Tuesday, June 14, 2011

छत्तीसगढ़ राज्य में सहकारिता के क्षेत्र में प्रगति

छत्तीसगढ़ राज्य में सहकारिता के क्षेत्र में प्रगति
डा रमन सिंह, माननीय मुखयमंत्री जी के साथ बातचीत पर आधारित


हमारी ओर से शांतिमय तथा समृद्धशाली नववर्ष २००९ की शुभकामनाएं स्वीकार करें।

धन्यवाद! आपको और केन्द्रीय सहकारिता प्रकोष्ठ तथा इससे पूरे देश में जुडे सदस्यों को भी मेरी बधाई और शुभकामनाएं। नया वर्ष आप सबके मिशन को सफलता के नए शिखर पर पहुँचने का मार्ग प्रशस्त करे।

आज तक आपके राज्य में सहकारिता के क्षेत्र में क्या प्रगति हुई है?

छत्तीसगढ़ में हमने अल्पकालीन साख संरचना के त्रिस्तरीय ढांचे को मजबूत बनाया है। राज्य सहकारी बैंक (एपेक्स बैंक) तथा राज्य सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक राज्य स्तर पर कार्यच्चील हैं। जिला स्तर पर ६ जिला केन्द्रीय सहकारी बैंक तथा १२ जिला सहकारी कृषि तथा ग्रामीण विकास बैंक कार्य कर रहे हैं। १३३३ प्राथमिक कृषि सहकारी साख समितियाँ और १४ शहरी ऋण समितियाँ जिला स्तरीय संस्थाओं से जुडी हुई हैं। प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों के माध्यम से सहकारी बैंकों द्वारा कृषकों को नगद एवं वस्तु ऋण उपलब्ध कराया जाता है। रासायनिक खाद, कीटनाशक औषधि, कृषि यंत्र, उन्नत बीज वितरण, कृषि उपज विपणन एवं शासन की अन्य जन कल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में इन समितियों द्वारा मुखय भूमिका निभाई जा रही है। प्रदेश में कुल १३३३ प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियां कार्यरत हैं, जिसमें ८५७ प्राथमिक कृषि सहकारी समितियां (पैक्स) एवं ४७६ वृहद् आदिवासी बहुउदेश्यीय समितिया (लम्पस) है सहकारिता विभाग का वर्ष २०००-०१ में ९.४३ करोड रुपये का बजट प्रावधान था, जो वर्ष २००८-०९ में बढ कर १४.३२ करोड रु. का हो गया है। संस्थाओं के सुदृढीकरण के लिए हमने वैद्यनाथन कमेटी की अनुच्चंसाएँ लागू करने हेतु २५ सितम्बर २००७ को राज्य सरकार, केन्द्र सरकार एवं नाबार्ड के साथ त्रिपक्षीय एम.ओ.यू. (समझौता ज्ञापन) पर हस्ताक्षर किये गये हैं। इसके क्रियान्वयन के लिए केन्द्र के आगामी कदम का इंतजार है।

आपके विचार से राज्य के आर्थिक विकास में सहकारिता क्षेत्र क्या भूमिका अदा कर सकता है?

आपको विदित ही है कि छत्तीसगढ़ का ४४ प्रतिच्चत हिस्सा जंगलों से घिरा है, जहां की आबादी मूलतः अपनी आजीविका के लिए वनोपज पर आश्रित है। इसी तरह राज्य की ८० फीसदी आबादी कृषि पर आश्रित है। इसके अलावा छोटे-छोटे पारंपरिक कार्य करने वाले भी अनेक समूह और समुदाय हैं जैसे च्चिल्पकार, मत्स्य पालक, बुनकर आदि। हमारा मानना है कि बडी पूंजी और विपणन सुविधाओं के अभाव में इन क्षेत्रों में विकास नहीं हो पाया। इसलिए हमारी सरकार ने ऐसे क्षेत्रों को सहकारिता क्षेत्र से जोडा है। मेरा मानना है कि इन वर्गों के लोग जब अपना परंपरागत व्यवसाय मिलजुल कर करेंगे तो अच्छा लाभार्जन कर सकेंगे। सरकार इन्हें प्रोत्साहित करेगी। हमने दस हजार से अधिक बुनकर समितियों का ८ करोड रुपए का कर्ज भी माफ किया है तथा हमारा प्रयास है कि इन समितियों से उत्पादित वस्तुओं की सरकारी संस्थाओं में खरीदी की जाए। इसके अलावा सरकारी तालाबों में मत्स्य पालन हेतु मछुआ सहकारी समितियों को प्राथमिकता दी जा रही है।

राज्य में सहकारिता क्षेत्र के विकास के लिए आपने क्या योजनाऐं और कार्यक्रम तैयार किए हैं?

