Central Government choking Cooperative sector
The Central Cooperative Cell of Bharatiya Janata Party launched its own website cooperative.bjp.org on 28th January 2011 which is first among all political parties. The website was launched by Shri Thawar Chand Gahlot, National General Secretary of the party.
Speaking on the first day of the National Executive Meeting of the Central Cooperative Cell in inaugural session Shri Dhananjay Kumar Singh, National Convener, exhorted the delegates representing all states and union territories to aggressively pursue the cooperative movement as the UPA-II government was playing into the hands of the corporate sector to wipe out the cooperative sector.
Shri Thawar Chand Gahlot said, National President Shri Nitin Gadkari has asked me to ensure that we increase our voter base by at least 10 percent. This can be only achieved by aggressively pursuing the cooperative movement,” he said.
Shri Gahlot alerted the attending delegates to the central government’s dangerous move to wipe out large and small cooperative societies by levying direct tax on all cooperative societies from the new fiscal. “There is a standard deduction of Rs 1.6 lakhs but after that the cooperative societies have to pay tax.” It hurts the growth of the cooperative sector, he emphasized.
Another prominent speaker, Shri Murlidhar Rao, national secretary, highlighted the need for progressive and pragmatic political leadership to provide a boost to the cooperatives movement. Numerous laws need to be amended to allow the cooperatives movement to profligate.
Shri Rao said that, “India is the largest private economy in the world. There is no shortage of funds in India although the central or state government may not have funds for development”.
“Household savings (small savings) make for 80 per cent of the economy. Corporate funds account for only 5 per cent,” he asserted, adding that this 80 per cent component needed to be tapped. Cooperative sector makes the most lucrative sector for investment, he said.
Lok Sabha MP Smt Sumitra Mahajan, addressing the delegates said a dangerous trend has begun of merging smaller banks in the cooperative sector into larger banks and urged the All India Cooperative Cell office-bearers to discuss it on an urgent basis and pass a resolution so that party MPs can be asked to oppose it through the Lok Sabha and the Rajya Sabha.
She emphasized the need for coordination of all cooperative societies at the state and national level so as to enhance the voter base by at least 10 per cent. Teams of 15 to 20 members must fan out all over the country to liaise with the societies and bring the apolitical society members into the BJP party fold.
Shri Mahendra Pandey, Coordinator, all Cells and Morchas of the BJP said it was imperative to begin a mass movement through the Cooperative movement.
He rued the fact that except for Chhatisgarh no other BJP ruled state had even created a list of BJP members in cooperative societies. “Such a list will enable us to identify the apolitical members of the lakhs of cooperative societies who can then be targeted at the personal level. “Identify them and indoctrinate them with the BJP philosophy”, he urged the delegates.
During the post-lunch session Mr Ashok Dabas highlighted the danger of allowing the Multi-State cooperative Societies Act to be passed by the Parliament. He said the provisions of the Act were extremely restrictive and aimed at choking of the cooperative sector.
“The UPA government is in cahoots with the corporate world which is terrified of the Cooperative societies since the latter works at the grassroots level”, he pointed out, adding that huge multinationals and Indian companies alike are eyeing the untapped rural economy as they reach saturation point in the urban sector.
Thursday, February 17, 2011
Friday, February 4, 2011
National Executive Committee Meeting, Central Cooperative Cell BJP (Dt.28-29 Jan., 2011 at Delhi)
भारतीय जनता पार्टी के सहकारिता प्रकोष्ठ की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय कार्यालय 11 अशोक रोड़, नई दिल्ली-110001, में दिनांक 28-29 जनवरी 2011 को सम्पन्न हुई। राष्ट्रीय कार्यसमिति की कार्यवाही निम्न प्रकार सम्पन्न की गई:-
उपस्थिति:- कार्यसमिति की बैठक में भारत के कुल 20 प्रदेशों बिहार, उडीसा, हरियाणा, गुजरात, चण्डीगढ़, मणिपुर, पंजाब, नागालैण्ड, दिल्ली, मिजोरम, उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, सिक्किम, पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश व कर्नाटक का प्रतिनिधित्व हुआ। कुल 13 प्रदेशों से प्रदेश संयोजकों, सह-संयोजकों ने भाग लिया।
बैठक की कार्यवाही निम्न अनुसार थी -
बैठक की कार्यवाही में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव माननीय थावर चन्द गहलोत जी ने द्वीप प्रज्वलन कर कार्यक्रम का उद्घाटन किया। प्रथम सत्र के आरम्भ में स्वर्गीय सुरेंद्र जाखड़ जी, चैयरमैंन IFFCO और पं. दीप चन्द शर्मा, पूर्व अध्यक्ष, Housing Federation, दिल्ली के निधन पर शोक प्रस्ताव पारित किया। इस दौरान पूर्व केंद्रीय मंत्री, राष्ट्रीय सचिव एवं सहकारिता प्रकोष्ठ के प्रभारी माननीय संतोष गंगवार जी, भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय सचिव माननीय मुरलीधर राव जी, मोर्चो एवं प्रकोष्ठों के राष्ट्रीय समन्वयक माननीय महेन्द्र पाण्डेय जी, छत्तीसगढ़ के सहकारिता एवं गृह मंत्री माननीय ननकीराम कॅंवर जी, श्रीमती सुमित्रा महाजन (सांसद), पूर्व केंद्रीय मंत्री श्रीमती भावना बेन चिखलिया जी, भाजपा मुख्यालय प्रभारी माननीय श्याम जाजू आदि उपस्थित थे।
प्रथम सत्र में भारतीय जनता पार्टी के सहकारिता प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय संयोजक श्री धंनजय कुमार सिंह जी ने सभी सम्माननिय अतिथियों का स्वागत् एवं प्रस्ताविक किया।
उन्होंने भारत में सहकारिता क्षेत्र के विकास, महत्व और प्रकोष्ठ की भावी योजनाओं को विस्तार रूप से प्रतिनिधियों को अवगत् किया। जिसमें सहकारिता प्रकोष्ठ के वैब-साईट, प्रदेश, जिला, मण्डल स्तर तक के प्रशिक्षण की योजना, सहकारिता क्षेत्र में ईमानदारी और पारदर्शिता से जिम्मेदारी को समझ कर कार्य करने, आधुनिक टैक्नोलोजी को प्रयोग में लाने और सहकारिता के क्षेत्र में एक नयी ‘क्रांति’ लाने का संकल्प लेकर काम करने को कहा। सहकारिता क्षेत्र में उपलब्ध स्वरोजगार के असीम अवसर से अधिकांश लोग वंचित इसलिए रह जाते हैं क्योंकि उनको इस क्षेत्र की जानकारी नहीं होती है। इसका निदान प्रशिक्षण से ही होगा। विशेष रूप से उन्होंने अब तक प्रदेशोें में नियुक्त हुए प्रकोष्ठ के सभी संयोजक व सह-संयोजक की कार्यसमिति में उपस्थित होने पर संतोष व्यक्त करते हुए प्रकोष्ठ का संगठनात्मक वृत प्रस्तुत किया।
भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता श्री प्रकाश लोणारे के राष्ट्रीय मत्स्यजीवी सहकारी संघ मर्यादित का अध्यक्ष निर्वाचित होने पर उनका स्वागत किया गया। भाजपा में सहकारिता प्रकोष्ठ के गठन के बाद यह पहला फेडरेशन है जिसमें हमारे अध्यक्ष चुन कर आये।
मुख्य अतिथि माननीय श्री थावर चन्द गहलोत जी के कर कमलों द्वारा सहकारिता प्रकोष्ठ की वैब-साईट का उद्घाटन हुआ। किसी भी राजनीतिक दल में सहकारिता से सम्बन्धित पहला वैब-साईट का गौरव भाजपा के सहकारिता प्रकोष्ठ के वैब-साईट cooperative.bjp.org को प्राप्त हुआ। उन्होंने सभा को सम्बोधित करते हुए UPA–II की सहकारिता विरोधी नीतियों और फैसलों से सबको अवगत् कराया। उन्होंने कहा कि भाजपा का 10% वोट बढ़ाने का माननीय नितिन गड़करी जी का संकल्प पूरा करने के लिये सहकारिता क्षेत्र बहुत बड़ा योगदान दे सकता है।
राष्ट्रीय सचिव माननीय मुरलीधर राव जी ने अपने सम्बोधन में कहा की भारत दुनिया का सबसे बड़ा निजी आर्थिक क्षेत्र हैं। भारत की अर्थव्यवस्था का 80% लघु बचत से आता है और कॉरपोरेट जगत का योगदान केवल 5% है। सहकारिता क्षेत्र का योगदान इसमें सराहनीय रहा है। पूंजी निवेश का एक आकर्षक क्षेत्र सहकारिता क्षेत्र है। इसके लिए मजबूत राजनीतिक नेतृत्व और आधुनिकीकरण की आवश्यकता है। भारत के आर्थिक सामाजिक विकास में सहकारिता क्षेत्र की भूमिका बड़ी है।
श्रीमती सुमित्रा महाजन (सांसद) ने केंद्र सरकार की नीतियों की आलोचना की। छोटे-छोटे सहकारी बैंकों में बड़े बैंकों के साथ विलय करने की प्रक्रिया को उन्होंने सहकारिता पर सरकार की सोची-समझी साजिश बताया। इसको रोकने के लिए राज्यसभा और लोकसभा के सदस्यों को सहकारिता प्रकोष्ठ प्रस्ताव तैयार करके दे ताकि वह दोनों सदनों में इस नीति का पुरजोर विरोध कर सकें।
मोर्चाे एवं प्रकोष्ठों के समन्वयक माननीय महेन्द्र पाण्डेय जी ने सहकारिता आन्दोलन को जन-आन्दोलन बनाने की आवश्यकता बतायी। उन्होंने अपने-अपने प्रदेशों में काम कर रही सहकारी समितियों की सूची तैयार करके उनसे सम्पर्क करके उन्हें भाजपा की विचारधारा के साथ जोड़ने की जरूरत बतायी।
सहकारिता प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय सह-संयोजक श्री सुनील गुप्ता जी ने Direct Tax Code Bill पर चर्चा की और बताया की वर्तमान आयकर अधिनियम की धारा 80च् में अधिकांश सहकारी संस्थाओं को आयकर छूट के दायरें में रखा हुआ था। परन्तु Direct Tax Code Bill 2010 के माध्यम से सरकार द्वारा कृषि को छोड़कर सभी सहकारी संस्थाओं को टैक्स के दायरे में लाया जा रहा है जो कि सहकारिता की मूलभूत नीति के खिलाफ है। इससे सहकारिता आन्दोलन कमजोर होगा तथा संस्थाओं पर अनावश्क बोझ बढ़ेगा। दिल्ली प्रदेश के संयोजक श्री अशोक डबास जी ने Multistate Cooperative Society Act. Amend Bill और Constitutional Amendment Bill के लागू होने पर सहकारिता क्षेत्र पर पड़ने वाले बुरे प्रभावों पर प्रकाश डाला।
दूसरे दिन के प्रथम सत्र में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भाजपा एवं भाजपा प्रकोष्ठों एवं संसदीय समितियों के सदस्यों की समन्वयक डा. नजमा हेप्तुल्ला जी मुख्य अतिथि थीं उन्होनंे आम-गरीब तबके के समाज के अन्तिम पंक्ति के लोगों की आर्थिक गरीबी उन्मूलन के लिए सहकारिता क्षेत्र को कारगर उपकरण बताया। शहर की ओर गरीब लोगों के पलायन को रोकने एवं लघु उघोग के माध्यम से स्वरोजगार सृजन करना सहकारिता से ही सम्भव है।
उन्होंने सहकारी क्षेत्र से सम्बन्धित समस्याओं को दूर करने के लिए प्रस्ताव तैयार करने और मंत्रालय के Standing Committee के समक्ष रखने के लिए प्रोत्साहित किया। Direct Tax Code Bill और Multistate Cooperative Society Act. Amendment Bill के विषय को लेकर और Standing Committee के चैयरमैंन श्री वासुदेव आचार्य जी से मिलने की बात कहीं। उन्होंने भाजपा का 10% वोट बढ़ाने का माननीय नितिन गड़करी जी के संकल्प को दोहराया।
Fishcopfed के नव नियुक्त चैयरमैंन श्री प्रकाश लोणारे जी, अन्त्योदय के राष्ट्रीय संयोजक श्री मनोहर लाल खट्टर जी, और विभिन्न फैडरेशनों के चैयरमैंन व संचालकों ने अपने विचार और कार्यो के वृत से सभा को अवगत् कराया।
सभी प्रदेशों के संयोजकों ने अपने-अपने प्रदेशों की सहकारिता क्षेत्र की उपलब्धियांे और भावी योजनाओं के बारे में सभा को अवगत् किया।
समापन सत्र में माननीय संतोष गंगवार जी ने मार्गदर्शन किया। आगामी 7 मार्च को दिल्ली में होने जा रहे सहकारिता प्रदर्शन को सफल बनाने की योजना की दृष्टि से प्रदेशों की बैठकें और आगामी योजनाओं से सभा को अवगत् कराया।
अंत में सहकारिता प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय संयोजक माननीय धनंजय कुमार सिंह जी ने प्रकोष्ठ की भावी योजनाओं और 7 मार्च 2011 को दिल्ली में होने वाली सहकारिता प्रदर्शन, कार्यक्रमों की विस्तार से चर्चा की और सभा में उपस्थित सभी वरिष्ठ नेतागण और प्रतिनिधियों को धन्यवाद किया।
कार्यक्रम का संचालन सहकारिता प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय सह-संयोजक श्री सुनील गुप्ता जी ने किया।
उपस्थिति:- कार्यसमिति की बैठक में भारत के कुल 20 प्रदेशों बिहार, उडीसा, हरियाणा, गुजरात, चण्डीगढ़, मणिपुर, पंजाब, नागालैण्ड, दिल्ली, मिजोरम, उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, सिक्किम, पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश व कर्नाटक का प्रतिनिधित्व हुआ। कुल 13 प्रदेशों से प्रदेश संयोजकों, सह-संयोजकों ने भाग लिया।
बैठक की कार्यवाही निम्न अनुसार थी -
बैठक की कार्यवाही में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव माननीय थावर चन्द गहलोत जी ने द्वीप प्रज्वलन कर कार्यक्रम का उद्घाटन किया। प्रथम सत्र के आरम्भ में स्वर्गीय सुरेंद्र जाखड़ जी, चैयरमैंन IFFCO और पं. दीप चन्द शर्मा, पूर्व अध्यक्ष, Housing Federation, दिल्ली के निधन पर शोक प्रस्ताव पारित किया। इस दौरान पूर्व केंद्रीय मंत्री, राष्ट्रीय सचिव एवं सहकारिता प्रकोष्ठ के प्रभारी माननीय संतोष गंगवार जी, भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय सचिव माननीय मुरलीधर राव जी, मोर्चो एवं प्रकोष्ठों के राष्ट्रीय समन्वयक माननीय महेन्द्र पाण्डेय जी, छत्तीसगढ़ के सहकारिता एवं गृह मंत्री माननीय ननकीराम कॅंवर जी, श्रीमती सुमित्रा महाजन (सांसद), पूर्व केंद्रीय मंत्री श्रीमती भावना बेन चिखलिया जी, भाजपा मुख्यालय प्रभारी माननीय श्याम जाजू आदि उपस्थित थे।
प्रथम सत्र में भारतीय जनता पार्टी के सहकारिता प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय संयोजक श्री धंनजय कुमार सिंह जी ने सभी सम्माननिय अतिथियों का स्वागत् एवं प्रस्ताविक किया।
