Monday, June 13, 2011

नागरी सहकारी बैंकों की चुनौतियां

नागरी सहकारी बैंकों की चुनौतियां

बीते दशक के शुरू में भारत सरकार ने खुली अर्थव्यवस्था को अपनाया, जिस वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था विशेष रूप से भारतीय वित्तीय क्षेत्र का रूप पूरी तरह से बदल गया है। एक तरफ तो आर्थिक उदारीकरण के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने लागू किए हुये निर्बंध शिथिल करने शुरू कर दिए और दूसरी तरफ बैंकिंग व्यवसाय को प्रभावित और नियंत्रित रखने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने उनके कामकाज के मूल्यांकन को और निष्कर्षों को पूरी तरह कठोर किया और सभी बैंकों में एकसमान लागू किया है।

नागरी सहकारी बैंको का कार्यक्षेत्र और व्यवसाय विस्तार मर्यादित होने की वजह से इन वित्तीय घटनाओं को सहज ही अपनाना मुश्किल हो रहा है। उदारीकरण के इसी वजह से और हुए निष्कर्षों से पूरी बैंकिंग व्यवसाय में स्पर्धा शुरू हो गयी है। दिन ब दिन बैंकिंग व्यवसाय में आने वाले नये स्पर्द्धक और उनकी व्यवसाय प्रणाली को प्रभावी रूप से पेश करने की उनकी युक्तियों की वजह से विशेष रूप से सहकारी बैंकों को बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। सभासदों के माध्यम से शेयर पूँजी का एकत्रीकरण करके लोकाशाही के मूल्यों को अपना कर आम आदमी आधारित बनाना यही सहकारी बैंकों का प्रमुख उदेश्य है और अर्थव्यवस्था को नजर रखते हुए अत्यावशक है। नमूद घटनाओं की तरफ ध्यान देते हुए सहकारी बैंकों की ओर राज्य और केन्द्र सरकार का विशेष रूप से ध्यान देना जरूरी है।

पिछले दो सालों से केन्द्र सरकार ने सहकारी बैंकों के उत्पन्न पर आयकर लागू किया है, जिसको लागू होने की पद्धति बहुत ही जांचक है। बैंकिंग व्यवसाय में शुरू हुई इन्हीं स्पर्धाओं की वजह से विशेषतः नागरी बैंकों का मुनाफा घट रहा है, क्योंकि इसी मुनाफे में बडा हिस्सा आयकर की वजह से केंद्र सरकार को जाता है, जिसकी वजह से नागरी बैंकों का आरक्षित निधि बढ नहीं रहा है। बैंकिंग व्यवसाय में भांडवल पर्याप्त कानिष्कर्ष सबसे बडा मूल्यांकन भारतीय रिजर्व बैंक ने दिया है और महत्वपूर्ण माना गया है। रिजर्व बैंक ने निर्धारित किया भांडवल पर्याप्तता का प्रमाण प्राप्त करने के लिए इसी निधि में बढोत्तरी होना और जोखिम भार कम होना जरूरी है। एक तरफ बैंकिंग व्यवसाय की स्पर्धा और दूसरी तरफ वित्तीय मंदी की वजह से जोखिम भार घटाना सहकारी बैंकों के लिए मुश्किल हो रहा है। आयकर की वजह से केंद्र सरकार को जाता है, जिसकी वजह से नागरी बैंकों का आरक्षित निधि बढ़ नहीं रहा है। बैंकिंग व्यवसाय में भांडवल पर्याप्त का निष्कर्ष सबसे बड़ा मूल्यांकन भारतीय रिजर्व बैंक ने दिया है और महत्वपूर्ण माना गया है। रिजर्व बैंक ने निर्धारित किया भांडवल पर्याप्तता का प्रमाण प्राप्त करने के लिए इसी निधि में बढ़ोत्तरी होना और जोखिम भार कम होना जरूरी है। एक तरफ बैंकिंग व्यवसाय की स्पर्धा और दूसरी तरफ वित्तीय मंदी की वजह से जोखिम भार घटाना सहकारी बैंकों के लिए मुश्किल हो रहा है। आयकर की वजह से भड वल निधी में घट हो रही है और इसका परिणाम भाडवल पर्याप्ता पर हो रहा है। इसी लिए केंद्र सरकार को सहकारी बैंको के ऊपर लगाया आयकर कुछ समय के लिए प्रलंबित रखना जरूरी है।

इस साल वित्तीय मंदी पूरे क्षेत्र में छा गयी है, जिसका परिणाम सहकारी बैंकों के थकीत ऋण वसूली पर प्रमुख रूप से हो रहा है। अनुत्पादक ऋण में बढ़ोत्तरी ना होने के लिए और इसी ऋण पुनर्भरण करने के लिए केंद्र सरकार ने व्यापारी बैंकों को पर्याय उपलब्ध किये हैं। तथापि नागरी सहकारी बैंकों के लिए ऐसी कोई भी सुविधा केंद्र या राज्य सरकार ने उपलब्ध नहीं की है। इन परिस्थितियों में नागरी सहकारी बैंकों को अनुत्पादक ऋण को वर्गीकृत करने के लिये पर्याय उपलब्ध करना आवश्यक है।

बैंकिंग व्यवसाय में सूचना तकनीक का उपयोग बड़ी मात्रा में हो रहा है और इस स्पर्धा में कायम रहने के लिए इसी सूचना तकनीक का अवलंबन करना बैंकों को जरूरी ही है। इसके कारण निधी की कमी महसूस होती है और छोटी बैंकों के लिए यह निधी उपलब्ध करना आसान बात नहीं है। सूचना तकनीक क्षेत्र में काम करने वाल कर्मचारियों की तनखवाह अपेक्षाकृत बडी होती है, जिसका खर्चा छोटी बैंक उठा नहीं सकती। राष्ट्रीय स्तर पर सूचना तकनीक क्षेत्र और पर्यायी उपलब्धता तथा कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने के लिए कार्य प्रणाली का अवलंबन करना जरूरी है।

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