जैसा कि मैंने पहले बताया है कि किन क्षेत्रों को सहकारिता से जोड़ना फायदेमंद हो सकता है। मैं आपको बताना चाहता हूं कि हमने तो छत्तीसगढ में पूरी सार्वजनिक वितरण प्रणाली का ही सहकारीकरण कर दिया है। राशन दुकानें निजी व्यक्तियों के हाथों से वापस लेकर महिला स्वसहायता समूहों, लैम्प्स, वन सुरक्षा समितियों जैसी सहकारी समितियों को सौंप दी हैं। वनोपज के बहुत बडे कारोबार में वन प्रबंधन समितियों के माध्यम से स्थानीय लोगों को सीधे भागीदार बनाया गया है। समर्थन मूल्य में धान खरीदी में प्राथमिक साख सहकारी समितियों के द्वारा बनाए गए १५५५ खरीदी केन्द्रों की भूमिका को महत्वपूर्ण बनाया गया है। इतना ही नहीं इस सम्पूर्ण प्रणाली को सूचना प्रौद्योगिकी से जोड दिया गया है। वन सुरक्षा से लेकर अस्पतालों के प्रबंधन तक, स्वसहायता समूहों के जरिए उत्पादन से लेकर विपणन तक, कृषि उत्पादन से लेकर सिंचाई के लिए पानी के वितरण तक। अनेक गतिविधियों में सहकारी क्षेत्र को जिम्मेदारी सौंपी गई है। इस दिशा में हमारी सोच और क्रियान्वयन की प्रगति लगातार जारी है।

अर्थव्यवस्था के अभी तक अछूते रहे क्षेत्रों में सहकारिता किस तरह महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है?

आपको यह जानकर आच्च्चर्य होगा कि प्राथमिक क्षेत्र ही नहीं, बहुत बड़ी पूंजी की आवश्यकता वाले क्षेत्रों में भी सहकारिता को दाखिल करा दिया है। छत्तीसगढ में एक हजार मेगावाट से ज्यादा क्षमता का बिजलीघर राज्य सरकार और इफ को जैसे देश के प्रतिष्ठित सहकारी संस्थान के संयुक्त प्रयास से स्थापित किया रहा है। ऐसे ही अनेक उत्पादक उपक्रमों से सहकारिता को जोडने का प्रयास हम कर रहे हैं।

क्या आप सोचते हैं कि पिछड़, अल्पसंखयक तथा अनुसूचित जनजाति वर्गों के आर्थिक विकास में सहकारिता आंदोलन की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है?

हमने देखा है कि जहाँ पूंजी की समस्या हो, सम्यक् संगठन और प्रच्चिक्षण की समस्या हो, यथोचित नेतृत्त्व की समस्या हो, ऐसे क्षेत्रों में एक दूसरे को साथ लेकर आगे बढने का रास्ता आसान होता है। हमने अपने राज्य की एक अभिनव योजना गरीबी उन्मूलन परियोजना 'नवा अंजोर' के अंतर्गत समहित समूहों का गठन किया। वनों की रक्षा, वनोपज के कारोबार और वन प्रबंधन के लिए वहां रहने वाले लोगों की समिति बनाई गई। इसी तरह स्व-सहायता समूहों के माध्यम से भी लोगों को संगठित किया गया। ऐसे समूहों में लाभान्वित होने वाले लोगों में से ज्यादातर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा पिछडा वर्ग के ही हैं। मैं साचता हूं कि सहकारिता आंदोलन इन वर्गों के लिए वरदान साबित हो सकता है।

क्या आपके राज्य में वैद्यनाथन समिति की सिफारिशे लागू कर दी गई हैं? यदि हाँ तो इससे राज्य को किस तरह का लाभ हुआ है। यदि नहीं लागू की गईं तो, इसके रास्ते की रुकावटें क्या हैं?

वैद्यनाथन कमेटी की अनुशंसा को लागू करने हेतु दिनांक २५.०९.२००७ को हमने केन्द्र सरकार एवं नाबार्ड के साथ एम.ओ.यू किया है। केन्द्र का अंश प्राप्त होते ही संबंधित सहकारी संस्थाओं व समितियों को समझौते के अनुसार राशि प्रदान कर दी जाएगी।

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