उन्होंने भारत में सहकारिता क्षेत्र के विकास, महत्व और प्रकोष्ठ की भावी योजनाओं को विस्तार रूप से प्रतिनिधियों को अवगत् किया। जिसमें सहकारिता प्रकोष्ठ के वैब-साईट, प्रदेश, जिला, मण्डल स्तर तक के प्रशिक्षण की योजना, सहकारिता क्षेत्र में ईमानदारी और पारदर्शिता से जिम्मेदारी को समझ कर कार्य करने, आधुनिक टैक्नोलोजी को प्रयोग में लाने और सहकारिता के क्षेत्र में एक नयी ‘क्रांति’ लाने का संकल्प लेकर काम करने को कहा। सहकारिता क्षेत्र में उपलब्ध स्वरोजगार के असीम अवसर से अधिकांश लोग वंचित इसलिए रह जाते हैं क्योंकि उनको इस क्षेत्र की जानकारी नहीं होती है। इसका निदान प्रशिक्षण से ही होगा। विशेष रूप से उन्होंने अब तक प्रदेशोें में नियुक्त हुए प्रकोष्ठ के सभी संयोजक व सह-संयोजक की कार्यसमिति में उपस्थित होने पर संतोष व्यक्त करते हुए प्रकोष्ठ का संगठनात्मक वृत प्रस्तुत किया।
भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता श्री प्रकाश लोणारे के राष्ट्रीय मत्स्यजीवी सहकारी संघ मर्यादित का अध्यक्ष निर्वाचित होने पर उनका स्वागत किया गया। भाजपा में सहकारिता प्रकोष्ठ के गठन के बाद यह पहला फेडरेशन है जिसमें हमारे अध्यक्ष चुन कर आये।
मुख्य अतिथि माननीय श्री थावर चन्द गहलोत जी के कर कमलों द्वारा सहकारिता प्रकोष्ठ की वैब-साईट का उद्घाटन हुआ। किसी भी राजनीतिक दल में सहकारिता से सम्बन्धित पहला वैब-साईट का गौरव भाजपा के सहकारिता प्रकोष्ठ के वैब-साईट cooperative.bjp.org को प्राप्त हुआ। उन्होंने सभा को सम्बोधित करते हुए UPA–II की सहकारिता विरोधी नीतियों और फैसलों से सबको अवगत् कराया। उन्होंने कहा कि भाजपा का 10% वोट बढ़ाने का माननीय नितिन गड़करी जी का संकल्प पूरा करने के लिये सहकारिता क्षेत्र बहुत बड़ा योगदान दे सकता है।
राष्ट्रीय सचिव माननीय मुरलीधर राव जी ने अपने सम्बोधन में कहा की भारत दुनिया का सबसे बड़ा निजी आर्थिक क्षेत्र हैं। भारत की अर्थव्यवस्था का 80% लघु बचत से आता है और कॉरपोरेट जगत का योगदान केवल 5% है। सहकारिता क्षेत्र का योगदान इसमें सराहनीय रहा है। पूंजी निवेश का एक आकर्षक क्षेत्र सहकारिता क्षेत्र है। इसके लिए मजबूत राजनीतिक नेतृत्व और आधुनिकीकरण की आवश्यकता है। भारत के आर्थिक सामाजिक विकास में सहकारिता क्षेत्र की भूमिका बड़ी है।
श्रीमती सुमित्रा महाजन (सांसद) ने केंद्र सरकार की नीतियों की आलोचना की। छोटे-छोटे सहकारी बैंकों में बड़े बैंकों के साथ विलय करने की प्रक्रिया को उन्होंने सहकारिता पर सरकार की सोची-समझी साजिश बताया। इसको रोकने के लिए राज्यसभा और लोकसभा के सदस्यों को सहकारिता प्रकोष्ठ प्रस्ताव तैयार करके दे ताकि वह दोनों सदनों में इस नीति का पुरजोर विरोध कर सकें।
मोर्चाे एवं प्रकोष्ठों के समन्वयक माननीय महेन्द्र पाण्डेय जी ने सहकारिता आन्दोलन को जन-आन्दोलन बनाने की आवश्यकता बतायी। उन्होंने अपने-अपने प्रदेशों में काम कर रही सहकारी समितियों की सूची तैयार करके उनसे सम्पर्क करके उन्हें भाजपा की विचारधारा के साथ जोड़ने की जरूरत बतायी।
सहकारिता प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय सह-संयोजक श्री सुनील गुप्ता जी ने Direct Tax Code Bill पर चर्चा की और बताया की वर्तमान आयकर अधिनियम की धारा 80च् में अधिकांश सहकारी संस्थाओं को आयकर छूट के दायरें में रखा हुआ था। परन्तु Direct Tax Code Bill 2010 के माध्यम से सरकार द्वारा कृषि को छोड़कर सभी सहकारी संस्थाओं को टैक्स के दायरे में लाया जा रहा है जो कि सहकारिता की मूलभूत नीति के खिलाफ है। इससे सहकारिता आन्दोलन कमजोर होगा तथा संस्थाओं पर अनावश्क बोझ बढ़ेगा। दिल्ली प्रदेश के संयोजक श्री अशोक डबास जी ने Multistate Cooperative Society Act. Amend Bill और Constitutional Amendment Bill के लागू होने पर सहकारिता क्षेत्र पर पड़ने वाले बुरे प्रभावों पर प्रकाश डाला।
दूसरे दिन के प्रथम सत्र में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भाजपा एवं भाजपा प्रकोष्ठों एवं संसदीय समितियों के सदस्यों की समन्वयक डा. नजमा हेप्तुल्ला जी मुख्य अतिथि थीं उन्होनंे आम-गरीब तबके के समाज के अन्तिम पंक्ति के लोगों की आर्थिक गरीबी उन्मूलन के लिए सहकारिता क्षेत्र को कारगर उपकरण बताया। शहर की ओर गरीब लोगों के पलायन को रोकने एवं लघु उघोग के माध्यम से स्वरोजगार सृजन करना सहकारिता से ही सम्भव है।
उन्होंने सहकारी क्षेत्र से सम्बन्धित समस्याओं को दूर करने के लिए प्रस्ताव तैयार करने और मंत्रालय के Standing Committee के समक्ष रखने के लिए प्रोत्साहित किया। Direct Tax Code Bill और Multistate Cooperative Society Act. Amendment Bill के विषय को लेकर और Standing Committee के चैयरमैंन श्री वासुदेव आचार्य जी से मिलने की बात कहीं। उन्होंने भाजपा का 10% वोट बढ़ाने का माननीय नितिन गड़करी जी के संकल्प को दोहराया।
Fishcopfed के नव नियुक्त चैयरमैंन श्री प्रकाश लोणारे जी, अन्त्योदय के राष्ट्रीय संयोजक श्री मनोहर लाल खट्टर जी, और विभिन्न फैडरेशनों के चैयरमैंन व संचालकों ने अपने विचार और कार्यो के वृत से सभा को अवगत् कराया।
सभी प्रदेशों के संयोजकों ने अपने-अपने प्रदेशों की सहकारिता क्षेत्र की उपलब्धियांे और भावी योजनाओं के बारे में सभा को अवगत् किया।
समापन सत्र में माननीय संतोष गंगवार जी ने मार्गदर्शन किया। आगामी 7 मार्च को दिल्ली में होने जा रहे सहकारिता प्रदर्शन को सफल बनाने की योजना की दृष्टि से प्रदेशों की बैठकें और आगामी योजनाओं से सभा को अवगत् कराया।
अंत में सहकारिता प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय संयोजक माननीय धनंजय कुमार सिंह जी ने प्रकोष्ठ की भावी योजनाओं और 7 मार्च 2011 को दिल्ली में होने वाली सहकारिता प्रदर्शन, कार्यक्रमों की विस्तार से चर्चा की और सभा में उपस्थित सभी वरिष्ठ नेतागण और प्रतिनिधियों को धन्यवाद किया।
कार्यक्रम का संचालन सहकारिता प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय सह-संयोजक श्री सुनील गुप्ता जी ने किया।
Thursday, February 3, 2011
Discussion on “Impact of Direct Tax Code Bill 2010
on cooperative organisation”
Key note address by – Shri Dhananjay Kumar Singh
भारत सरकार के वित्तमंत्री श्री प्रणव मुखर्जी ने Direct Tax Code Bill के उद्देश्य और कारण को अपने इन शब्दों में व्यक्त किया है -
The Income–tax Act. 1961, has been subjected to numerous amendments since its passage fifty years ago. It has been considerably revised, not less than thirty–four times, by amendment Acts besides the amendments carried out through the annual Finance Acts. These amendments were necessitated by policy changes due to the changing economic environment, increasing sophistication of commerce, increase in international transactions as a result of globalisation, development of information technology, attempts to minimize tax avoidance and in order to clarify the statute in relation to judicial decisions………………………………………
The Government, therefore, decided to revise, consolidate and simplify the language and structure of the direct tax laws. A draft Direct Taxes Code along with a Discussion Paper was released in August, 2009 for public comments. It proposed to replace the Income–tax Act, 1961 and the Wealth–tax Act. 1956 by a single Act, namely the Direct Taxes Code. Thereafter, a Revised Discussion Paper addressing the major issues was released to June, 2010. The present Bill is the outcome of the process……………………….
