग प्रतिदिन मंदिर आते हैं तथा सभी कार्यक्रमों में साथ में भोजन करते हैं। ग्राम की बहनों ने संघ के सेवा कार्य के प्रयास से गृह उद्योग जैसे पैरधन, मोमबत्ती, अगरबत्ती, चाकलेट, जाम, जेली, अचार, शर्बत, जैसे अनेक पदार्थ तैयार करने की शिक्षा ली है तथा आपसी सहकार के माध्यम से स्वावलम्बन की ओर बढ़ रहे हैं।
Thursday, June 30, 2011
गुजरात में सहकारिता
गुजरात में सहकारिता
गुजरात सामाजिक एवं आर्थिक मामले में देच्च का एक अग्रणी राज्य है। इस राज्य का सहकारिता आन्दोलन पूरे देश में जाना जाता है। यहां दुग्ध, शक्कर एवं विपणन सहकारितायें बहुत मजबूत स्थिति में हैं।
यहाँ ६२३४३ सहकारी संस्थायें, सहकारी समिति अधिनियम १९६१ के अन्तर्गत पंजीकृत हैं जिनके सदस्यों की संखया १.२५ करोड़ है। इस प्रकार औसत ५ में से १ व्यक्ति सहकारी संस्था का सदस्य है।
गुजरात अमूल जैसी दूध की सहकारी संस्थाओं के कारण अधिक जाना जाता है। यहां १६ दुग्ध जिला यूनियन तथा १२४०२ प्राथमिक दुग्ध सहकारी एवं दुग्ध खरीदी केन्द्र हैं और औसतन प्रतिदिन ६.७ लाख किलो दुग्ध का उत्पादन होता है। 'स्वेत क्रान्ति' का बहुत बडा प्रभाव ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर है। वास्तव में गुजरात में आदिवासी समुदाय दुग्ध सहकारी संस्थाओं, सहकारी द्राक्कर कारखानों एवं लघु सिंचाई से अधिक जुडा है। आदिवासी एवं अनुसूचित जाति समुदाय के लिए योजनाओं में अलग से विशेष व्यवस्था है। दुग्ध सहकारिता क्षेत्र का कुल व्यवसाय प्रतिवर्ष ४ हजार करोड से भी अधिक है।
यहाँ सहकारी क्षेत्र का गरीब किसानों, छोटे व्यवसायियों एवं व्यापारियों की आर्थिक उन्नति में विशेष योगदान है। यहाँ १८ केन्द्रीय सहकारी बैंक कार्यरत हैं तथा प्राथमिक समितियों द्वारा किसानों को कर्ज दिया जाता है। २६० शहरी बैंक गैर कृषि क्षेत्र में कर्ज देते हैं।
यहाँ सहकारी संस्थाओं को लोकतान्त्रिक एवं व्यावसायिक पद्धति से बिना शासन के हस्तक्षेप के आगे बढ़ने का अवसर दिया जाता है। शासन केवल शेयर कैपिटल, प्रोत्साहन बोनस, सहभागिता, कृषि जोखिम एवं हीरा व्यवसाय से
सम्बन्धित किसानों एवं व्यवसायियों विशेषकर अनुसूचित जाति, जनजाति समुदाय को सदस्य बनने में सहायता करती है। हमने सहकारिता के क्षेत्र में बहुत सारी योजनायें तैयार कर लागू की हैं, जिनमें प्रमुख रूप से सहकारी विपणन, भण्डारण तथा वेयर हाउसिंग सम्मिलित है।
वैद्यनाथन कमेटी की अनुशंसायें राज्य में लागू की गई हैं। राज्य सरकार तथा नाबार्ड के आपसी समझौते के प्रारूप पर भी हस्ताक्षर हो चुके हैं। गुजरात सहकारी समिति अधिनियम १९६१ में भी आवश्यकतानुसार २३ जनवरी २००८ को संशोधन किया जा चुका है। राज्य को १२१९ करोड़ रूपये का जो पैकेज मिलने वाला है उसमें से ३५३ करोड रूपये की प्रथम किश्त मार्च २००९ के अन्त तक अवमुक्त किया जा चुका है।
जनसंखया की दृष्टि से एक तिहाई से अधिक गुजरात के क्षेत्र जैसे चिखली डांग, सूरत, भरूच, पंचमहाल, बडौदा एवं वलसाड जिले आदिवासी, वनवासी एवं मजदूर बाहुल्य हैं। सहकारी संस्थाओं की एक बड़ी संखया इन क्षेत्रों में परदे वाली बग्गी, वन एवं वनरोपण, वन सामग्री के संग्रहण तथा लघु वनोपोज की बिक्री में संलग्न हैं। इन्होंने आदिवासीजनों तथा उनके परिवारों की अच्छी सहायता किया है जिससे उनके जीवन यापन में सुधार हुआ है। ये समितियां उनके सामाजिक एवं आर्थिक उत्थान में कार्यरत हैं। इनका प्रयास है कि शिक्क्षा, स्वास्थ्य सेवा, पेय जल एवं समाज कल्याण कार्यों में उनकी सहायता करें। इन समितियों के संघ (Federation) इनको सहायता एवं मार्ग दर्च्चन देते रहते हैं।
गुजरात का समुद्रतटीय क्षेत्र १६६३ किलो मीटर है। प्रदेश के भीतरी भाग एवं समुद्री मछेरों की ४९१ सहकारी समितियों के ५५ हजार सदस्य हैं। मछेरों को फिशिंग गियर (fishing gear) की सुविधा एवं मछेरा उद्योग के विकास के लिए एक राज्यस्तरीय संघ एवं दो केन्द्रीय स्तर की सहकारी संस्थायें कार्यरत हैं। इन्होंने मछेरा समुदाय के सामाजिक एवं आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
१७६६ लिफ्ट सिंचाई सहकारी संस्थायें जो कि कृद्गिा या सिंचाई सम्बन्धित व्यक्तियों द्वारा संगठित हैं, बहुत अच्छी प्रकार से कार्य कर रही हैं। ट्यूबवैल, नहरों, बिजली पम्प मोटरों एवं तेल ऊर्जा से चलित पम्प मोटरों द्वारा सिंचाई के साधन प्रदान किये जा रहे हैं। स्वयंसेवी संस्थायें सद्गुरू सेवा संघ एवं आगाखान ग्रामीण प्रोत्साहन समिति इन कार्यक्रमों के पंजीकरण एवं समितियों के विकास में लगी हैं।
बाइब्रेंट गुजरात में सहकारिता समुदायिक विकास एवं सामाजिक परिवर्तन के लिए एक आर्दश माध्यम है।
गुजरात सामाजिक एवं आर्थिक मामले में देच्च का एक अग्रणी राज्य है। इस राज्य का सहकारिता आन्दोलन पूरे देश में जाना जाता है। यहां दुग्ध, शक्कर एवं विपणन सहकारितायें बहुत मजबूत स्थिति में हैं।
यहाँ ६२३४३ सहकारी संस्थायें, सहकारी समिति अधिनियम १९६१ के अन्तर्गत पंजीकृत हैं जिनके सदस्यों की संखया १.२५ करोड़ है। इस प्रकार औसत ५ में से १ व्यक्ति सहकारी संस्था का सदस्य है।
गुजरात अमूल जैसी दूध की सहकारी संस्थाओं के कारण अधिक जाना जाता है। यहां १६ दुग्ध जिला यूनियन तथा १२४०२ प्राथमिक दुग्ध सहकारी एवं दुग्ध खरीदी केन्द्र हैं और औसतन प्रतिदिन ६.७ लाख किलो दुग्ध का उत्पादन होता है। 'स्वेत क्रान्ति' का बहुत बडा प्रभाव ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर है। वास्तव में गुजरात में आदिवासी समुदाय दुग्ध सहकारी संस्थाओं, सहकारी द्राक्कर कारखानों एवं लघु सिंचाई से अधिक जुडा है। आदिवासी एवं अनुसूचित जाति समुदाय के लिए योजनाओं में अलग से विशेष व्यवस्था है। दुग्ध सहकारिता क्षेत्र का कुल व्यवसाय प्रतिवर्ष ४ हजार करोड से भी अधिक है।
यहाँ सहकारी क्षेत्र का गरीब किसानों, छोटे व्यवसायियों एवं व्यापारियों की आर्थिक उन्नति में विशेष योगदान है। यहाँ १८ केन्द्रीय सहकारी बैंक कार्यरत हैं तथा प्राथमिक समितियों द्वारा किसानों को कर्ज दिया जाता है। २६० शहरी बैंक गैर कृषि क्षेत्र में कर्ज देते हैं।
यहाँ सहकारी संस्थाओं को लोकतान्त्रिक एवं व्यावसायिक पद्धति से बिना शासन के हस्तक्षेप के आगे बढ़ने का अवसर दिया जाता है। शासन केवल शेयर कैपिटल, प्रोत्साहन बोनस, सहभागिता, कृषि जोखिम एवं हीरा व्यवसाय से
सम्बन्धित किसानों एवं व्यवसायियों विशेषकर अनुसूचित जाति, जनजाति समुदाय को सदस्य बनने में सहायता करती है। हमने सहकारिता के क्षेत्र में बहुत सारी योजनायें तैयार कर लागू की हैं, जिनमें प्रमुख रूप से सहकारी विपणन, भण्डारण तथा वेयर हाउसिंग सम्मिलित है।
वैद्यनाथन कमेटी की अनुशंसायें राज्य में लागू की गई हैं। राज्य सरकार तथा नाबार्ड के आपसी समझौते के प्रारूप पर भी हस्ताक्षर हो चुके हैं। गुजरात सहकारी समिति अधिनियम १९६१ में भी आवश्यकतानुसार २३ जनवरी २००८ को संशोधन किया जा चुका है। राज्य को १२१९ करोड़ रूपये का जो पैकेज मिलने वाला है उसमें से ३५३ करोड रूपये की प्रथम किश्त मार्च २००९ के अन्त तक अवमुक्त किया जा चुका है।
जनसंखया की दृष्टि से एक तिहाई से अधिक गुजरात के क्षेत्र जैसे चिखली डांग, सूरत, भरूच, पंचमहाल, बडौदा एवं वलसाड जिले आदिवासी, वनवासी एवं मजदूर बाहुल्य हैं। सहकारी संस्थाओं की एक बड़ी संखया इन क्षेत्रों में परदे वाली बग्गी, वन एवं वनरोपण, वन सामग्री के संग्रहण तथा लघु वनोपोज की बिक्री में संलग्न हैं। इन्होंने आदिवासीजनों तथा उनके परिवारों की अच्छी सहायता किया है जिससे उनके जीवन यापन में सुधार हुआ है। ये समितियां उनके सामाजिक एवं आर्थिक उत्थान में कार्यरत हैं। इनका प्रयास है कि शिक्क्षा, स्वास्थ्य सेवा, पेय जल एवं समाज कल्याण कार्यों में उनकी सहायता करें। इन समितियों के संघ (Federation) इनको सहायता एवं मार्ग दर्च्चन देते रहते हैं।
गुजरात का समुद्रतटीय क्षेत्र १६६३ किलो मीटर है। प्रदेश के भीतरी भाग एवं समुद्री मछेरों की ४९१ सहकारी समितियों के ५५ हजार सदस्य हैं। मछेरों को फिशिंग गियर (fishing gear) की सुविधा एवं मछेरा उद्योग के विकास के लिए एक राज्यस्तरीय संघ एवं दो केन्द्रीय स्तर की सहकारी संस्थायें कार्यरत हैं। इन्होंने मछेरा समुदाय के सामाजिक एवं आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
१७६६ लिफ्ट सिंचाई सहकारी संस्थायें जो कि कृद्गिा या सिंचाई सम्बन्धित व्यक्तियों द्वारा संगठित हैं, बहुत अच्छी प्रकार से कार्य कर रही हैं। ट्यूबवैल, नहरों, बिजली पम्प मोटरों एवं तेल ऊर्जा से चलित पम्प मोटरों द्वारा सिंचाई के साधन प्रदान किये जा रहे हैं। स्वयंसेवी संस्थायें सद्गुरू सेवा संघ एवं आगाखान ग्रामीण प्रोत्साहन समिति इन कार्यक्रमों के पंजीकरण एवं समितियों के विकास में लगी हैं।
बाइब्रेंट गुजरात में सहकारिता समुदायिक विकास एवं सामाजिक परिवर्तन के लिए एक आर्दश माध्यम है।
इडोटोरियल अक्टूबर २००९
इडोटोरियल अक्टूबर २००९
गुजरात स्पंदन कर रहा है, अंगड़ाइयाँ ले रहा है, गतिशील है। अभी विकास की और मंजिलें बाकी हैं जिन्हे प्राप्त करना है, इसलिये गुजरात वाइब्रेंट है। कच्छ से लोकसभा की सदस्य पूनमबेन जाट कहती हैं- 'हमें सोचना पडता है कि विकास का कौन सा कार्य करें जो नहीं हुआ है। नरेन्द्र मोदी जी ने कुछ नहीं छोडा है'। गुजरात को पूर्ण विकसित कर दिया है फिर भी वो गुजरात को वाइब्रेंट गुजरात की संज्ञा देते हैं। वे गुजरात को दुनिया के नक्शे में वह स्थान दिलाना चाहते हैं जिससे विश्व के विकसित देशों के लोग भी भारत की अस्मिता, संस्कृति और परम्परा पर श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिये आतुर हो जायें। इसलिये गुजरात वाइब्रेंट है।
प्रारम्भ से ही गुजरात को समुद्र के किनारे होने का लाभ मिला है। वैश्विक व्यापार समुद्र के रास्ते होता था। लोगों की बुद्धि व्यावसायिक थी। राजनीतिज्ञों की सोच भी उसी दिशा में रही। सहकारिता भी इसी कारण वहां सफल हुई। ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा और व्यावसायिक सोच हो तो आर्थिक उन्नति में देर नहीं लगती। गरीब और सामान्य व्यक्ति के पास यह था। धन की कमीं थी तो सहकारिता ने पूरी कर दी। गरीब भी गरीब नहीं रहा। सामान्य भी धनी हो गया। मोदी जी ने विरासत में जो पाया उसमें चार-चाँद लगा दिया, फिर भी सोच रूकी नहीं। गुजरात वाइब्रेंट है।
यहां के महानगरों और नगरों में शनिवार या रविवार की रात्रि में अधिकांश घरों में खाना नहीं बनता। होटलों में जगह नहीं मिलती। यह रिवाज बन गया है। देश का सबसे विकसित प्रदेश जिसकी प्रति व्यक्ति आय रू. ४५,७७३/- है जो राष्ट्रीय औसत रू. ३८,०८४/- से अधिक है। इसमें सहकारी क्षेत्र का बहुत बड़ा योगदान है। अमूल और अमूल जैसी पूरे प्रदेश में फैली हुई अनेक डेयरी हैं जिन्होंने वहां श्वेत क्रान्ति ला दिया है। लिज्जत पापड, सेवा बैंक महिलाओं की संस्थायें हैं। सिंचाई के पानी के लिये भी ३००० से अधिक सहकारी समितियां हैं। वहां के गाँवों में भी रोजगार है,शहरों का तो पूछना ही क्या है। तभी तो देश के अधिकांश हिस्सों के लोग, उत्तर प्रदेश, बिहार के लोग भागे चले आते हैं। सूरत, बडौदा, जामनगर, भावनगर इनसे भरा पडा है।
भारत में पूर्वात्तर राज्य भी हैं, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा, झारखण्ड और बिहार भी है। वहां गरीबी है, भुखमरी है, पिछडापन है। यह असंतुलन है। मोदी जी को इसके लिये भी सोचना होगा। केवल गुजरात को ही नहीं पूरे भारत को वाइब्रेंट बनाना होगा। योजना आयोग ने भारतीय जनता पार्टी द्वारा शासित राज्यों की प्रशंसा की है कि उनके प्रदेशों में जनहित के कार्य किये जा रहे हैं। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी जी ने वहां के वित्तमन्त्रियों को केंद्रीय कार्यालय में सम्मानित किया। वे चाहते हैं भारत वाइब्रेंट हो जाय क्योंकि राष्ट्र उनकी प्राथमिकता है, उनका दर्द्गान है, उनका स्वप्न है, उनका जीवन है।
गुजरात स्पंदन कर रहा है, अंगड़ाइयाँ ले रहा है, गतिशील है। अभी विकास की और मंजिलें बाकी हैं जिन्हे प्राप्त करना है, इसलिये गुजरात वाइब्रेंट है। कच्छ से लोकसभा की सदस्य पूनमबेन जाट कहती हैं- 'हमें सोचना पडता है कि विकास का कौन सा कार्य करें जो नहीं हुआ है। नरेन्द्र मोदी जी ने कुछ नहीं छोडा है'। गुजरात को पूर्ण विकसित कर दिया है फिर भी वो गुजरात को वाइब्रेंट गुजरात की संज्ञा देते हैं। वे गुजरात को दुनिया के नक्शे में वह स्थान दिलाना चाहते हैं जिससे विश्व के विकसित देशों के लोग भी भारत की अस्मिता, संस्कृति और परम्परा पर श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिये आतुर हो जायें। इसलिये गुजरात वाइब्रेंट है।
प्रारम्भ से ही गुजरात को समुद्र के किनारे होने का लाभ मिला है। वैश्विक व्यापार समुद्र के रास्ते होता था। लोगों की बुद्धि व्यावसायिक थी। राजनीतिज्ञों की सोच भी उसी दिशा में रही। सहकारिता भी इसी कारण वहां सफल हुई। ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा और व्यावसायिक सोच हो तो आर्थिक उन्नति में देर नहीं लगती। गरीब और सामान्य व्यक्ति के पास यह था। धन की कमीं थी तो सहकारिता ने पूरी कर दी। गरीब भी गरीब नहीं रहा। सामान्य भी धनी हो गया। मोदी जी ने विरासत में जो पाया उसमें चार-चाँद लगा दिया, फिर भी सोच रूकी नहीं। गुजरात वाइब्रेंट है।
यहां के महानगरों और नगरों में शनिवार या रविवार की रात्रि में अधिकांश घरों में खाना नहीं बनता। होटलों में जगह नहीं मिलती। यह रिवाज बन गया है। देश का सबसे विकसित प्रदेश जिसकी प्रति व्यक्ति आय रू. ४५,७७३/- है जो राष्ट्रीय औसत रू. ३८,०८४/- से अधिक है। इसमें सहकारी क्षेत्र का बहुत बड़ा योगदान है। अमूल और अमूल जैसी पूरे प्रदेश में फैली हुई अनेक डेयरी हैं जिन्होंने वहां श्वेत क्रान्ति ला दिया है। लिज्जत पापड, सेवा बैंक महिलाओं की संस्थायें हैं। सिंचाई के पानी के लिये भी ३००० से अधिक सहकारी समितियां हैं। वहां के गाँवों में भी रोजगार है,शहरों का तो पूछना ही क्या है। तभी तो देश के अधिकांश हिस्सों के लोग, उत्तर प्रदेश, बिहार के लोग भागे चले आते हैं। सूरत, बडौदा, जामनगर, भावनगर इनसे भरा पडा है।
भारत में पूर्वात्तर राज्य भी हैं, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा, झारखण्ड और बिहार भी है। वहां गरीबी है, भुखमरी है, पिछडापन है। यह असंतुलन है। मोदी जी को इसके लिये भी सोचना होगा। केवल गुजरात को ही नहीं पूरे भारत को वाइब्रेंट बनाना होगा। योजना आयोग ने भारतीय जनता पार्टी द्वारा शासित राज्यों की प्रशंसा की है कि उनके प्रदेशों में जनहित के कार्य किये जा रहे हैं। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी जी ने वहां के वित्तमन्त्रियों को केंद्रीय कार्यालय में सम्मानित किया। वे चाहते हैं भारत वाइब्रेंट हो जाय क्योंकि राष्ट्र उनकी प्राथमिकता है, उनका दर्द्गान है, उनका स्वप्न है, उनका जीवन है।
Tuesday, June 28, 2011
सहकारी बैंकों को आयकर से मुक्त किया जाये
सहकारी बैंकों को आयकर से मुक्त किया जाये
