इडोटोरियल जुलाई २००९
सहकारी बैंकों की हालत कठिन होती चली जा रही है। बहुत से सहकारी बैंक, बैंकों के नक्शों से हट चुके हैं। इसका कारण है नान परफारमिंग एसेट्स, अनुशासनहीनता आदि। कई बैंकों का कैश रिजर्वरेपोमेंटेन न होने के कारण डिपाजिटर्स का पैसा वापस नहीं मिल पा रहा है।
यह ध्यान देने योग्य है कि हिन्दुस्थान की प्रगति में सहकारिता का बहुत बड़ा योगदान है विशेषकर कृषि एवं ग्रामीण क्षेत्रों में। सहकारिता भारत में एक शताब्दी पूरी कर चुकी है। कृषि कर्जों की माफी के कारण सहकारी बैंकों को बहुत घाटा उठाना पडा है। लोगों को ऐसा लग रहा है कि अगली बार भी हमें ऋण नहीं चुकाने पडेंगे, सरकार माफ कर देगी इसलिए रिकवरी नहीं हो रही है। इसका बैंकों पर बुरा प्रभाव पड रहा है। अब तक सभी बैंकों को ऋण माफी योजना का पैसा नहीं मिला है।
केन्द्र की सरकार का विशेष ध्यान केवल महाराष्ट्र की सहकारी चीनी मिलों पर ही है। उनको हर साल पैकेज दिया जा रहा है लेकिन सहकारी बैंकों को ऐसा कोई पैकेज आज तक कभी नहीं दिया गया। राष्ट्रीयकृत बैंकों को अवश्य पैकेज दिये जाते हैं। किसान और गरीब को आसानी से छोटा ऋण (Micro Finance) उपलब्ध कराने वाले इन सहकारी बैंकों के प्रति केन्द्र सरकार की दृष्टि सौतेली है। भारत सरकार के इस दृष्टिकोण में यदि परिवर्तन नहीं हुआ तो भविष्य में कोई सहकारी बैंक डूबने से नहीं बचेगा। ऐसा रिर्जव बैंक आफ इण्डिया (RBI) स्वीकार करता है।
RBI के अधीन डिपाजिट इश्योरेंस गारण्टी कॉपोरेशन (D.I.G.C.) चलाया जाता है, लेकिन समय पर ठीक ढ़ंग से प्रीमियम जमा करने के बाद भी इन्श्योरेंस के क्लेम का पैसा समय पर नहीं मिलता। परिणाम यह होता है कि सहकारी बैंक बन्द हो जाते हैं और उन्हें यह क्लेम का पैसा बन्द होने के बाद भी चार या पाँच वर्ष तक नहीं मिल पाता। ऐसे बहुत से बैंक हैं जिनके ग्राहकों को अपना पैसा नहीं मिल पा रहा है। ऐसा माना जा रहा है कि DIGC की खुद की स्थिति ग्राहकों का पैसा वापिस करने की नहीं है। इसका जिम्मेदार कौन है? रिर्जव बैंक आफ इण्डिया (RBI) या भारत सरकार। डिपाजिटर्स को उनका डिपाजिट कब तक मिलेगा RBI को यह स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए।
शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकों पर कठोर नियम लगाये गये हैं। जो नियम अमेरिका और रूस जैसे विकसित देशों के बैंकों पर लागू हैं उसी तरह के नियम हमारे निर्बल, ग्रामीण और कृषि आधारित बैंकों और रोजगार प्रदान करने का प्रयास करने वाले असंगठित क्षेत्रों में कार्यरत बैंकों पर भी लागू है, क्या यह उचित है?
सबसे मजेदार बात यह है कि जिस प्रणाली को आधार बनाकर भारत में सहकारिता ने प्रगति के सौ वर्ष पूरे किये उसे ही RBI गलत ठहराकर अपना अंकुश लगा रही है। अमेरिका और रूस जैसे विकसित देशों की नकल करके उनके नियमों को अपने यहाँ लागू करना तो इस देश का मजाक उड़ाना है। यह तो हमारे गाँव की गंगूबाई की तुलना अमेरिका की हिलेरी क्लिंगटन से करने जैसा है। गंगूबाई को दस दिन का नोटिस देकर हिलेरी क्लिंगटन जैसे रूप, रंग और मानसिक स्थिति बनाने की अपेक्षा करने जैसी सोच RBI की सहकारी बैंकों के प्रति है।
जिस आधार पर बैंकों को इससे पहले अशक्त (weak) घोषित किया जाता था उसका तरीका बदल दिया गया है। बैंकों की ग्रेडिंग की जा रही है। उनको शक्तिहीन घोषित करने का मूल आधार Capital Risk Adequacy Ratio बनाया गया है। काल्पनिक भयग्रस्तता (imaginary fear) द्वारा उनको शक्तिहीन घोषित किया जा रहा है। जैसे कि स्टेट बैंक में रखे हुए पैसों का risk weight २०% है यानि स्टेट बैंक के डूबने का अवसर बीस प्रतिशत है? या जिला सहकारी बैंक या किसी और सहकारी बैंको का रिस्कवेट इसमें बीस प्रतिशत ही बताया जा रहा है।
एक और गलत बात इसमें यह है कि बैंकों को अदा किये हुए ऋणों का रिस्कवेट कई जगह ७४% है तो कई जगह १००% है। मजाक की भी हद होती है। कई जगह यह इससे पूर्व में १२५% भी था और सभी बैंको का १२५% (सौ में से एक सौ पच्चीस) रिस्क वेट लगाया गया था।
भारतीय संसद ने सभी अधिकार RBI को सौंप दिये हैं। इसका पुनिरीक्षण और पुनर्विचार किया जाना अत्यावश्यक है। इस विषय पर सहकारी बैंको के प्रबंधकों एवं संचालको को बेझिझक अपनी राय प्रकट करनी चाहिए परन्तु RBI की वक्रदृष्टि उन पर न पड़े इसलिए वे ऐसा नहीं कर पा रहे हैं। क्या यह लोकतन्त्र है?
कोढ में खाज। सहकारी बैंको की इस बुरी हालत में उनके ऊपर आयकर। स्वतन्त्रता की प्राप्ति के बाद पहली बार यू.पी.ए. सरकार ने दो-तीन वर्ष पहले सहकारी संस्थाओं पर आयकर और सेवाकर लगा कर उनके ताबूत में कील ठोंकने का कार्य किया है। भारतीय जनता पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री राजनाथ सिंह ने लोकसभा में १७ जुलाई २००९ को कृषि सम्बन्धी प्रस्ताव पर चर्चा करते हुए सहकारी संस्थाओं से आयकर हटाने की माँग भारत सरकार से बहुत जोरदार शब्दों में किया। इससे गाँव, गरीब और किसान के हित में भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रव्यापी सोच स्पष्ट होती है।
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