भारत सरकार के माननीय वित्त मंत्री जी द्वारा कर के सरलीकरण की प्रक्रिया स्वागत् योग्य है किन्तु इस प्रक्रिया में उन्होंने भारत के गरीबों, किसानों और मजदूरों के आर्थिक हित में कार्य करने वाली उन्हीं’ के द्वारा संचालित सहकारी संस्थाओं को कर के दायरे में लाकर खड़ा कर दिया।
Income Tax Act. जब 1961 में बनाया गया उस समय सभी प्रकार की सहकारी संस्थायें कर के दायरे से मुक्त रखी गयी। फलस्वरूप देश में हरित और श्वेत क्रान्ति हुई और उसने यहां की आर्थिक बदहाली को समाप्त कर इस देश की अर्थव्यवस्था को विकासोन्मुख किया। इको, क्रिभ्कों, अमूल आदि इसके उदाहरण है। बैंकिंग, चीनी मिले, कपड़े के उद्योग एवं अन्य इसी प्रकार की सहकारी संस्थाओं ने भारत की गरीब जनता की आर्थिक उन्नति की आधारशिला रखी।
2007 में भारत सरकार ने पहली बार सहकारी संस्थाओं पर आकयर आरोपित किया। इसके कारण नयी सहकारी संस्थाओं के निर्माण और पूर्व से संचालित सहकारी संस्थाओं के कार्य निष्पादन में कठिनाइयाँ आयीं। इसका विरोध हुआ। 17 जुलाई 2009 को लोकसभा में कृषि अनुदान पर चर्चा करते हुए एन.डी.ए. सरकार में कृषि मंत्री रहे माननीय राजनाथ सिंह जी ने सरकार से मांग की कि सहकारी संस्थाओं पर से आयकर हटाया जाना चाहिये। उनकी इस माँग पर केंद्रीय कृषि मंत्री श्री शरद पवार ने आश्वासन दिया था कि सहकारी संस्थाओं पर से आयकर हटाया जायेगा। कुछ महत्वपूर्ण संस्थाओं के अध्यक्षों एवं संसद सदस्यों का एक प्रतिनिधिमण्डल केंद्रीय सहकारिता प्रकोष्ठ भारतीय जनता पार्टी की ओर से वित्त मंत्री श्री प्रणव मुखर्जी से मिला जिसमें मैं भी शामिल था। हमनें उनको विस्तार से सहकारी समितियों की कठिनाइयों से अवगत् कराया। उन्होंने सुना तो अवश्य परन्तु Direct Tax Code Bill 2010 में किसी प्रकार का प्रभाव हमारी मांग का दिखायी नहीं दिया बल्कि उन सहकारी समितियों पर भी कर लगा दिया जिनको 2007 में Income Tax की धारा 80P के अन्तर्गत छूट दी गयी थी जैसे - Urban Credit, handloom, fisheries, labour, forest produce cooperative आदि।
इस बिल में प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों और तालुका स्तर के ग्रामीण विकास बैंक जो कृषि एवं ग्रामीण विकास के लिये Long term credit देते हो को छूट का प्रावधान किया गया है।
Section 86 (2) (a) में है “the amount of profits derived from agriculture or agriculture related activities; and
(b) The amount of income derived from any other activity, to the extent it does not exceed one lakh rupees.
(3) (a) “Agriculture related activity” means the following a activities, namely :-
(i) Purchase of agricultural implements, seeds, live stock or other articles intended for agriculture for the purpose of supplying them to its members :
(ii) The collective disposal of –
(A) agriculture produce grown by its members; or
(B) dairy or poultry produce produced by its members and,
(iii) Fishing or allied activities, that is to say, the catching, curing, processing, preserving, storing or marketing of fish or the purchase of material and equipment in connection therewith for the purpose of supplying them to its members;
इस छूट का आशय यह है कि कृषि, उत्पाद डेयरी, मछली का उत्पादन, उसका प्रसंस्करण, स्टोरेज आदि जो सदस्य के उपयोग के लिये किया जायेगा उस पर छूट होगी परन्तु यदि उसे किसी को बेचा जायेगा जो सदस्य नहीं है तो एक लाख से अधिक की आय पर कर आरोपित होगा। यह समितियों के सदस्यों की आर्थिक उन्नति में बाधा है।
The First schedule में paragraph B में अन्य समितियों के लिये कर की दरें इस प्रकार हैं -
(I) In the case of every cooperative society –
Rates of Income Tax
(1) Where the total income does not 10 percent of the total income exceeds Rs.10000
(2) Where the total income exceeds Rs.1000 plus 20 percent of the amount by
Rs.10000 but does not exceeds which the total income
Rs.20000 exceeds to Rs.10000
(3) Where the total income exceeds Rs.3000 plus 30 per cent
Rs.20000 of amount by which the
total income exceeds Rs.20000
छूट के दायरे में “Agriculture related activity” कहा गया है जिसे Agriculture produce, dairy, poultry और fisheries के नाम से स्पष्ट किया गया है। वनोपज, हाथ से बने सामान जो लुहार, कुम्हार, बढ़ई, बुनकर आदि द्वारा बनाये गये हैं। छूट की सीमा में नही है। स्वयं सहायता समूहों द्वारा बनाये गये दोने, पत्तल, कागज के packing के सामान आदि भी छूट से बाहर हैं। सहकारी समितियाँ जिनकी मार्केटिंग करती है। उनकी वार्षिक आय यदि दो हजार रूपये भी है तो उस पर इस अधिनियम के अन्तर्गत दस प्रतिशत की दर से 200 रूपये का कर आरोपित होता है। क्या यह उचित है?
बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ भारत के गाँवों को बाजार के रूप में देखती हैं। Microfinance के नाम पर उनका प्रसार गाँवों तक प्रारम्भ हो गया है। ग्रामीण उनके उपभोक्ता हैं। वे लाभ कमाने के लिये गाँव में जा रहे हैं। उन्हें सरकार अनेक सुविधायें दे रही है परन्तु ग्रामीणों द्वारा उनकी छोटी पूँजी से बनी सहकारी समिति चाहे वह marketing, consumer या अन्य किसी भी क्षेत्र में बनी सहकारी समिति हो पर कर लगा कर उन्हें हतोत्साहित किया जा रहा है। इससे स्पष्ट है कि भारत सरकार को यहाँ के गरीब और उनकी गरीबी दिखायी नहीं देती।
इस प्रकार का Heavy Tax Amount किस प्रकार सहकारी संस्थाओं एवं उनके सदस्यों को को प्रभावित करता है। इस विचार विमर्श के कार्यक्रम में हम सब इस पर चर्चा करेंगे।
भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था -
‘भारत गाँवों में बसता है’। ग्रॉमीण विकास के लिये सहकारी समितियों और ग्राम पंचायते दो स्तम्भ है। आज सहकारी बैंक ग्रामीण जनसंख्या के 52% लोगों को ऋण उपलब्ध कराते हैं। युवाओं, महिलाओं और गरीब तबके के लोगों को सशक्त बनाने के लिये सहकारी संस्थाओं का बहुत बड़ा योगदान हो सकता है। वैश्विक आर्थिक युग में मानव सभ्यता ने जीवन में अनेक आयाम खड़े किये हैं। लोगों की आवश्यकतायें बढ़ी हैैं। नये प्रकार की सहकारी समितियों के गठन की उपादेयता बढ़ी है। जन-जन की छोटी-छोटी पंूजी को एकत्र कर कार्यशील पूंजी का निर्माण तदोपरांत सरकार का इन संस्थाओं की कार्यशैली में हस्तक्षेप न करते हुए आर्थिक सहायता प्रदान करने की योजना ग्रामीण भारत को आर्थिक रूप से सशक्त बना कर अन्त्योदय का लक्ष्य पूरा किया जा सकता है। इसे कर लगाकर हतोत्साहित करना इस देश के साथ विश्वासघात होगा। कर के स्थान पर इस क्षेत्र को अनुदान की आवश्यकता है।
इको, क्रिभ्कों जैसे कार्पेरिट कल्चर की संस्थायें भी सहकारिता के क्षेत्र की ही है। अमूल, लिज्जत पापड़ जैसी अनेक बड़ी संस्थायें ग्रॉमीण और शहरी गरीब महिलाओं को लाभ पहुँचा कर बड़ा काम कर रही हैं, जिनकी ख्याति विश्वस्तरीय है।
क्या इकों, क्रिभ्कों पर आयकर लगना चाहिए? अमूल, लिज्जत पापड़ जैसी संस्थाओं पर आयकर लगना चाहिए? भारत के लगभग 6.5 लाख गांवों को खाद बीज की आपूर्ति के लिए उत्तरदायी पैक्स और लैम्प्स जो कृषि के अलावा अन्य कार्य जैसे उपभोक्ता समिति, ग्रामीण कुटीर उद्योग, बुनकर उद्योग आदि चलाती है, उन पर आयकर लगना चाहिए? क्या नगरीय सहकारी बैंक जो गरीब और निचले तबके के लोगों को त्वरित ऋण उपलब्ध कराते है, पर आयकर लगना चाहिए? क्या छोटी-छोटी पूँजी को इक्ट्ठा कर शहर में टेलीफोन बूथ, स्टूडेंट्स कोऑपरेटिव, उपभोक्ता सामग्री, गरीबों के स्वास्थ्य की चिंता करने वाले सहकारी अस्पतालोंurban credit, housing, women cooperatives, labour cooperatives, industrial and govt. employees thrift & credit, अन्य thrift & credit societies पर आयकर लगाना चाहिए? इन सबसे ऊपर आयकर कानून बनाते समय सहकारी संस्थाओं को आयकर से मुक्त रखने की मूल भावना का जो उद्देश्य था क्या वह पूरा हो गया? क्या भारत की गरीबी मिट गई? यदि ऐसा है तो आरक्षण की मूल भावना और संविधान में वर्णित दस वर्ष की व्यवस्था के बाद भी आरक्षण क्यों नही हटाया जाता? भारत सरकार को यदि आय ही बढ़ानी है तो खर्चो में कटौती क्यों नही होती? क्या भारत के गरीबों की सहकारी संस्थाओं पर आयकर लगा देने से भारत सरकार की क्षुधापूर्ति हो जायेगी?
भारत सरकार को चाहिये कि सभी प्रकार की सहकारी समितियों को आयकर से मुक्त रखें। सहकारी समितियां अपने लक्ष्य को ईमानदारी से पूरा करें इसके लिये हस्तक्षेप नहीं वरन ऐसी प्रभावशाली नियामक प्रणाली की रचना की जानी चाहिये। जो पारदर्शिता और सशक्त लोकतन्त्रात्मक पद्धति को सुचारू रूप से क्रियान्वित कर सकें।
समूचा पूर्वोत्तर भारत एवं जम्मू और कश्मीर में किसी प्रकार का कर नहीं लगता क्योंकि सरकार उन्हें आर्थिक रूप से संरक्षित करती है। सहकारी समितियां पूरे देश के गरीबों और कमजोर वर्ग के लोगों की सहायता करती हैं। इन्हें भी सरकार द्वारा इसी प्रकार का संरक्षण चाहिये।
on cooperative organisation”
Key note address by – Shri Dhananjay Kumar Singh
भारत सरकार के वित्तमंत्री श्री प्रणव मुखर्जी ने Direct Tax Code Bill के उद्देश्य और कारण को अपने इन शब्दों में व्यक्त किया है -
The Income–tax Act. 1961, has been subjected to numerous amendments since its passage fifty years ago. It has been considerably revised, not less than thirty–four times, by amendment Acts besides the amendments carried out through the annual Finance Acts. These amendments were necessitated by policy changes due to the changing economic environment, increasing sophistication of commerce, increase in international transactions as a result of globalisation, development of information technology, attempts to minimize tax avoidance and in order to clarify the statute in relation to judicial decisions………………………………………
The Government, therefore, decided to revise, consolidate and simplify the language and structure of the direct tax laws. A draft Direct Taxes Code along with a Discussion Paper was released in August, 2009 for public comments. It proposed to replace the Income–tax Act, 1961 and the Wealth–tax Act. 1956 by a single Act, namely the Direct Taxes Code. Thereafter, a Revised Discussion Paper addressing the major issues was released to June, 2010. The present Bill is the outcome of the process……………………….