भारतीय जनता पार्टी के पूर्व अध्यक्ष श्री राजनाथ सिंह ने लोकसभा में दिनांक १७ जुलाई २००९ को कृषि पर चर्चा करते हुए भारत सरकार से बहुत ही जोरदार शब्दों में यह मांग की कि सहकारी बैंकों पर हुए भारत सरकार से बहुत ही जोरदार शब्दों में यह मांग की कि सहकारी बैंकों पर यू.पी.ए. सरकार द्वारा दो-तीन वर्षों पहले लगाया गया आयकर पूर्णतः समाप्त किया जाना चाहिए क्योंकि ये बैंक गरीबों, किसानों और मजदूरों को छोटे कज आसानी से और तुरन्त उपलब्ध कराते हैं।
उन्होंने कहा कि भारत में कार्यरत ०.५ मिलियन सोसाइटीज, २३० मिलियन सदस्य एवं १.५ मिलियऩ सहकारी कर्मचारी हैं यह विश्व का सबसे बडा सहकारिता आन्दोलन है, उसे राजनीति एवं भ्रष्टाचार से मुक्त कर उबारने के लिये गंभीरता पूर्वक विचार करने की आवश्यकता है।
उन्होंने इस बात पर विशेष जोर दिया कि सहकारी बैंकों तथा सहकारी समितियों से जो किसान कर्ज लेना चाहें उन्हें अधिक से अधिक तीन, चार या पांच प्रतिशत ब्याज दर पर ही लोन मिल सके ऐसी व्यवस्था सरकार को करनी चाहिए।
भारतीय जनता पार्टी के पूर्व अध्यक्ष श्री राजनाथ सिंह ने लोकसभा में दिनांक १७ जुलाई २००९ को कृषि पर चर्चा करते हुए भारत सरकार से बहुत ही जोरदार शब्दों में यह मांग की कि सहकारी बैंकों पर हुए भारत सरकार से बहुत ही जोरदार शब्दों में यह मांग की कि सहकारी बैंकों पर यू.पी.ए. सरकार द्वारा दो-तीन वर्षों पहले लगाया गया आयकर पूर्णतः समाप्त किया जाना चाहिए क्योंकि ये बैंक गरीबों, किसानों और मजदूरों को छोटे कज आसानी से और तुरन्त उपलब्ध कराते हैं।
उन्होंने कहा कि भारत में कार्यरत ०.५ मिलियन सोसाइटीज, २३० मिलियन सदस्य एवं १.५ मिलियऩ सहकारी कर्मचारी हैं यह विश्व का सबसे बडा सहकारिता आन्दोलन है, उसे राजनीति एवं भ्रष्टाचार से मुक्त कर उबारने के लिये गंभीरता पूर्वक विचार करने की आवश्यकता है।
उन्होंने इस बात पर विशेष जोर दिया कि सहकारी बैंकों तथा सहकारी समितियों से जो किसान कर्ज लेना चाहें उन्हें अधिक से अधिक तीन, चार या पांच प्रतिशत ब्याज दर पर ही लोन मिल सके ऐसी व्यवस्था सरकार को करनी चाहिए।
वैद्यैद्यनाथन समिति - एक क्रान्ति
वैद्यैद्यनाथन समिति - एक क्रान्ति
सन् २००८ में नाबार्ड ने फाईनैंशल इनक्लूजन (Financial Inclusion) के संदर्भ में एक समिति की नियुक्ति की। इस समिति ने अभ्यास करके अहवाल (प्रतिवेदन) दिया। इसमें समिति ने कहा है कि अनेक राष्ट्रीकृत बैंको ने अपनी शाखाए ग्रामीण क्षेत्र में खोली हैं, इसके बावजूद आज भी देश के कुल ग्रामीण किसानों में ५१ टक्के (प्रतिशत) किसान किसी भी बैंकिंग व्यवस्था से दूर हैं। पूर्वत्तोर राज्य में इसके प्रमाण बहुत हैं, मगर महाराष्ट्र जैसे प्रगत राज्य में भी यह स्थिति २००८ में भी ३४ टक्के (प्रतिशत) है। इन किसानों का किसी भी बैंक में खाता ही नहीं है, ऋण लेने का तो सवाल ही नही। इसका अर्थ होता है कि ५१ प्रतिशत किसान आज भी या तो ऋण ही नही लेता या वह आज भी साहूकारों से ऋण लेते हैं। किसान ऋण लिये बिना खेती कर ही नहीं सकता, यह सत्य जानने के लिए किसी भी सर्वेक्षण की बिल्कुल आवश्यकता नही है। उसे ऋण की जरूरत तो है ही और यह जरूरत वह आज भी साहूकार से और कुछ अंश तक ग्रामीण कृषि सहकारी साख समितियों से पूरी कर लेता है। १९०४ के सहकारिता कानून के अन्तर्गत एक त्रिस्तरीय सहकारी ढ़ांचा निर्माण किया गया था, जिसमें ग्राम स्तर पर प्राथमिक कृषि सहकारी साख समिति की व्यवस्था की गयी थी (इस लेख में समिति कहेंगे), इन साख समितियों को निधि उपलब्ध कराने हेतु जिला स्तर पर जिला सहकारी बैंक और इन बैंकों का राज्य स्तर पर एक अपेक्स बैंक की रचना की गई थी। स्वाधीनता के बाद इस रचना में अच्छी प्रगति हुई है। २००३ में अपने देश में १२,३०९ साख समितियॉ, ३६० जिला बैंक तथा ३० अपेक्स बैंक थे। इन साख समितियों द्वारा किसानों को केवल क्रॉप लोन (फसल हेतु लोन) मिलता था। केवल इस व्यवस्था से न तो साख समितियॉ व्हायेबल (Viable) हुई थी ना ही जिला सहकारी बैंक। धीरे–धीरे सभी राज्यों ने इन जिला बैंको को अन्य व्यवसाय करने के लिए प्रोत्साहित किया, और उनका व्यवसाय बढ़ने लगा। साख समितियों को भी बहुतांश राज्यों ने जन वितरण व्यवस्था (PDS) काम देकर व्यवसाय बढ़ाने के लिए व्यवस्था की, मगर व्हायेबल (Viable) ना होने के कारण वह स्वतंत्र कर्मचारी भी नहीं रख पाते थे। परिणामतः कुछ राज्यों ने केडर की स्थापना की और एक-एक कर्मचारी पाँच-पाँच समितियों का हिसाब रखने लगा। खेती के लिए मिलने वाला ऋण किसान को वर्ष में एक या दो बार और वह भी अधूरा मिलता था। किसान अपनी खेती तथा निजी निर्वाह के लिए साहूकार के पास जाता ही था। परिणामस्वरूप वह समितियों का ऋण वापिस नहीं कर पाता था और समितियॉ घाटे में जाने लगती। अनेक राज्य सरकारों ने कई बार यह ऋण अंशतः माफ किये, कई बार ब्याज माफ किया। केंद्र सरकार ने भी इन्हे कई बार मदद किया। मगर २००३ के आंकड़ों से पता चला कि इस ढाचे का घाटा दस हजार करोड के ऊपर जा रहा है। इसका अर्थ साफ था कि यह त्रिस्तरीय रचना डूबने को थी। तब केंद्र सरकार ने प्रो. वैद्यनाथन की अध्यक्षता में एक समिति का निर्माण किया। इस समिति ने अभ्यास करके २००५ में अपनी रिपोर्ट दी।
इस रिपोर्ट में समिति ने घाटे के कारण और उस पर उपाय योजना के सुझाव दिये, घाटे के निम्न कारण थे :
१. हिसाब पद्धति उचित नहीं है।
२. इस रचना में तंत्रज्ञान का पूरा अभाव था।
३. कर्मचारियों को कार्य के बारें में ज्ञान नहीं था तथा उन्हे प्रशिक्षण देने की कुछ भी व्यवस्था नहीं थी।
४. तीनों स्तर पर एक दूसरे से कानूनन जुड़े होने के कारण परावलंबी थे।
५. राज्य सरकारों का दैनदिन कार्य में बहुत ही हस्तक्षेप हुआ करता था। समिति को बर्खास्त करना, निर्वाचन कार्य समय पर न करना आदि।
६. सरकारों का कृषि विषयक धोरण भी परिणाम करता था। जैसे कभी किसान का ऋण माफ किया तो जो किसान कर्ज वापिस करते हैं, उन्हें लगता कि डिफाल्ट होने से फायदा है और इस प्रकार समितियों का घाटा बढ़ने लगता।
वैद्यनाथन समिति ने इन्हीं कारणों को दूर करने के लिए सुझाव दिये। कारण स्पष्ट था कि यदि यह कारण दूर नहीं हुए और आज इस संरचना का घाटा भर दिया तो आगे चार-पाँच साल में फिर यही स्थिति आ जायेगी।
इसलिए समिति ने निम्नलिखित सुझाव दिये :-
१. पूरी संचरना में हिसाब की एक पद्धति हो।
२. प्रत्येक समिति, बैंक पूरी तरह संगणीकृत हो।
३. हिसाब पद्धति तथा एम.आई.एस. (MIS) प्र० सू० प० का प्रशिक्षण दिया जाए।
४. आर्थिक दृष्टि से प्रत्येक स्तर स्वतंत्र हो
५. प्रशासकीय दृष्टि से भी प्रत्येक स्तर स्वतंत्र हो, राज्य सरकार केवल पंजीकरण और समय पर निर्वाचन कराये। यदि समितियों को लगातार ३ साल घाटा हुआ अथवा कोई भ्रष्टाचार का गंभीर मामला हो अथवा सत्त गणपूर्ति न हो तो समिति स्थगित करें। जिला बैंक भी स्वायत्त हों, मगर शासन का एक प्रतिनिधि कार्यकारी मण्डल में हो और बैंको का कार्य रिर्जव बैंक के निर्देशानुसार चले। इसके लिए प्रत्येक राज्य सरकार को अपने सहकारी कानून में संशोधन करना आवश्यक था, क्योंकि इन समितियों तथा बैंको में प्रत्येक राज्य सरकार ने पूंजी लगायी थी और बंधन भी कानून से लगाये थे।
६. पूरा घाटा भर देना, तंत्रज्ञान एवं प्रशिक्षण के लिए पूरा पन्द्रह हजार करोड़ रूपयों का पैकेज इस संरचना के लिए दिया जाए।
केन्द्र सरकार ने यह रिपोर्ट स्वीकृत की और नाबार्ड को इसके क्रियान्वयन का कार्य सौंपा। यह संरचना स्वायत्त हो, सशक्त हो इसके लिए इसी पैकेज में समितियों का घाटा भरकर प्रत्येक समिति का CRAR 7% हो इसका प्रावधान रखा गया। एक बार इतनी सहायता करने के पश्चात् समिति को बाद में कभी भी, कहीं से भी सहायता नहीं मिलेगी ऐसा प्रावधान किया गया। स्वायत्त, सशक्त, संस्था यदि चलाना नहीं आता तो ऐसी संस्था समाप्त होना ही ठीक है ऐसा विचार वैद्यनाथन् समिति ने दिया। ऐसी स्थिति लाने के लिए राज्य सरकारों को सहकारी कानून में संशोधन करना आवश्यक था। इसलिए नाबार्ड ने प्रथम राज्य सरकार, केन्द्र सरकार, और नाबार्ड के बीच एक ट्रायपार्ट एम.ओ.यू. करने के लिए कहा। इस आपसी समझौता ज्ञापन (MOU) में जहॉ केडर हो वो बर्खास्त करने की भी सूचना थी। राज्य सरकारो ने इसे स्वीकृत करने के लिए दो साल का समय लिया और २००८ में २५ राज्यों ने इसे स्वीकार किया। नाबार्ड ने २००४ के अंको पर विशेष अंकेक्षण (Special Audit) करना तथा अनुदान निश्चित करने का काय प्रारम्भ किया। इसके बाद समितियों के कर्मचारियों का चार दिन का तथा संचालकों का दो दिन का प्रशिक्षण प्रारम्भ किया। आज सभी २५ राज्यों में ८०६०६ समितियों में से ७८५३९ समितियों का विशेष अंकेक्षण (Special Audit) तथा १३ राज्यों से ६२३०१ कर्मचारियों को तथा ८८७७३ संचालकों को प्रशिक्षण दिया गया है। समान लेखा पद्धति (Common Accounting system) का Software तैयार किया है और उसका प्रतिदर्श (Module) तैयार करके राज्यों के पंजीयक सहकारी सोसाईटीज (RCS) को दिया गया है। इसका प्रशिक्षण भी अभी तक ५११०६ कर्मचारियों को दिया गया है। जिला सहकारी बैंको का भी विशेष अंकेक्षण (Special Audit) हो चुका है और उनके संचालकों तथा कर्मचारियों का प्रशिक्षण भी प्रारम्भ हो गया है।
नाबार्ड इस सुझाव का क्रियान्वयन बहुत ही अच्छे ढ़ंग से कर रहा है मगर इससे वैद्यनाथन समिति की अपेक्षाएं तथा देश की अपेक्षाएं पूरी नहीं होंगी। आज तक की स्थिति पूर्ण रूप से एकदम बदल नहीं सकती। आज तक ये समितियां केवल फसल लोन तथा जन वितरण प्रणली PDS का काम ही करती थीं, अब अपेक्षा ऐसी है कि वह स्वतंत्र है अपना कार्य को अपने ढ़ंग से बढ ाने के लिए स्वतंत्र है। आज तक केवल समिति का सचिव और जिला सहकारी बैंक का एक अधिकारी ही समिति किसी भी संचालक को पता नहीं था, वो कुछ जानते भी नहीं थे और उन्हें यह सचिव पूछते भी नहीं थे। अपने कार्यकर्त्ताओं को ऋण मिले इसके लिए स्थानीय राजनीतिक कार्यकर्त्ता सचिव तथा जिला बैंक अधिकारी को अपनाकर काम किया करते थे। जिला बैंक अपने हाथ में रहे ऐसा प्रयास हर राजनीतिक पार्टी करती थी। जिला बैंक के संचालक प्रमुखतः समितियों में से होने के कारण समितियॉ अपने हाथ में रहे ऐसा प्रयास करते थे और हर समिति के संचालकों का यही प्रमुख कार्य था।
गांव का विकास इस समिति से हो सकता है ऐसा जहां भी विचार हुआ वहां की समिति अच्छी हुई। राजनीति मुक्त जो समिति रही वहां अच्छा विकास हुआ। अपने देश में सैकेड़ों समितियॉ बहुत अच्छा काम करती हैं, मगर जैसे वैद्यनाथन समिति ने कहा कि राज्य सरकारों का हस्तक्षेप अच्छा काम नहीं होने देता था, यह सारा बदल देना और गांव के किसानों ने अपनी समिति जनतंत्र के मूल्यानुसार चलाना यह अचानक होने वाला काम नही है। नाबार्ड का प्रयास उत्तम है, मगर यह कार्य ही ऐसा है कि जिसके लिए सतत प्रशिक्षण आवश्यक है। किसानों को आत्मविश्वास दिलाना कि वे समिति चला सकते हैं, उनका संचालक मण्डल स्वायत है, राज्य सरकार का सहकारी विभाग उसे बर्खास्त नहीं कर सकता, वे उनका कार्यस्वरूप स्वयं निश्चित कर सकते हैं, ऋण देना, वसूली करना, ब्याजदर निश्चित करना, डिपॉजिट लेना, कार्य की नई दिशाएं खोजना यह समितियों के संचालक मण्डल का ही अधिकार है। यह कोई सामान्य बात नही है। महात्मा गाँधी ने नमक का सत्याग्रह करके इस देश के सामान्य व्यक्ति को अपने अधिकार का ज्ञान देने का प्रयास किया था। यह कार्य भी उसी श्रेणी का है। जिन्हे अपने अधिकार तथा कर्त्तव्य का ज्ञान है, वह अच्छा काम करते ही हैं। आज देश के करीबन एक लाख समितियों के संचालकों को यह ज्ञान देना बहुत बड़ा काम है। यह केवल सरकार एवं नाबार्ड नहीं कर सकती है बल्कि यह करने के लिए स्वयंसेवी संस्था, सामाजिक कार्यकर्त्ताओं को भी अपनी शक्ति लगाना आवश्यक है। हर राजकीय पक्ष यदि इसमें भाग ले तो यह कार्य जल्दी होगा। मगर उन्हे केवल अपने पार्टी का स्वार्थ देखना छोड ना पडेगा।
इस क्रियान्वयन में कुछ त्रुटियॉ सामने आ रही हैं।
(१) कुछ राज्यों में केडर व्यवस्था है। केडर समाप्त तो हो गया है मगर राज्य सरकारों को भी अचानक हजारों कर्मचारियों को अन्यत्र काम में लगाना संभव नहीं है। मगर तब तक समितियों का काम भी ठहर न जाये इसकी चिंता करनी पड़ेगी। केडर का कर्मचारी ही अनेक समितियों की समस्या है, इसलिए राज्य सरकारों ने जिला स्तर पर यह व्यवस्था करने के लिए प्रयास जारी किये हैं। जो समितियॉ अपना सचिव नियुक्ति करना चाहती हैं, उन्हे करना चाहिए और राज्य सरकारें जो केडर व्यवस्था के लिए निधि समितियों से लेती थीं, उसमें से उन समितियों को छूट देनी चाहिए।
(२) २००४ के अंको पर Special Audit हुआ और अनुदान निश्चित किया गया। वैद्यनाथन समिति का केन्द्र सरकार को कहना है कि सशक्त और स्वायत्त करके समिति किसानों के, यानि संचालको के हाथ सौंप देना चाहिए। उसके बाद यह समिति चलाना उनका काम है। वे अच्छे ढ़ंग से नहीं चलायेंगे तो कुछ हद तक नियंत्रण करने वाली बैंक अथवा नाबार्ड सूचनाएं देती रहेगी मगर वसूली नहीं हुई तो यथावकाश वह समिति समाप्त हो जायेगी केन्द्र सरकार उसे मदद करने वाली नहीं है। विच्चेद्गा अंकेक्षण Special Audit 2004 के अंकों पर २००८ में हुआ। उसके बाद प्रशिक्षण हुआ। प्रशिक्षण में आप स्वतंत्र है ऐसा कहा तो गया, मगर वह पर्याप्त नहीं था। फिर भी २००४ से २००८ तक जो व्यवहार हुआ, उससे यदि घाटा हुआ अथवा CRAR कम हुआ तो इसका जिम्मेदार कौन? उस समिति के संचालकों को २००८ तक कुछ मालूम ही नहीं था। इसका भी विचार केन्द्र या राज्य सरकारों को करना होगा। अभी २००९ तक विच्चेद्गा अंकेक्षण Special Audit का रिपोर्ट भी समिति को पहुंचाए नहीं गये हैं। वे अभी जिला सहकारी बैंको में ही हैं और आज तक पहले जैसा ही जिला सहकारी बैंक कार्य कर रहे हैं।
यह त्रिस्तरीय संरचना एक दूसरे से बहुत जुड़ी हुई है। सालों से जिला सहकारी बैंक और समिति एक साथ काम करते आय हैं। जिला सहकारी बैंक के सकल कारोबार Turn over में समितियों का बहुत हिस्सा है। इसलिए जिला सहकारी बैंक के इस विषय में काम करने वाले अधिकारी, यह समिति जनतंत्रनुसार चलाने में बहुत अच्छे मार्गदर्शक हो सकते हैं। यही सोचकर नाबार्ड ने इन्हीं अधिकारियों को मास्टर ट्रेनर बनाया था। मगर यह कार्य अच्छे ढ़ंग से नहीं हो पाया। जिला बैंक के संचालकों तथा अन्य कार्यकर्त्ताओं को इन अधिकारियों को साथ लेकर एक समिति सुदृढ करनी होगी। इसके लिए चार-पाँच सालों तक सतत प्रशिक्षण का कार्य करना पडेगा तब यह कृषि सहकारी साख समितियॉ अच्छी बनेगीं।
वैद्यनाथन समिति ने क्रान्तिकारी कार्य किया है। हर ग्राम में एक स्वायत्त, सशक्त समिति बनाकर ग्रामवासियों के हाथ में दिया है। सरकार इसे मदद करना चाहती है। यदि यह समिति ठीक ढ़ंग से चले तो हमारा ग्राम विकास का लक्ष्य बहुत शीघ्र पूरा हो सकता है। प्रत्येक समिति गांव के किसानों को हर क्षण मदद कर सकती है और किसान साहूकारों की पकड से मुक्त हो सकता है। किसान की आर्थिक क्षमता बढे तो देश की भी बढेगी और सच्चे रूप से हमारा सकल घरेलू उत्पादन GDP बढेगा।
