सहकारिता क्षेत्र को ''टेकन फार ग्रांटेड'' लेना बंद करना होगा
सहकारी क्षेत्र को ''टेकन फार ग्रांटेड'' लेना बंद करना होगा। दरअसल सहकारिता वह माध्यम है जिससे हम वास्तविक रूप में गरीब को, किसान को मदद पहुंचा सकते हैं उनका आर्थिक विकास कर सकते हैं। पिछले पचास-साठ सालों में हम निरंतर जिन वर्गों की चिन्ता करते रहे वे आज भी उसी स्थान पर हैं जहां वे थे। भारत में किसान, गरीब और वह वर्ग जो हमारे विकास के एजेंडे से नदारद था उसे समेटने के लिए सहकारिता आंदोलन की शुरूआत हुई, पर वह अपेक्षित सफलता हमें नहीं मिली जो मिलनी थी। कारण वही, सहकारिता जिसे सरकार के विशेष ध्यान की आवश्यकता थी, उससे वह वंचित रहा। फिर वह कुछ ऐसे लोगों का माध्यम बन गया जिन्होने उसे अपने सत्ता और शक्ति का हथियार बनाया। मध्य प्रदेश इसका प्रत्यक्ष उदाहरण रहा है। जहां एक ही व्यक्ति विधायक और मंत्री रहते हुए बारह वर्षो तक सहकारी शीर्ष का अध्यक्ष बना रहा। एकाधिकार के चलते सहकारिता आंदोलन जड़ता का शिकार हो गया। और जहां से हम चले थे वह सब वहीं रहा और उसे चलाने वाले लोग प्रगति के पायदान पर शिखर तक पहुंच गये।
सहकारिता को अगर वास्तव में पंक्ति में खड़े अंतिक व्यक्ति के विकास का माध्यम बनाना है उसे देश की अर्थव्यवस्था की रीढ कृषि को संरक्षित करना है तो हमें उसे राजनीति तथा निज स्वार्थों से मुक्त कर ऐसे समर्पित लोगों के हाथों में सौंपना होगा जिनकी नीयत और नीति दोनो में गरीब व्यक्ति और एक सीमांत लघु कृषक के कल्याण की भावना समाहित हो। यह सब एकदम से नहीं होगा। लेकिन कुछ राष्ट्रवादी सोच के लोगों द्वारा इसकी एक सुनियोजित नीति बनानी होगी तभी हम युग-दृष्टा दीनदयाल जी उपाध्याय की सोच के अनुरूप समाज के सबसे नीचे, सबसे अंतिम व्यक्ति की मदद कर पाने का सपना पूरा कर सकते हैं।
समय के साथ सहकारिता क्षेत्र के सामने चुनौतियाँ और बढ़ गई हैं। यह चुनौती इसलिए भी गंभीर है क्योंकि हम निचले स्तर तक सहकारिता की जडों को मजबूत नहीं बना पाए हैं। सहकार भावना तो हमारी पुरातन कालीन संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा है। आज जरूरत इस बात की है कि हम संस्कृति के इस हिस्से को एक संगठित रूप प्रदान करें। गाँव-गाँव में सहकारिता से लोगों को जोडें। सहकारिता की गतिविधियाँ लोगो की आय बढाने और उनके आर्थिक उत्थान का माध्यम बनें, इस दिशा में सार्थक प्रयास करें। इसके लिए हमें जमीनी तौर पर एक ऐसी रणनीति तैयार करनी होगी जो हर स्थिति का मुकाबला करने में सक्षम हो सके। विश्व आज जिस आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा है ऐसी स्थिति में सहकारिता हमें बहुत याद आती हैं क्योंकि यही एक वह जरिया है जो कभी भी कैसी भी मंदी के दौर में लोगों के आर्थिक जीवन की रक्षा कर सकती है। इसका कारण सिर्फ एक ही है कि सहकारिता जमीन से जुड़ी उस व्यवस्था से संबद्ध होती है जिसके हाथों में श्रम हैं, ऊर्जा है और जज्बा है। जरूरत सिर्फ उसे एक दिशा और दृष्टि देने की है। भारत जैसे कृषि प्रधान और ग्राम-आधारित व्यवस्था में सहकारिता एक सही और सशक्त हथियार है जो देश और देश के लोगों की आर्थिक उन्नति का