गुजरात में सहकारी प्रवृत्तिया
ऋग्वेद का एक जाना माना श्लोक है 'संगच्छध्वं संवदध्वसं वो मनांसि जानताम समानो मंत्रः' जिसका अर्थ है, हम साथ-साथ चलें, एक साथ होकर संवाद करें और अपने निर्णयों में सर्वमत बनायें, हमारी प्रार्थना एक समान हो... सहकारी प्रवृत्तियों के सिद्धांतों की बुनियाद में इन बातों को ही समाविष्ट किया गया है।
सहकारी प्रवृत्ति प्राचीन युग से चली आ रही सामाजिक और आर्थिक उन्नति के सिद्धांत पर टिकी हुई एक सामूहिक प्रवृत्ति है। करीब १०५ साल से वह हमारे राज्य में पनपती रही है। अविरतरूप से और आयोजनपूर्वक कार्यरत रही है। विशेष रूप से इसमें जनता के आर्थिक हितों और सामाजिक क्षेत्र के विकास पर बल दिया गया है, जिस वजह से आम जनता के जीवन में काफी परिवर्तन हुआ है। कृषि, व्यापार, वाणिज्य एवं सेवा के क्षेत्र से इसका गहरा नाता रहा है। गुजरात में वर्तमान में विभिन्न प्रकार की करीब ६२,००० से भी अधिक सहकारी समितियां विद्यमान हैं और इन समितियों की सदस्य संखया करीब १३० लाख की है। इन समितियों में प्राथमिक कृषि विषयक उधार मंडलियों, दुग्ध समिति, क्रय-विक्रय समिति, गृह मंडली, नागरिक सहकारी बैंक, ग्राहक समिति और कृद्गिा समिति आदि व्यापक रूप से समाविष्ट हैं।
कृषि से संलग्न प्रवृत्तियों में लगने वाली ऋण राशि का 46.15% (प्रतिच्चत) भाग सहकारी क्षेत्र के द्वारा ही उपलब्ध कराया जाता है।
राज्य के करीब ७० प्रतिशत छोटे और सीमांत कृषक सहकारी संरचना में शामिल हैं और उनमें लगभग १३ लाख से अधिक छोटे और सीमांत किसान तथा दुर्बल वर्ग के किसान अपना अल्पकालीन कृषि ऋण सहकारी ढाँचे के द्वारा प्राप्त करते हैं। इस ऋण की राशि अब तक ज्यादातर सहकारी बैंकों द्वारा १० से १३ प्रतिशत के ब्याज दर से उपलब्ध कराई जाती है, जबकि वाणिज्य बैंक इस ऋण को केवल ९ प्रतिशत ब्याज से उपलब्ध कराते हैं। आश्चर्य अब यह है कि जो किसान सहकारी बैंक के विस्तृत ढाँचे से संलग्न हैं उन्हें भी यह ऋण ९ प्रतिशत दरों से प्राप्त हो। अतः जो रत्न कलाकार मंदी के माहौल से प्रभावित हुए हैं, जिनका निर्वाह अपने लघु कृषि पर निर्भर हो तथा धंधा छोड़कर अपने प्रदेश में जा चुके हों, उन्हें इस प्रकार का कृषि ऋण सस्ते दर से प्राप्त हो सके, यह आवश्यक है। इस चिंतन के साथ सहकारिता के कृषि और सहकार विभाग द्वारा एक प्रस्ताव पारित किया गया, जो इस प्रकार है। 'रत्नकलाकारी' के साथ जुडे हुए किसानों को ६ प्रतिशत ब्याज दर से ऋण उपलब्ध कराने वाले सहकारी बैंक को नाबार्ड की ओर से अल्प अवधि ऋण के लिये जो 7% प्रतिशत ब्याज दर से रि-फाईनेंस (पुनर्वित्त प्रबंध) और ब्याज राहत दी जाती है। राज्य सरकार अपनी ओर से अपने स्त्रोत से २ प्रतिशत की ऋण राहत देती थी उसे बढ़ाकर तीन प्रतिशत की ब्याज राहत दी जाये। (ठहराव क्रमांकः सीएसबी/१२२००७/एम/१२८/सीएच दिनांक २७.०२.२००९) जिसके अंतर्गत इस वर्ष २००९-१० में लगभग रू. ३.८५ करोड की राशि किसानों को ब्याज राहत के रूप में दी जायेगी।
गुजरात राज्य में किसानों को अपनी फसल के अर्थसक्षम और पुष्टिसक्षम दरों की प्राप्ति हो सके इस हेतु कृषि उपज मंडी समितियां कार्यशील हैं। ऐसी करीब २०७ ए.पी.एम.सी. (कृषि उपज विपणन समिति) मंडलियां (समितियां) अपने यहां रू. १६९८९.९७ करोड़ के वार्षिक कृषि उत्पादनों की बिक्री करते हुए किसानों को आर्थिक लाभ दिलवाने की दिशा में अपना योगदान कर रही हैं। सम्मानीय मुखयमंत्री श्री नरेन्द्र भाई मोदी के प्रेरणादायी और प्रभावी नेतृत्व में अन्य क्षेत्रों के साथ-साथ सहकारी प्रवृत्ति के क्षेत्र में भी गुजरात ने ए.पी.एम.सी के द्वारा कृषि उत्पादित पदार्थों की बिक्री में सफलता के उच्चतम शिखर छू लिये हैं। ए.पी.एम.