सन् २००८ में नाबार्ड ने फाईनैंशल इनक्लूजन (Financial Inclusion) के संदर्भ में एक समिति की नियुक्ति की। इस समिति ने अभ्यास करके अहवाल (प्रतिवेदन) दिया। इसमें समिति ने कहा है कि अनेक राष्ट्रीकृत बैंको ने अपनी शाखाए ग्रामीण क्षेत्र में खोली हैं, इसके बावजूद आज भी देश के कुल ग्रामीण किसानों में ५१ टक्के (प्रतिशत) किसान किसी भी बैंकिंग व्यवस्था से दूर हैं। पूर्वत्तोर राज्य में इसके प्रमाण बहुत हैं, मगर महाराष्ट्र जैसे प्रगत राज्य में भी यह स्थिति २००८ में भी ३४ टक्के (प्रतिशत) है। इन किसानों का किसी भी बैंक में खाता ही नहीं है, ऋण लेने का तो सवाल ही नही। इसका अर्थ होता है कि ५१ प्रतिशत किसान आज भी या तो ऋण ही नही लेता या वह आज भी साहूकारों से ऋण लेते हैं। किसान ऋण लिये बिना खेती कर ही नहीं सकता, यह सत्य जानने के लिए किसी भी सर्वेक्षण की बिल्कुल आवश्यकता नही है। उसे ऋण की जरूरत तो है ही और यह जरूरत वह आज भी साहूकार से और कुछ अंश तक ग्रामीण कृषि सहकारी साख समितियों से पूरी कर लेता है। १९०४ के सहकारिता कानून के अन्तर्गत एक त्रिस्तरीय सहकारी ढ़ांचा निर्माण किया गया था, जिसमें ग्राम स्तर पर प्राथमिक कृषि सहकारी साख समिति की व्यवस्था की गयी थी (इस लेख में समिति कहेंगे), इन साख समितियों को निधि उपलब्ध कराने हेतु जिला स्तर पर जिला सहकारी बैंक और इन बैंकों का राज्य स्तर पर एक अपेक्स बैंक की रचना की गई थी। स्वाधीनता के बाद इस रचना में अच्छी प्रगति हुई है। २००३ में अपने देश में १२,३०९ साख समितियॉ, ३६० जिला बैंक तथा ३० अपेक्स बैंक थे। इन साख समितियों द्वारा किसानों को केवल क्रॉप लोन (फसल हेतु लोन) मिलता था। केवल इस व्यवस्था से न तो साख समितियॉ व्हायेबल (Viable) हुई थी ना ही जिला सहकारी बैंक। धीरे–धीरे सभी राज्यों ने इन जिला बैंको को अन्य व्यवसाय करने के लिए प्रोत्साहित किया, और उनका व्यवसाय बढ़ने लगा। साख समितियों को भी बहुतांश राज्यों ने जन वितरण व्यवस्था (PDS) काम देकर व्यवसाय बढ़ाने के लिए व्यवस्था की, मगर व्हायेबल (Viable) ना होने के कारण वह स्वतंत्र कर्मचारी भी नहीं रख पाते थे। परिणामतः कुछ राज्यों ने केडर की स्थापना की और एक-एक कर्मचारी पाँच-पाँच समितियों का हिसाब रखने लगा। खेती के लिए मिलने वाला ऋण किसान को वर्ष में एक या दो बार और वह भी अधूरा मिलता था। किसान अपनी खेती तथा निजी निर्वाह के लिए साहूकार के पास जाता ही था। परिणामस्वरूप वह समितियों का ऋण वापिस नहीं कर पाता था और समितियॉ घाटे में जाने लगती। अनेक राज्य सरकारों ने कई बार यह ऋण अंशतः माफ किये, कई बार ब्याज माफ किया। केंद्र सरकार ने भी इन्हे कई बार मदद किया। मगर २००३ के आंकड़ों से पता चला कि इस ढाचे का घाटा दस हजार करोड के ऊपर जा रहा है। इसका अर्थ साफ था कि यह त्रिस्तरीय रचना डूबने को थी। तब केंद्र सरकार ने प्रो. वैद्यनाथन की अध्यक्षता में एक समिति का निर्माण किया। इस समिति ने अभ्यास करके २००५ में अपनी रिपोर्ट दी।
इस रिपोर्ट में समिति ने घाटे के कारण और उस पर उपाय योजना के सुझाव दिये, घाटे के निम्न कारण थे :
१. हिसाब पद्धति उचित नहीं है।
२. इस रचना में तंत्रज्ञान का पूरा अभाव था।
३. कर्मचारियों को कार्य के बारें में ज्ञान नहीं था तथा उन्हे प्रशिक्षण देने की कुछ भी व्यवस्था नहीं थी।
४. तीनों स्तर पर एक दूसरे से कानूनन जुड़े होने के कारण परावलंबी थे।
५. राज्य सरकारों का दैनदिन कार्य में बहुत ही हस्तक्षेप हुआ करता था। समिति को बर्खास्त करना, निर्वाचन कार्य समय पर न करना आदि।
६. सरकारों का कृषि विषयक धोरण भी परिणाम करता था। जैसे कभी किसान का ऋण माफ किया तो जो किसान कर्ज वापिस करते हैं, उन्हें लगता कि डिफाल्ट होने से फायदा है और इस प्रकार समितियों का घाटा बढ़ने लगता।
वैद्यनाथन समिति ने इन्हीं कारणों को दूर करने के लिए सुझाव दिये। कारण स्पष्ट था कि यदि यह कारण दूर नहीं हुए और आज इस संरचना का घाटा भर दिया तो आगे चार-पाँच साल में फिर यही स्थिति आ जायेगी।
इसलिए समिति ने निम्नलिखित सुझाव दिये :-
१. पूरी संचरना में हिसाब की एक पद्धति हो।
२. प्रत्येक समिति, बैंक पूरी तरह संगणीकृत हो।
३. हिसाब पद्धति तथा एम.आई.एस. (MIS) प्र० सू० प० का प्रशिक्षण दिया जाए।
४. आर्थिक दृष्टि से प्रत्येक स्तर स्वतंत्र हो
५. प्रशासकीय दृष्टि से भी प्रत्येक स्तर स्वतंत्र हो, राज्य सरकार केवल पंजीकरण और समय पर निर्वाचन कराये। यदि समितियों को लगातार ३ साल घाटा हुआ अथवा कोई भ्रष्टाचार का गंभीर मामला हो अथवा सत्त गणपूर्ति न हो तो समिति स्थगित करें। जिला बैंक भी स्वायत्त हों, मगर शासन का एक प्रतिनिधि कार्यकारी मण्डल में हो और बैंको का कार्य रिर्जव बैंक के निर्देशानुसार चले। इसके लिए प्रत्येक राज्य सरकार को अपने सहकारी कानून में संशोधन करना आवश्यक था, क्योंकि इन समितियों तथा बैंको में प्रत्येक राज्य सरकार ने पूंजी लगायी थी और बंधन भी कानून से लगाये थे।
६. पूरा घाटा भर देना, तंत्रज्ञान एवं प्रशिक्षण के लिए पूरा पन्द्रह हजार करोड़ रूपयों का पैकेज इस संरचना के लिए दिया जाए।
केन्द्र सरकार ने यह रिपोर्ट स्वीकृत की और नाबार्ड को इसके क्रियान्वयन का कार्य सौंपा। यह संरचना स्वायत्त हो, सशक्त हो इसके लिए इसी पैकेज में समितियों का घाटा भरकर प्रत्येक समिति का CRAR 7% हो इसका प्रावधान रखा गया। एक बार इतनी सहायता करने के पश्चात् समिति को बाद में कभी भी, कहीं से भी सहायता नहीं मिलेगी ऐसा प्रावधान किया गया। स्वायत्त, सशक्त, संस्था यदि चलाना नहीं आता तो ऐसी संस्था समाप्त होना ही ठीक है ऐसा विचार वैद्यनाथन् समिति ने दिया। ऐसी स्थिति लाने के लिए राज्य सरकारों को सहकारी कानून में संशोधन करना आवश्यक था। इसलिए नाबार्ड ने प्रथम राज्य सरकार, केन्द्र सरकार, और नाबार्ड के बीच एक ट्रायपार्ट एम.ओ.यू. करने के लिए कहा। इस आपसी समझौता ज्ञापन (MOU) में जहॉ केडर हो वो बर्खास्त करने की भी सूचना थी। राज्य सरकारो ने इसे स्वीकृत करने के लिए दो साल का समय लिया और २००८ में २५ राज्यों ने इसे स्वीकार किया। नाबार्ड ने २००४ के अंको पर विशेष अंकेक्षण (Special Audit) करना तथा अनुदान निश्चित करने का काय प्रारम्भ किया। इसके बाद समितियों के कर्मचारियों का चार दिन का तथा संचालकों का दो दिन का प्रशिक्षण प्रारम्भ किया। आज सभी २५ राज्यों में ८०६०६ समितियों में से ७८५३९ समितियों का विशेष अंकेक्षण (Special Audit) तथा १३ राज्यों से ६२३०१ कर्मचारियों को तथा ८८७७३ संचालकों को प्रशिक्षण दिया गया है। समान लेखा पद्धति (Common Accounting system) का Software तैयार किया है और उसका प्रतिदर्श (Module) तैयार करके राज्यों के पंजीयक सहकारी सोसाईटीज (RCS) को दिया गया है। इसका प्रशिक्षण भी अभी तक ५११०६ कर्मचारियों को दिया गया है। जिला सहकारी बैंको का भी विशेष अंकेक्षण (Special Audit) हो चुका है और उनके संचालकों तथा कर्मचारियों का प्रशिक्षण भी प्रारम्भ हो गया है।
नाबार्ड इस सुझाव का क्रियान्वयन बहुत ही अच्छे ढ़ंग से कर रहा है मगर इससे वैद्यनाथन समिति की अपेक्षाएं तथा देश की अपेक्षाएं पूरी नहीं होंगी। आज तक की स्थिति पूर्ण रूप से एकदम बदल नहीं सकती। आज तक ये समितियां केवल फसल लोन तथा जन वितरण प्रणली PDS का काम ही करती थीं, अब अपेक्षा ऐसी है कि वह स्वतंत्र है अपना कार्य को अपने ढ़ंग से बढ ाने के लिए स्वतंत्र है। आज तक केवल समिति का सचिव और जिला सहकारी बैंक का एक अधिकारी ही समिति किसी भी संचालक को पता नहीं था, वो कुछ जानते भी नहीं थे और उन्हें यह सचिव पूछते भी नहीं थे। अपने कार्यकर्त्ताओं को ऋण मिले इसके लिए स्थानीय राजनीतिक कार्यकर्त्ता सचिव तथा जिला बैंक अधिकारी को अपनाकर काम किया करते थे। जिला बैंक अपने हाथ में रहे ऐसा प्रयास हर राजनीतिक पार्टी करती थी। जिला बैंक के संचालक प्रमुखतः समितियों में से होने के कारण समितियॉ अपने हाथ में रहे ऐसा प्रयास करते थे और हर समिति के संचालकों का यही प्रमुख कार्य था।
गांव का विकास इस समिति से हो सकता है ऐसा जहां भी विचार हुआ वहां की समिति अच्छी हुई। राजनीति मुक्त जो समिति रही वहां अच्छा विकास हुआ। अपने देश में सैकेड़ों समितियॉ बहुत अच्छा काम करती हैं, मगर जैसे वैद्यनाथन समिति ने कहा कि राज्य सरकारों का हस्तक्षेप अच्छा काम नहीं होने देता था, यह सारा बदल देना और गांव के किसानों ने अपनी समिति जनतंत्र के मूल्यानुसार चलाना यह अचानक होने वाला काम नही है। नाबार्ड का प्रयास उत्तम है, मगर यह कार्य ही ऐसा है कि जिसके लिए सतत प्रशिक्षण आवश्यक है। किसानों को आत्मविश्वास दिलाना कि वे समिति चला सकते हैं, उनका संचालक मण्डल स्वायत है, राज्य सरकार का सहकारी विभाग उसे बर्खास्त नहीं कर सकता, वे उनका कार्यस्वरूप स्वयं निश्चित कर सकते हैं, ऋण देना, वसूली करना, ब्याजदर निश्चित करना, डिपॉजिट लेना, कार्य की नई दिशाएं खोजना यह समितियों के संचालक मण्डल का ही अधिकार है। यह कोई सामान्य बात नही है। महात्मा गाँधी ने नमक का सत्याग्रह करके इस देश के सामान्य व्यक्ति को अपने अधिकार का ज्ञान देने का प्रयास किया था। यह कार्य भी उसी श्रेणी का है। जिन्हे अपने अधिकार तथा कर्त्तव्य का ज्ञान है, वह अच्छा काम करते ही हैं। आज देश के करीबन एक लाख समितियों के संचालकों को यह ज्ञान देना बहुत बड़ा काम है। यह केवल सरकार एवं नाबार्ड नहीं कर सकती है बल्कि यह करने के लिए स्वयंसेवी संस्था, सामाजिक कार्यकर्त्ताओं को भी अपनी शक्ति लगाना आवश्यक है। हर राजकीय पक्ष यदि इसमें भाग ले तो यह कार्य जल्दी होगा। मगर उन्हे केवल अपने पार्टी का स्वार्थ देखना छोड ना पडेगा।
इस क्रियान्वयन में कुछ त्रुटियॉ सामने आ रही हैं।
(१) कुछ राज्यों में केडर व्यवस्था है। केडर समाप्त तो हो गया है मगर राज्य सरकारों को भी अचानक हजारों कर्मचारियों को अन्यत्र काम में लगाना संभव नहीं है। मगर तब तक समितियों का काम भी ठहर न जाये इसकी चिंता करनी पड़ेगी। केडर का कर्मचारी ही अनेक समितियों की समस्या है, इसलिए राज्य सरकारों ने जिला स्तर पर यह व्यवस्था करने के लिए प्रयास जारी किये हैं। जो समितियॉ अपना सचिव नियुक्ति करना चाहती हैं, उन्हे करना चाहिए और राज्य सरकारें जो केडर व्यवस्था के लिए निधि समितियों से लेती थीं, उसमें से उन समितियों को छूट देनी चाहिए।
(२) २००४ के अंको पर Special Audit हुआ और अनुदान निश्चित किया गया। वैद्यनाथन समिति का केन्द्र सरकार को कहना है कि सशक्त और स्वायत्त करके समिति किसानों के, यानि संचालको के हाथ सौंप देना चाहिए। उसके बाद यह समिति चलाना उनका काम है। वे अच्छे ढ़ंग से नहीं चलायेंगे तो कुछ हद तक नियंत्रण करने वाली बैंक अथवा नाबार्ड सूचनाएं देती रहेगी मगर वसूली नहीं हुई तो यथावकाश वह समिति समाप्त हो जायेगी केन्द्र सरकार उसे मदद करने वाली नहीं है। विच्चेद्गा अंकेक्षण Special Audit 2004 के अंकों पर २००८ में हुआ। उसके बाद प्रशिक्षण हुआ। प्रशिक्षण में आप स्वतंत्र है ऐसा कहा तो गया, मगर वह पर्याप्त नहीं था। फिर भी २००४ से २००८ तक जो व्यवहार हुआ, उससे यदि घाटा हुआ अथवा CRAR कम हुआ तो इसका जिम्मेदार कौन? उस समिति के संचालकों को २००८ तक कुछ मालूम ही नहीं था। इसका भी विचार केन्द्र या राज्य सरकारों को करना होगा। अभी २००९ तक विच्चेद्गा अंकेक्षण Special Audit का रिपोर्ट भी समिति को पहुंचाए नहीं गये हैं। वे अभी जिला सहकारी बैंको में ही हैं और आज तक पहले जैसा ही जिला सहकारी बैंक कार्य कर रहे हैं।
यह त्रिस्तरीय संरचना एक दूसरे से बहुत जुड़ी हुई है। सालों से जिला सहकारी बैंक और समिति एक साथ काम करते आय हैं। जिला सहकारी बैंक के सकल कारोबार Turn over में समितियों का बहुत हिस्सा है। इसलिए जिला सहकारी बैंक के इस विषय में काम करने वाले अधिकारी, यह समिति जनतंत्रनुसार चलाने में बहुत अच्छे मार्गदर्शक हो सकते हैं। यही सोचकर नाबार्ड ने इन्हीं अधिकारियों को मास्टर ट्रेनर बनाया था। मगर यह कार्य अच्छे ढ़ंग से नहीं हो पाया। जिला बैंक के संचालकों तथा अन्य कार्यकर्त्ताओं को इन अधिकारियों को साथ लेकर एक समिति सुदृढ करनी होगी। इसके लिए चार-पाँच सालों तक सतत प्रशिक्षण का कार्य करना पडेगा तब यह कृषि सहकारी साख समितियॉ अच्छी बनेगीं।
वैद्यनाथन समिति ने क्रान्तिकारी कार्य किया है। हर ग्राम में एक स्वायत्त, सशक्त समिति बनाकर ग्रामवासियों के हाथ में दिया है। सरकार इसे मदद करना चाहती है। यदि यह समिति ठीक ढ़ंग से चले तो हमारा ग्राम विकास का लक्ष्य बहुत शीघ्र पूरा हो सकता है। प्रत्येक समिति गांव के किसानों को हर क्षण मदद कर सकती है और किसान साहूकारों की पकड से मुक्त हो सकता है। किसान की आर्थिक क्षमता बढे तो देश की भी बढेगी और सच्चे रूप से हमारा सकल घरेलू उत्पादन GDP बढेगा।
Sunday, June 26, 2011
छत्तीसगढ़ के किसानों को बिजली की सौगात
स्वतंत्रता दिवस पर छत्तीसगढ़ के किसानों को
मिलेगी निःशुल्क बिजली की सौगात : डॉ. रमन सिंह
रायपुर, २६ जुलाई २००९/ छत्तीसगढ़ के सभी वर्गों के मेहनतकश किसानों को इस वर्ष स्वतंत्रता दिवस के मौके पर राज्य सरकार की ओर से पांच हार्स पावर तक सिंचाई पम्पों के लिए निःशुल्क बिजली की सौगात मिलेगी। मुखयमंत्री डॉ. रमन सिंह ने राजधानी रायपुर में आज भारतीय जनता पार्टी किसान मोर्चा और सहकारिता प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित विशाल किसान आस्था सम्मेलन में यह घोषणा की। डॉ. सिंह ने कहा कि छत्तीसगढ़ भारत का अकेला राज्य है, जहां किसानों को धान के समर्थन मूल्य के साथ प्रति क्विंटल २७० रूपए का बोनस भी दिया जा रहा है। इसके फलस्वरूप छत्तीसगढ के किसानों को उनके धान पर एक हजार रूपए से भी ज्यादा राशि मिल रही है। राज्य सरकार किसानों को धान के बोनस के रूप में ८८० करोड रूपए का वितरण कर रही है। इसकी पहली किश्त का भुगतान किया जा चुका है, जबकि बोनस की दूसरी किश्त के भुगतान की तैयारी भी तेजी से की जा रही है। सम्मेलन में लगभग एक लाख किसान शामिल हुए।
छत्तीसगढ़ की सहकारी समितियों के माध्यम से छह लाख ८५ हजार किसानों को बीते वर्ष में खेती के लिए सिर्फ तीन प्रतिशत ब्याज पर लगभग ७८७ करोड रूपए का ऋण दिया गया है। इसके अलावा उनके लिए कृषि ऋणों की पात्रता सीमा भी बढा दी गई है। इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर भारतीय जनता पार्टी किसान मोर्चा और सहकारिता प्रकोष्ठ ने उनके प्रति राज्य के किसानों की आस्था व्यक्त करने के लिए इस सम्मेलन का आयोजन किया गया। मुखयमंत्री ने अपने सम्बोधन में छत्तीसगढ को अकेला ऐसा राज्य निरूपित किया जहां ३७ लाख गरीब परिवारों को केवल १ रू० और २ रू० किलो की दर से ३५ किलो चावल और दो किलो अमृत नमक की योजना प्रारम्भ की गई है। छत्तीसगढ ऐसा अकेला राज्य है, जहां बिजली की कटौती नहीं हो रही है।
सम्मेलन को कृषि मंत्री श्री चन्द्रशेखर साहू, सहकारिता मंत्री श्री ननकीराम कंवर, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष और लोक सभा सांसद श्री विष्णुदेव साय, कांकेर के लोक सभा सांसद श्री सोहन पोटाई, भाजपा सहकारिता प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष और जिला पंचायत रायपुर के अध्यक्ष श्री अशोक बजाज तथा किसान मोर्चा के अध्यक्ष श्री भूपेन्द्र सिंह ठाकुर ने भी संबोधित किया। सम्मेलन में लोक निर्माण मंत्री श्री बृजमोहन अग्रवाल, जल संसाधन मंत्री श्री हेमचंद यादव, खाद्य मंत्री श्री पुन्नूलाल मोहले, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री श्री केदार कश्यप, महिला और बाल विकास मंत्री सुश्री लता उसेण्डी, संसदीय सचिव श्री भैयालाल राजवाड़े, लोक सभा सांसद सुश्री सरोज पाण्डेय, राज्यसभा सांसद श्री गोपाल व्यास, पूर्व लोक सभा सांसद श्री नंदकुमार साय, राज्य सहकारी विपणन संघ अध्यक्ष श्री राधाकृष्ण गुप्ता, राज्य सहकारी बैंक अध्यक्ष श्री महावीर सिंह राठौर तथा विधायक सर्वश्री नारायण चंदेल, रामजी भारती और खेदूराम साहू सहित अनेक वरिष्ठ नेता उपस्थित थे।
