Thursday, February 3, 2011

Discussion on “Impact of Direct Tax Code Bill 2010
on cooperative organisation”

Key note address by – Shri Dhananjay Kumar Singh

भारत सरकार के वित्तमंत्री श्री प्रणव मुखर्जी ने Direct Tax Code Bill के उद्देश्य और कारण को अपने इन शब्दों में व्यक्त किया है -

The Income–tax Act. 1961, has been subjected to numerous amendments since its passage fifty years ago. It has been considerably revised, not less than thirty–four times, by amendment Acts besides the amendments carried out through the annual Finance Acts. These amendments were necessitated by policy changes due to the changing economic environment, increasing sophistication of commerce, increase in international transactions as a result of globalisation, development of information technology, attempts to minimize tax avoidance and in order to clarify the statute in relation to judicial decisions………………………………………

The Government, therefore, decided to revise, consolidate and simplify the language and structure of the direct tax laws. A draft Direct Taxes Code along with a Discussion Paper was released in August, 2009 for public comments. It proposed to replace the Income–tax Act, 1961 and the Wealth–tax Act. 1956 by a single Act, namely the Direct Taxes Code. Thereafter, a Revised Discussion Paper addressing the major issues was released to June, 2010. The present Bill is the outcome of the process……………………….

भारत सरकार के माननीय वित्त मंत्री जी द्वारा कर के सरलीकरण की प्रक्रिया स्वागत् योग्य है किन्तु इस प्रक्रिया में उन्होंने भारत के गरीबों, किसानों और मजदूरों के आर्थिक हित में कार्य करने वाली उन्हीं’ के द्वारा संचालित सहकारी संस्थाओं को कर के दायरे में लाकर खड़ा कर दिया।

Income Tax Act. जब 1961 में बनाया गया उस समय सभी प्रकार की सहकारी संस्थायें कर के दायरे से मुक्त रखी गयी। फलस्वरूप देश में हरित और श्वेत क्रान्ति हुई और उसने यहां की आर्थिक बदहाली को समाप्त कर इस देश की अर्थव्यवस्था को विकासोन्मुख किया। इको, क्रिभ्कों, अमूल आदि इसके उदाहरण है। बैंकिंग, चीनी मिले, कपड़े के उद्योग एवं अन्य इसी प्रकार की सहकारी संस्थाओं ने भारत की गरीब जनता की आर्थिक उन्नति की आधारशिला रखी।

2007 में भारत सरकार ने पहली बार सहकारी संस्थाओं पर आकयर आरोपित किया। इसके कारण नयी सहकारी संस्थाओं के निर्माण और पूर्व से संचालित सहकारी संस्थाओं के कार्य निष्पादन में कठिनाइयाँ आयीं। इसका विरोध हुआ। 17 जुलाई 2009 को लोकसभा में कृषि अनुदान पर चर्चा करते हुए एन.डी.ए. सरकार में कृषि मंत्री रहे माननीय राजनाथ सिंह जी ने सरकार से मांग की कि सहकारी संस्थाओं पर से आयकर हटाया जाना चाहिये। उनकी इस माँग पर केंद्रीय कृषि मंत्री श्री शरद पवार ने आश्वासन दिया था कि सहकारी संस्थाओं पर से आयकर हटाया जायेगा। कुछ महत्वपूर्ण संस्थाओं के अध्यक्षों एवं संसद सदस्यों का एक प्रतिनिधिमण्डल केंद्रीय सहकारिता प्रकोष्ठ भारतीय जनता पार्टी की ओर से वित्त मंत्री श्री प्रणव मुखर्जी से मिला जिसमें मैं भी शामिल था। हमनें उनको विस्तार से सहकारी समितियों की कठिनाइयों से अवगत् कराया। उन्होंने सुना तो अवश्य परन्तु Direct Tax Code Bill 2010 में किसी प्रकार का प्रभाव हमारी मांग का दिखायी नहीं दिया बल्कि उन सहकारी समितियों पर भी कर लगा दिया जिनको 2007 में Income Tax की धारा 80P के अन्तर्गत छूट दी गयी थी जैसे - Urban Credit, handloom, fisheries, labour, forest produce cooperative आदि।

इस बिल में प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों और तालुका स्तर के ग्रामीण विकास बैंक जो कृषि एवं ग्रामीण विकास के लिये Long term credit देते हो को छूट का प्रावधान किया गया है।

Section 86 (2) (a) में है “the amount of profits derived from agriculture or agriculture related activities; and

(b) The amount of income derived from any other activity, to the extent it does not exceed one lakh rupees.