माध्यम बन सकता है। हमारे सहकारिता विकास के एजेंडे में प्राथमिकता इससे जुड़ी सहकारी समितियों और शीर्ष सहकारी संस्थाओं को सत्ता प्रदान करने की होनी चाहिए। प्रो० वैघनाथन कमेटी की सिफारिश उनकी मदद का पैकेज निश्चित ही ऐसे समय में सहकारी संस्थाओं के लिए संजीवनी बना है जबकि वह मरणासन्न स्थिति में पहुंच रही थी पर प्रो० वैघनाथन कमेटी के पैजेज के बाद सहकारी संस्थाएं जीवित होकर अगो बढे यह हमारे सामने एक चुनौती है। अगर पूर्व के हालात नहीं बदले तो निश्चित ही सहकारी आंदोलन को जानलेवा आघात सहना होगा। सरकारी मदद और गरीब किसान की अपनी जो भी जिस स्तर की पूंजी हो उससे हमें सहकारिता आंदोलन को जोड़ना होगा। हमारा प्रयास होना चाहिए कि बाद में सरकारी मदद नगण्य हो और सहकारिता आंदोलन सिर्फ गरीब और किसान की पूंजी पर ही खडा होकर स्थापित हो।
मध्य प्रदेश में सहकारिता आंदोलन को चास सालों बाद वास्तविक अर्थो में एक नई दिशा मिली है। वर्ष २००३ में राज्य में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद सहकारिता क्षेत्र को सर्वोच्च प्राथमिकता पर रखा गया। जाहिर है इसके सुखद, परिणाम आने ही थे। सहकारिता आंदोलन को राजनीति, एकाधिकारवाद और भ्रष्टाचार से मुक्त कराने के लिए ठोस कदम उठाए गए। पहली बार यह तय हुआ कि अब कोई भी विधायक, सांसद और स्थानीय निकायों का पदाधिकारी सहकारी संस्थाओं का पदाधिकारी नहीं बनेगा। इससे सहकारिता को एक ही झटके में राजनीति का अखाड़ा बनने से रोक दिया गया जो इसकी प्रगति में सबसे बडा रोडा था। दूसरा एक महत्वपूर्ण निर्णय मध्य प्रदेश में सरकार ने लिया, वह था कि सहकारी संस्थाओं का कोई भी पदाधिकारी दो कार्यकाल से अधिक नहीं रह सकेगा। इससे सहकारिता के क्षेत्र को एकाधिकारवाद से मुक्ति मिली। इन दोनों फैसलों को सहकारिता अधिनियम का हिस्सा बनाया गया। पहली बार मध्य प्रदेश में सहकारिता के क्षेत्र में स्वच्छ और पारदर्शी चुनाव हुए। सहकारिता के क्षेत्र में समर्पित हाथा्रे को इसकी बागडोर सौंपी गई। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है कि चुनाव को लेकर निचली अदालस से लेकर उच्चतम अदालतों तक विरोधी पक्ष गया लेकिन वह सफल नहीं हो सके। भाजपा सरकार के इरादों और मंशा को देखते हुए सहकारिता क्षेत्र में सुख परिणाम आने ही थे। आज प्रदेश की कई शीर्घ संस्थाऐं वर्षो के घाटे से उबरकर लाभ का व्यवसाय कर रही है। प्रदेश की ३४ में से ३३ बैंक लाभ कमा रही हैं। ये वो संकेत हैं जो सहकारिता आंदोलन को प्रदेश में सुदृढ़ आधार प्रदान कर रहे है॥ सहकारिता आंदोलन को पुनर्जीवित कर स्थापित करने की दृढ इच्छाशक्ति के चलते ही मध्य प्रदेश पूरे देश में वह पहला राज्य था जिसनें प्रो. वैघपनाथन कमेटी की सिफारिशों को मंजूर किया, उसके अनुरूप अपने एक्ट में संशोधन किया। भारत सरकार के साथ एम.ओ.यू. किया। आज प्रदेश ने इस पैकेज के तहत ७०० करोड रूपये की सहायता प्राप्त कर सहकारी समितियों तक यह राशि पहंचा दी है। इससे निचली सहकारी संस्थाओं में आर्थिक सुदृढता आई है।