मिलेगी निःशुल्क बिजली की सौगात : डॉ. रमन सिंह
रायपुर, २६ जुलाई २००९/ छत्तीसगढ़ के सभी वर्गों के मेहनतकश किसानों को इस वर्ष स्वतंत्रता दिवस के मौके पर राज्य सरकार की ओर से पांच हार्स पावर तक सिंचाई पम्पों के लिए निःशुल्क बिजली की सौगात मिलेगी। मुखयमंत्री डॉ. रमन सिंह ने राजधानी रायपुर में आज भारतीय जनता पार्टी किसान मोर्चा और सहकारिता प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित विशाल किसान आस्था सम्मेलन में यह घोषणा की। डॉ. सिंह ने कहा कि छत्तीसगढ़ भारत का अकेला राज्य है, जहां किसानों को धान के समर्थन मूल्य के साथ प्रति क्विंटल २७० रूपए का बोनस भी दिया जा रहा है। इसके फलस्वरूप छत्तीसगढ के किसानों को उनके धान पर एक हजार रूपए से भी ज्यादा राशि मिल रही है। राज्य सरकार किसानों को धान के बोनस के रूप में ८८० करोड रूपए का वितरण कर रही है। इसकी पहली किश्त का भुगतान किया जा चुका है, जबकि बोनस की दूसरी किश्त के भुगतान की तैयारी भी तेजी से की जा रही है। सम्मेलन में लगभग एक लाख किसान शामिल हुए।
छत्तीसगढ़ की सहकारी समितियों के माध्यम से छह लाख ८५ हजार किसानों को बीते वर्ष में खेती के लिए सिर्फ तीन प्रतिशत ब्याज पर लगभग ७८७ करोड रूपए का ऋण दिया गया है। इसके अलावा उनके लिए कृषि ऋणों की पात्रता सीमा भी बढा दी गई है। इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर भारतीय जनता पार्टी किसान मोर्चा और सहकारिता प्रकोष्ठ ने उनके प्रति राज्य के किसानों की आस्था व्यक्त करने के लिए इस सम्मेलन का आयोजन किया गया। मुखयमंत्री ने अपने सम्बोधन में छत्तीसगढ को अकेला ऐसा राज्य निरूपित किया जहां ३७ लाख गरीब परिवारों को केवल १ रू० और २ रू० किलो की दर से ३५ किलो चावल और दो किलो अमृत नमक की योजना प्रारम्भ की गई है। छत्तीसगढ ऐसा अकेला राज्य है, जहां बिजली की कटौती नहीं हो रही है।
सम्मेलन को कृषि मंत्री श्री चन्द्रशेखर साहू, सहकारिता मंत्री श्री ननकीराम कंवर, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष और लोक सभा सांसद श्री विष्णुदेव साय, कांकेर के लोक सभा सांसद श्री सोहन पोटाई, भाजपा सहकारिता प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष और जिला पंचायत रायपुर के अध्यक्ष श्री अशोक बजाज तथा किसान मोर्चा के अध्यक्ष श्री भूपेन्द्र सिंह ठाकुर ने भी संबोधित किया। सम्मेलन में लोक निर्माण मंत्री श्री बृजमोहन अग्रवाल, जल संसाधन मंत्री श्री हेमचंद यादव, खाद्य मंत्री श्री पुन्नूलाल मोहले, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री श्री केदार कश्यप, महिला और बाल विकास मंत्री सुश्री लता उसेण्डी, संसदीय सचिव श्री भैयालाल राजवाड़े, लोक सभा सांसद सुश्री सरोज पाण्डेय, राज्यसभा सांसद श्री गोपाल व्यास, पूर्व लोक सभा सांसद श्री नंदकुमार साय, राज्य सहकारी विपणन संघ अध्यक्ष श्री राधाकृष्ण गुप्ता, राज्य सहकारी बैंक अध्यक्ष श्री महावीर सिंह राठौर तथा विधायक सर्वश्री नारायण चंदेल, रामजी भारती और खेदूराम साहू सहित अनेक वरिष्ठ नेता उपस्थित थे।
Tuesday, June 21, 2011
जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक मर्यादित रायपुर (छत्तीसगढ़)
जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक मर्यादित रायपुर (छत्तीसगढ़)
बैंक... एक नजर में
जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक मर्यादित रायपुर की स्थापना ०२ जनवरी सन १९१३ में हुई। अंचल के प्रखयात स्वाधीनता संग्राम सेनानी, छत्तीसगढ के सहकारिता पुरूष पं. वामन बलीराम जी लाखे द्वारा रोपित बरगढ बैंक), अपनी जडें (३४० समितियाँ) और शाखाओं (बैंक की शाखायें ५७) की छांव तले राजस्व जिलों-रायपुर, महासमुन्द एवं धमतरी के लाखों किसानों को अनवरत् सेवाएं प्रदान करते हुए नगद ऋण, कृषि हेतु खाद बीज दवाई ऋण, ट्रैक्टर, आवास आदि के लिए ऋण सुविधा प्रदान कर रहा है।
बैंक की सुविधाओं का केन्द्र-बिन्दु किसान हैं। बैंक की नीतियाँ, योजनाऐं, कार्यक्रम किसान-हित में हैं।
इस बैंक की स्थापना के समय सन १९१३ में बैंक की कार्यशील पूंजी ४३,७३५-०० रूपये थी तथा १०१९ किसानों को राशि रूपये २७,०१३-०० का ऋण प्रदाय किया गया। लेखा वर्ष २००८-०९ में बैंक की कुल कार्यशील पूंजी १२०० करोड़ रूपये से आधिक हो चुकी है। बैंक को राशि ४० करोड रूपये का लाभ प्राप्त हुआ है, जो कि कीर्तिमान है। यह बैंक कार्य व्यवसाय, स्टाफ एवं पूंजी, संसाधनों की दृष्टि से छत्तीसगढ का सबसे बडा सहकारी बैंक हैं। प्रदेश के सहकारी साख आन्दोलन का गौरव है।
छतीसगढ सरकार द्वारा वर्ष २००४ में कृषि ऋणों पर ब्याज दर को घटाकर ९ प्रतिशत किया गया। किसानों के हित में अप्रैल २००६ में कृषि ऋणों पर ब्याज दर ६ प्रतिशत किया गया। छत्तीसगढ के संवेदनशील और किसान-हितैशी मुखयमंत्री डॉ. रमन सिंह द्वारा १५ अगस्त २००८ को राज्य स्तरीय स्वाधीनता दिवस समारोह में घोषणा की गई कि अप्रैल २००८ से किसानों के कृषि ऋणों पर मात्र ३ प्रतिशत ब्याज दर लागू किया जावेगा। आज राज्य में मात्र ३ प्रतिशत ब्याज दर पर किसानों को कृषि ऋण की सुविधा उपलब्ध है। किसानों को मात्र ३ प्रतिशत ब्याज दर पर कृषि ऋण उपलब्ध कराने वाला देच्च का प्रथम राज्य छत्तीसगढ है।
मुखयमंत्री जी द्वारा किसान भाईयों के हित में अब कृषि ऋणों पर ब्याज दर शून्य किये जाने का निर्णय लिया गया है। किसान भाईयों के कल्याण में छ.ग. सरकार का ऐतिहासिक निर्णय है, जिसका देश भर में स्वागत हुआ है।
खरीफ वर्ष २००८-०९ में समर्थन मूल्य पर किसानों से धान उपार्जन में किसानों को २२० रूपये प्रति क्विंटल बोनस राशि प्रदान किये जाने से धान का समर्थन मूल्य ११५०-०० रूपये हुआ, जो देश में सर्वाधिक है। बोनस की राशि का प्रथम किश्त किसानों को प्रदाय भी कर दिया गया है।
जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक रायपुर द्वारा राज्य सरकार के किसान हित की उक्त योजनाओं का सफलतापूर्वक क्रियान्वयन किया जा रहा है। बैंक अपनी ५७ शाखाओं, ३४० सहकारी समितियों, ४६०, खाद केन्द्रों, ११३० से अधिक उपभोक्ता केन्द्र, १८० बचत बैंक एवं १००० से अधिक स्वयं सहायता बहिनी समूहों के विच्चाल नेटवर्क के माध्यम से किसान भाईयों-बहनों की सेवा कर रहा है।
बैंक... एक नजर में
जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक मर्यादित रायपुर की स्थापना ०२ जनवरी सन १९१३ में हुई। अंचल के प्रखयात स्वाधीनता संग्राम सेनानी, छत्तीसगढ के सहकारिता पुरूष पं. वामन बलीराम जी लाखे द्वारा रोपित बरगढ बैंक), अपनी जडें (३४० समितियाँ) और शाखाओं (बैंक की शाखायें ५७) की छांव तले राजस्व जिलों-रायपुर, महासमुन्द एवं धमतरी के लाखों किसानों को अनवरत् सेवाएं प्रदान करते हुए नगद ऋण, कृषि हेतु खाद बीज दवाई ऋण, ट्रैक्टर, आवास आदि के लिए ऋण सुविधा प्रदान कर रहा है।
बैंक की सुविधाओं का केन्द्र-बिन्दु किसान हैं। बैंक की नीतियाँ, योजनाऐं, कार्यक्रम किसान-हित में हैं।
इस बैंक की स्थापना के समय सन १९१३ में बैंक की कार्यशील पूंजी ४३,७३५-०० रूपये थी तथा १०१९ किसानों को राशि रूपये २७,०१३-०० का ऋण प्रदाय किया गया। लेखा वर्ष २००८-०९ में बैंक की कुल कार्यशील पूंजी १२०० करोड़ रूपये से आधिक हो चुकी है। बैंक को राशि ४० करोड रूपये का लाभ प्राप्त हुआ है, जो कि कीर्तिमान है। यह बैंक कार्य व्यवसाय, स्टाफ एवं पूंजी, संसाधनों की दृष्टि से छत्तीसगढ का सबसे बडा सहकारी बैंक हैं। प्रदेश के सहकारी साख आन्दोलन का गौरव है।
छतीसगढ सरकार द्वारा वर्ष २००४ में कृषि ऋणों पर ब्याज दर को घटाकर ९ प्रतिशत किया गया। किसानों के हित में अप्रैल २००६ में कृषि ऋणों पर ब्याज दर ६ प्रतिशत किया गया। छत्तीसगढ के संवेदनशील और किसान-हितैशी मुखयमंत्री डॉ. रमन सिंह द्वारा १५ अगस्त २००८ को राज्य स्तरीय स्वाधीनता दिवस समारोह में घोषणा की गई कि अप्रैल २००८ से किसानों के कृषि ऋणों पर मात्र ३ प्रतिशत ब्याज दर लागू किया जावेगा। आज राज्य में मात्र ३ प्रतिशत ब्याज दर पर किसानों को कृषि ऋण की सुविधा उपलब्ध है। किसानों को मात्र ३ प्रतिशत ब्याज दर पर कृषि ऋण उपलब्ध कराने वाला देच्च का प्रथम राज्य छत्तीसगढ है।
मुखयमंत्री जी द्वारा किसान भाईयों के हित में अब कृषि ऋणों पर ब्याज दर शून्य किये जाने का निर्णय लिया गया है। किसान भाईयों के कल्याण में छ.ग. सरकार का ऐतिहासिक निर्णय है, जिसका देश भर में स्वागत हुआ है।
खरीफ वर्ष २००८-०९ में समर्थन मूल्य पर किसानों से धान उपार्जन में किसानों को २२० रूपये प्रति क्विंटल बोनस राशि प्रदान किये जाने से धान का समर्थन मूल्य ११५०-०० रूपये हुआ, जो देश में सर्वाधिक है। बोनस की राशि का प्रथम किश्त किसानों को प्रदाय भी कर दिया गया है।
जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक रायपुर द्वारा राज्य सरकार के किसान हित की उक्त योजनाओं का सफलतापूर्वक क्रियान्वयन किया जा रहा है। बैंक अपनी ५७ शाखाओं, ३४० सहकारी समितियों, ४६०, खाद केन्द्रों, ११३० से अधिक उपभोक्ता केन्द्र, १८० बचत बैंक एवं १००० से अधिक स्वयं सहायता बहिनी समूहों के विच्चाल नेटवर्क के माध्यम से किसान भाईयों-बहनों की सेवा कर रहा है।
प्राथमिक कृषि सहकारी समिति
प्राथमिक कृषि सहकारी समिति-
मानिकचौरी को भारत सरकार द्वारा
सहकारी उत्कृष्ठता पुरस्कार-२००८
राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम नई दिल्ली के द्वारा प्रदान किया जाने वाला सहकारी उत्कृष्टता पुरस्कार के लिए प्रदेश स्तर पर प्राथमिक कृषि सहकारी समिति मानिक चौरी जिला रायपुर को चुना गया एवं नई दिल्ली एनसीयूआई आडिटोरियम में दिनांक १५ जनवरी २००९ को - पुरस्कार वितरण समारोह के आयोजन पर उत्कृष्ट समिति का पुरस्कार केन्द्रीय कृषि एवं सहकारिता मंत्री मान० श्री शरद पवार, भारत सरकार के द्वारा मानिकचौरी समिति के प्रतिनिधि मंडल को प्रदान किया गया। समारोह में अपेक्स बैंक के संचालक एवं जिला पंचायत रायपुर के अध्यक्ष माननीय श्री अशोक बजाज के साथ मानिक चौरी सहकारी समिति के निर्वाचित अध्यक्ष श्री लखन लाल साहू एवं कार्यकारिणी सदस्य श्री रामगोपाल भार्गव, श्री सीताराम साहू, श्री माखन साहू, श्री मोहन टंडन, श्री गुहाराम तारक, श्री नारायण सिन्हा के द्वारा पुरस्कार ग्रहण किया गया।
मानिक चौरी समिति के अंतर्गत ३६६३ कृषक सदस्य हैं, जिसमें १७१० ऋणी एवं १९५३ अऋणी किसान हैं। संबंद्ध किसानों की कृषिगत आवश्यकताओं की पूर्ति इस समिति के जरिये होती है। वर्ष २००७-०८ में रू. १५४.५५ लाख का कृषि ऋण का वितरण किया गया। समिति द्वारा किसानों को उर्वरक मात्रा ११०८ टन राशि रू ५५.४२ लाख का वितरण किया गया, जिसमें समिति को रू ०.३३ लाख का लाभार्जन हुआ। ऋणों की वसूली ८७ प्रतिशत रही है। समिति द्वारा खरीफ २००७-०८ में समर्थन मूल्य पर ८२००५ क्ंिवटल राशि रू ६२३.२४ लाख की खरीदी की गई, जिसमें समिति को रू. ८.११ लाख का लाभार्जन हुआ। इस समिति की ९४ प्रतिशत अंशपूंजी सदस्यों द्वारा ही दी जाती है। ३१.०३.२००८ की स्थिति पर समिति की कुल कार्यशील पूंजी रू. २७१.३५ लाख है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली अंतर्गत वर्ष २००७-०८ में उपभोक्ता सामग्रियों की बिक्री एवं वितरण में राशि रू. ६०.५० लाख, कार्य व्यवसाय में ३.५७ लाख का लाभ प्राप्त हुआ। पिछले चार वर्षों के व्यापार टर्नओवर में समिति का औसत वार्षिक वृद्धि ४२.६४ प्रतिशत रही है। वर्ष २००६-०७ में १८४ लाख रूपये का व्यापार टर्नओवर किया जिसमें इसे ७.७५ लाख रूपये का लाभ प्राप्त हुआ। (अपने क्षेत्र की ग्रामीण महिलाओं तथा कमजोर वर्गों के लाभ के लिए २२ महिला स्वयं सहायता समूह का गठन कर राशि रू. २.६० लाख की अमानत संकलन कर आर्थिक आत्मनिर्भरता की दिशा में समिति ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाया है।) समिति के अधीन अल्प बचत के लिए बचत बैंक संचालित है, जिसमें किसानों, ग्रामीणों से कुल १३७.१४ लाख रू. जमा की गई है।
अभनपुर विकासखंड स्थित इस समिति के अंतर्गत १४ गांव आते हैं, जिसमें मानिकचौरी, खोला, ठेलकाबांधा, गातापार, जामगांव, जवईबांधा, उमरपोटी, आलेखूटा, सोनेसिल्ली, दादरझोरी, पिपरौद, डोंगीतराई, हसदा एवं टोकरी शामिल हैं। उत्कृष्टता पुरस्कार मिलने पर प्रबंधकारिणी के अलावा सभी गांवों के नागरिकों में हर्ष व्याप्त है। जिला पंचायत अध्यक्ष अशोक बजाज वर्ष १९८२ से इस संस्था से प्रतिनिधित्व कर रहे हैं तथा वर्तमान में इसी सोसाइटी का प्रतिनिधित्व करते हुए राज्य सहकारी बैंक के संचालक भी हैं। छ०ग० से मानिकचौरी समिति को पुरस्कार मिलने से प्रदेश के माननीय मुखयमंत्री डा० रमण सिंह, ने मानिकचौरी समिति के प्रबंधकारिणी सदस्यों को बधाई दिया हैं।
मानिकचौरी को भारत सरकार द्वारा
सहकारी उत्कृष्ठता पुरस्कार-२००८
राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम नई दिल्ली के द्वारा प्रदान किया जाने वाला सहकारी उत्कृष्टता पुरस्कार के लिए प्रदेश स्तर पर प्राथमिक कृषि सहकारी समिति मानिक चौरी जिला रायपुर को चुना गया एवं नई दिल्ली एनसीयूआई आडिटोरियम में दिनांक १५ जनवरी २००९ को - पुरस्कार वितरण समारोह के आयोजन पर उत्कृष्ट समिति का पुरस्कार केन्द्रीय कृषि एवं सहकारिता मंत्री मान० श्री शरद पवार, भारत सरकार के द्वारा मानिकचौरी समिति के प्रतिनिधि मंडल को प्रदान किया गया। समारोह में अपेक्स बैंक के संचालक एवं जिला पंचायत रायपुर के अध्यक्ष माननीय श्री अशोक बजाज के साथ मानिक चौरी सहकारी समिति के निर्वाचित अध्यक्ष श्री लखन लाल साहू एवं कार्यकारिणी सदस्य श्री रामगोपाल भार्गव, श्री सीताराम साहू, श्री माखन साहू, श्री मोहन टंडन, श्री गुहाराम तारक, श्री नारायण सिन्हा के द्वारा पुरस्कार ग्रहण किया गया।
मानिक चौरी समिति के अंतर्गत ३६६३ कृषक सदस्य हैं, जिसमें १७१० ऋणी एवं १९५३ अऋणी किसान हैं। संबंद्ध किसानों की कृषिगत आवश्यकताओं की पूर्ति इस समिति के जरिये होती है। वर्ष २००७-०८ में रू. १५४.५५ लाख का कृषि ऋण का वितरण किया गया। समिति द्वारा किसानों को उर्वरक मात्रा ११०८ टन राशि रू ५५.४२ लाख का वितरण किया गया, जिसमें समिति को रू ०.३३ लाख का लाभार्जन हुआ। ऋणों की वसूली ८७ प्रतिशत रही है। समिति द्वारा खरीफ २००७-०८ में समर्थन मूल्य पर ८२००५ क्ंिवटल राशि रू ६२३.२४ लाख की खरीदी की गई, जिसमें समिति को रू. ८.११ लाख का लाभार्जन हुआ। इस समिति की ९४ प्रतिशत अंशपूंजी सदस्यों द्वारा ही दी जाती है। ३१.०३.२००८ की स्थिति पर समिति की कुल कार्यशील पूंजी रू. २७१.३५ लाख है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली अंतर्गत वर्ष २००७-०८ में उपभोक्ता सामग्रियों की बिक्री एवं वितरण में राशि रू. ६०.५० लाख, कार्य व्यवसाय में ३.५७ लाख का लाभ प्राप्त हुआ। पिछले चार वर्षों के व्यापार टर्नओवर में समिति का औसत वार्षिक वृद्धि ४२.६४ प्रतिशत रही है। वर्ष २००६-०७ में १८४ लाख रूपये का व्यापार टर्नओवर किया जिसमें इसे ७.७५ लाख रूपये का लाभ प्राप्त हुआ। (अपने क्षेत्र की ग्रामीण महिलाओं तथा कमजोर वर्गों के लाभ के लिए २२ महिला स्वयं सहायता समूह का गठन कर राशि रू. २.६० लाख की अमानत संकलन कर आर्थिक आत्मनिर्भरता की दिशा में समिति ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाया है।) समिति के अधीन अल्प बचत के लिए बचत बैंक संचालित है, जिसमें किसानों, ग्रामीणों से कुल १३७.१४ लाख रू. जमा की गई है।