(3) (a) “Agriculture related activity” means the following a activities, namely :-

(i) Purchase of agricultural implements, seeds, live stock or other articles intended for agriculture for the purpose of supplying them to its members :

(ii) The collective disposal of –
(A) agriculture produce grown by its members; or
(B) dairy or poultry produce produced by its members and,

(iii) Fishing or allied activities, that is to say, the catching, curing, processing, preserving, storing or marketing of fish or the purchase of material and equipment in connection therewith for the purpose of supplying them to its members;

इस छूट का आशय यह है कि कृषि, उत्पाद डेयरी, मछली का उत्पादन, उसका प्रसंस्करण, स्टोरेज आदि जो सदस्य के उपयोग के लिये किया जायेगा उस पर छूट होगी परन्तु यदि उसे किसी को बेचा जायेगा जो सदस्य नहीं है तो एक लाख से अधिक की आय पर कर आरोपित होगा। यह समितियों के सदस्यों की आर्थिक उन्नति में बाधा है।

The First schedule में paragraph B में अन्य समितियों के लिये कर की दरें इस प्रकार हैं -

(I) In the case of every cooperative society –
Rates of Income Tax

(1) Where the total income does not 10 percent of the total income exceeds Rs.10000

(2) Where the total income exceeds Rs.1000 plus 20 percent of the amount by
Rs.10000 but does not exceeds which the total income
Rs.20000 exceeds to Rs.10000

(3) Where the total income exceeds Rs.3000 plus 30 per cent
Rs.20000 of amount by which the
total income exceeds Rs.20000

छूट के दायरे में “Agriculture related activity” कहा गया है जिसे Agriculture produce, dairy, poultry और fisheries के नाम से स्पष्ट किया गया है। वनोपज, हाथ से बने सामान जो लुहार, कुम्हार, बढ़ई, बुनकर आदि द्वारा बनाये गये हैं। छूट की सीमा में नही है। स्वयं सहायता समूहों द्वारा बनाये गये दोने, पत्तल, कागज के packing के सामान आदि भी छूट से बाहर हैं। सहकारी समितियाँ जिनकी मार्केटिंग करती है। उनकी वार्षिक आय यदि दो हजार रूपये भी है तो उस पर इस अधिनियम के अन्तर्गत दस प्रतिशत की दर से 200 रूपये का कर आरोपित होता है। क्या यह उचित है?

बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ भारत के गाँवों को बाजार के रूप में देखती हैं। Microfinance के नाम पर उनका प्रसार गाँवों तक प्रारम्भ हो गया है। ग्रामीण उनके उपभोक्ता हैं। वे लाभ कमाने के लिये गाँव में जा रहे हैं। उन्हें सरकार अनेक सुविधायें दे रही है परन्तु ग्रामीणों द्वारा उनकी छोटी पूँजी से बनी सहकारी समिति चाहे वह marketing, consumer या अन्य किसी भी क्षेत्र में बनी सहकारी समिति हो पर कर लगा कर उन्हें हतोत्साहित किया जा रहा है। इससे स्पष्ट है कि भारत सरकार को यहाँ के गरीब और उनकी गरीबी दिखायी नहीं देती।

इस प्रकार का Heavy Tax Amount किस प्रकार सहकारी संस्थाओं एवं उनके सदस्यों को को प्रभावित करता है। इस विचार विमर्श के कार्यक्रम में हम सब इस पर चर्चा करेंगे।

भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था -
‘भारत गाँवों में बसता है’। ग्रॉमीण विकास के लिये सहकारी समितियों और ग्राम पंचायते दो स्तम्भ है। आज सहकारी बैंक ग्रामीण जनसंख्या के 52% लोगों को ऋण उपलब्ध कराते हैं। युवाओं, महिलाओं और गरीब तबके के लोगों को सशक्त बनाने के लिये सहकारी संस्थाओं का बहुत बड़ा योगदान हो सकता है। वैश्विक आर्थिक युग में मानव सभ्यता ने जीवन में अनेक आयाम खड़े किये हैं। लोगों की आवश्यकतायें बढ़ी हैैं। नये प्रकार की सहकारी समितियों के गठन की उपादेयता बढ़ी है। जन-जन की छोटी-छोटी पंूजी को एकत्र कर कार्यशील पूंजी का निर्माण तदोपरांत सरकार का इन संस्थाओं की कार्यशैली में हस्तक्षेप न करते हुए आर्थिक सहायता प्रदान करने की योजना ग्रामीण भारत को आर्थिक रूप से सशक्त बना कर अन्त्योदय का लक्ष्य पूरा किया जा सकता है। इसे कर लगाकर हतोत्साहित करना इस देश के साथ विश्वासघात होगा। कर के स्थान पर इस क्षेत्र को अनुदान की आवश्यकता है।

इको, क्रिभ्कों जैसे कार्पेरिट कल्चर की संस्थायें भी सहकारिता के क्षेत्र की ही है। अमूल, लिज्जत पापड़ जैसी अनेक बड़ी संस्थायें ग्रॉमीण और शहरी गरीब महिलाओं को लाभ पहुँचा कर बड़ा काम कर रही हैं, जिनकी ख्याति विश्वस्तरीय है।

क्या इकों, क्रिभ्कों पर आयकर लगना चाहिए? अमूल, लिज्जत पापड़ जैसी संस्थाओं पर आयकर लगना चाहिए? भारत के लगभग 6.5 लाख गांवों को खाद बीज की आपूर्ति के लिए उत्तरदायी पैक्स और लैम्प्स जो कृषि के अलावा अन्य कार्य जैसे उपभोक्ता समिति, ग्रामीण कुटीर उद्योग, बुनकर उद्योग आदि चलाती है, उन पर आयकर लगना चाहिए? क्या नगरीय सहकारी बैंक जो गरीब और निचले तबके के लोगों को त्वरित ऋण उपलब्ध कराते है, पर आयकर लगना चाहिए? क्या छोटी-छोटी पूँजी को इक्ट्ठा कर शहर में टेलीफोन बूथ, स्टूडेंट्स कोऑपरेटिव, उपभोक्ता सामग्री, गरीबों के स्वास्थ्य की चिंता करने वाले सहकारी अस्पतालोंurban credit, housing, women cooperatives, labour cooperatives, industrial and govt. employees thrift & credit, अन्य thrift & credit societies पर आयकर लगाना चाहिए? इन सबसे ऊपर आयकर कानून बनाते समय सहकारी संस्थाओं को आयकर से मुक्त रखने की मूल भावना का जो उद्देश्य था क्या वह पूरा हो गया? क्या भारत की गरीबी मिट गई? यदि ऐसा है तो आरक्षण की मूल भावना और संविधान में वर्णित दस वर्ष की व्यवस्था के बाद भी आरक्षण क्यों नही हटाया जाता? भारत सरकार को यदि आय ही बढ़ानी है तो खर्चो में कटौती क्यों नही होती? क्या भारत के गरीबों की सहकारी संस्थाओं पर आयकर लगा देने से भारत सरकार की क्षुधापूर्ति हो जायेगी?

भारत सरकार को चाहिये कि सभी प्रकार की सहकारी समितियों को आयकर से मुक्त रखें। सहकारी समितियां अपने लक्ष्य को ईमानदारी से पूरा करें इसके लिये हस्तक्षेप नहीं वरन ऐसी प्रभावशाली नियामक प्रणाली की रचना की जानी चाहिये। जो पारदर्शिता और सशक्त लोकतन्त्रात्मक पद्धति को सुचारू रूप से क्रियान्वित कर सकें।

समूचा पूर्वोत्तर भारत एवं जम्मू और कश्मीर में किसी प्रकार का कर नहीं लगता क्योंकि सरकार उन्हें आर्थिक रूप से संरक्षित करती है। सहकारी समितियां पूरे देश के गरीबों और कमजोर वर्ग के लोगों की सहायता करती हैं। इन्हें भी सरकार द्वारा इसी प्रकार का संरक्षण चाहिये।

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