सी. धारा में आवश्यक अन्वेषणों को प्रधानता देते हुए ई-मार्किट, निजी मार्किट और कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग आदि को अधिनियम में समाविष्ट करते हुए उसे आदर्श अधिनियम (मॉडल एक्ट) का स्वरूप देना उचित समझा गया है। कृषि बाजारों के विकास तथा संवर्धन हेतु राज्य सरकार ने गुजरात कृषि बोर्ड की रचना कर दी है जो राज्य भर की सभी ए.पी.एम.सी. की सुविधायें उपलब्ध कराने की दिच्चा में प्रयत्नशील है। अहमदाबाद और ऊंझा की ए.पी.एम.सी. अपने कार्य में उत्तमता प्राप्त कर चुकी हैं।
सन् २००१ के दौरान कुछ अवधि के लिये नागरिक सहकारी बैंकों में संचालन और आर्थिक स्थिति के बारे में समस्यायें खडी हुई थीं। राज्य सरकार ने उस समय समयोचित कदम उठाये। सहकारी कानूनों में सर्वप्रथम नागरिक सहकारी बैंकों के लिये (कंडिका) प्रकरण-१० को शामिल करवाया गया, जिसके अन्तर्गत विशेष रूप से बैंक के संचालक बोर्ड के उत्तरदायित्व को सक्षम बनाकर शिक्षात्मक/दंडनात्मक प्रथा सम्मिलित की गई। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के साथ एम.ओ.यू. (आपसी समझौता ज्ञापन) द्वारा टास्कबल (Task force) की रचना करना, दूसरा कदम था। प्रतिमास इसकी बैठक बुलाकर और नियमित रूप से नागरिक बैंकों की कार्यवाही की समीक्षा की जाती है और सुधार के लक्ष्य की प्राप्ति के लिये ठोस कदम उठाये जाते हैं। परिणामस्वरूप, नागरिक सहकारी बैंकों के प्रति संरक्षणात्मक अभिमत के द्वारा निर्बल बैंकों को अन्य सुदृढ़ बैंक के साथ मिला देने में सफलता प्राप्त हुई है। इस प्रकार अब तक करीब २२ बैंकों का विलय किया जा चुका है।
गुजरात के माननीय मुखयमंत्री श्री नरेन्द्रभाई मोदी के नेतृत्व और मार्गदर्शन में 'निरोग बाल' और 'जलसंग्रह अभियान' के अन्तर्गत बच्चों तथा माताओं को पोष्टिक आहार 'सुखड़ी और दूध' उपहार के रूप में राज्य की सहकारी संस्थाओं द्वारा दिया जा सके इस हेतु दान प्रवृत्ति को मंजूरी दी गई है जिसके अंतर्गत करीब १० हजार किलो सुखड़ी और ७५००० लीटर दूध बच्चों और माताओं के लिये वितरण हेतु भेजा गया है। इस तरह से जलसंचय और जलसंग्रह की प्रवृत्तियों के लिये भी श्री मोदी के अभियान के अंतर्गत राज्य के सभी तालाबों को और चेकडैमों को गहरे करने का कार्य प्रारंभ कर दिया गया है। इसके लिए गुजरात के सहकारी संगठनों से ५० लाख की राच्चि का सहयोग प्राप्त हो चुका है। इस प्रकार सहकारी क्षेत्रों
द्वारा समाज के उत्कर्ष की दिशा में ठोस कार्य हो रहा है।
महात्मा गाँधी और सरदार पटेल की जन्मभूमि गुजरात, महान पुरूषों की विचारधारा से समृद्ध और संपन्न है। यहां सदा समानता, सेवा, निष्ठा और ट्रस्टीशिप के सिद्धांत पनपते रहे हैं। यहां ग्राम विकास, स्वावलंबन और स्वदेशी की झलकियों के दर्शन मिलते हैं। यह सभी तत्व हमारे सहकारी सिद्धांतों में उजागर होते दिखाई पडते हैं। गुजरात में सहकारी प्रवृत्ति ने सामाजिक उत्थान और सामाजिक उत्तरदायित्व की ओर तथा सूदखोर, मुनाफाखोर, व्यापारियों के शोषण से मुक्ति दिलाने का कार्य सहकारिता द्वारा हुआ है। सहकारी प्रवृत्ति एक सभी के लिये और सभी एक के लिए, के सिद्धांत को लेकर गतिशील रहती है। मूलतः यह प्रवृत्ति गाँधीजी और सरदार पटेल की विचारधारा से प्रेरित हुई थी जो आज गुजरात के सम्माननीय मुखयमंत्री श्री नरेन्द्रभाई मोदी के प्रभावी नेतृत्व के साथ आधुनिक तंत्रज्ञान, कम्प्युटराईजेशन और व्यवसायिक दृष्टिकोण को लेकर स्पर्धात्मक आर्थिक प्रवृत्ति के साथ सम्मिलित होती आगे बढ रही है। सहकारी संस्थायें अपने करोडों सदस्यों को साथ लेकर सामाजिक और आर्थिक उत्थान की दिशा में आगे कदम बढा रही हैं।
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