अभनपुर विकासखंड स्थित इस समिति के अंतर्गत १४ गांव आते हैं, जिसमें मानिकचौरी, खोला, ठेलकाबांधा, गातापार, जामगांव, जवईबांधा, उमरपोटी, आलेखूटा, सोनेसिल्ली, दादरझोरी, पिपरौद, डोंगीतराई, हसदा एवं टोकरी शामिल हैं। उत्कृष्टता पुरस्कार मिलने पर प्रबंधकारिणी के अलावा सभी गांवों के नागरिकों में हर्ष व्याप्त है। जिला पंचायत अध्यक्ष अशोक बजाज वर्ष १९८२ से इस संस्था से प्रतिनिधित्व कर रहे हैं तथा वर्तमान में इसी सोसाइटी का प्रतिनिधित्व करते हुए राज्य सहकारी बैंक के संचालक भी हैं। छ०ग० से मानिकचौरी समिति को पुरस्कार मिलने से प्रदेश के माननीय मुखयमंत्री डा० रमण सिंह, ने मानिकचौरी समिति के प्रबंधकारिणी सदस्यों को बधाई दिया हैं।
छत्तीसगढ़ राज्य सहकारी विपणन संघ
छत्तीसगढ़ राज्य सहकारी विपणन संघ
छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माण के पश्चात् प्रजातांत्रिक पद्धति से निर्वाचन द्वारा गठित संचालक मण्डल कार्यरत है । सदस्य संस्थाओं के हित में विपणन संघ सदस्य, सहकारी संस्थाओं के सदस्य, सहकारी संस्थाओं के विकास तथा सुदृढीकरण करने पर विशेष ध्यान दे रहें हैं। शासन को सदस्य संस्थाओं को सुदृढ करने हेतु प्रस्ताव प्रेषित किया गया है। संचालक मण्डल सदैव सदस्य संस्थाओं के विकास के लिए प्रयासरत रहा है तथा आगे भी इसी दिशा में हम कार्य करेंगे ।
खरीफ २००८ में विपणन संघ ने अब तक का सर्वाधिक धान उपार्जन समर्थन मूल्य पर किया है तथा अब तक का सर्वाधिक रासायनिक उर्वरक वितरण भी किया गया है। खरीफ २००८ में कुल ३७ लाख ६० हजार मिट्रिक टन धान की खरीदी की गई है। खरीफ २००८ में ४,२४,५९४ मिट्रिक टन उर्वरक का वितरण किया गया है।
धान उपार्जन संबंधी संव्यवहारों के कम्प्यूटरीकरण की सफलता के पश्चात् अब खाद व्यवसाय, किसान राईस मिलों, पशु आहार व्यवसाय तथा लेखा संधारण के कार्यों का भी कम्प्यूटरीकण करने का लक्ष्य है। विपणन संघ की किसान राईस मिलें बहुत पुरानी तकनीक पर आधारित हैं, जिसके कारण चावल का उत्पादन प्रभावित होता है। हमने यह निर्णय लिया है कि खरीफ २००९ का धान आने के पूर्व ही विपणन संघ की चलने योग्य २२ राईस मिलों का आधुनिकीकरण किया जाए। ०८ स्थानों पर अधिक क्षमता की नई राईस मिलें भी स्थापित की जाएंगी। वर्ष २००९-२०१० में किसानों को उचित मूल्य पर कृषि यंत्रों का वितरण करने का भी प्रयास किया जाएगा । विपणन संघ की सदस्य सहकारी संस्थाओं के प्रतिनिधियों की ओर से वार्षिक साधारण सभा २००८ में प्राप्त सुझावों पर भी आवश्यक कार्यवाही की गई है । प्राथमिक विपणन सहकारी संस्थाओं की बंद राईस मिलों के विपणन संघ द्वारा संचालित किये जाने हेतु गत आमसभा के सुझावानुसार कार्य योजना बनाई जा रही है । विपणन संघ अपने सदस्य संस्थाओं को रसायनिक खाद विक्रय करने हेतु उपलब्ध करा रहा है।
खाद के व्यवसाय में विपणन संघ को तथा प्राथमिक कृषि साख सहकारी संस्थाओं को होने वाली हानि एक बहुत बड़ी समस्या रही है । खरीफ २००८ में विपणन संघ को राज्य शासन द्वारा खाद व्यवसाय में हानि की मदों की प्रतिपूर्ति बतौर रूपये ८.३० करोड प्रदान किया गया है। राज्य विपणन संघ यह प्रयास कर रहा है कि प्राथमिक संस्थाओं को खाद व्यवसाय में होने वाली हानि की भी शत् प्रतिशत पूर्ति राज्य शासन द्वारा की जाए । प्राथमिक समितियों के हित की दृष्टि से उर्वरक वितरण प्रणाली में संशोधन कराने के लिए भी विपणन संघ द्वारा पहल की गई है ।
वित्तीय वर्ष २००२-०३ के लेखा पुस्तकों की आडिट रिपोर्ट पंजीयक, सहकारी संस्थाओं से प्राप्त हुआ है, अंकेक्षित वित्तीय पत्रक, (आडिट रिपोर्ट) में उल्लिखित त्रुटियों के परिशुद्धि का प्रतिवेदन आमसभा के समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा है । विपणन संघ के अन्य संस्थाओं से लेखा मिलान के लंबित कार्य को पूर्ण करने के लिए चार्टर्ड एकाउण्टेंट की नियुक्ति की गई है। गत ८ वर्षों का लेखा मिलान शीघ्र ही पूर्ण होने जा रहा है । यह कार्य पूर्ण हो जाने पर नागरिक आपूर्ति निगम से लेनदारियों की स्थ्ति स्पष्ट हो सकेगी तदुपरान्त उसकी वसूली हेतु कार्यवाही भी सुनिश्चित की जाएगी और विपणन संघ की लेखा पुस्तकों का अंकेक्षण भी अद्यतन हो जायेगा । राज्य विपणन संघ टेली पद्धति अतिशीघ्र चालू करने जा रहा है।
विपणन संघ के लेखा पुस्तकों के आंतरिक अंकेक्षण के लिए समुचित व्यवस्था के अभाव में त्रुटियों की जानकारी कई वर्षों तक ज्ञात नहीं हो पाती थी । अब आंतरिक अंकेक्षण के लिए चार्टर्ड एकाउण्टेंट की नियुक्ति की गई है। गत कई वर्षों से पुराने उपयोगी तथा अनुपयोगी बारदानें बड़ी मात्रा में भंडारित थे, इनका विक्रय करने के लिए निविदायें आमंत्रित कर विक्रय की जा रही है।
विपणन संघ का व्यवसाय निरंतर बढ ता जा रहा है। कर्मचारियों के अभाव के कारण समय पर कार्यो को पूर्ण करने में असुविधाएं होती थी । इस वर्ष हमने कर्मचारी वृन्द का नया सेटअप तैयार करके पंजीयक, सहकारी संस्थाएं को भेजा था, जो उनके द्वारा अनुमोदित कर दिया गया है । इससे विपणन संघ को लगभग ४०० अतिरिक्त कर्मचारी अधिक योग्यता वाले उपलब्ध हो सकेंगे । इसके लिये राज्य द्राासन के व्यवसयिक परीक्षा मण्डल के माध्यम से भर्ती में पारदर्च्चिता रखते हुए कार्यवाही की जा रही है।
कर्मचारियों के विरूद्व विभिन्न प्रकार के कदाचारों के आरोपों के २०० से अधिक अनुशासनिक कार्रवाईयों के प्रकरण लंबित हैं। इनके शीघ्र निराकरण की दृष्टि से एक सेवानिवृत्त जिला एव सत्र न्यायाधीच्च को विभागीय जांच करने के लिए संविदा पर नियुक्त किया गया है । अब विभागीय जांच के प्रकरणों पर कार्यवाही में तेजी आई है ।
संचालक मण्डल द्वारा किसानों के व्यापक हित में निर्णय लेकर दो अति महत्वपूर्ण प्रस्ताव राज्य शासन को भेजे गए हैं । पहला - यह कि समर्थन मूल्य पर धान उपार्जन को विपणन संघ का स्थायी व्यवसाय घोषित किया जाए तथा दूसरा - यह कि प्राथमिक कृषि साख सहकारी संस्थाओं के द्वारा संचालित धान खरीदी केन्द्रों तथा विपणन संघ के धान संग्रहण केन्द्रों को इस प्रकार से विकसित किय जाए कि केन्द्रों पर चबूतरा, शेड्स, पीने के पानी, विद्युत, फैंसिंग, गोदामों आदि की पर्याप्त व्यवस्था हो सके ।
वर्ष २००८ की वार्षिक साधारण सभा द्वारा वित्तीय वर्ष २००८-०९ के लिए रूपये ५३९०.०० लाख का बजट स्वीकृत किया गया था इसे पुनरीक्षित करके रूपये ३९१३.८८ लाख का बजट अनुमान स्वीकृति है। वित्तीय वर्ष २००९-२०१० के लिए रूपयें ५३९६.०० लाख का बजट अनुमान स्वीकृति है। इस वर्ष में रूपये ११४३.० लाख का शुद्धलाभार्जन अनुमानित है ।
छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माण के पश्चात् प्रजातांत्रिक पद्धति से निर्वाचन द्वारा गठित संचालक मण्डल कार्यरत है । सदस्य संस्थाओं के हित में विपणन संघ सदस्य, सहकारी संस्थाओं के सदस्य, सहकारी संस्थाओं के विकास तथा सुदृढीकरण करने पर विशेष ध्यान दे रहें हैं। शासन को सदस्य संस्थाओं को सुदृढ करने हेतु प्रस्ताव प्रेषित किया गया है। संचालक मण्डल सदैव सदस्य संस्थाओं के विकास के लिए प्रयासरत रहा है तथा आगे भी इसी दिशा में हम कार्य करेंगे ।
खरीफ २००८ में विपणन संघ ने अब तक का सर्वाधिक धान उपार्जन समर्थन मूल्य पर किया है तथा अब तक का सर्वाधिक रासायनिक उर्वरक वितरण भी किया गया है। खरीफ २००८ में कुल ३७ लाख ६० हजार मिट्रिक टन धान की खरीदी की गई है। खरीफ २००८ में ४,२४,५९४ मिट्रिक टन उर्वरक का वितरण किया गया है।
धान उपार्जन संबंधी संव्यवहारों के कम्प्यूटरीकरण की सफलता के पश्चात् अब खाद व्यवसाय, किसान राईस मिलों, पशु आहार व्यवसाय तथा लेखा संधारण के कार्यों का भी कम्प्यूटरीकण करने का लक्ष्य है। विपणन संघ की किसान राईस मिलें बहुत पुरानी तकनीक पर आधारित हैं, जिसके कारण चावल का उत्पादन प्रभावित होता है। हमने यह निर्णय लिया है कि खरीफ २००९ का धान आने के पूर्व ही विपणन संघ की चलने योग्य २२ राईस मिलों का आधुनिकीकरण किया जाए। ०८ स्थानों पर अधिक क्षमता की नई राईस मिलें भी स्थापित की जाएंगी। वर्ष २००९-२०१० में किसानों को उचित मूल्य पर कृषि यंत्रों का वितरण करने का भी प्रयास किया जाएगा । विपणन संघ की सदस्य सहकारी संस्थाओं के प्रतिनिधियों की ओर से वार्षिक साधारण सभा २००८ में प्राप्त सुझावों पर भी आवश्यक कार्यवाही की गई है । प्राथमिक विपणन सहकारी संस्थाओं की बंद राईस मिलों के विपणन संघ द्वारा संचालित किये जाने हेतु गत आमसभा के सुझावानुसार कार्य योजना बनाई जा रही है । विपणन संघ अपने सदस्य संस्थाओं को रसायनिक खाद विक्रय करने हेतु उपलब्ध करा रहा है।
खाद के व्यवसाय में विपणन संघ को तथा प्राथमिक कृषि साख सहकारी संस्थाओं को होने वाली हानि एक बहुत बड़ी समस्या रही है । खरीफ २००८ में विपणन संघ को राज्य शासन द्वारा खाद व्यवसाय में हानि की मदों की प्रतिपूर्ति बतौर रूपये ८.३० करोड प्रदान किया गया है। राज्य विपणन संघ यह प्रयास कर रहा है कि प्राथमिक संस्थाओं को खाद व्यवसाय में होने वाली हानि की भी शत् प्रतिशत पूर्ति राज्य शासन द्वारा की जाए । प्राथमिक समितियों के हित की दृष्टि से उर्वरक वितरण प्रणाली में संशोधन कराने के लिए भी विपणन संघ द्वारा पहल की गई है ।
वित्तीय वर्ष २००२-०३ के लेखा पुस्तकों की आडिट रिपोर्ट पंजीयक, सहकारी संस्थाओं से प्राप्त हुआ है, अंकेक्षित वित्तीय पत्रक, (आडिट रिपोर्ट) में उल्लिखित त्रुटियों के परिशुद्धि का प्रतिवेदन आमसभा के समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा है । विपणन संघ के अन्य संस्थाओं से लेखा मिलान के लंबित कार्य को पूर्ण करने के लिए चार्टर्ड एकाउण्टेंट की नियुक्ति की गई है। गत ८ वर्षों का लेखा मिलान शीघ्र ही पूर्ण होने जा रहा है । यह कार्य पूर्ण हो जाने पर नागरिक आपूर्ति निगम से लेनदारियों की स्थ्ति स्पष्ट हो सकेगी तदुपरान्त उसकी वसूली हेतु कार्यवाही भी सुनिश्चित की जाएगी और विपणन संघ की लेखा पुस्तकों का अंकेक्षण भी अद्यतन हो जायेगा । राज्य विपणन संघ टेली पद्धति अतिशीघ्र चालू करने जा रहा है।
विपणन संघ के लेखा पुस्तकों के आंतरिक अंकेक्षण के लिए समुचित व्यवस्था के अभाव में त्रुटियों की जानकारी कई वर्षों तक ज्ञात नहीं हो पाती थी । अब आंतरिक अंकेक्षण के लिए चार्टर्ड एकाउण्टेंट की नियुक्ति की गई है। गत कई वर्षों से पुराने उपयोगी तथा अनुपयोगी बारदानें बड़ी मात्रा में भंडारित थे, इनका विक्रय करने के लिए निविदायें आमंत्रित कर विक्रय की जा रही है।
विपणन संघ का व्यवसाय निरंतर बढ ता जा रहा है। कर्मचारियों के अभाव के कारण समय पर कार्यो को पूर्ण करने में असुविधाएं होती थी । इस वर्ष हमने कर्मचारी वृन्द का नया सेटअप तैयार करके पंजीयक, सहकारी संस्थाएं को भेजा था, जो उनके द्वारा अनुमोदित कर दिया गया है । इससे विपणन संघ को लगभग ४०० अतिरिक्त कर्मचारी अधिक योग्यता वाले उपलब्ध हो सकेंगे । इसके लिये राज्य द्राासन के व्यवसयिक परीक्षा मण्डल के माध्यम से भर्ती में पारदर्च्चिता रखते हुए कार्यवाही की जा रही है।
कर्मचारियों के विरूद्व विभिन्न प्रकार के कदाचारों के आरोपों के २०० से अधिक अनुशासनिक कार्रवाईयों के प्रकरण लंबित हैं। इनके शीघ्र निराकरण की दृष्टि से एक सेवानिवृत्त जिला एव सत्र न्यायाधीच्च को विभागीय जांच करने के लिए संविदा पर नियुक्त किया गया है । अब विभागीय जांच के प्रकरणों पर कार्यवाही में तेजी आई है ।
संचालक मण्डल द्वारा किसानों के व्यापक हित में निर्णय लेकर दो अति महत्वपूर्ण प्रस्ताव राज्य शासन को भेजे गए हैं । पहला - यह कि समर्थन मूल्य पर धान उपार्जन को विपणन संघ का स्थायी व्यवसाय घोषित किया जाए तथा दूसरा - यह कि प्राथमिक कृषि साख सहकारी संस्थाओं के द्वारा संचालित धान खरीदी केन्द्रों तथा विपणन संघ के धान संग्रहण केन्द्रों को इस प्रकार से विकसित किय जाए कि केन्द्रों पर चबूतरा, शेड्स, पीने के पानी, विद्युत, फैंसिंग, गोदामों आदि की पर्याप्त व्यवस्था हो सके ।
वर्ष २००८ की वार्षिक साधारण सभा द्वारा वित्तीय वर्ष २००८-०९ के लिए रूपये ५३९०.०० लाख का बजट स्वीकृत किया गया था इसे पुनरीक्षित करके रूपये ३९१३.८८ लाख का बजट अनुमान स्वीकृति है। वित्तीय वर्ष २००९-२०१० के लिए रूपयें ५३९६.०० लाख का बजट अनुमान स्वीकृति है। इस वर्ष में रूपये ११४३.० लाख का शुद्धलाभार्जन अनुमानित है ।
Monday, June 20, 2011
प्रगति महिला नागरिक सहकारी बैंक मर्यादित, भिलाई, दुर्ग
प्रगति महिला नागरिक सहकारी बैंक मर्यादित, भिलाई, दुर्ग
आज से १३ वर्ष पहले एक छोटे से बीजांकुर के रूप मे प्रगति महिला नागरिक सहकारी बैंक मर्यादित की स्थापना हुई थी। आज उसी बीजांकुर का इतना विशाल वृक्ष का रूप देखकर अभिमान से सर ऊॅचा उठ जाता है। बैंक की स्थापना करने की कल्पना करने वाली उन महिलाओं की छोटी सी टोली से लेकर आज तक अनगिनत व्यक्तियों ने बैंक के कार्य में किसी भी स्वरूप मे हाथ बटाया है उन सभी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त किये बिना नहीं रहा जाता।
मानव जीवन का सामाजिक वास्तव्य ही प्रमुख लक्ष्य रहता है और सहकारिता यह मानवीय गुण है। यह भारतीय जीवन शैली का दर्पण है। अकेला चना भाड़ नही फोड सकता। यह एक अकाट्य तथ्य है। मनुष्य को पग पग पर एक दूसरे के सहयोग की आवश्यकता पडती है और इसी सहयोग ने सहकार तथा सहकारिता को जन्म दिया है। आवश्यकतानुसार इसका रूप-प्रारूप बदलता रहा है। गावों से लेकर महानगरों तक कुछ व्यक्ति एकत्रित होकर विभिन्न प्रकार की समितियां बनाकर सहकारिता का लाभ लेते हैं। परन्तु इनका दुरूपयोग न हो इसके लिये शासन को नियंत्रण लगाना पडा और शासकीय सहकारिता विभाग का अभ्युदय हुआ। इस विभाग सें और इस विभाग मे सहकारिता की कमियां और उससे गैर वाजिब लाभ लेने वालों पर अंकुश लगा हो या नियंत्रण हुआ हो यह चर्चा और शोध का विषय हो सकता है परंतु जिन व्यक्तियों ने सेवाभाव को प्रधानता देते हुए अपनी संस्था को जन्म दिया तथा उसका संवर्धन किया वे संस्थाएं किसी सरकारी सहायता की मोहताज नहीं रही। भिलाई में सन १९९५ में प्रगति महिला नागरिक सहकारी बैंक का रजिस्ट्रेशन कर स्थापना की गयी। अपने समाज सेवा के मूल उद्देश्यों और आदर्शों पर पूरा खरा उतरते हुए इस बैंक ने केवल १० वर्षो में ही छत्तीसगढ़ का सर्वोत्तम सहकारी बैंक का खिताब वर्ष २००६ में अपने नाम किया और आज भी यह कीर्तिमान प्रगति महिला नागरिक सहकारी बैंक भिलाई दुर्ग के पास बना हुआ है। छत्तीसगढ शासन ने वर्ष २००६ के छत्तीसगढ राज्योत्सव में विभिन्न पुरस्कारों के साथ सहकारिता विभाग का ''ठाकुर प्यारे लाल सिंह सहकारिता सम्मान ''पूर्व राष्ट्रपति महामहिम ए.पी. जे. अब्दुल कलाम जी के कर कमलों से, मुखयमंत्री डॉ. रमन सिंह, पूर्व विधान सभा अध्यक्ष श्री प्रेम प्रकाद्गा पांडे, पूर्व राज्यपाल महोदय और अन्य गणमान्य मंत्री महोदय एवं करीबन २ लाख जन समुदाय के समक्ष छत्तीसगढ राज्य के सर्वोत्कृष्ट सहकारी बैंक के सम्मान से विभूषित किया।