भारत सरकार के माननीय वित्त मंत्री जी द्वारा कर के सरलीकरण की प्रक्रिया स्वागत् योग्य है किन्तु इस प्रक्रिया में उन्होंने भारत के गरीबों, किसानों और मजदूरों के आर्थिक हित में कार्य करने वाली उन्हीं’ के द्वारा संचालित सहकारी संस्थाओं को कर के दायरे में लाकर खड़ा कर दिया।
Income Tax Act. जब 1961 में बनाया गया उस समय सभी प्रकार की सहकारी संस्थायें कर के दायरे से मुक्त रखी गयी। फलस्वरूप देश में हरित और श्वेत क्रान्ति हुई और उसने यहां की आर्थिक बदहाली को समाप्त कर इस देश की अर्थव्यवस्था को विकासोन्मुख किया। इको, क्रिभ्कों, अमूल आदि इसके उदाहरण है। बैंकिंग, चीनी मिले, कपड़े के उद्योग एवं अन्य इसी प्रकार की सहकारी संस्थाओं ने भारत की गरीब जनता की आर्थिक उन्नति की आधारशिला रखी।
2007 में भारत सरकार ने पहली बार सहकारी संस्थाओं पर आकयर आरोपित किया। इसके कारण नयी सहकारी संस्थाओं के निर्माण और पूर्व से संचालित सहकारी संस्थाओं के कार्य निष्पादन में कठिनाइयाँ आयीं। इसका विरोध हुआ। 17 जुलाई 2009 को लोकसभा में कृषि अनुदान पर चर्चा करते हुए एन.डी.ए. सरकार में कृषि मंत्री रहे माननीय राजनाथ सिंह जी ने सरकार से मांग की कि सहकारी संस्थाओं पर से आयकर हटाया जाना चाहिये। उनकी इस माँग पर केंद्रीय कृषि मंत्री श्री शरद पवार ने आश्वासन दिया था कि सहकारी संस्थाओं पर से आयकर हटाया जायेगा। कुछ महत्वपूर्ण संस्थाओं के अध्यक्षों एवं संसद सदस्यों का एक प्रतिनिधिमण्डल केंद्रीय सहकारिता प्रकोष्ठ भारतीय जनता पार्टी की ओर से वित्त मंत्री श्री प्रणव मुखर्जी से मिला जिसमें मैं भी शामिल था। हमनें उनको विस्तार से सहकारी समितियों की कठिनाइयों से अवगत् कराया। उन्होंने सुना तो अवश्य परन्तु Direct Tax Code Bill 2010 में किसी प्रकार का प्रभाव हमारी मांग का दिखायी नहीं दिया बल्कि उन सहकारी समितियों पर भी कर लगा दिया जिनको 2007 में Income Tax की धारा 80P के अन्तर्गत छूट दी गयी थी जैसे - Urban Credit, handloom, fisheries, labour, forest produce cooperative आदि।
इस बिल में प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों और तालुका स्तर के ग्रामीण विकास बैंक जो कृषि एवं ग्रामीण विकास के लिये Long term credit देते हो को छूट का प्रावधान किया गया है।
Section 86 (2) (a) में है “the amount of profits derived from agriculture or agriculture related activities; and
(b) The amount of income derived from any other activity, to the extent it does not exceed one lakh rupees.
(3) (a) “Agriculture related activity” means the following a activities, namely :-
(i) Purchase of agricultural implements, seeds, live stock or other articles intended for agriculture for the purpose of supplying them to its members :
(ii) The collective disposal of –
(A) agriculture produce grown by its members; or
(B) dairy or poultry produce produced by its members and,
(iii) Fishing or allied activities, that is to say, the catching, curing, processing, preserving, storing or marketing of fish or the purchase of material and equipment in connection therewith for the purpose of supplying them to its members;
इस छूट का आशय यह है कि कृषि, उत्पाद डेयरी, मछली का उत्पादन, उसका प्रसंस्करण, स्टोरेज आदि जो सदस्य के उपयोग के लिये किया जायेगा उस पर छूट होगी परन्तु यदि उसे किसी को बेचा जायेगा जो सदस्य नहीं है तो एक लाख से अधिक की आय पर कर आरोपित होगा। यह समितियों के सदस्यों की आर्थिक उन्नति में बाधा है।
The First schedule में paragraph B में अन्य समितियों के लिये कर की दरें इस प्रकार हैं -
(I) In the case of every cooperative society –
Rates of Income Tax
(1) Where the total income does not 10 percent of the total income exceeds Rs.10000
(2) Where the total income exceeds Rs.1000 plus 20 percent of the amount by
Rs.10000 but does not exceeds which the total income
Rs.20000 exceeds to Rs.10000
(3) Where the total income exceeds Rs.3000 plus 30 per cent
Rs.20000 of amount by which the
total income exceeds Rs.20000
छूट के दायरे में “Agriculture related activity” कहा गया है जिसे Agriculture produce, dairy, poultry और fisheries के नाम से स्पष्ट किया गया है। वनोपज, हाथ से बने सामान जो लुहार, कुम्हार, बढ़ई, बुनकर आदि द्वारा बनाये गये हैं। छूट की सीमा में नही है। स्वयं सहायता समूहों द्वारा बनाये गये दोने, पत्तल, कागज के packing के सामान आदि भी छूट से बाहर हैं। सहकारी समितियाँ जिनकी मार्केटिंग करती है। उनकी वार्षिक आय यदि दो हजार रूपये भी है तो उस पर इस अधिनियम के अन्तर्गत दस प्रतिशत की दर से 200 रूपये का कर आरोपित होता है। क्या यह उचित है?
बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ भारत के गाँवों को बाजार के रूप में देखती हैं। Microfinance के नाम पर उनका प्रसार गाँवों तक प्रारम्भ हो गया है। ग्रामीण उनके उपभोक्ता हैं। वे लाभ कमाने के लिये गाँव में जा रहे हैं। उन्हें सरकार अनेक सुविधायें दे रही है परन्तु ग्रामीणों द्वारा उनकी छोटी पूँजी से बनी सहकारी समिति चाहे वह marketing, consumer या अन्य किसी भी क्षेत्र में बनी सहकारी समिति हो पर कर लगा कर उन्हें हतोत्साहित किया जा रहा है। इससे स्पष्ट है कि भारत सरकार को यहाँ के गरीब और उनकी गरीबी दिखायी नहीं देती।
इस प्रकार का Heavy Tax Amount किस प्रकार सहकारी संस्थाओं एवं उनके सदस्यों को को प्रभावित करता है। इस विचार विमर्श के कार्यक्रम में हम सब इस पर चर्चा करेंगे।
भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था -
‘भारत गाँवों में बसता है’। ग्रॉमीण विकास के लिये सहकारी समितियों और ग्राम पंचायते दो स्तम्भ है। आज सहकारी बैंक ग्रामीण जनसंख्या के 52% लोगों को ऋण उपलब्ध कराते हैं। युवाओं, महिलाओं और गरीब तबके के लोगों को सशक्त बनाने के लिये सहकारी संस्थाओं का बहुत बड़ा योगदान हो सकता है। वैश्विक आर्थिक युग में मानव सभ्यता ने जीवन में अनेक आयाम खड़े किये हैं। लोगों की आवश्यकतायें बढ़ी हैैं। नये प्रकार की सहकारी समितियों के गठन की उपादेयता बढ़ी है। जन-जन की छोटी-छोटी पंूजी को एकत्र कर कार्यशील पूंजी का निर्माण तदोपरांत सरकार का इन संस्थाओं की कार्यशैली में हस्तक्षेप न करते हुए आर्थिक सहायता प्रदान करने की योजना ग्रामीण भारत को आर्थिक रूप से सशक्त बना कर अन्त्योदय का लक्ष्य पूरा किया जा सकता है। इसे कर लगाकर हतोत्साहित करना इस देश के साथ विश्वासघात होगा। कर के स्थान पर इस क्षेत्र को अनुदान की आवश्यकता है।
इको, क्रिभ्कों जैसे कार्पेरिट कल्चर की संस्थायें भी सहकारिता के क्षेत्र की ही है। अमूल, लिज्जत पापड़ जैसी अनेक बड़ी संस्थायें ग्रॉमीण और शहरी गरीब महिलाओं को लाभ पहुँचा कर बड़ा काम कर रही हैं, जिनकी ख्याति विश्वस्तरीय है।
क्या इकों, क्रिभ्कों पर आयकर लगना चाहिए? अमूल, लिज्जत पापड़ जैसी संस्थाओं पर आयकर लगना चाहिए? भारत के लगभग 6.5 लाख गांवों को खाद बीज की आपूर्ति के लिए उत्तरदायी पैक्स और लैम्प्स जो कृषि के अलावा अन्य कार्य जैसे उपभोक्ता समिति, ग्रामीण कुटीर उद्योग, बुनकर उद्योग आदि चलाती है, उन पर आयकर लगना चाहिए? क्या नगरीय सहकारी बैंक जो गरीब और निचले तबके के लोगों को त्वरित ऋण उपलब्ध कराते है, पर आयकर लगना चाहिए? क्या छोटी-छोटी पूँजी को इक्ट्ठा कर शहर में टेलीफोन बूथ, स्टूडेंट्स कोऑपरेटिव, उपभोक्ता सामग्री, गरीबों के स्वास्थ्य की चिंता करने वाले सहकारी अस्पतालोंurban credit, housing, women cooperatives, labour cooperatives, industrial and govt. employees thrift & credit, अन्य thrift & credit societies पर आयकर लगाना चाहिए? इन सबसे ऊपर आयकर कानून बनाते समय सहकारी संस्थाओं को आयकर से मुक्त रखने की मूल भावना का जो उद्देश्य था क्या वह पूरा हो गया? क्या भारत की गरीबी मिट गई? यदि ऐसा है तो आरक्षण की मूल भावना और संविधान में वर्णित दस वर्ष की व्यवस्था के बाद भी आरक्षण क्यों नही हटाया जाता? भारत सरकार को यदि आय ही बढ़ानी है तो खर्चो में कटौती क्यों नही होती? क्या भारत के गरीबों की सहकारी संस्थाओं पर आयकर लगा देने से भारत सरकार की क्षुधापूर्ति हो जायेगी?
