Monday, March 14, 2011

Rashtpati Gypan 7th March 2011

सेवा में,

महामहिम राष्ट्रपति
भारत,

राष्ट्रपति भवन,
नई दिल्ली।

विषय:- बहुराज्यीय सहकारी समिति अधिनियम संशोधन विधेयक 2010 एवं प्रत्यक्ष कर संहिता विधेयक 2010 में सहकारी संस्थाओं के विरूद्व किए गए प्राविधानांे के विरोध में एवं संविधान संशोधन विधेयक 2009 लागू करने हेतु ज्ञापन।

कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व वाली सप्रंग सरकार की वर्तमान सहकारिता-नीति भारतीय सहकारिता आंदोलन पर कुठाराघात करने वाली नीति के रूप में उभरकर आ रही है। भारतीय जनता पार्टी वर्तमान सरकार की इस सहकारिता विरोधी नीति का जोरदार विरोध करती है।

भाजपा नेतृत्व वाली एन.डी.ए. सरकार ने श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के प्रधानमन्त्रित्व काल में सहकारिता आंदोलन को स्वायत्त और प्रभावशाली बनाने की दृष्टि से सन् 2002 में बहुराज्यीय सहकारी समिति अधिनियम में संशोधन के माध्यम से अनेक सुधार किए थे जिसका लाभ सहकारी संस्थाओं को मिला। परन्तु बड़े दुर्भाग्य की बात है कि देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान करने वाले सहकारिता आंदोलन को वर्तमान केन्द्र सरकार द्वारा कुचला जा रहा है।

सपं्रग की केन्द्र सरकार द्वारा संविधान संशोधन विधेयक 2009 दो वर्ष पूर्व संसद के पटल पर रखा गया था, भाजपा इस संविधान संशोधन विधेयक का स्वागत करती है। परन्तु केन्द्र सरकार द्वारा इस विधेयक को लटका कर रखा गया है जिसकी हम निंदा करते हैं तथा सरकार से मांग करते हैं कि इसे जल्द से जल्द संसद में पारित किया जाए।

सप्रंग की केन्द्र सरकार द्वारा बहुराज्यीय सहकारी समिति अधिनियम विधेयक 2010 अभी स्थायी समिति के पास भेजा जा चुका है। इस विधेयक के माध्यम से केन्द्र सरकार केन्द्रीय पंजीयक को असीमित शक्तियां प्रदान कर उसको सहकारी संस्थाओं पर तानाशाही पूर्ण नियंत्रण स्थापित करने वाली शक्तियां प्रदान कर रही है। इससे संस्थाओं के दैनिक कार्य में अनावश्यक दखलअंदाजी बढ़ेगी जिसके कारण सहकारी संस्थाओं की स्वायत्तता और कार्यप्रणाली अनावश्यक रूप से प्रभावित होगी। सरकार द्वारा प्रस्तुत किया जाने वाला यह विधेयक, सन् 2002 के विधेयक की मूल भावना के पूर्णतः विपरीत है जिसका हम विरोध करते हैं। हम इस विधेयक के निम्न प्राविधानों का विरोध करते हैं:-

1. केन्द्रीय पंजीयक को सोसायटी के संविधान में आम सभा द्वारा पारित किए गये प्रस्ताव में मनमर्जी पूर्ण संशोधन का अधिकार प्रदान करने का हम विरोध करते हैं।
2. केन्द्रीय पंजीयक को सहकारी संस्था को समाप्त करने के अधिकार, सहकारी संस्था को बीमार घोषित करने के अधिकार, सहकारी संस्था के स्वरूप में परिवर्तन के अधिकार तथा सहकारी संस्थाओं की परिसम्पत्तियां और देनदारियों को किसी दूसरी वैधानिक इकाई में स्थानानतरित करने के अधिकार दिये जाने का हम विरोध करते हैं।

