सहकारिता के चुनाव
सहकारी संस्थाओं में आज दिग्गज वर्ग हावी है। आम जनता में सहकारिता के प्रति रुचि तो बढ़ी है, पर सहकारिता के विषय में उनका ज्ञान कम है। सहकारी संस्थाओं के चुनाव नजदीक आते ही एक विशेष वर्ग इन चुनावों में सक्रिय हो जाता है।
बहुत से राज्यों में सहकारिता की स्थिति ऐसी नहीं है। उन्होंने सहकारिता के माध्यम से प्रगति के सोपान तय किये हैं। आम जनता को भी सहकारी कानूनों, विधियों एवं पद्धतियों का ज्ञान कराना जरूरी है। सहकारिता के चुनावों में सभी सदस्यों की भागीदारी हो इसके लिय निम्न बिन्दु उपयोगी हो सकते हैं :-
१. सहकारिता से जुड़े लोगों के लिए अल्प अवधि का प्रशिक्षण सहकारी विभाग द्वारा दिये जाने की व्यवस्था अभियान के रूप में करनी चाहिए। विशेष कर सहकारी संस्थाओं के निर्वाचन से ६ माह पूर्व यह व्यवस्था प्रत्येक ऐसे केन्द्र के पास की जाय जहां सहकारी संस्थायें अधिक संखया में कार्यरत हैं।
२. प्रशिक्षण में चुनाव प्रक्रिया की जानकारी सदस्यों को दी जाय जिससे उनकी भागीदारी निश्चित रूप से हो सके।
३. आज भी सहकारिता के चुनाव का समय नजदीक आने या निर्वाचन की घोषणा होने पर भी उसकी पद्धति की जानकारी सदस्यों को नहीं होती। यह खाई पाटने की आवश्यकता है। चुनाव लड़ने के लिए किस प्रक्रिया को अपनाना है यह सम्बन्धित व्यक्ति को प्रशिक्षण में जानकारी दी जानी चाहिए।
४. सहकारिता के निर्वाचन के लिये अलग से निर्वाचन अधिकारियों का पैनल राज्य सरकारें घोषित करें, जो निष्पक्ष हो एवं सहकारिता से न जुडा हो।
५. चुनाव के समय शासकीय हस्तक्षेप बिल्कुल नहीं होना चाहिए।
६. निर्वाचन तिथि की घोषणा के ३ माह पूर्व सहकारी संस्थाओं पर यह प्रतिबन्ध होना चाहिए कि वह चुनाव समाप्त होने तक संस्था के किसी नियम अथवा उसके विधान में परिवर्तन न करें। शासन भी इस बीच कोई नया नियम या संस्था का विधान परिवर्तन स्वीकृत न करे।
७. सहकारी संस्थाओं के चुनावों में पूर्ण पारदर्शिता एवं लोकतन्त्रीकरण की व्यवस्था अवश्य की जानी चाहिये।
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