भारत सरकार को चाहिये कि सभी प्रकार की सहकारी समितियों को आयकर से मुक्त रखें। सहकारी समितियां अपने लक्ष्य को ईमानदारी से पूरा करें इसके लिये हस्तक्षेप नहीं वरन ऐसी प्रभावशाली नियामक प्रणाली की रचना की जानी चाहिये। जो पारदर्शिता और सशक्त लोकतन्त्रात्मक पद्धति को सुचारू रूप से क्रियान्वित कर सकें।
समूचा पूर्वोत्तर भारत एवं जम्मू और कश्मीर में किसी प्रकार का कर नहीं लगता क्योंकि सरकार उन्हें आर्थिक रूप से संरक्षित करती है। सहकारी समितियां पूरे देश के गरीबों और कमजोर वर्ग के लोगों की सहायता करती हैं। इन्हें भी सरकार द्वारा इसी प्रकार का संरक्षण चाहिये।
National Executive Committee Meeting (23rd Sept., 2010) at Delhi
भारतीय जनता पार्टी के सहकारिता प्रकोष्ठ की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक भारतीय जनता पार्टी के केन्द्रीय कार्यालय, 11 अशोक रोड, नई दिल्ली-110001, में दिनांक 23.09.2010 को हुई। राष्ट्रीय कार्यसमिति की कार्यवाही निम्न प्रकार सम्पन्न की गई।
उपस्थिति: कार्यसमिति की बैठक में भारत के कुल 19 प्रदेशों से आये प्रदेश संयोजकों, सह-संयोजकों एवं राष्ट्रीय कार्यसमिति के सदस्यों ने भाग लिया। इसमें मणीपुर, नागालैण्ड, पश्चिम बंगाल, गोवा, कर्नाटक, जम्मू व कश्मीर जैसे दूरस्थ प्रदेशों ने भी सहभागिता की।
बैठक की कार्यवाही निम्न अनुसार थी -
भारतीय जनता पार्टी के मोर्चो व प्रकोष्ठों के समन्वयक माननीय श्री महेन्द्र पाण्डेय जी ने दीप प्रज्जवलित कर कार्यक्रम का उद्घाटन किया। इस दौरान राष्ट्रीय महासचिव माननीय श्री थावर चन्द्र गहलोत जी, पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं राष्ट्रीय सचिव माननीय श्री संतोष गंगवार जी, पूर्व केन्द्रीय मंत्री श्रीमती भावना चिखलिया, भाजपा मुख्यालय प्रभारी माननीय श्री श्याम जाजू जी आदि उपस्थित थे।
प्रथम सत्र में भारतीय जनता पार्टी के सहकारिता प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय संयोजक श्री धंनजय कुमार सिंह जी ने सभी सम्माननिय अतिथियों का स्वागत् एवं प्रस्ताविक किया।
उन्होंने भारत में सहकारिता क्षेत्र के विकास, महत्व और प्रकोष्ठ की भावी योजनाओं को विस्तार रूप से प्रतिनिधियों को अवगत् किया। जिसमें सहकारिता प्रकोष्ठ के वैब-साईट, प्रदेश, जिला, मण्डल स्तर तक के प्रशिक्षण की योजना, सहकारिता क्षेत्र में ईमानदारी और पारदर्शिता से जिम्मेदारी को समझ कर कार्य करने, आधुनिक टैक्नोलोजी को प्रयोग में लाने, और सहकारिता के क्षेत्र में एक नयी ‘क्रांति’ लाने का संकल्प लेकर काम करने को कहा। सहकारिता क्षेत्र में उपलब्ध स्वरोजगार के असीम अवसर से अधिकांश लोग वंचित इसलिए रह जाते हैं क्योंकि उनको इस क्षेत्र की जानकारी नहीं होती है। इसका निदान प्रशिक्षण से ही होगा। विशेष रूप से उन्होंने अब तक प्रदेशोें में नियुक्त हुए प्रकोष्ठ के सभी संयोजक व सह-संयोजक की कार्यसमिति में उपस्थित होने पर संतोष व्यक्त करते हुए प्रकोष्ठ का संगठनात्मक वृत प्रस्तुत किया।
मुख्य अतिथि माननीय श्री महेन्द्र पाण्डेय जी ने सभी प्रदेशों से आये प्रतिनिधियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि सहकारिता क्षेत्र में मौजूद भ्रष्टाचार, एकाधिकारवाद और काँग्रेस के द्वारा छल-बल से नियंत्रित सहकारी समितियों व संघ का शुद्वीकरण करने की जरूरत है। अपने-अपने प्रदेशों में ज्यादा से ज्यादा लोगों को सहकारिता के क्षेत्र से जोड़ने के लिए निचले स्तर पर प्रशिक्षण की अनिवार्यता पर उन्होंने जोर दिया।
भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव माननीय श्री थावर चन्द गहलोत जी ने सहकारिता क्षेत्र के मौजूदा स्थिति और सहकारिता क्षेत्र में प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक के संगठनों में भाजपा की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए प्रतिनिधियों का आह्वाहन किया।
सहकारिता प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय सह-संयोजक एड0 वर्षा माडगुलकर जी ने महिला सशक्तिकरण के बारे में बताया की भारत की कुल आबादी का 50% महिलाएं हैं। लेकिन उनके आर्थिक, सामाजिक परिस्थिति आज भी दयनीय है। सहकारी समितियों स्वयं सहायता समूहों के गठन करते समय उसमें महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने और महिला प्रतिनिधियों को आह्वाहन किया कि वो अपने-अपने प्रदेशों में महिलाओं को सहकारी क्षेत्र में जोड़ने और स्वयं सहायता समूह गठन करने के लिए प्रेरित करें।
सहकारिता प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय सह-संयोजक श्री सुनील गुप्ता जी ने सहकारिता क्षेत्र में युवाओं का योगदान और उत्थान के विषय में व सहकारिता के क्षेत्र में स्वरोजगार की असीम अवसर के विषय में प्रकाश डाला।
पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुश्री भावना चिखलिया जी द्वारा चर्चा सत्र का प्रारंभ किया गया। ग्रामीण क्षेत्र, महिला, किसान, गरीब तबके के लोगों को सहकारिता क्षेत्र के द्वारा आर्थिक मजबूती व विकास प्राप्त हुआ है।
सभी प्रदेशों के प्रतिनिधियों ने अपने-अपने प्रदेशों की सहकारिता क्षेत्र की उपलब्धियां और भावी योजनाओं के बारे में सभा को अवगत् किया।
समापन सत्र में भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री श्री जगत् प्रकाश नड्डा जी ने मार्गदर्शन किया। उन्होंने कहा भारत के अधिकांश लोग गांव में रहते हैं और सहकारिता एक ऐसा क्षेत्र है जिसके द्वारा अन्तिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति का उद्धार हो सकता है। 10% वोट बढ़ाने का माननीय राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री नितिन गड़करी जी के संकल्प को पूरा करने में सहकारिता प्रकोष्ठ का सबसे महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है। इसके लिए गांव स्तर तक सहकारिता का प्रशिक्षण व जागरूकता पहुँचाने की जरूरत है। सहकारिता से संगठन का विस्तार निश्चित रूप से होगा। साथ-साथ गरीबों, किसानों, महिलाओं और समाज के सभी वर्ग के लोगों की उन्नति हो सकती है। इसलिए इस क्षेत्र में कार्यरत प्रतिनिधियों को इसे गंभीरता से लेकर काम करने का सुझाव दिया।