रिजर्व बैंक की दृष्टि मे ''लिटिल बट स्ट्रांग'' है यह बैंक
प्रगति महिला नाग. सह. बैंक की सफलता की विकास यात्रा करीबन २० वर्ष पूर्व महाराष्ट्र मंडल सेक्टर ४ से प्रारंभ हुई थी। महाराष्ट्र मे सफलतम व्यवसाय करने वाली सहकारी महिला बैंकों की चर्चा मंडल में हमेशा ही होती रहती थी। अवसर था गोंदिया निवासी श्री राम टोल जी की महिला मंडल से सौजन्य भेंट का। वे गोंदिया नाग. सह. बैंक के सी.ई.ओ. थे।
उस समय महिला समिति बड़ी, पापड, टिफीन, नाश्ता, दीवाली में लगने वाले चकली, गुजिया जैसे पदार्थ का व्यवसाय भी सफलता पूर्वक कर रही थी। श्री टोल जी के समक्ष इन महिलाओं ने अपनी सहकारी महिला बैंक का विचार रखा। खूब चर्चा, संगोष्ठी हुई। यहां महिलाओं में ऐसा अक्षय उर्जा का भंडार उन्हें दिखा तो तुरंत उन्होने सहकारी महिला बैंक स्थापना करने मे पूर्णतः मदद करने की हामी भरी। उस समय मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ में एक भी सहकारी महिला बैंक नहीं थी। चूंकि महाराष्ट्र महिला मंडल में महाराष्ट्र की तर्ज पर महिला सहकारिता का अभ्युदय यह सब मानो आर्थिक जगत में महिलाओं की दस्ते के लिए एक अनुकूल संयोग था। बस फिर क्या था भारत की हृदय स्थली में रहने वाले इस लघु भारत रूप भिलाई की महाराष्ट्रीयन महिलाओं ने अपनी १९८९ की पहली बैठक मे सहकारी महिला बैंक प्रारंभ करने का बीडा उठा ही लिया।
श्रीमती माधुरी ताई बखले के नेतृत्व में सभी चल पड़ीं। श्रीमती स्मिता जोशी प्रारंभ से आज तक की सफल अध्यक्षा, संजीवनी जोशी, नलिनी करकरे, प्राजक्ता करकरे, सुधा ताई देशपांडे, वृंदा भिडे, आरती जोशी तथा मैंने घर घर जाकर इन महिलाओं को महिला बैंक की संकल्पना, शेयर का अर्थ, शेयर मनी की आवश्यकता एवं बाध्यता, उनके पैसे की सुरक्षा का भरोसा दिलाने मे अपना दिन रात एक कर दिया। इस जुनून में अन्य अनेकानेक सखियों ने भी बढ चढ कर साथ दिया। रजिस्ट्रेशन के बाद रिजर्व बैंक का टारगेट पूर्ण करना जो कि १५०० सदस्य एवं १५ लाख अंश राशि खडा करना बडा सा पहाड पार करने वाला था परंतु ३ महीने में ही १७०० सौ सदस्या एवं १८ लाख अंश राशि का लक्ष्य पूरा हुआ।
दिन-दिन बढ़ता शेयर मनी हम महिलाओं के साहस और उत्साह में हर दिन वृदि करता और हर दिन नई योजनाएं, कार्यक्रमों को आंका जाता। फिर शुरू हुई कार्यालयीन कार्यवाही रिजर्व बैंक का लाइसेंस प्राप्त करना। इसके लिए जिला एवं संभागीय कार्यालयों के चक्कर काटना मानो हम महिलाओं की दिनचर्या का अभिन्न अंग बन गया। उस वक्त सहकारिता विभाग का अमला महिलाओं को समर्थक व्यवहार नहीं दे सका। महिला बैंक की स्थापना उनके सुव्यवस्थित संचालन पर उन्हें विश्वास रखना मुश्किल था। हमें बार-बार पूछा जाता था आपके साथ कोई पुरूष नहीं है क्या? हमें हमारी कार्य क्षमता पर उंगली उठती देख हम दुखी होते थे और महिलाए क्या बैंक चलाएंगी? इस नकारात्मक सोच के कारण नित्य हमें उपहास ही सहन करना पड ता था। परंतु कुछ कर दिखाने का जुनून १७०० महिलाओं की भागीदारी और उनकी शिक्षा के कारण अर्जित धैर्य ने कभी भी हम महिलाओं के बढते कदम रोकने के लिए प्रवृत नहीं किया।
हमारा साहस बढ़ाते हुए अग्रिम पंक्ति में कार्य करने वाली महिलाओं के पति भी पर्दे के पीछे सशक्त संबल दे रहे थे और प्रत्यक्ष सहयोग में अनेक बंधुओं के साथ तत्कालीन भाजपा विधायक स्व. दिनकर डांगे एवं संघ एवं भाजपा कार्यकर्ता श्री भाऊ टेंभेकर जी का नाम अविस्मरणीय है। टेंभेकर जी तो निःस्वार्थ हम महिलाओं की रायपुर एवं भोपाल (रिजर्व बैंक के प्रादेच्चिक मुखयालय) प्रवास में ठहरने, खाने की व्यवस्था सहर्द्गा अपने परिजनों के यहां करवा कर हम महिलाओं को सुरक्षा और संबल देते थे और आर्थिक संतुलन भी। क्योंकि १५ - १६ वर्ष पूर्व होटल मे रूकना आमबात भी नहीं था और खर्च के लिए तो कोई मद ही नहीं थी साथ में हमारे युवा साथी अतुल नागले, राजेन्द्र जोशी, अजय डांगे, धनंजय करकरे, विजय जोशी हमें प्रोत्साहित करते थे। इस सारी की सारी प्रक्रिया में हम महिलाओं ने कहीं भी अनाधिकृत आर्थिक प्रलोभनों का सहारा नहीं लिया जिससे कार्यों मे विलंब जरूर हुआ परंतु स्वच्छ आर्थिक व्यवहार की मजबूत नींव भी हमने रखी जो आज हमारी संस्था का पर्यायवाची बन गया है।
लाईसेंस मिलने की प्रक्रिया पूर्णता की ओर बढ़ रही थी व्यवसाय के लिए उचित स्थान की खोज शुरू हुई। प्रारंभिक व्यवस्था में महाराष्ट्र मंडल सेक्टर ४ भिलाई के निर्माणाधीन भवन में ही सब गतिविधियां चल रहीं थी। परंतु इस्पात नगरी भिलाई में स्वस्थ सहकारिता का वातावरण होने के कारण भिलाई इस्पात संयंत्र ने हमें सेक्टर २ ''ए'' मार्केट में जगह उपलब्ध कराकर मानो हमारे काम पर सफलता की मोहर लगा दी।
लाईसेंस और जगह सुनिश्चित होने के बाद दैनंदिन बैंकिंग प्रक्रिया आरंभ करने के लिए हमें अमूल्य मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। मुम्बई सहकारिता के क्षेत्र में अग्रगण्य श्री अरविंद भिड़े, श्री रंजन कुलकर्णी, सहकारी बैंक मुम्बई के श्री सतीश मराठे जो आज भी बैंक को सौजन्य भेंट देते रहते हैं। बैंक स्टाफ की संखया से लेकर सेवा भावना के साथ कार्यकरने के गुरूमंत्र देने का गुरूत्तर कार्य श्री भिडे काका ने किया। हम सब सदा ही उनके अत्यंत ऋणी रहेंगे। सभी घटकों के प्रतिनिधित्व को ध्यान मे रखते हुए प्रथम तदर्थ बोर्ड आफ डायरेक्टर्स का गठन हुआ।
समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्व और बैंक के माध्यम से समाज ऋण से अल्पमात्रा मे ही क्यों न हो उऋण होन के लिए हमने अपने ऐतिहासिक धरोहर को आत्मसात करने का प्रयास किया। फलतः मातृत्व कर्तृत्व और नेतृत्व का पाठ पढ़ाने वाली वंदनीया जीजा बाई, देवी अहिल्या बाई होल्कर और वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई को हमने अपना प्रेरणा स्रोत स्वीकार किया और इनका आदर्द्गा ही आज हमें कतिपय कठिनाईयों का सामना कर अपनी विकास यात्रा पर अग्रसर होने में आत्मिक उत्साह विद्गवास से भर देता है।
क्रमशः हमारे बैंक का वास्तविक प्रारंभ दिन पास आता गया और यहां उल्लेखित और अनुल्लेखित शुभचिंतकों के सहयोग, सदस्यों और भरपूर अंशराशि के साथ आर्शीवाद से हमने २५ जनवरी १९९६ को प्रगति महिला नागरिक सहकारी बैंक भिलाई का दुर्ग नगर एवं तत्कालीन म.प्र. और अब छत्तीसगढ़ सहकारिता विभाग में अवतरण हुआ। आने वाले वर्षो में मध्यम वर्गीय महिलाओं द्वारा आरंभ किये गये बैंक ने अपना कारोबार भी कम लागत व समर्पण भाव से उत्तम सेवा और अधिक लाभ का समीकरण सफलता पूर्वक प्राप्त किया जिसका पूरा श्रेय बैंक के पूर्व प्रबंधक श्रीयुत सुशील सगदेव, प्रबंधक श्री प्रतुल भेलोंडे,सहा. प्रबंधक श्री मुकुंद भोंबे और संपूर्ण स्टाफ को जाता है।
आरंभिक काल मे डिपाजिट लाने सभी करीब २० साख समितियों का विश्वास अर्जित कर उनका कारोबार और डिपाजिटर, ऋणी महिलाओं को अपने बैंक मे लाने के लिए सौ. स्मिता जोशी ने अपने सहयोगिनियों श्रीमती प्राजक्ता करकरे, आरती जोशी आदि के साथ अपनी अध्यक्षीय जिम्मेदारी बखूबी निभाई। सफल बैंक इस्पात संयंत्र के अधिकारियों का सहकार जो कि बैंक के प्रगति में वरद हस्त रहा।
स्थापना के ५ वर्षो में ही हमने हमारा दुर्ग स्थित विस्तार पटल आरंभ किया, भिलाई कार्यालय का नवीन भवन और कम्प्यूटरीकरण पूर्ण किया। निस्वार्थ सेवा भाव एवं इमानदार संचालक मंडल भी बैंक की विश्वासनीयता एवं लोगों का विश्वास पात्र रहा है जिससे व्यवसाय में बढ़ोत्तरी तो हो ही रही है। तीसरी बार इलेक्शन फाइट कर बैंक को सुव्यवस्थित संचालित कर बैंक का कारोबार बढता ही रहा है। महिलाओं के लिए विभिन्न प्रकार के उद्यमिता शिविरों का आयोजन कर आर्थिक, समाजिक, शैक्षणिक विषयों पर विचार मंथन करने का महिलाओं में जागरूकता लाने का कार्य संचालक मंडल एवं स्टाफ द्वारा किया जा रहा है।
राज्य में या देश में आये आपदा में बैंक ने सहायता करने के लिए बढ़ चढ कर हिस्सा लिया है। स्थानीय जनोपयोगी संस्था जैसे आदिवासी छात्रावास, मंदबुद्धि विद्यालयों, महिला बचत समूह, खेलकूद, शैक्षणिक स्कालरशिप आदि सामाजिक कार्यों को बढावा देना, अनुदान अपने धर्मदाय खाते से देना अपना आर्दश ही बना लिया है। बैंक प्रारंभ से ही लाभ में रहा है और अपनी सदस्याओं को बढ़ते क्रम में ११ प्रतिशत लाभांश दे रहा है। व्यवसायिक बैंकिंग प्रतिस्पर्धा में ताकतवर बन कर महिलाओं को आर्थिक संबल प्रदान करने का लक्ष्य रख कर बैंक का व्यवसाय सम्मानजनक है। ''लिटिल बट स्ट्रांग'' बैंक है हमारा।
वर्तमान में ६२०० सदस्य, १४०.३९ लाख अंशपूंजी, ४२२५. २८ लाख कार्यशील पूंजी, Net NPA १.७४% के साथ बैंक प्रथम वर्ष से लगातार ''अ'' वर्ग मे अंकेक्षित है।
बैंक ने वर्ष २००४ में राष्ट्रीय विकास रत्न गोल्ड पुरस्कार, वर्ष २००६ में छत्तीसगढ़ शासन का सहकारिता विभाग का ठाकुर प्यारे लाल पुरस्कार, वर्ष २००८ में इंडियन अचीवर्स फोरम से बेस्ट परफारमिंग को - ऑप. बैंक का पुरस्कार प्राप्त करके अपनी विकास यात्रा को जारी रखा है। हमें पूरा विश्वास है कि छत्तीसगढ राज्य की भारतीय जनता पार्टी की सरकार की महिलाओं को सहकारी क्षेत्र में बढावा देने वाली योजनाओं का लाभ उठाते हुए, व्यवस्था और मूल्यों का उच्च स्तर बनाए रखते हुए अपने कार्य क्षेत्र में सकारात्मक योगदान देते हुए शासन और बैंक दोनो ही गौरवान्वित होंगे।
कामना करते हैं कि समाज के सहयोग से हम कम खर्च अधिक सेवा अधिक लाभ के सिद्धांत से सफलता की नये सोपानों का आरोहण कर सहकारिता विभाग में अपनी उज्वल छवि को हमेशा बनाये रखेंगे।
आज से १३ वर्ष पहले एक छोटे से बीजांकुर के रूप मे प्रगति महिला नागरिक सहकारी बैंक मर्यादित की स्थापना हुई थी। आज उसी बीजांकुर का इतना विशाल वृक्ष का रूप देखकर अभिमान से सर ऊॅचा उठ जाता है। बैंक की स्थापना करने की कल्पना करने वाली उन महिलाओं की छोटी सी टोली से लेकर आज तक अनगिनत व्यक्तियों ने बैंक के कार्य में किसी भी स्वरूप मे हाथ बटाया है उन सभी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त किये बिना नहीं रहा जाता।
मानव जीवन का सामाजिक वास्तव्य ही प्रमुख लक्ष्य रहता है और सहकारिता यह मानवीय गुण है। यह भारतीय जीवन शैली का दर्पण है। अकेला चना भाड़ नही फोड सकता। यह एक अकाट्य तथ्य है। मनुष्य को पग पग पर एक दूसरे के सहयोग की आवश्यकता पडती है और इसी सहयोग ने सहकार तथा सहकारिता को जन्म दिया है। आवश्यकतानुसार इसका रूप-प्रारूप बदलता रहा है। गावों से लेकर महानगरों तक कुछ व्यक्ति एकत्रित होकर विभिन्न प्रकार की समितियां बनाकर सहकारिता का लाभ लेते हैं। परन्तु इनका दुरूपयोग न हो इसके लिये शासन को नियंत्रण लगाना पडा और शासकीय सहकारिता विभाग का अभ्युदय हुआ। इस विभाग सें और इस विभाग मे सहकारिता की कमियां और उससे गैर वाजिब लाभ लेने वालों पर अंकुश लगा हो या नियंत्रण हुआ हो यह चर्चा और शोध का विषय हो सकता है परंतु जिन व्यक्तियों ने सेवाभाव को प्रधानता देते हुए अपनी संस्था को जन्म दिया तथा उसका संवर्धन किया वे संस्थाएं किसी सरकारी सहायता की मोहताज नहीं रही। भिलाई में सन १९९५ में प्रगति महिला नागरिक सहकारी बैंक का रजिस्ट्रेशन कर स्थापना की गयी। अपने समाज सेवा के मूल उद्देश्यों और आदर्शों पर पूरा खरा उतरते हुए इस बैंक ने केवल १० वर्षो में ही छत्तीसगढ़ का सर्वोत्तम सहकारी बैंक का खिताब वर्ष २००६ में अपने नाम किया और आज भी यह कीर्तिमान प्रगति महिला नागरिक सहकारी बैंक भिलाई दुर्ग के पास बना हुआ है। छत्तीसगढ शासन ने वर्ष २००६ के छत्तीसगढ राज्योत्सव में विभिन्न पुरस्कारों के साथ सहकारिता विभाग का ''ठाकुर प्यारे लाल सिंह सहकारिता सम्मान ''पूर्व राष्ट्रपति महामहिम ए.पी. जे. अब्दुल कलाम जी के कर कमलों से, मुखयमंत्री डॉ. रमन सिंह, पूर्व विधान सभा अध्यक्ष श्री प्रेम प्रकाद्गा पांडे, पूर्व राज्यपाल महोदय और अन्य गणमान्य मंत्री महोदय एवं करीबन २ लाख जन समुदाय के समक्ष छत्तीसगढ राज्य के सर्वोत्कृष्ट सहकारी बैंक के सम्मान से विभूषित किया।
रिजर्व बैंक की दृष्टि मे ''लिटिल बट स्ट्रांग'' है यह बैंक
प्रगति महिला नाग. सह. बैंक की सफलता की विकास यात्रा करीबन २० वर्ष पूर्व महाराष्ट्र मंडल सेक्टर ४ से प्रारंभ हुई थी। महाराष्ट्र मे सफलतम व्यवसाय करने वाली सहकारी महिला बैंकों की चर्चा मंडल में हमेशा ही होती रहती थी। अवसर था गोंदिया निवासी श्री राम टोल जी की महिला मंडल से सौजन्य भेंट का। वे गोंदिया नाग. सह. बैंक के सी.ई.ओ. थे।
उस समय महिला समिति बड़ी, पापड, टिफीन, नाश्ता, दीवाली में लगने वाले चकली, गुजिया जैसे पदार्थ का व्यवसाय भी सफलता पूर्वक कर रही थी। श्री टोल जी के समक्ष इन महिलाओं ने अपनी सहकारी महिला बैंक का विचार रखा। खूब चर्चा, संगोष्ठी हुई। यहां महिलाओं में ऐसा अक्षय उर्जा का भंडार उन्हें दिखा तो तुरंत उन्होने सहकारी महिला बैंक स्थापना करने मे पूर्णतः मदद करने की हामी भरी। उस समय मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ में एक भी सहकारी महिला बैंक नहीं थी। चूंकि महाराष्ट्र महिला मंडल में महाराष्ट्र की तर्ज पर महिला सहकारिता का अभ्युदय यह सब मानो आर्थिक जगत में महिलाओं की दस्ते के लिए एक अनुकूल संयोग था। बस फिर क्या था भारत की हृदय स्थली में रहने वाले इस लघु भारत रूप भिलाई की महाराष्ट्रीयन महिलाओं ने अपनी १९८९ की पहली बैठक मे सहकारी महिला बैंक प्रारंभ करने का बीडा उठा ही लिया।
श्रीमती माधुरी ताई बखले के नेतृत्व में सभी चल पड़ीं। श्रीमती स्मिता जोशी प्रारंभ से आज तक की सफल अध्यक्षा, संजीवनी जोशी, नलिनी करकरे, प्राजक्ता करकरे, सुधा ताई देशपांडे, वृंदा भिडे, आरती जोशी तथा मैंने घर घर जाकर इन महिलाओं को महिला बैंक की संकल्पना, शेयर का अर्थ, शेयर मनी की आवश्यकता एवं बाध्यता, उनके पैसे की सुरक्षा का भरोसा दिलाने मे अपना दिन रात एक कर दिया। इस जुनून में अन्य अनेकानेक सखियों ने भी बढ चढ कर साथ दिया। रजिस्ट्रेशन के बाद रिजर्व बैंक का टारगेट पूर्ण करना जो कि १५०० सदस्य एवं १५ लाख अंश राशि खडा करना बडा सा पहाड पार करने वाला था परंतु ३ महीने में ही १७०० सौ सदस्या एवं १८ लाख अंश राशि का लक्ष्य पूरा हुआ।
दिन-दिन बढ़ता शेयर मनी हम महिलाओं के साहस और उत्साह में हर दिन वृदि करता और हर दिन नई योजनाएं, कार्यक्रमों को आंका जाता। फिर शुरू हुई कार्यालयीन कार्यवाही रिजर्व बैंक का लाइसेंस प्राप्त करना। इसके लिए जिला एवं संभागीय कार्यालयों के चक्कर काटना मानो हम महिलाओं की दिनचर्या का अभिन्न अंग बन गया। उस वक्त सहकारिता विभाग का अमला महिलाओं को समर्थक व्यवहार नहीं दे सका। महिला बैंक की स्थापना उनके सुव्यवस्थित संचालन पर उन्हें विश्वास रखना मुश्किल था। हमें बार-बार पूछा जाता था आपके साथ कोई पुरूष नहीं है क्या? हमें हमारी कार्य क्षमता पर उंगली उठती देख हम दुखी होते थे और महिलाए क्या बैंक चलाएंगी? इस नकारात्मक सोच के कारण नित्य हमें उपहास ही सहन करना पड ता था। परंतु कुछ कर दिखाने का जुनून १७०० महिलाओं की भागीदारी और उनकी शिक्षा के कारण अर्जित धैर्य ने कभी भी हम महिलाओं के बढते कदम रोकने के लिए प्रवृत नहीं किया।