3. सहकारी संस्था को बिना मौका दिए उसका पंजीयन रद्द करने के अधिकार का हम विरोध करते हैं।
4. सहकारी संस्थाओं में केन्द्र सरकार की हिस्सेदारी कम करने के लिए शेयर की फेस वेल्यू की जगह खातों में दर्ज कीमत को आधार बनाने का हम विरोध करते हैं।
5. सहकारी संस्थाओं के स्वयं चुनाव करने का अधिकार छीनकर एक भिन्न चुनाव प्राधिकरण बनाकर सहकारी संस्थाओं के चुनाव में दखलंदाजी का हम विरोध करते हैं।
6. सहकारी संस्थाओं के पुनः उद्धार के नाम पर सहकारी संस्थाओं से उनके टर्न ओवर पर 0.1% टैक्स का हम विरोध करते हैं।
7. केवल निबंधन द्वारा बनाये गये पैनल से आडिटर नियुक्त करने के प्रावधान का हम विरोध करते हैं।
8. केन्द्रीय पंजीयक को सहकारी संस्थाओं के विवादों को निपटाने में मध्यस्थ (आर्बिटेटर) नियुक्त करने के स्थान पर स्वयं उसके द्वारा निर्णय करने के असीमित अधिकार का हम विरोध करते हैं। पंजीयक के आदेश के खिलाफ किसी भी न्यायालय में अपील नही किए जाने के प्राविधान का हम विरोध करते हैं।

उपरोक्त बहुराज्यीय सहकारी समिति अधिनियम संशोधन विधेयक 2010 के अतिरिक्त केन्द्र सरकार द्वारा जो नई प्रत्यक्ष कर संहिता विधेयक 2010 लायी जा रही है। उसके माध्यम से सहकारी संस्थाओं पर बड़े पैमाने पर आयकर लगाये जाने के प्राविधानों का हम जोरदार विरोध करते हैं। इस विधेयक को लाकर केन्द्र सरकार द्वारा सहकारी संस्थाओं के अद्भुत ढ़ंग से निभाए जाने वाले सामाजिक आर्थिक योगदान को नजर अंदाज किया जा रहा है:-

1. इस विधेयक के अंतर्गत सहकारी संस्थाओं को बड़े औद्योगिक घरानों के समकक्ष रखा गया है। केवल दो प्रकार की सहकारी संस्थाओं को छोड़कर शेष सभी पर आयकर लगाए जाने का हम विरोध करते हैं।
2. सहकारी संस्थाओं पर 30% तक का आयकर लगाना निंदनीय एवं अन्यायपूर्ण हैं इसका हम विरोध करते हैं।
3. कृषि उत्पाद सहकारी संस्थायें एवं अन्य सहकारी संस्थायें जैसे मार्केटिंग और क्रेडिट सोसायटियों के माध्यम से अपने उत्पाद का विक्रय आसानी से कर सकती हैं परन्तु अब उनके ऊपर भी टैक्स लगाया जा रहा है। इसका हम विरोध करते हैं।
4. आने वाले प्रत्यक्ष कर संहिता विधेयक 2010 में कॉटेज इण्डस्ट्रीज से जुड़ी सहकारी संस्थाएं, कृषि उत्पाद प्रसंस्करण संस्था, डेयरी से जुड़ी संस्थाएं, मच्छीमार तथा मुर्गी पालन संस्था, सहकारी उपभोक्ता संघ जिनके सदस्य गैर कृषि कार्य से सम्बन्धित हैं, सहकारी संस्थाएं जो गैर कृषि कार्य के लिए ऋण दे रही हैं और सभी प्रकार की क्रेडिट सोसाईटियों पर आयकर लगाने का हम विरोध करते हैं। सहकारी संस्थाओं का उद्देश्य अपने सदस्यों का सामाजिक आर्थिक विकास करना है। संस्थाओं को होने वाले लाभ का वितरण सदस्यों को ही होता है। ऐसे में इन पर आयकर लगाना कमजोर वर्ग को कर के बोझ से दबाना है।

भारतीय जनता पार्टी सहकारी संस्थाओं की स्वायत्तता समाप्त करने और उनकी आर्थिक स्थिति को कमजोर करने वाले आयकर के प्रावधानों का विरोध करती है तथा यह मांग करती है कि सरकार इस ओर गम्भीरता से विचार करे तथा इस प्रकार के सहकारिता विरोधी अधिनियम सहकारी समितियों पर न थोपें। हम भारत सरकार की माननीया राष्ट्रपति जी से यह मांग करते हैं कि उपरोक्त विषयों का संज्ञान लेते हुए सहकारिता के हित में कार्यवाही करने की कृपा करें।

आपका आभारी

(धनंजय कुमार सिंह)

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