अंत में राष्ट्रीय संयोजक, सहकारिता प्रकोष्ठ श्री धंनजय कुमार सिंह जी ने सभा में उपस्थित सभी वरिष्ठ नेतागणों और प्रतिनिधियों को धन्यवाद किया। कार्यक्रम का संचालन राष्ट्रीय सह-संयोजक एड0 वर्षा माडगुलकर ने किया।
उपस्थिति: कार्यसमिति की बैठक में भारत के कुल 19 प्रदेशों से आये प्रदेश संयोजकों, सह-संयोजकों एवं राष्ट्रीय कार्यसमिति के सदस्यों ने भाग लिया। इसमें मणीपुर, नागालैण्ड, पश्चिम बंगाल, गोवा, कर्नाटक, जम्मू व कश्मीर जैसे दूरस्थ प्रदेशों ने भी सहभागिता की।
बैठक की कार्यवाही निम्न अनुसार थी -
भारतीय जनता पार्टी के मोर्चो व प्रकोष्ठों के समन्वयक माननीय श्री महेन्द्र पाण्डेय जी ने दीप प्रज्जवलित कर कार्यक्रम का उद्घाटन किया। इस दौरान राष्ट्रीय महासचिव माननीय श्री थावर चन्द्र गहलोत जी, पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं राष्ट्रीय सचिव माननीय श्री संतोष गंगवार जी, पूर्व केन्द्रीय मंत्री श्रीमती भावना चिखलिया, भाजपा मुख्यालय प्रभारी माननीय श्री श्याम जाजू जी आदि उपस्थित थे।
प्रथम सत्र में भारतीय जनता पार्टी के सहकारिता प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय संयोजक श्री धंनजय कुमार सिंह जी ने सभी सम्माननिय अतिथियों का स्वागत् एवं प्रस्ताविक किया।
उन्होंने भारत में सहकारिता क्षेत्र के विकास, महत्व और प्रकोष्ठ की भावी योजनाओं को विस्तार रूप से प्रतिनिधियों को अवगत् किया। जिसमें सहकारिता प्रकोष्ठ के वैब-साईट, प्रदेश, जिला, मण्डल स्तर तक के प्रशिक्षण की योजना, सहकारिता क्षेत्र में ईमानदारी और पारदर्शिता से जिम्मेदारी को समझ कर कार्य करने, आधुनिक टैक्नोलोजी को प्रयोग में लाने, और सहकारिता के क्षेत्र में एक नयी ‘क्रांति’ लाने का संकल्प लेकर काम करने को कहा। सहकारिता क्षेत्र में उपलब्ध स्वरोजगार के असीम अवसर से अधिकांश लोग वंचित इसलिए रह जाते हैं क्योंकि उनको इस क्षेत्र की जानकारी नहीं होती है। इसका निदान प्रशिक्षण से ही होगा। विशेष रूप से उन्होंने अब तक प्रदेशोें में नियुक्त हुए प्रकोष्ठ के सभी संयोजक व सह-संयोजक की कार्यसमिति में उपस्थित होने पर संतोष व्यक्त करते हुए प्रकोष्ठ का संगठनात्मक वृत प्रस्तुत किया।
मुख्य अतिथि माननीय श्री महेन्द्र पाण्डेय जी ने सभी प्रदेशों से आये प्रतिनिधियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि सहकारिता क्षेत्र में मौजूद भ्रष्टाचार, एकाधिकारवाद और काँग्रेस के द्वारा छल-बल से नियंत्रित सहकारी समितियों व संघ का शुद्वीकरण करने की जरूरत है। अपने-अपने प्रदेशों में ज्यादा से ज्यादा लोगों को सहकारिता के क्षेत्र से जोड़ने के लिए निचले स्तर पर प्रशिक्षण की अनिवार्यता पर उन्होंने जोर दिया।
भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव माननीय श्री थावर चन्द गहलोत जी ने सहकारिता क्षेत्र के मौजूदा स्थिति और सहकारिता क्षेत्र में प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक के संगठनों में भाजपा की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए प्रतिनिधियों का आह्वाहन किया।
सहकारिता प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय सह-संयोजक एड0 वर्षा माडगुलकर जी ने महिला सशक्तिकरण के बारे में बताया की भारत की कुल आबादी का 50% महिलाएं हैं। लेकिन उनके आर्थिक, सामाजिक परिस्थिति आज भी दयनीय है। सहकारी समितियों स्वयं सहायता समूहों के गठन करते समय उसमें महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने और महिला प्रतिनिधियों को आह्वाहन किया कि वो अपने-अपने प्रदेशों में महिलाओं को सहकारी क्षेत्र में जोड़ने और स्वयं सहायता समूह गठन करने के लिए प्रेरित करें।
सहकारिता प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय सह-संयोजक श्री सुनील गुप्ता जी ने सहकारिता क्षेत्र में युवाओं का योगदान और उत्थान के विषय में व सहकारिता के क्षेत्र में स्वरोजगार की असीम अवसर के विषय में प्रकाश डाला।
पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुश्री भावना चिखलिया जी द्वारा चर्चा सत्र का प्रारंभ किया गया। ग्रामीण क्षेत्र, महिला, किसान, गरीब तबके के लोगों को सहकारिता क्षेत्र के द्वारा आर्थिक मजबूती व विकास प्राप्त हुआ है।
सभी प्रदेशों के प्रतिनिधियों ने अपने-अपने प्रदेशों की सहकारिता क्षेत्र की उपलब्धियां और भावी योजनाओं के बारे में सभा को अवगत् किया।
समापन सत्र में भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री श्री जगत् प्रकाश नड्डा जी ने मार्गदर्शन किया। उन्होंने कहा भारत के अधिकांश लोग गांव में रहते हैं और सहकारिता एक ऐसा क्षेत्र है जिसके द्वारा अन्तिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति का उद्धार हो सकता है। 10% वोट बढ़ाने का माननीय राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री नितिन गड़करी जी के संकल्प को पूरा करने में सहकारिता प्रकोष्ठ का सबसे महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है। इसके लिए गांव स्तर तक सहकारिता का प्रशिक्षण व जागरूकता पहुँचाने की जरूरत है। सहकारिता से संगठन का विस्तार निश्चित रूप से होगा। साथ-साथ गरीबों, किसानों, महिलाओं और समाज के सभी वर्ग के लोगों की उन्नति हो सकती है। इसलिए इस क्षेत्र में कार्यरत प्रतिनिधियों को इसे गंभीरता से लेकर काम करने का सुझाव दिया।
अंत में राष्ट्रीय संयोजक, सहकारिता प्रकोष्ठ श्री धंनजय कुमार सिंह जी ने सभा में उपस्थित सभी वरिष्ठ नेतागणों और प्रतिनिधियों को धन्यवाद किया। कार्यक्रम का संचालन राष्ट्रीय सह-संयोजक एड0 वर्षा माडगुलकर ने किया।
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