हमारा साहस बढ़ाते हुए अग्रिम पंक्ति में कार्य करने वाली महिलाओं के पति भी पर्दे के पीछे सशक्त संबल दे रहे थे और प्रत्यक्ष सहयोग में अनेक बंधुओं के साथ तत्कालीन भाजपा विधायक स्व. दिनकर डांगे एवं संघ एवं भाजपा कार्यकर्ता श्री भाऊ टेंभेकर जी का नाम अविस्मरणीय है। टेंभेकर जी तो निःस्वार्थ हम महिलाओं की रायपुर एवं भोपाल (रिजर्व बैंक के प्रादेच्चिक मुखयालय) प्रवास में ठहरने, खाने की व्यवस्था सहर्द्गा अपने परिजनों के यहां करवा कर हम महिलाओं को सुरक्षा और संबल देते थे और आर्थिक संतुलन भी। क्योंकि १५ - १६ वर्ष पूर्व होटल मे रूकना आमबात भी नहीं था और खर्च के लिए तो कोई मद ही नहीं थी साथ में हमारे युवा साथी अतुल नागले, राजेन्द्र जोशी, अजय डांगे, धनंजय करकरे, विजय जोशी हमें प्रोत्साहित करते थे। इस सारी की सारी प्रक्रिया में हम महिलाओं ने कहीं भी अनाधिकृत आर्थिक प्रलोभनों का सहारा नहीं लिया जिससे कार्यों मे विलंब जरूर हुआ परंतु स्वच्छ आर्थिक व्यवहार की मजबूत नींव भी हमने रखी जो आज हमारी संस्था का पर्यायवाची बन गया है।
लाईसेंस मिलने की प्रक्रिया पूर्णता की ओर बढ़ रही थी व्यवसाय के लिए उचित स्थान की खोज शुरू हुई। प्रारंभिक व्यवस्था में महाराष्ट्र मंडल सेक्टर ४ भिलाई के निर्माणाधीन भवन में ही सब गतिविधियां चल रहीं थी। परंतु इस्पात नगरी भिलाई में स्वस्थ सहकारिता का वातावरण होने के कारण भिलाई इस्पात संयंत्र ने हमें सेक्टर २ ''ए'' मार्केट में जगह उपलब्ध कराकर मानो हमारे काम पर सफलता की मोहर लगा दी।
लाईसेंस और जगह सुनिश्चित होने के बाद दैनंदिन बैंकिंग प्रक्रिया आरंभ करने के लिए हमें अमूल्य मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। मुम्बई सहकारिता के क्षेत्र में अग्रगण्य श्री अरविंद भिड़े, श्री रंजन कुलकर्णी, सहकारी बैंक मुम्बई के श्री सतीश मराठे जो आज भी बैंक को सौजन्य भेंट देते रहते हैं। बैंक स्टाफ की संखया से लेकर सेवा भावना के साथ कार्यकरने के गुरूमंत्र देने का गुरूत्तर कार्य श्री भिडे काका ने किया। हम सब सदा ही उनके अत्यंत ऋणी रहेंगे। सभी घटकों के प्रतिनिधित्व को ध्यान मे रखते हुए प्रथम तदर्थ बोर्ड आफ डायरेक्टर्स का गठन हुआ।
समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्व और बैंक के माध्यम से समाज ऋण से अल्पमात्रा मे ही क्यों न हो उऋण होन के लिए हमने अपने ऐतिहासिक धरोहर को आत्मसात करने का प्रयास किया। फलतः मातृत्व कर्तृत्व और नेतृत्व का पाठ पढ़ाने वाली वंदनीया जीजा बाई, देवी अहिल्या बाई होल्कर और वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई को हमने अपना प्रेरणा स्रोत स्वीकार किया और इनका आदर्द्गा ही आज हमें कतिपय कठिनाईयों का सामना कर अपनी विकास यात्रा पर अग्रसर होने में आत्मिक उत्साह विद्गवास से भर देता है।
क्रमशः हमारे बैंक का वास्तविक प्रारंभ दिन पास आता गया और यहां उल्लेखित और अनुल्लेखित शुभचिंतकों के सहयोग, सदस्यों और भरपूर अंशराशि के साथ आर्शीवाद से हमने २५ जनवरी १९९६ को प्रगति महिला नागरिक सहकारी बैंक भिलाई का दुर्ग नगर एवं तत्कालीन म.प्र. और अब छत्तीसगढ़ सहकारिता विभाग में अवतरण हुआ। आने वाले वर्षो में मध्यम वर्गीय महिलाओं द्वारा आरंभ किये गये बैंक ने अपना कारोबार भी कम लागत व समर्पण भाव से उत्तम सेवा और अधिक लाभ का समीकरण सफलता पूर्वक प्राप्त किया जिसका पूरा श्रेय बैंक के पूर्व प्रबंधक श्रीयुत सुशील सगदेव, प्रबंधक श्री प्रतुल भेलोंडे,सहा. प्रबंधक श्री मुकुंद भोंबे और संपूर्ण स्टाफ को जाता है।
आरंभिक काल मे डिपाजिट लाने सभी करीब २० साख समितियों का विश्वास अर्जित कर उनका कारोबार और डिपाजिटर, ऋणी महिलाओं को अपने बैंक मे लाने के लिए सौ. स्मिता जोशी ने अपने सहयोगिनियों श्रीमती प्राजक्ता करकरे, आरती जोशी आदि के साथ अपनी अध्यक्षीय जिम्मेदारी बखूबी निभाई। सफल बैंक इस्पात संयंत्र के अधिकारियों का सहकार जो कि बैंक के प्रगति में वरद हस्त रहा।
स्थापना के ५ वर्षो में ही हमने हमारा दुर्ग स्थित विस्तार पटल आरंभ किया, भिलाई कार्यालय का नवीन भवन और कम्प्यूटरीकरण पूर्ण किया। निस्वार्थ सेवा भाव एवं इमानदार संचालक मंडल भी बैंक की विश्वासनीयता एवं लोगों का विश्वास पात्र रहा है जिससे व्यवसाय में बढ़ोत्तरी तो हो ही रही है। तीसरी बार इलेक्शन फाइट कर बैंक को सुव्यवस्थित संचालित कर बैंक का कारोबार बढता ही रहा है। महिलाओं के लिए विभिन्न प्रकार के उद्यमिता शिविरों का आयोजन कर आर्थिक, समाजिक, शैक्षणिक विषयों पर विचार मंथन करने का महिलाओं में जागरूकता लाने का कार्य संचालक मंडल एवं स्टाफ द्वारा किया जा रहा है।
राज्य में या देश में आये आपदा में बैंक ने सहायता करने के लिए बढ़ चढ कर हिस्सा लिया है। स्थानीय जनोपयोगी संस्था जैसे आदिवासी छात्रावास, मंदबुद्धि विद्यालयों, महिला बचत समूह, खेलकूद, शैक्षणिक स्कालरशिप आदि सामाजिक कार्यों को बढावा देना, अनुदान अपने धर्मदाय खाते से देना अपना आर्दश ही बना लिया है। बैंक प्रारंभ से ही लाभ में रहा है और अपनी सदस्याओं को बढ़ते क्रम में ११ प्रतिशत लाभांश दे रहा है। व्यवसायिक बैंकिंग प्रतिस्पर्धा में ताकतवर बन कर महिलाओं को आर्थिक संबल प्रदान करने का लक्ष्य रख कर बैंक का व्यवसाय सम्मानजनक है। ''लिटिल बट स्ट्रांग'' बैंक है हमारा।
वर्तमान में ६२०० सदस्य, १४०.३९ लाख अंशपूंजी, ४२२५. २८ लाख कार्यशील पूंजी, Net NPA १.७४% के साथ बैंक प्रथम वर्ष से लगातार ''अ'' वर्ग मे अंकेक्षित है।
बैंक ने वर्ष २००४ में राष्ट्रीय विकास रत्न गोल्ड पुरस्कार, वर्ष २००६ में छत्तीसगढ़ शासन का सहकारिता विभाग का ठाकुर प्यारे लाल पुरस्कार, वर्ष २००८ में इंडियन अचीवर्स फोरम से बेस्ट परफारमिंग को - ऑप. बैंक का पुरस्कार प्राप्त करके अपनी विकास यात्रा को जारी रखा है। हमें पूरा विश्वास है कि छत्तीसगढ राज्य की भारतीय जनता पार्टी की सरकार की महिलाओं को सहकारी क्षेत्र में बढावा देने वाली योजनाओं का लाभ उठाते हुए, व्यवस्था और मूल्यों का उच्च स्तर बनाए रखते हुए अपने कार्य क्षेत्र में सकारात्मक योगदान देते हुए शासन और बैंक दोनो ही गौरवान्वित होंगे।
कामना करते हैं कि समाज के सहयोग से हम कम खर्च अधिक सेवा अधिक लाभ के सिद्धांत से सफलता की नये सोपानों का आरोहण कर सहकारिता विभाग में अपनी उज्वल छवि को हमेशा बनाये रखेंगे।
प्रगति महिला नागरिक सहकारी बैंक मर्यादित, भिलाई, दुर्ग
प्रगति महिला नागरिक सहकारी बैंक मर्यादित, भिलाई, दुर्ग
आज से १३ वर्ष पहले एक छोटे से बीजांकुर के रूप मे प्रगति महिला नागरिक सहकारी बैंक मर्यादित की स्थापना हुई थी। आज उसी बीजांकुर का इतना विशाल वृक्ष का रूप देखकर अभिमान से सर ऊॅचा उठ जाता है। बैंक की स्थापना करने की कल्पना करने वाली उन महिलाओं की छोटी सी टोली से लेकर आज तक अनगिनत व्यक्तियों ने बैंक के कार्य में किसी भी स्वरूप मे हाथ बटाया है उन सभी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त किये बिना नहीं रहा जाता।
मानव जीवन का सामाजिक वास्तव्य ही प्रमुख लक्ष्य रहता है और सहकारिता यह मानवीय गुण है। यह भारतीय जीवन शैली का दर्पण है। अकेला चना भाड़ नही फोड सकता। यह एक अकाट्य तथ्य है। मनुष्य को पग पग पर एक दूसरे के सहयोग की आवश्यकता पडती है और इसी सहयोग ने सहकार तथा सहकारिता को जन्म दिया है। आवश्यकतानुसार इसका रूप-प्रारूप बदलता रहा है। गावों से लेकर महानगरों तक कुछ व्यक्ति एकत्रित होकर विभिन्न प्रकार की समितियां बनाकर सहकारिता का लाभ लेते हैं। परन्तु इनका दुरूपयोग न हो इसके लिये शासन को नियंत्रण लगाना पडा और शासकीय सहकारिता विभाग का अभ्युदय हुआ। इस विभाग सें और इस विभाग मे सहकारिता की कमियां और उससे गैर वाजिब लाभ लेने वालों पर अंकुश लगा हो या नियंत्रण हुआ हो यह चर्चा और शोध का विषय हो सकता है परंतु जिन व्यक्तियों ने सेवाभाव को प्रधानता देते हुए अपनी संस्था को जन्म दिया तथा उसका संवर्धन किया वे संस्थाएं किसी सरकारी सहायता की मोहताज नहीं रही। भिलाई में सन १९९५ में प्रगति महिला नागरिक सहकारी बैंक का रजिस्ट्रेशन कर स्थापना की गयी। अपने समाज सेवा के मूल उद्देश्यों और आदर्शों पर पूरा खरा उतरते हुए इस बैंक ने केवल १० वर्षो में ही छत्तीसगढ़ का सर्वोत्तम सहकारी बैंक का खिताब वर्ष २००६ में अपने नाम किया और आज भी यह कीर्तिमान प्रगति महिला नागरिक सहकारी बैंक भिलाई दुर्ग के पास बना हुआ है। छत्तीसगढ शासन ने वर्ष २००६ के छत्तीसगढ राज्योत्सव में विभिन्न पुरस्कारों के साथ सहकारिता विभाग का ''ठाकुर प्यारे लाल सिंह सहकारिता सम्मान ''पूर्व राष्ट्रपति महामहिम ए.पी. जे. अब्दुल कलाम जी के कर कमलों से, मुखयमंत्री डॉ. रमन सिंह, पूर्व विधान सभा अध्यक्ष श्री प्रेम प्रकाद्गा पांडे, पूर्व राज्यपाल महोदय और अन्य गणमान्य मंत्री महोदय एवं करीबन २ लाख जन समुदाय के समक्ष छत्तीसगढ राज्य के सर्वोत्कृष्ट सहकारी बैंक के सम्मान से विभूषित किया।
रिजर्व बैंक की दृष्टि मे ''लिटिल बट स्ट्रांग'' है यह बैंक
प्रगति महिला नाग. सह. बैंक की सफलता की विकास यात्रा करीबन २० वर्ष पूर्व महाराष्ट्र मंडल सेक्टर ४ से प्रारंभ हुई थी। महाराष्ट्र मे सफलतम व्यवसाय करने वाली सहकारी महिला बैंकों की चर्चा मंडल में हमेशा ही होती रहती थी। अवसर था गोंदिया निवासी श्री राम टोल जी की महिला मंडल से सौजन्य भेंट का। वे गोंदिया नाग. सह. बैंक के सी.ई.ओ. थे।
उस समय महिला समिति बड़ी, पापड, टिफीन, नाश्ता, दीवाली में लगने वाले चकली, गुजिया जैसे पदार्थ का व्यवसाय भी सफलता पूर्वक कर रही थी। श्री टोल जी के समक्ष इन महिलाओं ने अपनी सहकारी महिला बैंक का विचार रखा। खूब चर्चा, संगोष्ठी हुई। यहां महिलाओं में ऐसा अक्षय उर्जा का भंडार उन्हें दिखा तो तुरंत उन्होने सहकारी महिला बैंक स्थापना करने मे पूर्णतः मदद करने की हामी भरी। उस समय मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ में एक भी सहकारी महिला बैंक नहीं थी। चूंकि महाराष्ट्र महिला मंडल में महाराष्ट्र की तर्ज पर महिला सहकारिता का अभ्युदय यह सब मानो आर्थिक जगत में महिलाओं की दस्ते के लिए एक अनुकूल संयोग था। बस फिर क्या था भारत की हृदय स्थली में रहने वाले इस लघु भारत रूप भिलाई की महाराष्ट्रीयन महिलाओं ने अपनी १९८९ की पहली बैठक मे सहकारी महिला बैंक प्रारंभ करने का बीडा उठा ही लिया।
श्रीमती माधुरी ताई बखले के नेतृत्व में सभी चल पड़ीं। श्रीमती स्मिता जोशी प्रारंभ से आज तक की सफल अध्यक्षा, संजीवनी जोशी, नलिनी करकरे, प्राजक्ता करकरे, सुधा ताई देशपांडे, वृंदा भिडे, आरती जोशी तथा मैंने घर घर जाकर इन महिलाओं को महिला बैंक की संकल्पना, शेयर का अर्थ, शेयर मनी की आवश्यकता एवं बाध्यता, उनके पैसे की सुरक्षा का भरोसा दिलाने मे अपना दिन रात एक कर दिया। इस जुनून में अन्य अनेकानेक सखियों ने भी बढ चढ कर साथ दिया। रजिस्ट्रेशन के बाद रिजर्व बैंक का टारगेट पूर्ण करना जो कि १५०० सदस्य एवं १५ लाख अंश राशि खडा करना बडा सा पहाड पार करने वाला था परंतु ३ महीने में ही १७०० सौ सदस्या एवं १८ लाख अंश राशि का लक्ष्य पूरा हुआ।
दिन-दिन बढ़ता शेयर मनी हम महिलाओं के साहस और उत्साह में हर दिन वृदि करता और हर दिन नई योजनाएं, कार्यक्रमों को आंका जाता। फिर शुरू हुई कार्यालयीन कार्यवाही रिजर्व बैंक का लाइसेंस प्राप्त करना। इसके लिए जिला एवं संभागीय कार्यालयों के चक्कर काटना मानो हम महिलाओं की दिनचर्या का अभिन्न अंग बन गया। उस वक्त सहकारिता विभाग का अमला महिलाओं को समर्थक व्यवहार नहीं दे सका। महिला बैंक की स्थापना उनके सुव्यवस्थित संचालन पर उन्हें विश्वास रखना मुश्किल था। हमें बार-बार पूछा जाता था आपके साथ कोई पुरूष नहीं है क्या? हमें हमारी कार्य क्षमता पर उंगली उठती देख हम दुखी होते थे और महिलाए क्या बैंक चलाएंगी? इस नकारात्मक सोच के कारण नित्य हमें उपहास ही सहन करना पड ता था। परंतु कुछ कर दिखाने का जुनून १७०० महिलाओं की भागीदारी और उनकी शिक्षा के कारण अर्जित धैर्य ने कभी भी हम महिलाओं के बढते कदम रोकने के लिए प्रवृत नहीं किया।
हमारा साहस बढ़ाते हुए अग्रिम पंक्ति में कार्य करने वाली महिलाओं के पति भी पर्दे के पीछे सशक्त संबल दे रहे थे और प्रत्यक्ष सहयोग में अनेक बंधुओं के साथ तत्कालीन भाजपा विधायक स्व. दिनकर डांगे एवं संघ एवं भाजपा कार्यकर्ता श्री भाऊ टेंभेकर जी का नाम अविस्मरणीय है। टेंभेकर जी तो निःस्वार्थ हम महिलाओं की रायपुर एवं भोपाल (रिजर्व बैंक के प्रादेच्चिक मुखयालय) प्रवास में ठहरने, खाने की व्यवस्था सहर्द्गा अपने परिजनों के यहां करवा कर हम महिलाओं को सुरक्षा और संबल देते थे और आर्थिक संतुलन भी। क्योंकि १५ - १६ वर्ष पूर्व होटल मे रूकना आमबात भी नहीं था और खर्च के लिए तो कोई मद ही नहीं थी साथ में हमारे युवा साथी अतुल नागले, राजेन्द्र जोशी, अजय डांगे, धनंजय करकरे, विजय जोशी हमें प्रोत्साहित करते थे। इस सारी की सारी प्रक्रिया में हम महिलाओं ने कहीं भी अनाधिकृत आर्थिक प्रलोभनों का सहारा नहीं लिया जिससे कार्यों मे विलंब जरूर हुआ परंतु स्वच्छ आर्थिक व्यवहार की मजबूत नींव भी हमने रखी जो आज हमारी संस्था का पर्यायवाची बन गया है।
लाईसेंस मिलने की प्रक्रिया पूर्णता की ओर बढ़ रही थी व्यवसाय के लिए उचित स्थान की खोज शुरू हुई। प्रारंभिक व्यवस्था में महाराष्ट्र मंडल सेक्टर ४ भिलाई के निर्माणाधीन भवन में ही सब गतिविधियां चल रहीं थी। परंतु इस्पात नगरी भिलाई में स्वस्थ सहकारिता का वातावरण होने के कारण भिलाई इस्पात संयंत्र ने हमें सेक्टर २ ''ए'' मार्केट में जगह उपलब्ध कराकर मानो हमारे काम पर सफलता की मोहर लगा दी।
लाईसेंस और जगह सुनिश्चित होने के बाद दैनंदिन बैंकिंग प्रक्रिया आरंभ करने के लिए हमें अमूल्य मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। मुम्बई सहकारिता के क्षेत्र में अग्रगण्य श्री अरविंद भिड़े, श्री रंजन कुलकर्णी, सहकारी बैंक मुम्बई के श्री सतीश मराठे जो आज भी बैंक को सौजन्य भेंट देते रहते हैं। बैंक स्टाफ की संखया से लेकर सेवा भावना के साथ कार्यकरने के गुरूमंत्र देने का गुरूत्तर कार्य श्री भिडे काका ने किया। हम सब सदा ही उनके अत्यंत ऋणी रहेंगे। सभी घटकों के प्रतिनिधित्व को ध्यान मे रखते हुए प्रथम तदर्थ बोर्ड आफ डायरेक्टर्स का गठन हुआ।
समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्व और बैंक के माध्यम से समाज ऋण से अल्पमात्रा मे ही क्यों न हो उऋण होन के लिए हमने अपने ऐतिहासिक धरोहर को आत्मसात करने का प्रयास किया। फलतः मातृत्व कर्तृत्व और नेतृत्व का पाठ पढ़ाने वाली वंदनीया जीजा बाई, देवी अहिल्या बाई होल्कर और वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई को हमने अपना प्रेरणा स्रोत स्वीकार किया और इनका आदर्द्गा ही आज हमें कतिपय कठिनाईयों का सामना कर अपनी विकास यात्रा पर अग्रसर होने में आत्मिक उत्साह विद्गवास से भर देता है।