एक सहकारी शीर्ष संस्था के अध्यक्ष होने के नाते मेरी सोच है कि अब सहकारी बैंकों और प्राथमिक समितियों के ऋण व्यवसाय में वृद्धि हेतु अत्यधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। हमारा अधिकांश कृष् ऋण फसल ऋणों तक ही सीमित हो गया है। हमें अन्य योजनाबद्ध प्रयोजनों के लिए कृषि सम्बद्ध गतिविधियों जैसे फार्म मशीनीकरण, भूमि विकास, वानिकी-उद्यानिकी डयेरी, पोल्ट्री आदि के लिए भी ऋण प्रदाय को प्रोत्साहित करना होगा। व्यावसायिक बैंकों ने कृषि ऋणों के प्रदाय में सहकारी बैंकों के समक्ष कड़ी चुनौती उपस्थित कर दी है। हमें योजनाबद्ध तरीके से न केवल इस चुनौती का मुकाबला करना होगा बल्कि अकृषि क्षेत्रों जैसे आवास, वाहन उपभोक्त सामगी, शिक्षा-ऋण, व्यापारियों को साख सीमाएं, कुटीर एवं लघु उद्यमियों को ऋण सुविधाएं आदि देने पर भी विशेष ध्यान देना होगा।
जरूरी है कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सहकारी बैंकों को अपने कृषक सदस्यों की ऋण आवश्यकताओं के साथ-साथ अन्य वित्तीय सेवाएं उपलब्ध कराने का भी प्रयास करना चाहिए। अप्रेक्स बैंक द्वारा सहकारी बैंकों एवं समितियों के माध्यम से जीवन बीमा और सामान्य बीमा का व्यवसाय प्रारंभ किया गया है।
इन योजनाओं के क्रियान्वयन से हम न केवल अपने सदस्यों को लाभान्वित कर सकते हैं वरन् इससे हमारी संस्थाओं का लार्भाजन भी बढ़ सकता है। वर्तमान बचत बैंकों को सक्रिय करने के साथ-साथ हमें शेष समितियों में भी बचत बैंक स्थापित करते हुए ग्रामीण क्षेत्रों में बचत के अधिकाधिक संकलन की भी कार्यवाही करनी होगी। इससे हमारी स्वयं की निधियां बढ़ेंगी और निधियों की लागत भी कम हो सकेगी। इसके साथ ही स्वयं सहायता मूहों के गठन और उनके वित्त पोषण की दिशा में भी ठोस कदम उठाये जाने की जरूरत है ताकि समाज के कमजोर वर्गो और विशेषतः महिलाओं को सहकारी आंदोलन से जोडा जाकर उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत बनाया जा सके। वर्तमान बैंकिंग परिदृश्य में हमें आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करते हुए कम्प्यूटरीकरण की दिशा में भी एक प्रभावी पहल करना है। मुझे आशा है कि नाबार्ड के मार्गदर्शन और सहयोग से हम निकट भविष्य में ही प्राथमिक समितियों के स्तर तक कम्प्यूटरीकरण का लक्ष्य हासिल कर सकेगें। सहकारी बैंकों के सुप्रबंधन के लिए उनमें कुशल और दक्ष मानव संसाधन का विकास एक महती आवश्यकता है। इसके लिए व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त योग्य युवाओं की नियुक्ति के अतिरिक्त वर्तमान अधिकारियों एवं कर्मचारियों के लिए उपयुक्त प्रशिक्षण संस्थानों में प्रशिक्षित कराया जाए। इस कार्य को और तेजी प्रदान की जानी चाहिए।
सहकारिता आंदोलन का भविष्य सुनहरा हो, यह हम सबको सपना है। मध्य प्रदेश में इस सपने को अभी तक जो भी साकार रूप मिला है उसका श्रेय हमारी प्रदेश के यशस्वी मुखयमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान को है। सहकारिता के प्रति उनकी सकारात्मक सोच, समर्थन और सहयोग से ही हमने अपना एक लक्ष्य, एक सूत्र वाक्य बनाया है 'सशक्त सहकारिता, समृद्ध मध्य प्रदेश' हम अपने इस लक्ष्य को पाने के लिए वचनबद्ध है।
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