सहकारी आंदोलन के स्वर्णिम युग की शुरुआत
सन् २००३ के पूर्व छत्तीसगढ़ राज्य में सहकारी संस्थाओं को जेबी संस्था मान कर चलाने की प्रवृत्ति थी। इसी प्रवृत्ति का परिणाम है कि छत्तीसगढ़ की सहकारी संस्थाओं में जो लोग बैठे वे हमेशा के लिए कुण्डली मार बैठ गये। सहकारी संस्थाओं का संचालन सहकारिता की भावना से होने के बजाय पदाधिकारियों की मर्जी से होने लगा। यूं तो सहकारी संस्थाओं में लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम है। यहां सदस्यों द्वारा निश्चित समय के लिए चुने गये पदाधिकारी ही बागडोर संभालते हैं, लेकिन वास्तव में इन संस्थाओं के चुनाव कई-कई वर्षों तक नहीं होते थे। यदि चुनाव होते भी थे तो चुपके-चुपके निर्वाचन सम्पन्न हो जाता था। कतिपय संस्थाओं में कुछ जागरूक सदस्य निर्वाचन में भाग लेना चाहते थे लेकिन उनका नामांकन पत्र ही निरस्त कर दिया जाता था। फलस्वरूप, छत्तीसगढ में सहकारिता के प्रति जन विश्वास में कमी आई और सामान्य लोग सहकारिता आंदोलन से दूर हटते गए।
इस दम घुटते सहकारी आंदोलन को नई दिशा तब मिली जब प्रदेश में वर्ष २००४ में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी तथा मुखयमंत्री डा. रमन सिंह ने सहकारी आंदोलन में निखार लाने के लिए नये सिरे से प्रयास किये। उन्होंने प्रदेश की बागडोर संम्भालते ही सहकारी अधिनियम में छत्तीसगढ़ की परिस्थितियों के अनुकूल संशोधन हेतु सहकारी अधिनियम समिति का गठन किया। इस कमेटी की रिपोर्ट पर विधान सभा में मुहर लग चुकी है तथा राज्यपाल के पास विचाराधीन है।
राज्य शासन ने कृषि के क्षेत्र में कार्य करने वाली प्राथमिक कृषि साख समितियों के पुनर्गठन हेतु पुनर्गठन समितियों का गठन किया। प्रदेश में वर्तमान में ६ जिला केन्द्रीय बैंक सक्रिय हैं। बैंक स्तर पर पुनर्गठन समितियों के गठन करने के पीछे सरकार की यही इच्छा थी कि प्राथमिक समिति के कृषक सदस्यों को लेन-देन के लिए अधिक दूर न जाना पड़े। पुनर्गठन समितियों ने शासन को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। लेकिन इस बीच सहकारी समितियों के चुनाव की प्रक्रिया प्रारंभ हो गई इसलिए समितियों की रिपोर्ट लागू न हो सकी है। लगभग ५० नई प्राथमिक समितियों को मिलाकर वर्तमान संखया १३३३ से बढकर १३८२ हो जायेगी।
छत्तीसगढ़ शासन ने सहकारी समितियों के प्रबन्धन में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के उदेश्य से ३३% आरक्षण का निर्णय लिया है। सहकारी अधिनियम संच्चोधन विधेयक में इस बिन्दू को शामिल किये जाने से यह मामला भी राज्यपाल के पास विचाराधीन है। .
प्रदेश सरकार ने साहसिक निर्णय लेते हुए प्रो. वेदनाथन कमेटी की सिफारिशों को लागू करने के उदेश्य से केन्द्र सरकार के साथ एम ओ यू किया है। इसके लागू होने से वित्तीय संकट से जूझ रही सरकारी संस्थाओं को आत्मनिर्भर बनने का नया अवसर मिलेगा।
छत्तीसगढ़ सरकार ने सहकारी संस्थाओं एवं इससे जुडे सदस्यों के उत्थान के लिए अनेक निर्णय लिये हैं, मसलन ११७ बुनकर सहकारी समितियों की ७.५ करोड रुपये की ऋण माफी की गई। शासन ने सहकारी समितियों के माध्यम से कृषि ऋण पर ब्याज दर १४% से घटाकर ३% कर दिया है। शासन का यह निर्णय किसानों के लिए वरदान सिद्ध हो रहा है। इस निर्णय के फलस्वरूप सहकारी समितियों से ऋण लेने वाले सदस्यों की संखया में इजाफा हुआ है। शासन की मंशा भविष्य में शून्य प्रतिशत ब्याज दर पर फसल ऋण देने की है। यदि सरकार इस व्यवस्था को लागू कर देती है तो किसानों को बिना ब्याज के ऋण देने वाला छत्तीसगढ पहला राज्य होगा।
यूं तो सरकार की उपलब्धियां अनगिनत हैं जिसे किसी पत्रिका के एक कॉलम में समेटना संभव नहीं है, लेकिन प्रदेश में संपन्न हुये सहकारिता के चुनाव का उल्लेख करना आवश्यक है। शासन की मंशा के अनुरूप प्रदेश में प्राथमिक समितियों से लेकर शीर्ष बैंकों के चुनाव निर्विवाद रूप से सम्पन्न हुये। चुनाव की प्रक्रिया पूरी तरह स्वतंत्र तथा प्रदर्शिता-पूर्ण होने से समितियों एवं संस्थाओं के सदस्यों ने निर्भीक होकर चुनाव में भाग लिया। चुनाव में बड़ी संखया में लोगों का भाग लेना इस बात को दर्शाता है कि तेजी से विस्तार होगा एवं सहकारी आंदोलन जन आंदोलन के रूप में उभरेगा। हमें यह यह कहने में कोई संकोच नही कि डा. रमन सिंह सरकार के सकरात्मक दृष्टिकोण एवं रचनात्मक फैसले से छत्तीसगढ़ में सहकारी आंदोलन के स्वर्णिम युग का सूत्रपात हुआ है।
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