क्रमशः हमारे बैंक का वास्तविक प्रारंभ दिन पास आता गया और यहां उल्लेखित और अनुल्लेखित शुभचिंतकों के सहयोग, सदस्यों और भरपूर अंशराशि के साथ आर्शीवाद से हमने २५ जनवरी १९९६ को प्रगति महिला नागरिक सहकारी बैंक भिलाई का दुर्ग नगर एवं तत्कालीन म.प्र. और अब छत्तीसगढ़ सहकारिता विभाग में अवतरण हुआ। आने वाले वर्षो में मध्यम वर्गीय महिलाओं द्वारा आरंभ किये गये बैंक ने अपना कारोबार भी कम लागत व समर्पण भाव से उत्तम सेवा और अधिक लाभ का समीकरण सफलता पूर्वक प्राप्त किया जिसका पूरा श्रेय बैंक के पूर्व प्रबंधक श्रीयुत सुशील सगदेव, प्रबंधक श्री प्रतुल भेलोंडे,सहा. प्रबंधक श्री मुकुंद भोंबे और संपूर्ण स्टाफ को जाता है।
आरंभिक काल मे डिपाजिट लाने सभी करीब २० साख समितियों का विश्वास अर्जित कर उनका कारोबार और डिपाजिटर, ऋणी महिलाओं को अपने बैंक मे लाने के लिए सौ. स्मिता जोशी ने अपने सहयोगिनियों श्रीमती प्राजक्ता करकरे, आरती जोशी आदि के साथ अपनी अध्यक्षीय जिम्मेदारी बखूबी निभाई। सफल बैंक इस्पात संयंत्र के अधिकारियों का सहकार जो कि बैंक के प्रगति में वरद हस्त रहा।
स्थापना के ५ वर्षो में ही हमने हमारा दुर्ग स्थित विस्तार पटल आरंभ किया, भिलाई कार्यालय का नवीन भवन और कम्प्यूटरीकरण पूर्ण किया। निस्वार्थ सेवा भाव एवं इमानदार संचालक मंडल भी बैंक की विश्वासनीयता एवं लोगों का विश्वास पात्र रहा है जिससे व्यवसाय में बढ़ोत्तरी तो हो ही रही है। तीसरी बार इलेक्शन फाइट कर बैंक को सुव्यवस्थित संचालित कर बैंक का कारोबार बढता ही रहा है। महिलाओं के लिए विभिन्न प्रकार के उद्यमिता शिविरों का आयोजन कर आर्थिक, समाजिक, शैक्षणिक विषयों पर विचार मंथन करने का महिलाओं में जागरूकता लाने का कार्य संचालक मंडल एवं स्टाफ द्वारा किया जा रहा है।
राज्य में या देश में आये आपदा में बैंक ने सहायता करने के लिए बढ़ चढ कर हिस्सा लिया है। स्थानीय जनोपयोगी संस्था जैसे आदिवासी छात्रावास, मंदबुद्धि विद्यालयों, महिला बचत समूह, खेलकूद, शैक्षणिक स्कालरशिप आदि सामाजिक कार्यों को बढावा देना, अनुदान अपने धर्मदाय खाते से देना अपना आर्दश ही बना लिया है। बैंक प्रारंभ से ही लाभ में रहा है और अपनी सदस्याओं को बढ़ते क्रम में ११ प्रतिशत लाभांश दे रहा है। व्यवसायिक बैंकिंग प्रतिस्पर्धा में ताकतवर बन कर महिलाओं को आर्थिक संबल प्रदान करने का लक्ष्य रख कर बैंक का व्यवसाय सम्मानजनक है। ''लिटिल बट स्ट्रांग'' बैंक है हमारा।
वर्तमान में ६२०० सदस्य, १४०.३९ लाख अंशपूंजी, ४२२५. २८ लाख कार्यशील पूंजी, Net NPA १.७४% के साथ बैंक प्रथम वर्ष से लगातार ''अ'' वर्ग मे अंकेक्षित है।
बैंक ने वर्ष २००४ में राष्ट्रीय विकास रत्न गोल्ड पुरस्कार, वर्ष २००६ में छत्तीसगढ़ शासन का सहकारिता विभाग का ठाकुर प्यारे लाल पुरस्कार, वर्ष २००८ में इंडियन अचीवर्स फोरम से बेस्ट परफारमिंग को - ऑप. बैंक का पुरस्कार प्राप्त करके अपनी विकास यात्रा को जारी रखा है। हमें पूरा विश्वास है कि छत्तीसगढ राज्य की भारतीय जनता पार्टी की सरकार की महिलाओं को सहकारी क्षेत्र में बढावा देने वाली योजनाओं का लाभ उठाते हुए, व्यवस्था और मूल्यों का उच्च स्तर बनाए रखते हुए अपने कार्य क्षेत्र में सकारात्मक योगदान देते हुए शासन और बैंक दोनो ही गौरवान्वित होंगे।
कामना करते हैं कि समाज के सहयोग से हम कम खर्च अधिक सेवा अधिक लाभ के सिद्धांत से सफलता की नये सोपानों का आरोहण कर सहकारिता विभाग में अपनी उज्वल छवि को हमेशा बनाये रखेंगे।
आज से १३ वर्ष पहले एक छोटे से बीजांकुर के रूप मे प्रगति महिला नागरिक सहकारी बैंक मर्यादित की स्थापना हुई थी। आज उसी बीजांकुर का इतना विशाल वृक्ष का रूप देखकर अभिमान से सर ऊॅचा उठ जाता है। बैंक की स्थापना करने की कल्पना करने वाली उन महिलाओं की छोटी सी टोली से लेकर आज तक अनगिनत व्यक्तियों ने बैंक के कार्य में किसी भी स्वरूप मे हाथ बटाया है उन सभी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त किये बिना नहीं रहा जाता।
मानव जीवन का सामाजिक वास्तव्य ही प्रमुख लक्ष्य रहता है और सहकारिता यह मानवीय गुण है। यह भारतीय जीवन शैली का दर्पण है। अकेला चना भाड़ नही फोड सकता। यह एक अकाट्य तथ्य है। मनुष्य को पग पग पर एक दूसरे के सहयोग की आवश्यकता पडती है और इसी सहयोग ने सहकार तथा सहकारिता को जन्म दिया है। आवश्यकतानुसार इसका रूप-प्रारूप बदलता रहा है। गावों से लेकर महानगरों तक कुछ व्यक्ति एकत्रित होकर विभिन्न प्रकार की समितियां बनाकर सहकारिता का लाभ लेते हैं। परन्तु इनका दुरूपयोग न हो इसके लिये शासन को नियंत्रण लगाना पडा और शासकीय सहकारिता विभाग का अभ्युदय हुआ। इस विभाग सें और इस विभाग मे सहकारिता की कमियां और उससे गैर वाजिब लाभ लेने वालों पर अंकुश लगा हो या नियंत्रण हुआ हो यह चर्चा और शोध का विषय हो सकता है परंतु जिन व्यक्तियों ने सेवाभाव को प्रधानता देते हुए अपनी संस्था को जन्म दिया तथा उसका संवर्धन किया वे संस्थाएं किसी सरकारी सहायता की मोहताज नहीं रही। भिलाई में सन १९९५ में प्रगति महिला नागरिक सहकारी बैंक का रजिस्ट्रेशन कर स्थापना की गयी। अपने समाज सेवा के मूल उद्देश्यों और आदर्शों पर पूरा खरा उतरते हुए इस बैंक ने केवल १० वर्षो में ही छत्तीसगढ़ का सर्वोत्तम सहकारी बैंक का खिताब वर्ष २००६ में अपने नाम किया और आज भी यह कीर्तिमान प्रगति महिला नागरिक सहकारी बैंक भिलाई दुर्ग के पास बना हुआ है। छत्तीसगढ शासन ने वर्ष २००६ के छत्तीसगढ राज्योत्सव में विभिन्न पुरस्कारों के साथ सहकारिता विभाग का ''ठाकुर प्यारे लाल सिंह सहकारिता सम्मान ''पूर्व राष्ट्रपति महामहिम ए.पी. जे. अब्दुल कलाम जी के कर कमलों से, मुखयमंत्री डॉ. रमन सिंह, पूर्व विधान सभा अध्यक्ष श्री प्रेम प्रकाद्गा पांडे, पूर्व राज्यपाल महोदय और अन्य गणमान्य मंत्री महोदय एवं करीबन २ लाख जन समुदाय के समक्ष छत्तीसगढ राज्य के सर्वोत्कृष्ट सहकारी बैंक के सम्मान से विभूषित किया।
रिजर्व बैंक की दृष्टि मे ''लिटिल बट स्ट्रांग'' है यह बैंक
प्रगति महिला नाग. सह. बैंक की सफलता की विकास यात्रा करीबन २० वर्ष पूर्व महाराष्ट्र मंडल सेक्टर ४ से प्रारंभ हुई थी। महाराष्ट्र मे सफलतम व्यवसाय करने वाली सहकारी महिला बैंकों की चर्चा मंडल में हमेशा ही होती रहती थी। अवसर था गोंदिया निवासी श्री राम टोल जी की महिला मंडल से सौजन्य भेंट का। वे गोंदिया नाग. सह. बैंक के सी.ई.ओ. थे।
उस समय महिला समिति बड़ी, पापड, टिफीन, नाश्ता, दीवाली में लगने वाले चकली, गुजिया जैसे पदार्थ का व्यवसाय भी सफलता पूर्वक कर रही थी। श्री टोल जी के समक्ष इन महिलाओं ने अपनी सहकारी महिला बैंक का विचार रखा। खूब चर्चा, संगोष्ठी हुई। यहां महिलाओं में ऐसा अक्षय उर्जा का भंडार उन्हें दिखा तो तुरंत उन्होने सहकारी महिला बैंक स्थापना करने मे पूर्णतः मदद करने की हामी भरी। उस समय मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ में एक भी सहकारी महिला बैंक नहीं थी। चूंकि महाराष्ट्र महिला मंडल में महाराष्ट्र की तर्ज पर महिला सहकारिता का अभ्युदय यह सब मानो आर्थिक जगत में महिलाओं की दस्ते के लिए एक अनुकूल संयोग था। बस फिर क्या था भारत की हृदय स्थली में रहने वाले इस लघु भारत रूप भिलाई की महाराष्ट्रीयन महिलाओं ने अपनी १९८९ की पहली बैठक मे सहकारी महिला बैंक प्रारंभ करने का बीडा उठा ही लिया।
श्रीमती माधुरी ताई बखले के नेतृत्व में सभी चल पड़ीं। श्रीमती स्मिता जोशी प्रारंभ से आज तक की सफल अध्यक्षा, संजीवनी जोशी, नलिनी करकरे, प्राजक्ता करकरे, सुधा ताई देशपांडे, वृंदा भिडे, आरती जोशी तथा मैंने घर घर जाकर इन महिलाओं को महिला बैंक की संकल्पना, शेयर का अर्थ, शेयर मनी की आवश्यकता एवं बाध्यता, उनके पैसे की सुरक्षा का भरोसा दिलाने मे अपना दिन रात एक कर दिया। इस जुनून में अन्य अनेकानेक सखियों ने भी बढ चढ कर साथ दिया। रजिस्ट्रेशन के बाद रिजर्व बैंक का टारगेट पूर्ण करना जो कि १५०० सदस्य एवं १५ लाख अंश राशि खडा करना बडा सा पहाड पार करने वाला था परंतु ३ महीने में ही १७०० सौ सदस्या एवं १८ लाख अंश राशि का लक्ष्य पूरा हुआ।
दिन-दिन बढ़ता शेयर मनी हम महिलाओं के साहस और उत्साह में हर दिन वृदि करता और हर दिन नई योजनाएं, कार्यक्रमों को आंका जाता। फिर शुरू हुई कार्यालयीन कार्यवाही रिजर्व बैंक का लाइसेंस प्राप्त करना। इसके लिए जिला एवं संभागीय कार्यालयों के चक्कर काटना मानो हम महिलाओं की दिनचर्या का अभिन्न अंग बन गया। उस वक्त सहकारिता विभाग का अमला महिलाओं को समर्थक व्यवहार नहीं दे सका। महिला बैंक की स्थापना उनके सुव्यवस्थित संचालन पर उन्हें विश्वास रखना मुश्किल था। हमें बार-बार पूछा जाता था आपके साथ कोई पुरूष नहीं है क्या? हमें हमारी कार्य क्षमता पर उंगली उठती देख हम दुखी होते थे और महिलाए क्या बैंक चलाएंगी? इस नकारात्मक सोच के कारण नित्य हमें उपहास ही सहन करना पड ता था। परंतु कुछ कर दिखाने का जुनून १७०० महिलाओं की भागीदारी और उनकी शिक्षा के कारण अर्जित धैर्य ने कभी भी हम महिलाओं के बढते कदम रोकने के लिए प्रवृत नहीं किया।
हमारा साहस बढ़ाते हुए अग्रिम पंक्ति में कार्य करने वाली महिलाओं के पति भी पर्दे के पीछे सशक्त संबल दे रहे थे और प्रत्यक्ष सहयोग में अनेक बंधुओं के साथ तत्कालीन भाजपा विधायक स्व. दिनकर डांगे एवं संघ एवं भाजपा कार्यकर्ता श्री भाऊ टेंभेकर जी का नाम अविस्मरणीय है। टेंभेकर जी तो निःस्वार्थ हम महिलाओं की रायपुर एवं भोपाल (रिजर्व बैंक के प्रादेच्चिक मुखयालय) प्रवास में ठहरने, खाने की व्यवस्था सहर्द्गा अपने परिजनों के यहां करवा कर हम महिलाओं को सुरक्षा और संबल देते थे और आर्थिक संतुलन भी। क्योंकि १५ - १६ वर्ष पूर्व होटल मे रूकना आमबात भी नहीं था और खर्च के लिए तो कोई मद ही नहीं थी साथ में हमारे युवा साथी अतुल नागले, राजेन्द्र जोशी, अजय डांगे, धनंजय करकरे, विजय जोशी हमें प्रोत्साहित करते थे। इस सारी की सारी प्रक्रिया में हम महिलाओं ने कहीं भी अनाधिकृत आर्थिक प्रलोभनों का सहारा नहीं लिया जिससे कार्यों मे विलंब जरूर हुआ परंतु स्वच्छ आर्थिक व्यवहार की मजबूत नींव भी हमने रखी जो आज हमारी संस्था का पर्यायवाची बन गया है।
लाईसेंस मिलने की प्रक्रिया पूर्णता की ओर बढ़ रही थी व्यवसाय के लिए उचित स्थान की खोज शुरू हुई। प्रारंभिक व्यवस्था में महाराष्ट्र मंडल सेक्टर ४ भिलाई के निर्माणाधीन भवन में ही सब गतिविधियां चल रहीं थी। परंतु इस्पात नगरी भिलाई में स्वस्थ सहकारिता का वातावरण होने के कारण भिलाई इस्पात संयंत्र ने हमें सेक्टर २ ''ए'' मार्केट में जगह उपलब्ध कराकर मानो हमारे काम पर सफलता की मोहर लगा दी।
लाईसेंस और जगह सुनिश्चित होने के बाद दैनंदिन बैंकिंग प्रक्रिया आरंभ करने के लिए हमें अमूल्य मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। मुम्बई सहकारिता के क्षेत्र में अग्रगण्य श्री अरविंद भिड़े, श्री रंजन कुलकर्णी, सहकारी बैंक मुम्बई के श्री सतीश मराठे जो आज भी बैंक को सौजन्य भेंट देते रहते हैं। बैंक स्टाफ की संखया से लेकर सेवा भावना के साथ कार्यकरने के गुरूमंत्र देने का गुरूत्तर कार्य श्री भिडे काका ने किया। हम सब सदा ही उनके अत्यंत ऋणी रहेंगे। सभी घटकों के प्रतिनिधित्व को ध्यान मे रखते हुए प्रथम तदर्थ बोर्ड आफ डायरेक्टर्स का गठन हुआ।
समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्व और बैंक के माध्यम से समाज ऋण से अल्पमात्रा मे ही क्यों न हो उऋण होन के लिए हमने अपने ऐतिहासिक धरोहर को आत्मसात करने का प्रयास किया। फलतः मातृत्व कर्तृत्व और नेतृत्व का पाठ पढ़ाने वाली वंदनीया जीजा बाई, देवी अहिल्या बाई होल्कर और वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई को हमने अपना प्रेरणा स्रोत स्वीकार किया और इनका आदर्द्गा ही आज हमें कतिपय कठिनाईयों का सामना कर अपनी विकास यात्रा पर अग्रसर होने में आत्मिक उत्साह विद्गवास से भर देता है।
क्रमशः हमारे बैंक का वास्तविक प्रारंभ दिन पास आता गया और यहां उल्लेखित और अनुल्लेखित शुभचिंतकों के सहयोग, सदस्यों और भरपूर अंशराशि के साथ आर्शीवाद से हमने २५ जनवरी १९९६ को प्रगति महिला नागरिक सहकारी बैंक भिलाई का दुर्ग नगर एवं तत्कालीन म.प्र. और अब छत्तीसगढ़ सहकारिता विभाग में अवतरण हुआ। आने वाले वर्षो में मध्यम वर्गीय महिलाओं द्वारा आरंभ किये गये बैंक ने अपना कारोबार भी कम लागत व समर्पण भाव से उत्तम सेवा और अधिक लाभ का समीकरण सफलता पूर्वक प्राप्त किया जिसका पूरा श्रेय बैंक के पूर्व प्रबंधक श्रीयुत सुशील सगदेव, प्रबंधक श्री प्रतुल भेलोंडे,सहा. प्रबंधक श्री मुकुंद भोंबे और संपूर्ण स्टाफ को जाता है।
आरंभिक काल मे डिपाजिट लाने सभी करीब २० साख समितियों का विश्वास अर्जित कर उनका कारोबार और डिपाजिटर, ऋणी महिलाओं को अपने बैंक मे लाने के लिए सौ. स्मिता जोशी ने अपने सहयोगिनियों श्रीमती प्राजक्ता करकरे, आरती जोशी आदि के साथ अपनी अध्यक्षीय जिम्मेदारी बखूबी निभाई। सफल बैंक इस्पात संयंत्र के अधिकारियों का सहकार जो कि बैंक के प्रगति में वरद हस्त रहा।
स्थापना के ५ वर्षो में ही हमने हमारा दुर्ग स्थित विस्तार पटल आरंभ किया, भिलाई कार्यालय का नवीन भवन और कम्प्यूटरीकरण पूर्ण किया। निस्वार्थ सेवा भाव एवं इमानदार संचालक मंडल भी बैंक की विश्वासनीयता एवं लोगों का विश्वास पात्र रहा है जिससे व्यवसाय में बढ़ोत्तरी तो हो ही रही है। तीसरी बार इलेक्शन फाइट कर बैंक को सुव्यवस्थित संचालित कर बैंक का कारोबार बढता ही रहा है। महिलाओं के लिए विभिन्न प्रकार के उद्यमिता शिविरों का आयोजन कर आर्थिक, समाजिक, शैक्षणिक विषयों पर विचार मंथन करने का महिलाओं में जागरूकता लाने का कार्य संचालक मंडल एवं स्टाफ द्वारा किया जा रहा है।
राज्य में या देश में आये आपदा में बैंक ने सहायता करने के लिए बढ़ चढ कर हिस्सा लिया है। स्थानीय जनोपयोगी संस्था जैसे आदिवासी छात्रावास, मंदबुद्धि विद्यालयों, महिला बचत समूह, खेलकूद, शैक्षणिक स्कालरशिप आदि सामाजिक कार्यों को बढावा देना, अनुदान अपने धर्मदाय खाते से देना अपना आर्दश ही बना लिया है। बैंक प्रारंभ से ही लाभ में रहा है और अपनी सदस्याओं को बढ़ते क्रम में ११ प्रतिशत लाभांश दे रहा है। व्यवसायिक बैंकिंग प्रतिस्पर्धा में ताकतवर बन कर महिलाओं को आर्थिक संबल प्रदान करने का लक्ष्य रख कर बैंक का व्यवसाय सम्मानजनक है। ''लिटिल बट स्ट्रांग'' बैंक है हमारा।
वर्तमान में ६२०० सदस्य, १४०.३९ लाख अंशपूंजी, ४२२५. २८ लाख कार्यशील पूंजी, Net NPA १.७४% के साथ बैंक प्रथम वर्ष से लगातार ''अ'' वर्ग मे अंकेक्षित है।
बैंक ने वर्ष २००४ में राष्ट्रीय विकास रत्न गोल्ड पुरस्कार, वर्ष २००६ में छत्तीसगढ़ शासन का सहकारिता विभाग का ठाकुर प्यारे लाल पुरस्कार, वर्ष २००८ में इंडियन अचीवर्स फोरम से बेस्ट परफारमिंग को - ऑप. बैंक का पुरस्कार प्राप्त करके अपनी विकास यात्रा को जारी रखा है। हमें पूरा विश्वास है कि छत्तीसगढ राज्य की भारतीय जनता पार्टी की सरकार की महिलाओं को सहकारी क्षेत्र में बढावा देने वाली योजनाओं का लाभ उठाते हुए, व्यवस्था और मूल्यों का उच्च स्तर बनाए रखते हुए अपने कार्य क्षेत्र में सकारात्मक योगदान देते हुए शासन और बैंक दोनो ही गौरवान्वित होंगे।
कामना करते हैं कि समाज के सहयोग से हम कम खर्च अधिक सेवा अधिक लाभ के सिद्धांत से सफलता की नये सोपानों का आरोहण कर सहकारिता विभाग में अपनी उज्वल छवि को हमेशा बनाये रखेंगे।
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